कृषि क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग , Bt पादप – (बेसिलस यूरेनाजिऐन्सिस) , RNA अन्तरक्षेप
Use of Biotechnology in Agriculture Sector कृषि क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग – हरित क्रान्ति के बावजूद बढी हुई जनसंख्याको खाद्यान उपलब्ध कराने हेतु तीन संभावनाओं पर विचार किया गया है।
1- कार्बनिक कृषि
2- रसायन आधरित कृषि
3- GMO आनुवाँशिक रूपान्तरित जीव
genetically modified organism (GMO):- वे वादप जीवाणु व अन्य जीव जिनके जीन हस्त कौशल द्वारा रूपान्तरित कर दिये जाते है उन्हें ळडव् कहते है।
महत्व/लाभ/उद्धेश्य:-
उदाहरण:-
Bt पादप – (बेसिलस यूरेनाजिऐन्सिस):-
बेसिलस यूरेनजिऐन्सिस जीवाणु में विशेष प्रकार की प्रोटीन पायी जाती है जो विषक्त होती है। यह पादपों में कलोनिकृत होकर कीट प्रतिरोधकता उत्पन्न करती है। इन्हें पादप कहते है जैसे:-मक्का में cry -1-AB के कूट लेखन से तनाछेदक कीट ठज से रक्षा होती है। इसी प्रकार कपास में व cry -1-AC जीन में कुट लेखन में मुकुल कृतिम cry -1-AB से सुरक्षा होती है इस प्रकार Bt भिण्डी, टमाटर, ठज बैगन आदि बनाये गये है जिनमें भृंग मक्खी, मच्छर आद कीटो से सुरक्षा होती है।
Bt – द्वारा बनायी गयी क्रिस्टलीय प्रोटीन प्राक् ब्तल विष के रूप में होती है जैसे ही कीट इस विषको ग्रहण करता है वह उसकी आँतों के क्षारीय रस के सम्पर्क में आकार सकीम हो जाती है। जिससे उपकला कोशिकाओं में छेद हो जाता है तथा कोशिकाएं फूल कर नष्ट हो जाती है एवं कीट हो जाता है।
उदाहरण:-2 पीडक प्रतिरोब्धी पादप:- नेक सूत्र कृत्रिम का पादपों पर आक्रमण करके उत्पादन को कम कर देते है जैसे मिल्वाडेगाइन इनकोगनिशिया तम्बाकू की जडों सक्रमण करता है। तथा उत्पादन में बहुत कमी लाता अतः जैव प्रौद्योगी द्वारा पीडक प्रतिरोधी पादप बनाये जाते है।
RNA अन्तरक्षेप:- समान्यतः त्छ। एक सूत्री होता है इसे द्विसूत्री बना दिया जाये तो प्रोटी संश्लेषण की क्रिया रूक जाती है इसे RNA अन्तरक्षेप कहते है। एग्रोबैब्टिरियम संवाहकों की सहायता से विशेष DNA को परपोषी कोशिका में प्रवेश कराते है वस्त्र क्छ। दो प्रकार के त्छ। बनाता है। जिससे अर्थ ैमदेम व प्रतिअर्थ छवद.ेमदेम बनाता है। जब सूत्रकृमि पादप पर संक्रमण करता है तो द्विसूत्री बनने के कारण उसमें स्थानाँतरण की क्रिया नहीं होती है। एवं उसकी मृत्यु हो जाती है।
प्प्- चिकित्सा के क्षेत्र में जैव प्रोद्योगिकी का उपयेाग:- विशिष्ट बीमारियेाँ हेतु परम्परागत औषधियों के स्थान पर पुनः ये औषियों का प्रारंभ किया जाता है विश्व में 80 प्रकार एवं भारत में 12 प्रकार की पुनर्योगज औषधियों का प्रयोग किया जाता है।
महत्व/उद्वेश्य:-
अधिक मात्रा में उत्पादन सान्द्राव
अधिक प्रभावी या असरकारक
अधिक सुरक्षित
एलर्जी या अन्य अवाँछित प्रभाव उत्पन्न नहीं होते ।
अनेक औषधियाँ मुंह के द्वाराप्रयोग से ली जा सकती है।
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