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काश्तकार किसे कहते हैं | परिभाषा क्या है काश्तकारी सुधार क्या है काश्तकार meaning in hindi tenant farmer

tenant farmer meaning in hindi काश्तकार किसे कहते हैं | परिभाषा क्या है काश्तकारी सुधार क्या है काश्तकार meaning in hindi ?

काश्तकार
स्थायी बन्दोबस्त ने मात्र जमींदारों के वर्ग को ही जन्म नहीं दिया। इसने देश में खेतिहरों का भी एक वर्ग बना दिया। वे बेहिसाब ऊँचे लगान के अधीन थे। वे किसान जो लगान नहीं चुका पाते थे बेदखली झेलते थे, कारण बेशक उनके वश से बाहर हों। जमींदारी व्यवस्था खेतिहरों की आम कंगाली में फलीभूत हुई। 1859. और 1885 के बंगाल कृषक अधिनियम, जिनका उद्देश्य खेतिहरों की स्थिति में सुधार करना था, ज्यादा कुछ नहीं दे सके और उनकी स्थिति बदतर ही होती रही। आगे चलकर ये खेतिहर राजनीतिक रूप से सचेत हो गए जो उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल व अन्य क्षेत्रों में कृषक संघों के निर्माण में व्यक्त हुआ। ये खेतिहर एन.जी. रंगा और स्वामी सहजानन्द द्वारा प्रारंभ किसान सभा के प्रभाव में भी आए। उत्तर प्रदेश में वे बाबा राम चंद द्वारा संघटित किए गए। वे केवल अंग्रेजी शासन के ही आलोचक नहीं थे, वे जमींदारों के हितों के प्रति उदारता दिखाने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की भी आलोचना करते थे। उनकी मुख्य माँगों में शामिल थेलगान घटाना, जमींदारों द्वारा वसूले जाने वाले अवैध देयों का उन्मूलन । किसान सभा जमींदारों और जमींदारी व्यवस्था का विरोध करती थी।

इकाई की रूपरेखा
उद्देश्य
प्रस्तावना
नए वर्गों के उदय के कारण
एक नए वातावरण में पुराने वर्ग
नए वर्ग
जमीदार
काश्तकार
भूमिधारी
किसान आंदोलन, मुख्य महत्त्वपूर्ण घटनाएँ
आधुनिक भारतीय बुद्धिजीवी वर्ग
पूँजीपति वर्ग
कामगार वर्ग
सारांश
कुछ उपयोगी पुस्तकें
बोध प्रश्नों के उत्तर

उद्देश्य
इस इकाई में आप पाएँगे उन नए वर्गों का उदय जो औपनिवेशिक काल में उद्गमित हुए। इसके अध्ययन के बाद आप इस योग्य होंगे कि:
ऽ नए वर्गों के उदय के कारण समझ सकें,
ऽ पुराने वर्गों की परिस्थितियाँ समझ सकें, तथा
ऽ इन वर्गों और शेष अन्य खण्डों में दी गई इकाइयों के बीच एक संबंध स्थापित कर सकें।

प्रस्तावना
अंग्रेजी शासन के आगमन के बाद भारतीय समाज ने अनेक वर्गों का उद्गमन होते देखा । ग्रामीण क्षेत्रों में, जमीदारों, काश्तकारों, भूमिधारियों, साहूकारों, कृषि-श्रमिकों, आदि के वर्गों का उद्गमन हुआ और शहरी क्षेत्रों में, पूँजीपतियों, कामगारों, लघु उद्यमियों, आदि के वर्गों का आविर्भाव हुआ। एक शिक्षित मध्य वर्ग का भी उद्गमन हुआ। धीरे-धीरे इन वर्गों ने राष्ट्रीय स्वरूप अर्जित कर लिया, जो उनके द्वारा अखिल भारतीय संगठन के रूप में व्यक्त हुआ। पूँजीपति वर्ग ने भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मण्डल-संघ बनाया। कर्मचारियों ने अखिल भारतीय ट्रेडयूनियन कांग्रेस का निर्माण किया। भूमिधारियों, काश्तकारों और कृषि-श्रमिकों ने अखिल भारतीय किसान सभा का निर्माण किया। अंग्रेजों द्वारा राज्य की प्रायः असंबद्ध स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं और समूहों में से निकाली गई एक राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और राज्य-व्यवस्था के सृजन ने एक अखिल भारतीय स्तर पर संगठित होने और संघर्ष करने के लिए नए वर्गों के बीच प्रेरणा जगाई। पूर्व-ब्रिटिश भारत की

पहचान थी एक अखिल भारतीय अर्थव्यवस्था और एक एकीकृत प्रशासनिक व्यवस्था का अभाव । यही कारण था कि यहाँ एक भी अखिल भारतीय वर्ग नहीं था। इन नए वर्गों ने अपने वर्गगत हितों को बढ़ावा देने के लिए संघर्ष करना शुरू कर दिया। इन वर्गों के प्रबुद्ध प्रवर्गों ने अंग्रेजी शासन के सही स्वभाव को समझना शुरू कर दिया, वे भारत में ब्रिटिश हितों के साथ भारतीय लोगों के हितों के टकराव को समझ सकते थे। उन्हें यह भी अहसास हो गया कि भारतीय समाज की सामान्य सम्पन्नता उनके वर्गगत हितों को प्रोत्साहन देने हेतु भी कहीं बेहतर परिस्थितियाँ पैदाकर सकती है। उन्होंने यह भी महसूस किया कि यह सामान्य सम्पन्नता केवल आजादी के साथ ही आ सकती है। इस बोध ने प्रगामी वर्गों को संयुक्त राष्ट्रवादी स्वतंत्रता संघर्ष में शामिल होने के लिए उत्तेजित किया।

नए वर्गों के उद्गमन ने सभी जगह और सभी समुदायों के बीच किसी एकरूप प्रतिमान का अनुसरण नहीं किया। नए वर्गों के उदय को प्रेरित करती यह नई अर्थव्यवस्था उन क्षेत्रों में लागू की गई, जो ब्रिटिश शासन के अंतर्गत आते थे। भारत पर विजय एक ही झटके में नहीं मिल गई। यह चरणों में हासिल की गई। ब्रिटिश शासन के अंतर्गत देश के पहले आने वाले हिस्से में नए वर्गों का उदय पहले दिखाई दिया। प्रथमतः बंगाल ने नए वर्गों – जमींदार और काश्तकार – को प्रवेश प्रवेश दिया क्योंकि ब्रिटिश विजय बंगाल से ही शुरू हुई और यहीं प्रथमतः उस स्थायी बंदोबस्त को लागू किया गया, जिसने जमींदारों और काश्तकारों को जन्म दिया। वे औद्योगिक उद्यम भी प्रथमतः बंगाल और बंबई क्षेत्रों में ही स्थापित किए गए जिनसे उद्योगपतियों और कर्मचारियों के वर्ग का उदय हुआ। इन क्षेत्रों में व्यवसायिक और शिक्षित मध्य वर्ग भी अन्य क्षेत्रों के मुकाबले काफी आगे निकल गए। एक नए प्रशासनिक तंत्र और आधुनिक शिक्षा-प्रणाली के लागू होने से ऐसा हुआ था। धीरे-धीरे पूरा ही देश ब्रिटिश शासन के अंतर्गत आ गया । अतः ब्रिटिश द्वारा लागू की गई आर्थिक व्यवस्था, प्रशासनिक तंत्र और आधुनिक शिक्षा प्रणाली पूरे ही देश पर छा गए। इस प्रकार नए वर्गों का उद्गमन बन गया एक देश-व्यापी अद्भुत घटना ।

विभिन्न समुदायों के बीच भी नए सामाजिक वर्गों का उद्गमन एकरूप नहीं था। बनियों और पारसियों ने ही प्रथमतः वाणिज्य और बैंकिंग में रुचि दिखाई इसीलिए वे पूँजीपति वर्ग में फले-फूले। इसी प्रकार, अंग्रेजों द्वारा आरंभ की गई आधुनिक शिक्षा ग्रहण करने वाले प्रथम ब्राह्मण ही थे। इसी कारण उन्होंने ही व हद्तः व्यवसायियों और बुद्धिजीवियों का वर्ग निर्माण किया। मुस्लिमों में नए वर्गों का उद्गमन देर से दिखाई दिया क्योंकि वे व्यापार और वाणिज्य से दूर रहते थे व शिक्षा की आधुनिक प्रणाली को शंका की दृष्टि से देखते थे और वे उत्तरी भारत में रहते थे, जो ब्रिटिश अधीनता के अंतर्गत काफी बाद के चरण में आया। बंगाल में मुस्लिम जनसंख्या का बहुल था।