एपोमिक्सिस के प्रकार (types of apomixis in hindi) : प्रो. पंचानन माहेश्वरी (1950) के अनुसार एपोमिक्सिस अथवा अपसंयोजन को निम्न प्रमुख वर्गों में विभेदित किया गया है। ये निम्नलिखित है –
I. अनावर्ती असंगजनन (non recurrent apomixis)
II. पुनरावर्ती असंगजनन (recurrent apomixis)
III. अपस्थानिक भ्रूणता (adventive embryony)
I. अनावर्ती असंगजनन (non recurrent apomixis)
इस प्रकार की असंगजनन प्रक्रिया के अंतर्गत गुरुबीजाणु मातृ कोशिका में सामान्य अर्द्धसूत्री विभाजन होते है , यहाँ भ्रूणकोष की अगुणित अंड कोशिका (अगुणित अनिषेकजनन) अथवा भ्रूणकोष की अन्य किसी (अगुणित अपयुग्मन) कोशिका से बिना निषेचन सीधे ही भ्रूण का विकास हो जाता है।
इस प्रकार बनने वाले भ्रूण अगुणित होते है। अगुणित भ्रूण युक्त बीज सामान्यतया बन्ध्य होते है और अगली सन्तति उत्पन्न करने में विफल रहते है। इस प्रकार की असंगजनन प्रक्रिया अथवा अगुणित अपयुग्मन , कुछ पौधों जैसे , पीली कटेली (आरजिमोन मेक्सीकाना) और राजमा (फेसियोलस वल्गेरिस) में सामान्यतया देखी गयी है। इनमें भ्रूणकोष की अगुणित सहायक कोशिकाओं से निषेचन के बिना अगुणित भ्रूण विकसित होता है।
अ. अगुणित अनिषेकजनन (haploid parthenogenesis) –
अनिषेचित अगुणित अंड कोशिका से भ्रूण विकास की प्रक्रिया अगुणित अनिषेकजनन कहलाती है। जोरगेनसन (1928) ने इस प्रकार की प्रक्रिया का अध्ययन सोलेनम की अनेक प्रजातियों में किया है। यहाँ अगुणित अंड कोशिका में निषेचन नहीं होता , इसमें भ्रूण परिवर्धन के लिए परागकण अथवा पराग नलिका से उद्दीपन प्राप्त होता है। यद्यपि पराग नलिका भ्रूणकोष तक सामान्य वृद्धि करती है तथा एक नर युग्मक अंड में प्रवेश भी करता है लेकिन यह अंड के केन्द्रक से संयोजित होने में सफल नहीं होता। परागनलिका के भ्रूणकोष में प्रवेश मात्र से ही अगुणित अंड में विभाजन प्रारंभ हो जाते है तथा परिणामस्वरूप एक अगुणित भ्रूण बन जाता है।
हेगरप (1945) के अनुसार आर्किस मैक्यूलेटा , इपिपेक्टस लेटीफोलिया , प्लेटेन्थिरा क्लोरेन्था डेमेसोनियम आदि कुछ पादपों के बीजाण्डो में अनेक पराग नलिकाएँ प्रविष्ट होती है तथा निषेचन के पश्चात् सामान्य द्विगुणित भ्रूण बनता है लेकिन उपर्युक्त प्रजातियों के कुछ पौधों में यह भी देखा गया है कि इनके बीजाण्डो में एक भी पराग नलिका प्रवेश नहीं करती या ऐसे समय में प्रवेश करती है जबकि निषेचन के लिए बहुत देर हो चुकी होती है। परागनलिका के प्रवेश नहीं कर पाने अथवा देर से प्रवेश करने की अवस्था में अंड विभाजित होकर अगुणित भ्रूण बनाता है।
ब. अगुणित अपयुग्मन (haploid apogamy) –
भ्रूणकोष में अंड के अतिरिक्त किसी अन्य कोशिका से भ्रूण का विकास अगुणित अपयुग्मन कहलाता है। दूसरे शब्दों में अंड कोशिका के अतिरिक्त भ्रूणकोष की अन्य संरचनाओं जैसे सहायक कोशिकाओं अथवा प्रतिमुखी कोशिकाओं से भी अगुणित भ्रूण का निर्माण होता है। लिलियम , बर्जीनिया और इरीथ्रिया की कुछ प्रजातियों के बीजाण्डो में कभी कभी दो भ्रूण पाए जाते है , जिनमें से एक निषेचित अंड से द्विगुणित और दूसरा सहायक कोशिका से अगुणित भ्रूण बनता है।
उपर्युक्त सभी प्रक्रियाओं में अगुणित भ्रूण बनता है। यहाँ गुणसूत्रों का एक ही सेट होने के कारण , इससे विकसित अगुणित पादप में अर्द्धसूत्री विभाजन भी असामान्य होता है और बन्ध्य परागकणों और अंड का निर्माण होता है। इसलिए इन पौधों में सामान्य निषेचन सम्भव नहीं हो पाता। अत: ऐसी अगुणित पौधे बीज नहीं बन सकने के कारण समाप्त हो जाते है।
II. पुनरावर्ती अथवा आवर्त्ती असंगजनन (recurrent apomixis)
इसी प्रकार की संगजनन प्रक्रिया में भ्रूणकोष द्विगुणित होते है , ये प्रपसूतक (जनन अपबीजाणुता) या बीजाण्डकाय (कायिक अपबीजाणुता) की द्विगुणित कोशिकाओं से विकसित होते है। इसके अतिरिक्त विभिन्न पौधों में होने वाले कायिक जनन को भी इसी श्रेणी में सम्मिलित किया जाता है। कायिक जनन के अंतर्गत पौधे की जनन इकाई का प्रवर्ध्य , इसका कोई भी साधारण अथवा विशिष्ट कायिक अंग होता है , जैसे गुलाब की टहनी , पत्थरचिट्टा की पत्ती और आलू का कंद लेकिन आवर्ती असंगजनन में पौधे की जनन इकाई केवल द्विगुणित बीज ही होता है परन्तु यह निषेचन के बिना उत्पन्न होता है और इसका विकास द्विगुणित भ्रूणकोष से होता है।
यहाँ बीजाण्डकाय से विकसित प्रपसूतक अथवा गुरुबीजाणु मातृ कोशिका , अर्द्धसूत्री विभाजन के बिना सीधे ही द्विगुणित भ्रूणकोष में परिवर्धित हो जाती है। ऐसे भ्रूणकोष की सभी कोशिकाएँ अर्थात अंडकोशिका , सहायक कोशिका और प्रतिमुखी कोशिकाएँ द्विगुणित होती है , इनमें से किसी से भी बिना निषेचन अथवा युग्मक संलयन के बिना भ्रूण बन जाता है।
A. जनन अपबीजाणुता अथवा आभासी युग्मन (generative apospory)
प्रपसूतक की द्विगुणित कोशिकाओं से सीधे ही द्विगुणित भ्रूण के विकास की घटना अपबीजाणुता कहलाती है। कुछ भ्रूण विज्ञानी इस प्रक्रिया को द्विगुणित भ्रूणकोष में आभासी युग्मन कहते है , क्योंकि यहाँ भ्रूणपोष के उचित विकास के लिए परागण क्रिया का उद्दीपन आवश्यक होता है।
पार्थेनियम आर्जेन्टेटम की दो किस्में होती है – एक किस्म में गुणसूत्र संख्या 2n = 36 होती है , इस किस्म में गुरुबीजाणु मातृ कोशिका में नियमित विभाजन होते है तथा सामान्य अगुणित मादा युग्मकोद्भिद बनता है। द्विकनिषेचन और त्रिसंलयन के बाद इसमें निर्मित भ्रूण और भ्रूणपोष का विकास सामान्य और समन्वित रूप से होता है। इसके विपरीत दूसरी किस्म (2n = 72) में गुरुबीजाणु मातृ कोशिका में अर्द्धसूत्री विभाजन नहीं होता , द्वयक अथवा चतुष्क भी नहीं बनते , अपितु यह सीधे ही विवर्धित होकर भ्रूणकोष के रूप में कार्य करने लगती है और यहाँ अंड कोशिका से निषेचन के बिना ही सीधे द्विगुणित भ्रूण विकसित हो जाता है , यद्यपि भ्रूण का विकास परागण की अनुपस्थिति में भी सामान्य रूप से हो जाता है लेकिन भ्रूणपोष के उचित विकास के लिए परागण आवश्यक होता है। यहाँ भ्रूण और भ्रूणपोष के विकास में कोइ समन्वय नहीं होता है। परागण के बिना कई बार भ्रूणपोष का पूर्ण विकास नहीं हो पाने से परिवर्धनशील भ्रूण को उचित पोषण नहीं मिल पाता है।
पार्थेनियम , रूबस , मेलस और पोटेन्टीला की अनेक प्रजातियों में भी परागण और पराग नलिका से प्राप्त उद्दीपन के द्वारा निषेचन के बिना ही सीधे द्विगुणित भ्रूण का निर्माण देखा गया है।
B. कायिक अपबीजाणुता (somatic apospory)
बीजाण्डकाय की कोशिकाओं से द्विगुणित भ्रूण का विकास कायिक अपबीजाणुता कहलाता है। कुछ पौधों जैसे – हाइरेसियस में गुरुबीजाणु मातृ कोशिका का अर्द्धसूत्री विभाजन सामान्य रूप से होता है और अगुणित गुरुबीजाणु चतुष्क बनता है लेकिन अर्द्धसूत्री विभाजन के समाप्त होते ही बीजाण्ड के निभागीय सिरे पर उपस्थित एक बीजाण्डकायी सामान्य कायिक कोशिका के आकार में धीरे धीरे वृद्धि होने लगती है जो अनन्त: गुरुबीजाणु चतुष्क को संदलित करके एक अपबीजाणुक भ्रूणकोष बनाती है , चूँकि इसके विकास में अर्द्धसूत्री विभाजन नहीं होता है , अत: यह भ्रूणकोष द्विगुणित होता है। इसकी अंड कोशिका निषेचन के बिना ही विभाजित होकर द्विगुणित भ्रूण बनाती है।
हाइरेसियस के अतिरिक्त कायिक अपबीजाणुता मेलस , क्रीपिस और रेननकुलस आदि अनेक पौधों में देखी गयी है , इनमें अपबीजाणुक भ्रूणकोष , बीजाण्डकाय या अध्यावरण की कोशिकाओं से विकसित होते है।
III. अपस्थानिक भ्रूणता (adventive embryony)
जब भ्रूण का परिवर्धन भ्रूणकोष के अतिरिक्त बीजाण्ड की अन्य किसी कोशिका से होता है तो इस प्रक्रिया को अपस्थानिक भ्रूणता या बीजाणुदभिद मुकुलन कहते है। इस प्रक्रिया में युग्मकोदभिद का निर्माण नहीं होता है। अत: ऐसे भ्रूण निर्माण के द्वारा पौधे में पीढ़ी एकांतरण भी नहीं पाया जाता है।
भ्रूण का निर्माण करने वाली बीजाण्डकायी अथवा अन्य कायिक कोशिका जैसे अध्यावरण कोशिका में कोशिका द्रव्य सघन और गाढ़ा हो जाता है तथा इसका केन्द्रक सक्रीय विभाजन के द्वारा कोशिकाओं का एक छोटा सा समूह बनाता है जो अन्तत: भ्रूणकोष में प्रविष्ट हो जाता है और भ्रूण बनाता है इसे अपस्थानिक भ्रूण कहते है। बीजाण्ड में उपस्थित सामान्य युग्मनजी भ्रूण तथा अपस्थानिक भ्रूण बनाता है , एक ही भ्रूणकोष में रहते है लेकिन इनको स्थिति के आधार पर पहचाना जा सकता है। युग्मनजी भ्रूण में निलंबक उपस्थित होता है तथा यह भ्रूणकोष के बीजाण्डद्वारीय छोर पर स्थित होता है जबकि अपस्थानिक भ्रूण में निलम्बक अनुपस्थित होता है और यह भ्रूणकोष में किसी भी स्थिति में पाया जा सकता है।
सिट्रस अपस्थानिक भ्रूणता का सर्वाधिक उपयुक्त और सामान्य उदाहरण है। इसके अतिरिक्त कक्टेसी , बिक्सेसी , युफोर्बियेसी और आर्किडेसी कुल के अनेक सदस्यों में भी अपस्थानिक भ्रूणता पायी जाती है।
असंगजनन का महत्व या महत्ता (significance of apomixis)
क्योंकि एपोमिक्सिस की क्रिया में अर्द्धसूत्री विभाजन नहीं होता , अत: यहाँ गुणसूत्रों का पृथक्ककरण और पुनर्संयोजन भी नही हो पाता। अत: यह पौधे के लाभदायक गुणों को अनिश्चित काल तक सुरक्षित रखने में सहायक होता है।
परन्तु हम यह भी जानते है कि विकास और विविधता के प्रक्रम में अर्द्धसूत्री विभाजन का अपना विशेष महत्व होता है। अत: अविकल्पी असंगजनित पादप प्रजातियों में यद्यपि लाभदायक गुण काफी समय तक सुरक्षित रहते है लेकिन ये पौधे विकास से वंचित रहते है। इसके विपरीत विकल्पी असंगजनित प्रजातियों में लैंगिक एवं अलैंगिक अर्थात अर्द्धसूत्रता और असंगजनन साथ साथ चलती है अत: इनमें एपोमिक्सस का विशेष महत्व है।
प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1 : असंगजनन में पादप का परिवर्धन होता है –
(अ) केवल अर्धसूत्रण द्वारा
(ब) केवल संयुग्मन द्वारा
(स) युग्मक सयुग्मक और अर्धसूत्रण द्वारा
(द) संयुग्मन और अर्धसूत्रण बिना
उत्तर : (द) संयुग्मन और अर्धसूत्रण बिना
प्रश्न 2 : लैंगिक जनन प्रतिस्थापन की क्रिया कहलाती है –
(अ) बहुभ्रूणता
(ब) उभय मिश्रण
(स) असंगजनन
(द) उपरोक्त कोई नहीं
उत्तर : (स) असंगजनन
प्रश्न 3 : द्विगुणित मादा युग्मकोदभिद का निर्माण होता है –
(अ) द्विगुणीबीजाणुता में
(ब) अपबीजाणुता में
(स) उपरोक्त दोनों में
(द) उपरोक्त कोई नहीं
उत्तर : (अ) द्विगुणीबीजाणुता में
प्रश्न 4 : आभाषी युग्मन का उदाहरण है –
(अ) धतूरा
(ब) मक्का
(स) सोलेनम
(द) उपरोक्त कोई नहीं
उत्तर : (स) सोलेनम