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वृषण तथा अण्डाशय क्या है , कार्य , प्रभाव , लक्षण , संरचना , चित्र Testes and ovaries in hindi

वृषण (Testes) : वृषण शुक्रजनन द्वारा शुक्राणु उत्पन्न करने के अतिरिक्त हार्मोन का स्त्राव भी करते है , वृषण की शुक्रजनन नलिकाओ (सेमेनीफेरस नलिकाओं) द्वारा शुक्राणु उत्पन्न होते है इन कोशिकाओ के बीच अनेक अन्तस्त्रावी कोशिकाएँ धँसी रहती है जिन्हें अन्तराली कोशिकाएँ या लैंडिंग कोशिकाएं कहते है | अन्तराली कोशिकाओ द्वारा नर लिंगी हार्मोन का स्त्राव होता है , ये नरलिंगी हार्मोन टेस्टेस्टेरॉन व एन्ड्रोस्टेरॉन होते है , ये हार्मोन नर में गौण लैंगिक लक्षणों का विकास करते है , जैसे आवाज का भारी होना , दाढ़ी मूंछो का विकसित होना , मांशपेशियों का विकसित होना , मैथुन इच्छा , आक्रामकता आदि , टेस्टेस्टेरॉन शुक्रजनन के लिए भी आवश्यक है |

अण्डाशय (ovaries)

मादा में एक जोड़ी अण्डाशय पाये जाते है , इसका प्रमुख कार्य अण्डजनन है , इसके अतिरिक्त इसकी ग्राफी पुटिकाओ द्वारा स्टेरॉइड प्रकृति के हार्मोन स्त्रवित होते है , ये दो प्रकार के होते है –

  1. एस्ट्रोजन : ग्राफी पुटिकाओ से स्त्रवित यह हार्मोन मादा में द्वितीय लैंगिक लक्षणों जैसे स्तनों का विकास , आवाज का महीन होना , नितम्ब का भारी होना , मासिक चक्र प्रारम्भ होना , शालीनता एवं मैथुन इच्छा जाग्रति का विकास होना आदि लक्षण विकसित होते है |
  2. प्रोजेस्ट्रॉन : कोपर्स ल्यूटियम द्वारा स्त्रवित यह हार्मोन मादा में स्तनों के विकास एवं दूध स्त्रवण को प्रेरित करता है साथ ही गर्भाधारण को प्रेरित करता है | एस्ट्रोजन की कमी से द्वितीय लैंगिक लक्षणों के विकास में कमी तथा मासिक चक्र में अनियमितता आ जाती है , एस्ट्रोजन की अधिकता से मासिक चक्र में अनियमितता के साथ कैंसर भी हो सकता है |

हार्मोन क्रिया की आण्विक क्रियाविधि

हार्मोन कोशिकाओ की उपापचय दर में वृद्धि करते है , हार्मोन की सूक्ष्म मात्रा ही कोशिकाओं की क्रियाशीलता को प्रभावित करने में सक्षम होती है | हार्मोन के कोशिकाओ की सक्रियता एवं उपापचय दर पर प्रभाव के आधार पर इनकी क्रियाविधि को तीन श्रेणियों में बाँट सकते है –

  1. कोशिका कला की पारगम्यता में परिवर्तन : कोशिकाओ की कोशिका कला में ग्राही प्रोटीन होती है जो सोडियम आयन पोटेशियम आयन , कैल्शियम आयन आदि के आवागमन के लिए चैनल की भांति कार्य करती है | हार्मोन ग्राही प्रोटीन से संयोग कर चैनल को बंद कर देते है जिससे आयनों की पारगम्यता प्रभावित हो जाती है , इस परिवर्तन के कारण ही लक्ष्य कोशिकाओ की उपापचय सक्रियता बदल जाती है |
  2. जींस के माध्यम से उपापचयी परिवर्तन : स्टिरोइड हार्मोन लिपिड में घुलकर कोशिका द्रव्य में प्रवेश करते है , कोशिका द्रव्य में ग्राही प्रोटीन से संयोजित होकर समिक्ष अणु (complex molecule) का निर्माण करते है , यह समिक्ष अणु केन्द्रक द्रव्य में प्रवेश कर विशेष जीन को प्रभावित करता है , सक्रीय जीन MKNA का निर्माण करने लगता है | MRNa कोशिका द्रव्य में विशेष प्रोटीन का संश्लेषण करने लगता है , यह संश्लेषित प्रोटीन कोशिका की सक्रियता को प्रभावित करती है , इस प्रकार हार्मोन का प्रभाव प्रदर्शित हो जाता है |
  3. द्वितीय संदेशवाहक से उपापचय में परिवर्तन

एड्रीनल ग्रन्थि के हार्मोन व प्रोटीन हार्मोन कोशिका कला से पारगमित नहीं हो पाते है , इनकी क्रियाविधि को सदरलैंड ने 6 चरणों में समझाया है –

  • लक्ष्य कोशिका की कोशिका कला पर उपस्थित ग्राही प्रोटीन हार्मोन के सम्पर्क में आने से उद्दीप्त हो जाती है |
  • उद्दीप्त ग्राही प्रोटीन अणु कोशिका कला के भीतर उपस्थित प्रोटीन को सक्रीय करती है |
  • G प्रोटीन का सक्रीय अणु कोशिका कला में उपस्थित एडीनिलेट साइकलेस एंजाइम के अणु को उद्दीप्त करता है |
  • सक्रीय एडिनिलेट साइकलेस एंजाइम ATP को CAMP में बदल देता है |
  • सक्रीय CAMP के द्वारा काइनेज एन्जाइम सक्रीय हो जाते है , जो एंजाइम तंत्र को सक्रीय कर देते है |
  • यह सक्रीय एंजाइम तंत्र कोशिका की उपापचयी क्रियाओ के विभिन्न एंजाइम की क्रियाशीलता को प्रभावित करते है |

अन्य स्त्रावी अंग

  1. वृक्क की जास्ट्रा मेड्युलरी कोशिकाएँ : रेनिन – एल्डोस्टेरोन के स्त्राव को प्रेरित करता है |
  2. त्वचा : विटामिन डी – अस्थियों के निर्माण में Ca++ के अवशोषण में सहायक है |
  3. अपरा : अपरा लेक्टोजन – गर्भावस्था को बनाए रखने में सहायक है |