wien bridge oscillator in hindi वीन सेतु दोलित्र किसे कहते हैं , थ्योरी , चित्र , परिपथ , सूत्र क्या है समझाइये
वीन सेतु दोलित्र किसे कहते हैं , थ्योरी , चित्र , परिपथ , सूत्र क्या है समझाइये wien bridge oscillator in hindi ?
वीन-सेतु ‘दोलित्र (Wien-Bridge oscillator) निम्न से मध्यम आवृत्तियों (10Hz से 1MHz तक) के लिये वीन – सेतु दोलित्र सर्वाधिक उपयोग में आने वाला दोलित्र है। इस दोलित्र के पुनर्निवेशी परिपथ में एक अग्रता पश्चता (lead-lag) परिपथ उपयोग में लाया जाता है। यह परिपथ चित्र (6.4-10) में प्रदर्शित किया गया है। इस परिपथ में एक श्रेणी संबंधन में R – C परिपथ व एक समान्तर संबंधन में R-C परिपथ प्रयुक्त होते हैं। अल्प आवृत्तियों पर श्रेणी संबंधन वाला संधारित्र लगभग खुले परिपथ की अवस्था प्रस्तुत करता है जिससे इस परिपथ का निर्गत संकेत शून्य होता है। उच्च आवृत्तियों पर समान्तर संबंधन वाला संधारित्र अत्यल्प प्रतिबाधा के द्वारा लघुपथित अवस्था उत्पन्न करता है जिससे पुनः निर्गत संकेत शून्य होता है। आवृत्ति की इन चरम अवस्थाओं के मध्य ऐसी अवस्था प्राप्त होती है, जब निर्गत वोल्टता अधिकतम प्राप्त होती है व इस अवस्था में परिपथ द्वारा कला विस्थापन शून्य होता है। इस अवस्था को अनुनादी अवस्था कह सकते हैं। अनुनादी आवृत्ति f पर इस परिपथ की निर्गम वोल्टता (पुनर्निवेशी वोल्टता) तथा इस की निवेशी वोल्टता (प्रवर्धक की निर्गम वोल्टता) का अनुपात अर्थात् पुनर्निवेश- अंश1/3 होता है। अनुनादी आवृत्ति से कम आवृत्तियों पर कला 3 विस्थापन धनात्मक होता है तथा अनुनादी आवृत्ति से अधिक आवृत्तियों पर कला विस्थापन ऋणात्मक होता है।
चित्र (6.4-10) में V1 परिपथ पर निविष्ट संकेत वोल्टता तथा V2 निर्गत संकेत वोल्टता है।
वीन – सेतु दोलित्र में दो चरण वाला प्रवर्धक (two stage amplifier) प्रयुक्त होता है जिससे लब्धि + A तथा कला विस्थापन 2π= 360° प्राप्त होता है। पुनर्निवेश दो स्तर पर किया जाता है, चित्र (6.4-11) की भांति परिपथ से धनात्मक पुनर्निवेश तथा एक अरैखिक अवयव जैसे थर्मिस्टर (thermister) या टंग्सटन लैंप के द्वारा ऋणात्मक पुनर्निवेश । थर्मिस्टर तथा टंग्सटन लैंप का अल्प शक्ति के लिये प्रतिरोध कम होता है और दोलन आयाम बढ़ने पर अर्थात् अधिक शक्ति मिलने पर प्रतिरोध बढ़ जाता है। प्रारंभ में जब दोलन C आयाम कम होता है ऋणात्मक पुनर्निवेश कम होता है व धनात्मक पुनर्निवेश अधिक, जिससे दोलन आयाम बढ़ता है। दोलन आयाम बढ़ने के साथ ऋणात्मक पुनर्निवेश बढ़ता है जिससे आयाम का बढ़ना रूक जाता है और नियत आयाम के दोलन प्राप्त होते हैं। वीन सेतु दोलित्र का सिद्धान्त स्वरूप परिपथ चित्र (6.4-11) में दिखाया गया है। इस परिपथ में प्रतिरोध R’ टंग्सटन लैंप TL श्रेणी संबंधित R – C व समान्तर संयोजित R-C परिपथ एक सेतु की रचना करते हैं जिसके कारण इस परिपथ को वीन सेतु दोलित्र कहा गया है।
अनुनादी आवृत्ति पर पुनर्निवेश अंश B =|V2/V1| =1/3 अतः बाकहाउजन कसौटी से प्रवर्धक की लब्धि A = 3 होनी चाहिये जिससे पूर्ण पाश लब्धि AB = 1 हो। द्वि चरणी प्रवर्धक तथा पुनर्निवेश परिपथ द्वारा उत्पन्न कुल कला विस्थापन 2π + 0 = 2π होता है जो कला प्रतिबन्ध को संतुष्ट करता है।
R-C दोलित्र सामान्य प्रयोगों के लिये बहुत उपयुक्त होते हैं क्योंकि इसकी आवृत्ति धारिता C द्वारा वृहद परास में परिवर्तित की जा सकती है। R-C दोलित्र द्वारा उत्पन्न आवृत्ति में परिवर्तन 1 : 10 अनुपात तक हो सकता है। L-C परिपथ प्रयुक्त करने वाले दोलित्रों में आवृत्ति 1/C के अनुक्रमानुपाती होती है जिससे आवृत्ति परिवर्तन 1/10 अर्थात् 1: 3.16 अनुपात तक ही संभव है।
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