(windmill in hindi) पवन-चक्की की संरचना
पवन-चक्की की संरचना किसी ऐसे विशाल विद्युत पंखे के समान होती है जिसे किसी दृढ़ (PLANE) आधार पर कुछ ऊँचाई पर खड़ा कर दिया जाता है। पवन-चक्की की घूर्णी गति का उपयोग विद्युत जनित्र के टरबाइन को घुमाने के लिए किया जाता है जिससे की विद्युत उत्पन्न की जा सके।
पवन ऊर्जा फार्म
किसी एक पवन चक्की का निर्गत (अर्थात उत्पन्न विद्युत) बहुत कम होता है जिसका व्यापारिक उपयोग संभव नहीं होता। अतः किसी विशाल क्षेत्र में बहुत-सी पवन-चक्कियाँ लगाई जाती हैं तथा इस क्षेत्र को पवन ऊर्जा फार्म कहते हैं।
व्यापारिक स्तर पर विद्युत का निर्माण
1.व्यापारिक स्तर पर विद्युत को प्राप्त करने के लिए किसी ऊर्जा फार्म की सभी पवन-चक्कियों को परस्पर जोड़ लिया जाता है जिसके फलस्वरूप प्राप्त नेट ऊर्जा सभी पवन-चक्कियों द्वारा उत्पन्न विद्युत ऊर्जाओं के योग के बराबर होती है।
2. डेनमार्क को पवनो का देश कहते हैं। हमारे देश की 25 प्रतिशत से भी अधिक विद्युत की पूर्ति पवन-चक्कियों के विशाल नेटवर्क द्वारा विद्युत उत्पन्न करके की जाती है।
जर्मनी भी इस क्षेत्र में हमारे से आगे है। भारत का पवन ऊर्जा द्वारा विद्युत उत्पादन करने वाले देशों में पाँचवाँ स्थान है। यदि हम पवनों द्वारा विद्युत उत्पादन की अपनी क्षमता का पूरा उपयोग करें तो लगभग 45,000 MW विद्युत शक्ति का उत्पादन कर सकते हैं।
पवन उर्जा की विशेषताऐ
1.पवन ऊर्जा नवीकरणीय ऊर्जा का एक पर्यावरणीय-हितैषी स्रोत है।
2. इसके द्वारा विद्युत उत्पादन के लिए बार-बार धन खर्च करने की आवश्यकता नहीं होती। अत: यह उर्जा का स्रोत काफी सस्ता होता है।
पवन उर्जा के उपयोग की सीमाएँ
1.पवन ऊर्जा फार्म केवल उन्हीं क्षेत्र में स्थापित किए जा सकते हैं जहाँ वर्ष के
अधिकांश दिनों में तीव्र पवन चलती हों। टरबाइन की आवश्यक गति को बनाए रखने
के लिए पवन की चाल भी 15 KM/H से अधिक होनी चाहिए।
2. पवनो के नहीं चलने के समय पर ऊर्जा की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संचायक सेलों जैसी कोई पूर्तिकर सुविधा का उपयोग किया जाता है।
3. ऊर्जा फार्म स्थापित करने के लिए एक विशाल भूमि की आवश्यकता होती है। 1MW के जनित्र के लिए पवन फार्म को लगभग 2 हेक्टेयर भूमि चाहिए।
4.पवन ऊर्जा के फार्म को स्थापित करने की आरंभिक लागत (COST) अधिक होती है। इसके अतिरिक्त पवन-चक्कियों के दृढ़ आधार तथा पंखुडि़याँ वायुमंडल में खुले होने के कारण चक्रवात, धूप,वर्षा आदि प्राकृतिक आपदाओ को सहना पड़ता हैं अतः उनके लिए उच्च स्तर के रखरखाव की आवश्यकता होती है।
वैकल्पिक अथवा गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोत
ऐसे उर्जा के स्रोत जिनका पहले कभी भी उपयोग नहीं किया गया है परन्तु प्रौद्योगिकी में उन्नति के साथ ही हमारी ऊर्जा की माँग में दिन प्रतिदिन वृद्धि हो रही है। हम अपने कार्यों को करने के लिए अधिकाधिक मशीनों का उपयोग करते हैं।
हमारी ऊर्जा की माँग में वृद्धि होती जाती है जिसके कारण हमें अधिक ऊर्जा स्रोतों की आवश्यकता होती है। ऊर्जा की माँग में वृद्धि को पूरा करने के लिए प्रौद्योगिकी विकसित कर अनेक नए ऊर्जा के स्रोत खोजे गए है।अब हम अपनी उर्जा की आवश्यकता को पूरा करने के लिए उन नवीनतम स्रोतों का उपयोग करते है जिनका पहले कभी भी उपयोग नहीं हुआ है। प्रौद्योगिकी जो की स्रोतों से संचित ऊर्जा का दोहन करने के लिए डिजाइन किया जाता है।
सौर ऊर्जा
सूर्य लगभग 5 करोड़ वर्ष से निरंतर विशाल मात्रा में ऊर्जा विकरित कर रहा है तथा इस दर से भविष्य में भी लगभग 5 करोड़ वर्ष तक ऊर्जा विकरित करता रहेगा। इस प्रकार सूर्य से प्राप्त उर्जा को सौर ऊर्जा कहते है।
सौर ऊर्जा का केवल एक छोटा भाग ही पृथ्वी के वायुमंडल की बाह्य परतों पर अर्थात् धरती तक पहुँच पाता है। इसका लगभग आधा भाग वायुमंडल से गुजरते समय ही अवशोषित हो जाता है तथा शेष भाग पृथ्वी के पृष्ठ पर पहुँचता है जहां इसका उपयोग कई कार्यो में किया जाता है। भारत में प्रति वर्ष 500,000,000 करोड़ किलोवाट घंटा सौर ऊर्जा प्राप्त होती है।
सौर-स्थिरांक = पृथ्वी के वायुमंडल की परिरेखा पर सूर्य की किरणों के लंबवत स्थित खुले क्षेत्र के प्रति एकांक क्षेत्रफल पर प्रति सेकंड पहुँचने वाली सौर ऊर्जा को सौर-स्थिरांक कहते हैं। जबकि इस क्षेत्र को सूर्य से पृथ्वी के बीच की औसत दूरी पर माना गया है। सौर-स्थिरांक का मान 1.4 kg/sm2 होता है।
परावर्तक पृष्ठ अथवा श्वेत पृष्ठ की तुलना में काला पृष्ठ अधिक ऊष्मा अवशोषित करता है। सौर कुकर तथा सौर जल तापक की कार्य विधि में इसी गुण का उपयोग किया जाता है।
सौर उर्जा से चलने वाली युक्तिया
सूर्य से आने वाली उर्जा का उपयोग उष्मक के रूप में किया जाता है जो की उर्जा को एकत्रित कर कई कार्य करती है।
सौर उर्जा का ऊष्मा के रूप में उपयोग
1. सौर कुकर
2. सौर गीजर
3. सौरल जल पंप
सौर उर्जा का विधुत उर्जा में रूपांतरण
जिन युक्तियो का उपयोग सौर उर्जा को विधुत उर्जा के रूप में परिवर्तन के लिए किया जाता है इसमें आते है उदहारण सौर सेल
1.सौर कुकर = सौर कुकरों में सूर्य की किरणों को फोकसित करने के लिए दर्पणों का उपयोग किया जाता है जो की बहुत अच्छे उष्मक की तरह कार्य करता है अर्थात् इनका ताप बहुत उच्च हो जाता है। सौर कुकरों में काँच की शीट का ढक्कन लगा होता जो की एक बार सौर कुकरों में प्रवेश करने वाली सूर्य की किरणों को बहार निकलने नहीं देती है। सौर कुकरों का उपयोग भोजन को पकाने में किया जाता है।