मरोड़ी दोलक क्या है , Torsional Pendulum in hindi
Torsional Pendulum in hindi मरोड़ी दोलक क्या है किसे कहते हैं ?
मरोड़ी दोलक (Torsional Pendulum)
चित्र (8) में दर्शाय अनुसार किसी लम्बे तथा पतले तार के एक सिरे को दृढ आधार पर कस (clamp) कर दूसरे सिरे पर भारी पिण्ड जैसे गोला, चकती इत्यादि लटका दें तो यह व्यवस्था मरोड़ी दोलक कहलाती है। इस पिण्ड को तार के सापेक्ष मरोड़ (twist) कर छोड़ दिया जाय तो पिण्ड मरोड़ी दोलन करने लगता है।
माना तार की ऐंठन दृढता या प्रत्यानयन बलाघूर्ण प्रति एंकाक ऐंठन कोण c है। पिण्ड को θ कोण से मरोड़ने पर तार में प्रत्यानयन बलाघूर्ण c θ उत्पन्न हो जाता है। यदि घूर्णन अक्ष (तार) के सापेक्ष पिण्ड का जड़त्व आघूर्ण I तथा किसी क्षण पिण्ड का कोणीय त्वरण d2 θ /dt2 है तो पिण्ड के मरोड़ी गति का समीकरण होगा
I d2 θ/dt2 = – c θ
या d2 θ/dt2 + c/1 θ = 0 …………………………(1)
यह कोणीय सरल आवर्ती गति के अवकल समीकरण के समतुल्य होता है। अतः मरोड़ी दोलन का आवर्त्त काल
T = 2π √I/c
(iii) प्रेरकत्व-धारिता परिपथ (L-Ccircuit)
चित्रानसार (9) एक विद्युत परिपथ में प्रेरक कुण्डली L तथा संधारित्र C समान्तर क्रम में संयोजित
यदि संधारित्र पर q आवेश है तो संधारित्र पर विभवान्तर
Vc = q/C …………………..(1)
माना इस विभवान्तर के कारण प्रेरक कुण्डली में I धारा बहती है।
प्रेरक कुण्डली के सिरों पर विभवान्तर
VL = – L di/dt = L d2q/dt2 क्योंकि धारा I = – dq/dt ……………..(2)
चूँकि परिपथ में कोई वि.वा.बल का स्रोत नहीं है।
VL + VC = 0
समीकरण (1) व (2) रखने पर
L d2q/dt2 + q/c = 0
D2q/dt2 + q/CL = 0
यदि ω0 = मान लें तो
D2q/dt2 + ω02q = 0 …………………………………..(3)
यह समीकरण सरल आवर्ती दोलक के अवकल समीकरण के समतुल्य है। अतः संधारित्र पर आवेश का मान आवर्ती रूप से परिवर्तित होता है और एकान्तर रूप से धनात्मक तथा ऋणात्मक होता है।
आवेश के परिवर्तन का आवर्त्तकाल
T = 2π √LC
या आवृत्ति n = 1/2π √LC ………………………..(4)
समीकरण (3) के हल को निम्न प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं,
Q = q0 sin (ωot + φ) …………………………………(5)
परतु t = 0 पर q = q0 तथा I = dq/dt = 0 होता है।
Sin φ = 1
Φ = π/2
Φ का मान समीकरण (5) में रखने पर
q = q0 sin (ωot + π/2) = q0 cos ωot ……………………….(6)
…..(6)
अतः संधारित्र की प्लेटों पर आवेश +q0 तथा –q0 के मध्य समीकरण (4) द्वारा प्रदत्त आवृत्ति 1/2π√LC परिवर्तन होता रहता है।
परिपथ में समय t पर धारा
I = – dq/dt = ωoq0 sin ωot ………………………..(7)
यह धारा भी सरल आवर्ती रूप से परिवर्तित होती है।
(a) L-C परिपथ के रूप में दोलित्र की ऊर्जा
सधारित्र पर समय t पर एकत्रित आवेश q के कारण विद्यत क्षेत्र के रूप में संग्रहित ऊजा
Ue – ∫VC dq
= ∫q/C dq = q2/2C
= 1/2C q02 cos2 ωot ………………………………………….(8)
समय t पर ही प्रेरक कुण्डली में धारा I स्थापित करने में चम्बकीय क्षेत्र के रूप में संग्रहित ऊर्जा
UM = ∫VL (Idt)
= ∫L di/dt I dt
= 1/2 LI2
= 1/2 Lωo2q02 sin2 ωot ……………………………..(9)
वैद्युत दोलनों के कुल ऊर्जा
E = UE + UM
E = 1/2C q02 cos2 ωot + 1/2 Lωo2 q02 sin2 ωot
= 1/2C q02 cos2 ωot + 1/2 L 1/LC q02 sin2 ωot
E = q02/2C …………………………(10)
अर्थात् वैद्युत दोलनों में कुल ऊर्जा नियत रहती है।
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