(zone refining in hindi) मंडल परिष्करण विधि क्या है , मण्डल शोधन या परिष्करण प्रक्रम या प्रक्रिया : यह अयस्क से शुद्ध धातु प्राप्त करने की एक विधि है जो निम्न सिद्धांत पर कार्य करती है –
यह विधि इस सिद्धांत पर
कार्य करता है कि अशुद्धियों की विलेयता धातु की
ठोस अवस्था की अपेक्षा गलित अवस्था में अधिक होती है।
अर्थात जब अशुद्धि ठोस अवस्था में होती है उनकी विलेयता कम होती है और जब अशुद्धियाँ गलित अवस्था में होती है तब इनकी विलेयता अपेक्षाकृत अधिक होती है , यही मंडल परिष्करण विधि का सिद्धान्त होता है।
इस विधि में एक अशुद्ध धातु की बनी हुई छड लेते है जिसके एक किनारे पर वृत्ताकार गतिशील हीटर लगा हुआ रहता है , जैसे ही यह हीटर आगे की तरफ बढ़ता है गलित से शुद्ध धातु क्रिस्टलित हो जाती है और अशुद्धियाँ संलग्न गलित मण्डल में चली जाती है।
इस प्रक्रिया को बार बार दोहराया जाता है और हीटर को एक तरफ से दूसरी तरफ बार बार चलाते है , इससे अशुद्धियाँ इस छड के एक किनारे पर एकत्रित हो जाती है।
छड के जिस भाग पर अशुद्धियाँ एकत्रित हुई है उस भाग को काटकर अलग कर लिया जाता है जिससे बाकी छड शुद्ध धातु की बनी हुई प्राप्त होती है और इस प्रकार अशुद्धियाँ और शुद्ध धातु को अलग अलग कर लिया जाता है , इस सम्पूर्ण विधि को मंडल परिष्करण विधि कहते है।
चित्रानुसार इसमें एक अशुद्ध धातु की बनी हुई छड लेते है इस छड के निचे वृत्ताकार तापक या हीटर लगी होती है , यह हीटर छड के जिस हिस्से पर चलती है वह हिस्सा
ताप के कारण पिघलने लगता है।
इस वृताकार हीटर को छड में आगे की तरफ गति करवाते है , जैसे जैसे हीटर आगे चलता जाता है वैसे वैसे आगे का भाग पिघलता जाता है और पीछे का हिस्सा ठंडा होकर
ठोस रूप लेता जारा है।
चूँकि हमने पढ़ा कि यह विधि इस सिद्धांत पर कार्य करती है कि अशुद्धि ठोस अवस्था में कम विलेय होती है और गलित अवस्था में अधिक विलेय रहती है।
चूँकि इस विधि में हीटर के आगे चलने से छड आगे से गलित अवस्था में होती जाती है और पीछे से ठंडा होने के कारण ठोस अवस्था में बदलती जाती है इसलिए अपनी विलेयता प्रकृति के कारण अशुद्धियाँ भी आगे गलित छड की तरफ हीटर के साथ चलने लगती है , जब इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को बार बार दोहराया जाता है अर्थात हीटर को बार बार पीछे से आगे की तरफ चलाया जाता है तो धीरे धीरे सम्पूर्ण अशुद्धियाँ आगे के हिस्से में एकत्रित हो जाती है अर्थात इस छड के आगे के हिस्से में अशुद्धियाँ एकत्रित हो जाती है , इस अशुद्धि वाले हिस्से को काटकर अलग कर लिया जाता है जिससे बाकी छड के हिस्से में शुद्ध मात्रा में धातु रह जाती है और इस प्रकार इस विधि में शुद्ध धातु और अशुद्धियों को अलग अलग कर लिया जाता है इस प्रक्रिया को ही मण्डल परिष्करण विधि कहा जाता है।
इस विधि द्वारा प्रमुख रूप से अत्यधिक शुद्धता वाले
अर्द्धचालक और अत्यधिक शुद्ध धातुओं जैसे जर्मेनियम , सिलिकन , इंडियम आदि को प्राप्त करने के लिए किया जाता है |