वर्तमान भूत की कुंजी है स्पष्ट कीजिए , वर्तमान भूत की कुंजी है किसने कहा था कथन किसका है the present is key to the past describes the theory of
the present is key to the past describes the theory of in hindi वर्तमान भूत की कुंजी है स्पष्ट कीजिए , वर्तमान भूत की कुंजी है किसने कहा था कथन किसका है the present is key to the past describes the principle of uniformitarianism ?
वर्तमान में जो भूगर्भिक तथा नियम कार्यरत हैं, वे ही समस्त भूगर्भिक इतिहास में कार्यरत थे, परन्तु उनकी सक्रियता में अन्तर था (The same physical processes and laws that operate today] operated throuhout geologic time] although not necessarily always with the same intensity as now).
उपर्युक्त संकल्पना का तात्पर्य है कि – किसी स्थलखण्ड पर जो प्रक्रम अपरदन अथवा निक्षेप कार्य वर्तमान में कर रहा है, वह भूतकाल में भी अपरदन तथा निक्षेप कार्य किया होगा। हो सकता है, उनकी क्रियाशीलता में अन्तर रहा होगा। अर्थात् इस समय कोई प्रक्रम तीव्रगति से कार्य कर रहा है, तो यही प्रक्रम भूतकाल में भी कार्य किया होगा। हो सकता वर्तमान समय से और तीव्र अथवा मन्दगति से कार्य किया होगा?
वास्तव में, इस संकल्पना की आधारशिला जेम्स हटन ने 1785 ई० में रखा था। इनका विचार था कि ‘भूगर्भिक प्रक्रम भूगर्भिक इतिहास के प्रत्येक काल में समान रूप से सक्रिय थे।‘ परन्तु इनकी संकल्पना में महान दोष यह था कि प्रत्येक प्रक्रम, प्रत्येक काल में समान रूप से सक्रियि थे। यह तथ्य सम्भव है कि कोई प्रक्रम प्रत्येक समय एक सा कार्य कर सकता है। यदि इनका तात्पर्य यह था कि – प्रत्येक प्रक्रम का स्वभाव एक जैसा प्रत्येक काल में होता है। अर्थात् आज डेल्टा का निर्माण किसी नदी ने किया है, तो अन्य कोई नदी भूतकाल में भी डेल्टे का निर्माण किया होगा! अर्थात् नदी प्रक्रम लेकर यह उदाहरण प्रस्तुत कर सकते हैं कि जो कार्य नदी द्वारा आज किया जा रहा है, वह भूतकाल में भी किया हो गया था। नदी यदि वर्तमान में घाटी का निर्माण कर रही है, तो भूत काल में सागर का निर्माण नहीं किया होगा, बल्कि घाटी का निर्माण किया होगा। इस तथ्य को माना जाय तो जेम्स हटन की संकल्पना सही प्रतीत होती है, परन्तु प्लेफेयर इनके इस रहस्य में विचार न करके, बल्कि उन्होंने सोचा कि प्रक्रम सभी काल में समान रूप से कार्य नहीं करेगा। इसलिये इस संकल्पना का संशोधन करके बताया कि – ‘‘वर्तमान समय में जो भूगर्भिक प्रक्रम तथा नियम. कार्यरत हैं, वे ही समस्त भूगर्भिक इतिहास में कार्यरत थे, परन्तु उनकी सक्रियता में अन्तर था।‘‘
चापल्येल ने अपनी पुस्तक ‘भूगर्भशास्त्र के सिद्धान्त‘ में विशद व्याख्या करने का प्रयास किया है। आज इसे ‘मार्डन ज्यौलिजी‘ में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। साथ-ही-साथ इसको आधारभूत सिद्धान्त माना गया। यदि एक बार पुनः विचार करें, तो स्पष्ट होता है कि इस सिद्धान्त का प्रतिपादन वास्तव में हटन ने किया था, जिसका परिमार्जित रूप चायल्येल ने प्रस्तुत किया। हटन ने इस संकल्पना के आधार पर इतना तक कह दिया था कि ‘वर्तमान भूत की कुंजी है (The present is key to the past).” अर्थात् वर्तमान में भूपटल पर जो भी प्रक्रम कार्य कर रहे हैं, उनको देखकर भूतकाल के इतिहास को जाना जाता है।
हटन का विचार है कि जो प्रक्रम वर्तमान में कार्यरत हैं, वे भूतकाल में भी कार्यरत थे तथा उनकी कार्य-प्रणाली एक जैसी थी। अब हम इस तथ्य पर विचार करेंगे कि क्या इनकी यह विचारधारा उचित है? हटन ने जो यह दावा किया है कि प्रक्रम प्रत्येक समय में कार्यरत थे तथा उनकी सक्रियता प्रत्येक काल में समान रूप से थी, विल्कुल गलत है। इसका स्पष्टीकरण एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। कार्बानिफरस तथा प्लीस्टोसीन युगों में हिमकाल के कारण हिमानी अपरदन अन्य कारकों की अपेक्षा अधिक सक्रिय था। साथ-ही-साथ आज के हिमानी प्रक्रम से भी उस समय का हिमानी-प्रक्रम अधिक सक्रिय था। एक बात और स्पष्ट कर दें कि वर्तमान के स्थलरूपों का गहराई से अध्ययन करने पर स्पष्ट हुआ है कि आज जहाँ पर आर्द्र जलवायु है तथा जलीय प्रक्रम सक्रिय है, वहाँ पर अतीत काल में शुष्क जलवाय थी तथा पवन का अपरदन-कार्य सक्रिय था। आज जहाँ पर शुष्क जलवायु है तथा पवन का कार्य सक्रिय है, वहाँ पर अतीत काल में आर्द्र जलवायु थी तथा जलीय प्रक्रम सक्रिय था। इंग्लैण्ड की खुदाई के आधार पर स्पष्ट होता है – कभी वहाँ पर उष्णार्द्र प्रकार की जलवायु रही होगी।
वर्तमान में प्लेट विवर्तनिक सिद्धान्त को अधिक प्राप्त हो चुकी है। इस सिद्धान्त में स्पष्ट किया गया है कि पृथ्वी अनेक प्लेट में विभक्त है तथा प्रत्येक प्लेट गतिशील हैं। अतीतकाल में इनका बड़े पैमाने पर खिसकाव हुआ। इस आधार पर प्रत्येक प्लेट में जलवायु परिवर्तन स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। उदाहरणार्थ- भारत के उड़ीसा प्रान्त में तालचीर में कोयले की परत के नीचे हिमानी के गोलाश्म दिखाई देते हैं। अर्थात यहाँ पर कभी हिमानी प्रकार की जलवायु रही होगी। वर्तमान में कोयले का पाया जाना उष्णार्द्र प्रकार की जलवाय को स्पष्ट करता है। यदि हम ज्वालामुखी प्रक्रम को ले तो स्पष्ट होता है कि यह वर्तमान में उतना सक्रिय नहीं है, जितना कि अतीतकाल में था। इससे स्पष्ट होता है कि प्रत्येक काल में प्रक्रम सक्रिय तो थे, परन्तु उनकी सक्रियता में अन्तर था। साथ-ही-साथ प्रत्येक स्थान पर प्रक्रमों में काफी परिवर्तन हुआ है।
हटन महोदय काफी क्षेत्रों का पर्यवेक्षण करने के बाद अपने सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था,परन्तु ऐसा लगता है कि इन्होंने अपने अध्ययन का केन्द्र-बिन्दु नदी प्रक्रम को माना, क्योंकि नदियाँ प्रत्येक समय में कुछ-न-कुछ सक्रिय अवश्य रहती हैं। प्लेफेयर के द्वारा परिमार्जित इस संकल्पना का विश्लेषण करें तो स्पष्ट होता है कि इन्होंने काफी अध्ययन के बाद इस संकल्पना का प्रतिपदान किया है। इनकी यह बात कि – प्रक्रमों के कार्य की मात्रा में अन्तर होता है, सत्यता के काफी निकट है। उदाहरणार्थ – नदियाँ वर्तमान की भाँति भूतकाल में कार्य किया होगा। यदि नील नदी ईसा के पूर्व डेल्टा का निर्माण किया, तो वर्तमान में भी अन्य नदियाँ डेल्टा का निर्माण कर रही हैं। यदि प्लीस्टोसीन युग में हिमनद ने अपरदनात्मक कार्य करके विभिन्न प्रकार की स्थलाकृतियों का निर्माण किया था, तो वर्तमान में हिमनद उसी तरह से सक्रिय है। यदि भूमिगत जल ने पर्मियन तथा पेन्शलवेनियन युगों में घुलन क्रिया द्वारा विभिन्न प्रकार की स्थलाकृतियों का निर्माण किया, तो वर्तमान में भी घुलन क्रिया के द्वारा विभिन्न प्रकार की स्थलाकृतियों का निर्माण कर रहा है। यदि भूतकाल में पवन ने अपरदन तथा निक्षेप के द्वारा विभिन्न प्रकार की स्थलाकृतियों का निर्माण किया था, तो वर्तमान में अपरदनात्मक तथा निक्षेपात्मक स्थलरूपों का निर्माण कर रहा है। इनकी यह बात सही प्रतीत होती है। परन्तु, यदि हम इनकी इस बात का विश्लेषण करें कि – वर्तमाना में जो भूगर्भिक प्रक्रम तथा नियम कार्यरत हैं। वे ही भूगर्भिक इतिहास में कार्यरत थे। वर्तमान में हिम नदी, पवन तथा भूमिगत जल सभी प्रक्रम कार्य कर रहे हैं। ये भूतकाल में भी सक्रिय थे। तब तो उपर्यत तथ्य सही प्रतीत होता है। परन्तु इनका विचार किसी एक स्थलखण्ड पर जो प्रक्रम कार्य कर रहा है, वहाँ पर वही प्रक्रम भूतकाल में भी कार्य किया होगा, …. सम्भव नहीं है, क्योंकि विवर्तनिक सिद्धान्त के द्वारा स्पष्ट किया जा चुका है कि अतीत में प्रत्येक स्थान की जलवायु में भीषण परिवर्तन हुआ था। अर्थात यह संकल्पना न तो पूर्णरूपेण से ग्राह्य है, न तो पूर्णरूपेण तिरस्कृत है।
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