vaccine in hindi , टीके की परिभाषा क्या है , टीका किसे कहते हैं , उदाहरण सहित लिखिए नाम और रोग
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टीके ( Vaccines)
टीके की खोज का श्रेय जेनर (Jenner, 1796 ) को है। इन्होंने पाया कि डेयरी में कार्यरत श्रमिकों को जो काऊ पॉक्स (cow pox) या हार्स पॉक्स (horse pox) से पीड़ित थे महामारी के दौरान चेचक रोग नहीं हुआ। अतः रक्षात्मक क्रिया के रूप में टीकाकरण (vaccination) की पद्धति का विकास हुआ। सर्वप्रथम जैम्स फिप्स (James phipps) नामक 8 वर्षीय बालक को टीका लगाया गया जो काउपॉक्स विक्षत ( cow pox lesions ) से प्राप्त किया गया था। इन्होंने जो टीके तैयार किये गाय से प्राप्त किये गये थे लैटिन भाषा में गाय को वैका (vacca) कहते हैं अतः इनका नामकरण इस प्रकार हुआ। 1800 में बेन्जामिन वाटरहॉऊस (Benzamin Waterhouse) नामक चिकित्सक ने टीकाकरण की क्रिया को दोहराया व अपेक्षाकृत सफलता प्राप्त की। पास्तेर (Pasteur, 1880) चिकन कॉलेरा, एन्थ्रेक्स व रेबीज के टीकों का विकास कर महत्वपूर्ण कार्य किया। टीकाकरण की क्रिया से यह सिद्धान्त विकसित हुआ कि “यदि किसी जीवाणु के अनुग्र विभेद किसी प्राणी में प्रवेशित करा दिये जाते हैं तो उस प्राणी में जीवाणुओं के इस विभेद के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है। ”
एक आदर्श टीके में निम्नलिखित गुण होने चाहिये-
(i) टीके में जीवन पर्यन्त प्रतिरोधकता उत्पन्न करने की क्षमता होनी चाहिए।
(ii) ये प्रयोग में किये जाने हेतु पूर्णतः सुरक्षित होने चाहिये ।
(iii) टीके का एक बार लगाया जाना ही पर्याप्त होना चाहिये बार-बार नहीं ।
(iv) निर्माण आसान एवं उत्पादन लागत कम हो ।
टीकों के प्रकार (Types of vaccines) : वैज्ञानिकों ने अपने प्रकार के टीकों का उत्पादन करने का प्रयास किया है इनमें से कुछ निम्न हैं-
(i) जीवाणुजन्य टीके (Bacterial vaccines) : इस प्रकार के टीके जीवाणुओं के अनुग्र विभेद (avirulent strain) या मृत जीवाणु कोशिकाओं से तैयार किये जाते हैं। टायफॉइड, प्लेग, निमोनिया, मेनिन्जाइटिस, तपेदिक एवं स्ट्रेप्टोकॉकस जनित रोगों के टीके इसके उदाहरण हैं।
(ii) आविष एवं आविषाभ टीके (Toxin and toxoids vaccines) : अनेक जीवाणु अपनी उपापचयी क्रियाओं के दौरान जैव विष (toxins) या आविष का संश्लेषण करते हैं जो पोषक हेतु हानिकारक होते हैं। इन जैव विषों को रासायनिक या भौतिक रूप से परिवर्तित कर अहानिकारक बना लेते हैं, इन्हें टॉक्साइड (toxoid) या आविषाभ कहते हैं। इनका संचारण (transmission) जन्तु की देह में किये जाने पर ये टीके की तरह पोषक के प्रतिरक्षी संस्थान को संवेदनशील बनाकर प्रतिरक्षियाँ उत्पन्न कर उस रोग विशेष से रक्षा करते हैं। सामान्यतः आविष को एल्यूमिनियम सल्फेट से क्रिया कर अवक्षेप प्राप्त करते हैं, जिससे ये अघुलनशील प्रतिजन में बदल जाते हैं। ये लम्बे समय तक प्रभावी बने रहते हैं। इस प्रकार के टीकों के उदाहरण हैं- टेटनस, डिप्थीरिया व पेक्सिन के टीके |
(iii) रिकेट्सी टीके (Rickettsial vaccines) : रिकेट्सी सूक्ष्मजीवों से बनाये जाने वाले टीके, इस श्रेणी में आते हैं। इन सूक्ष्मजीवी को चूजे के अण्डे से परिवर्धनशील, भ्रूण के पीतक थैले (yolk sac) पर संवर्धित करके फॉर्मेल्डिहाइड द्वारा इनको अहानिकारक बनाकर टीकों के रूप में परिवर्तित किया जाता है। इनके संचारण को सावधानी के साथ किया जाता है, क्योंकि अनेक व्यक्तियों को अण्डे के प्रोटीन से प्रत्युजर्या (allergy) होती है अतः वे इसका शिकार हो सकते हैं।
(iv) विषाण्विक टीके (Viral vaccines) : ये जीवित या मृत विषाणुओं से बनाये जाते हैं एवं विषाण्विक रोगों से पोषक को सुरक्षा प्रदान करते हैं। मृत विषाणु से प्राप्त टीकों के उदाहरण इन्फ्लूएन्जा के टीके एवं जीवित विषाणुओं से तैयार टीकों के उदाहरण हैं। पोलिओ, खसरा, छोटी चेचक व गलसुआ के टीके । पीतज्वर,
कृत्रिम निष्क्रिय रोधकक्षमता (artificial passive immunity) रोगकारक जीवाणुओं अथवा विषाणुओं को किसी जानवर (घोड़े या खरहे) के रक्त या सीरम में प्रविष्ट कराकर प्रतिरक्षियाँ उत्पन्न कराई जाती हैं। इन प्रतिरक्षियों को मानव देह में प्रविष्ट कराने की क्रिया भी टीकाकरण ही कहलाती है, इस विधि से चेचक व पोलियों के टीके बनाये जाते हैं। रोधक सीरम बनाने हेतु घोड़ा सर्वोत्तम प्राणी है। प्रति सीरम (antitoxic serum) घोड़े की देह में आविष प्रविष्ट कराकर प्राप्त किया जाता है। डिपिथरिया का टीका इस विधि से बनाया जाता है।
सभी टीके हानिकारक रोगी से रक्षा हेतु सूक्ष्म जीवों या उनके आविष से बनाये जाते हैं अतः इनके निर्माण में पूर्ण सावधानी बरती जाती है एवं विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानकों के अनुसार मानकीकरण (standardization) किया जाता है। टीके लगाने का समय एवं पुनरावृत्ति का काल टीके की प्रवृत्ति के अनुरूप भिन्न-भिन्न होता है।
आधुनिक टीके (Modern vaccin) – पुनर्योगज DNA तकनीक के साथ एक क्लोनी प्रतिरक्षियों का उपयोग कर आधुनिक टीके बनाये जाते हैं। इसके लिये सर्वप्रथम उस DNA श्रृंखला की पहचान की जाती है जो रोगाणु में अविष उत्पन्न करने हेतु उत्तरदायी होती है। अब इस रोगाणु में से इन DNAश्रृंखलाओं को हटा दिया जाता है, इस प्रकार ऐसा क्षीण प्रकार का विभेद प्राप्त होता है जो रोग उत्पन्न करने में अक्षम होता है, का उपयोग किया जाता है टाइफॉइड, प्रवाहिका (diarrhoea) के टीके ई. कोलाई के विभेदों से इसी प्रकार तैयार किये जाते हैं।
एक अन्य विधि में संक्रामक अणु (प्रोटीन, पॉलीसेकेराइड आदि) पर उपस्थित विशिष्ट सतही प्रतिजन स्थलों की पहचान कर ली जाती है। ऐसे जीन्स जो इनसे सम्बन्धित रक्षात्मक प्रोटीन को कोडित करने की क्षमता रखते हैं, क्लोन बनाकर प्राप्त किये जाते हैं। इस प्रकार प्राप्त शुद्ध प्रोटीन को टीके के रूप में विकसित कर लिया जाता है, इस विधि से उत्पन्न विशिष्ट प्रतिजन निर्धारक (antigenic determinant) कारक के प्रति रक्षात्मक विशुद्ध रोधकक्षमता प्राप्त करने योग्य टीकों का निर्माण होता है।
सारणी – 25.2 मनुष्यों में टीके लगाने का समय
क्रं. स.
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प्रतिरोधकता
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उम्र
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1. | DPT | 2-6 महीना
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2. | DPT OPV-(Type III)
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3-4 महीना
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3. | DPT (Top V)
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6 महीना
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4. | खसरा, मम्स, रुबेला (MMR)
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15 महीना
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5. | DPT बूस्टर (TOPY) | 16 – 18 महीना
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6. | DPT बूस्टर (TOPY)
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4-7 वर्ष
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7. | Td (वयस्क) बूस्टर
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14-16 वर्ष
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8. | छोटी चेचक
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प्रत्येक दस वर्ष बाद
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9. | Td (वयस्क) बूस्टर
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10 वर्ष
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सारणी- 25.3 प्रमुख टीकों की प्रकृति एवं रोग जिसके प्रति असंक्राम्यता उत्पन्न कराते हैं।
क्र. सं.
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टीके का नाम
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रोग जिसके प्रति असंक्राम्यता उत्पन्न होती है
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जीवाण्विक टीके
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1. | डी.पी. टी. का टीका
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कुकर खांसी, टेट्नस एवं डिप्थीरिया
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2. | बी.सी.जी का टीका
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क्षय रोग
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3. | टाइफॉइड का टीका
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टाइफॉइड
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4. | हैजे का टीका
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हैजा
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5. | मेनिनजिटिड्स का टीका
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मेन्निगोकोकल मेनिनजाइटिस
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6. | निमोनिया का टीका
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निमोनिया
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विषाण्विक टीके
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7. | पोलियो का टीका
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पोलियो
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8. | खसरे का टीका
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खसरा
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9. | मम्स एवं रुबेला का टीका
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मम्स व रूबेला
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10. | चेचक का टीक
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चेचक रोग (small pox)
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11. | हिपेटाइटिस-B
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हिपेटाइटि ( hepatitis) पीत ज्वर
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12. | रेबिज का टीका
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रेबिज
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टीका निर्माण हेतु एक क्लोनी प्रतिरक्षीकाय (antigenic determinant) कारक के प्रति रक्षात्मक विशुद्ध रोधकक्षमता प्राप्त करने योग्य टीकों का निर्माण होता है।
टीका निर्माण हेतु एक क्लोनी प्रतिरक्षीकाय (monoclonal antibodies) का उपयोग रोगाणु के द्वारा उत्पन्न प्रोटीन प्रतिजन की पहचान करने के लिये किया जाता है, इस विधि से मलेरिया परजीवी प्लाज्मोडियम (Plasmodium) की अनेक जातियों के विरुद्ध टीके विकसित करने में सहायता मिली है। संक्रमणित एनाफिलिज मादा जब पोषक से रक्त भोजन के रूप में ग्रहण करती है तो पोषक में कुछ सतही प्रतिजन प्रतिरक्षी क्रियाओं का समारम्भन करते हैं। ऐसे जीन जो इन सतही प्रतिजन का उत्पादन करते हैं का एक क्लोनी प्रतिरक्षीकाय का उपयोग कर पुनर्योजन DNA ई. कोलाई (E. coli) के साथ बनाया गया। इस प्लाज्मिड DNA में प्लाज्मोडियम का DNA स्पोरोजूइट (sporoite) को पृथक् कर mRNA की सहायता से बनाया जाता है एवं इस cDNA को ई. कोलाई संस्थापक (promotor) के साथ जोड़ दिया जाता है, इस प्रकार प्राप्त युग्मित cDNA जो स्पोरोजूइट के सतही एन्टीजन के अनुरूप विकसित किया गया है को पृथक् कर इसके अनुसार ऐसे पेप्टाइड का संश्लेषण कर लिया जाता है जो टीके का रूप ले लेता है। हिपेटाइटिस B व इन्फ्लुएन्जा, नाइसेरिया, के टीके इन उन्नत तकनीकों से विकसित किये जा चुके हैं। एड्स ( HIV-1 ) के टीके बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं।
सारणी- 25.4 पुनर्योगज DNA विधि से विकसित टीकों के उत्पादन की रूप रेखा
क्र.
सं. I. विषाणु
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रोगाणु
|
क्लोनित जीन
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1. | हिपेटाइटिस B | सतही एन्टीजन (Hbs Ag)
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2. | इन्फ्लूएन्जा
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हम एग्लूटिनिन
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3. | हरपेस
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आवरण की विभिन्न उपइकाईयाँ
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4. | पांव व हाथ के रोग कारक
|
VIP आवरण प्रोटीन
|
5. | HIV
|
सतही एन्टीजन
|
II. अन्य परजीवी
|
||
6. | प्लाज्मोडियम
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स्पोरोजूइट मीरोजूइट सतही एन्टीजन
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7. | ट्रिपेनोसोमा
|
स्पोरोजूइट सतही एन्टीजन
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8. | शिस्टोसोमा
|
स्पोरोइट सतही एन्टीजन
|
9. | ट्राइकिनैला
|
स्पोरोजूइट सतही एन्टीजन
|
10. | फाइलेरिया
|
स्पोरोजूइट सतही एन्टीजन
|
गर्भ निरोधक टीका (Anti pregnancy vaccine) का विकास राष्ट्रीय प्रतिरक्षा विज्ञान संस्थान नई दिल्ली के द्वारा विकसित किया जा चुका है। यह प्रति एच.सी. जी. (ह्यूमन कोरिओनिक गोनेडोट्रापिन) anti HCG वैक्सीन है। इसके टीके को महिला में लगाने पर उसमें गर्भ धारण की क्षमता कुछ समय तक विलोपित हो जाती है तथा माहवारी चक्र जारी रहता है। सामान्यतः 85% महिलाओं में गर्भधारण की क्रिया टीका लगाये जाने के तीन माह बाद तक नहीं होती। इसी प्रकार का एक टीका नर हेतु विकसित किये जाने के प्रयास जारी है। ये टीके प्रतिरक्षी तन्त्र को HCG के प्रति सक्रिय बना कर कार्य करते हैं।
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