दो भाग टैरिफ क्या है | भारत में विद्युत टैरिफ संरचना two part tariff in hindi two-part tariff in electricity
two part tariff in hindi two-part tariff in electricity दो भाग टैरिफ क्या है | भारत में विद्युत टैरिफ संरचना किसे कहते है ?
दो-भाग टैरिफ
दो-भाग टैरिफ में, एक भाग नियत पहुँच प्रभार (अर्थात् किराया भुगतान) होता है और दूसरा भाग प्रति इकाई मूल्य (अर्थात् स्थानीय कॉल प्रभार) होता है। टेलीफोन और विद्युत के मामले में यह अत्यन्त ही सामान्य है। अब हम इनमें से प्रत्येक के ऊपर विस्तार में दृष्टि डालेंगे।
टेलीफोन
भारत में महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (एम टी एन एल) टेलीफोन के प्रयोग के लिए अपने उपभोक्ताओं से बहु-भाग टैरिफ संरचना प्रभारित करती है। इसमें किराया मूल्य और कॉल प्रभारों अथवा इकाई-मूल्य के अनेक दर सम्मिलित हैं। स्थानीय कॉलों के लिए किराया और कॉल प्रभार लम्बी दूरी के कॉलों के प्रभारों जो अधिक है की तुलना में सस्ते हैं क्योंकि इन पर सब्सिडी है। यह प्रति-सब्सिडी का उपयोग करके बहु-उत्पाद एकाधिकार का मामला है। यह लम्बी दूरी के कॉलों के लिए अपने सीमान्त लागत से उच्चतर मूल्य प्रभारित करता है और स्थानीय कॉलों को उन्हें सीमान्त लागत से कम मूल्य प्रभारित करके प्रति-सब्सिडी प्रदान करता है।
इस समय अधिकतम देय किराया 190 रु. प्रति माह है। इसके बाद, कॉलों को किए गए कॉलों की संख्या के अनुसार प्रभारित किया जाता है जो निम्नवत् है।
कॉलों की संख्या कॉल प्रभार (रु. प्रति कॉल)
150 कॉलों से कम
151 से 400 कॉलों तक
401 से 1000 कॉलों तक
1000 कॉलों से ज्यादा निरूशुल्क
0.80 रु. प्रति कॉल
1.00 रु. प्रति कॉल
1.20 रु. प्रति कॉल
क) किराया मूल्य
किराया मूल्य की गणना प्रति लाइन पूँजी लागत पर की जाती है। लम्बी दूरी के कॉलों की लागत स्थानीय कॉलों की लागत से भिन्न होती है। प्रति लाइन कुल वार्षिक पूँजी लागत 31,000 रु. है। इसमें से, लम्बी-दूरी के उपकरणों से संबंधित लागत एक चैथाई अथवा 7750 रु. है। शेष 23250 रु. की राशि स्थानीय नेटवर्क से संबंधित पूँजी लागत है। यह ब्याज भुगतानों और मूल्य ह्रास के रूप में खर्च होता है। किराया प्रभार इन्हीं लागतों को पूरा करने के लिए होता है।
लम्बी-दूरी के कॉलों के लिए उच्चतर प्रभारों का उपयोग टेलीफोन नेटवर्क के विस्तार के लिए निधियों के सृजन हेतु किया जाता है। टेलीफोन नेटवर्क की कुल पूँजी लागतों का लगभग 75 प्रतिशत स्थानीय नेटवर्क के लिए व्यय किया जाता है और शेष लम्बी दूरी से जुड़े उपकरणों के लिए व्यय किया जाता है। भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ज्त्।प्) द्वारा घोषित नया टैरिफ जिस सिद्धांत पर आधारित है उसे टैरिफ पुनर्संतुलन (जंततप ितम.इंसंदबपदह) कहा जाता है। टैरिफ पुनर्संतुलन के पीछे तर्क यह है कि टैरिफ अथवा मूल्यों को लागत के अनुसार निर्धारित किया जाए। यह तभी किया जा सकता है यदि स्थानीय कॉलों के लिए किराया बढ़ाया जाए और लम्बी दूरी के प्रभारों में कमी आए। ट्राई की मान्यता है कि किराया से प्रतिवर्ष पूँजी लागत का 25 प्रतिशत वसूल होगा। चूँकि 23250 रु. का 25 प्रतिशत 5812 रु. है, उसे 12 से विभाजित कर दिया जाए तो जो मासिक किराया निकलता है वह 484 रु. होता है। यह 190 रु. के वर्तमान किराया से बहुत अधिक है। इस प्रकार ट्राई ने पाया कि सिर्फ लागत पर आधारित किराया बहुत अधिक था। इसलिए, इसने बाजार मूल्यों में वृद्धि अथवा मुद्रास्फीति और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के आधार पर किराया की गणना करने का निर्णय किया। तत्पश्चात् , इसने प्रभारित किए जाने वाले किराया की घोषणा की जो 70 रु. से 310 रु. तक था। किंतु यह लागत पूरी करने के लिए पर्याप्त नहीं है। लम्बी दूरी के प्रभार बड़े पैमाने पर किरायों के लिए सब्सिडी देना जारी रखेंगे।
ख) कॉल प्रभार
कॉल प्रभारों की गणना इस सिद्धान्त पर की जाती है कि इनसे पूँजीगत लागत जैसे ब्याज और मूल्यह्रास को छोड़कर प्रचालन लागत निकल जाए । स्थानीय कॉलों के प्रभार से भी सिर्फ प्रचालन लागत आता है। इसके विपरीत, लम्बी दूरी के कॉलों से दो प्रकार की लागतों को पूरा होना चाहिए। एक, लागत आधारित किराया और वास्तविक (निम्न) किराया का अंतर। और दो, लम्बी दूरी से संबंधित उपकरण से जुड़ी लागत। प्रत्येक प्रकार के कॉल के लिए टैरिफ की गणना करने के लिए ट्राई अपने प्रचालन लागतों को उस कॉल के कुल मिनट की संख्या से विभाजित करती है। स्थानीय कॉलों पर आने वाला लागत का हिस्सा कुल लागत का 83 से 90 प्रतिशत के बीच होता है। स्थानीय टैरिफ की गणना के लिए इसे कॉलों के कुल मिनट की संख्या से विभाजित किया गया।
विद्युत
भारत में, विद्युत उत्पादन, पारेषण और वितरण की प्रक्रिया विभिन्न राज्यों विद्युत बोर्डो, क्षेत्रीय विद्युत बोर्डों और अन्य संगठनों जैसे राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम (एन टी पी सी), जल विद्युत निगम (एन एच पी सी), परमाणु ऊर्जा विभाग इत्यादि द्वारा चलाई जाती है। इन्हें सामान्यतया केन्द्रीय संयंत्रों के रूप में जाना जाता है। विद्युत संयंत्रों की संस्थापनाएँ (utilities), अथवा इकाइयाँ (units) भी कहा जाता है।
विद्युत उत्पादन, पारेषण और वितरण की लागत के विभिन्न घटक हैं। विद्युत के उत्पादन में ईंधन, श्रमशक्ति और विद्युत संयंत्रों के प्रचालन का लागत सम्मिलित है। पोषण और वितरण लागत जैसे उपभोक्ता से संबंधित सेवाएँ और उपरि व्यय में मीटर सर्विस, बिल संग्रह और स्टाफ लागत सम्मिलित हैं। इन लागतों में से कुछ अलग-अलग प्रकार के उपभोक्ताओं जैसे आवासीय, कृषि वाणिज्यिक और औद्योगिक प्रयोक्ता के लिए भिन्न होते हैं। विद्युत के लिए प्रभारित मूल्य में इन लागतों का भिन्न-भिन्न प्रयोग होना चाहिए। दूसरे शब्दों में, भिन्न-भिन्न उपभोक्ताओं से प्रभारित मूल्यों को लागत में उनके अलग-अलग योगदान पर निर्भर करना चाहिए। भारत में, घरेलू, वाणिज्यिक और कृषि उपभोक्ताओं के लिए स्टाफ लागत सर्वाधिक है क्योंकि बड़ी संख्या में कम राशि के बिलों को निपटाना पड़ता है। विभिन्न प्रकार के उपभोक्ताओं में एक अन्य अंतर उनकी माँग का मूल्य लोच है। इसलिए, जब विद्युत का मूल्य बढ़ाया जाता है तब उच्चतर लोच वाले उपभोक्ता अन्य उपभोक्ताओं की अपेक्षा माँग में अधिक कमी करेंगे। मूल्य संरचना की रूपरेखा तैयार करते समय इस घटक को भी ध्यान में रखना चाहिए।
अधिकांश देशों में विद्युत के मूल्य निर्धारण में दो-भाग टैरिफ प्रणाली का अनुसरण किया जाता है। जब बृहत् संयंत्रों के रूप में नई क्षमता का सृजन किया जाता है, अतिरिक्त पूँजी लागत का परिणाम उच्चतर किराया मूल्य होता है। इसके विपरीत, उदाहरण के लिए, जब ईंधन की लागत बढ़ती है, इसके परिणामस्वरूप सिर्फ इकाई मूल्य में वृद्धि होनी चाहिए। कुछ देशों में दिन-का-समय मूल्य निर्धारण प्रणाली का भी अनुसरण किया जाता है। अर्थात् , अधिकतम भार के समय अधिक मूल्य, प्रभारित किया जाए और सामान्य भार को घंटों के दौरान कम मूल्य लिया जाए पश्चिमी यूरोप के कुछ देशों में, अधिकतम भार मूल्य सामान्य भार मूल्य की अपेक्षा 6 से 10 गुणा अधिक है। सामान्य भार घंटों में कम मूल्य का यह औचित्य बताया जाता है कि इन घंटों के दौरान क्षमता उपयोग कम होता है। दिन में उपयोग के समय की निगरानी के लिए अलग प्रकार के विद्युत मीटरों की आवश्यकता होगी जो कि अधिक खर्चीले हैं। इन्हें बृहत् औद्योगिक प्रयोक्ताओं के लिए लगाया जा सकता है।
भारत में इन दोनों प्रणालियों, दो-भाग टैरिफ और दिन में उपयोग के समय मूल्य निर्धारण, में से किसी का भी उपयोग नहीं किया जाता है। यद्यपि कि भारत में अधिकांश राज्य विद्युत बोर्ड, टेलीफोन के बिल की भाँति ही, उपभोग के अधिक स्तर के लिए अधिक मूल्य की माँग करते हैं, वे कृषि उपभोक्ताओं से काफी कम मूल्यों की माँग करते हैं। विद्युत मूल्य निर्धारण का एक महत्त्वपूर्ण घटक सेवा की गुणवत्ता है। यह बिजली की आपूर्ति की फ्रीक्वेन्सी, वोल्टेज और एक वर्ष के दौरान बिजली की आपूर्ति में व्यवधान आने की संख्या पर निर्भर करता है। विद्युत का मूल्य निर्धारण इस प्रकार होना चाहिए कि औद्योगिक उपभोक्ताओं जिन्हें निर्बाध विद्युत पूर्ति की आवश्यकता होती है, को इसके लिए अधिकांश लागत का वहन करना चाहिए। इतना ही नहीं, प्रेषण और वितरण हानियों के कारण लागत अधिक होती है, उदाहरण के लिए आवासीय और कृषि उपभोक्ता कम वोल्टेज पर बिजली लेते हैं। अतएव, समुचित टैरिफ नीति के लिए विभिन्न विवरणों के एकत्र करने की आवश्यकता होगी। इसमें, संस्थापनाओं की लागत संरचना, दिन के भिन्न-भिन्न घंटों में लोड और विभिन्न उपभोक्ताओं की माँग की मूल्य लोच।
बोध प्रश्न 1
1) भारत में किस-किस प्रकार के मूल्य प्रचलित हैं?
2) दो भाग टैरिफ से आप क्या समझते हैं? उदाहरण दीजिए।
3) दिन के समय मूल्य निर्धारण से आप क्या समझते हैं?
4) भारत में विद्युत टैरिफ संरचना की क्या प्रणाली है? स्पष्ट कीजिए।
हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics