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तलवार बंधाई कर क्या है | तलवार बंधाई कर (टैक्स) क्या थी what was talwar bandhai tax in hindi

what was talwar bandhai tax in hindi meaning तलवार बंधाई कर क्या है | तलवार बंधाई कर (टैक्स) क्या थी ?
प्रश्न : तलवार बंधाई क्या था ?
उत्तर : मध्यकाल में शासक द्वारा जागीर के नए उत्तराधिकारी से वसूल किया जाने वाला शुल्क , जो रेख के आधार पर लिया जाता था। इसे तलवार बंधाई , हुक्मनामा , पेशकशी , कैद खालसा , नजराना आदि नामों से जाना जाता था

प्रश्न : मध्यकालीन राजस्थान की सामन्ती संस्कृति की विद्यमानता ने राज्य के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डाला ? आलोचनात्मक विवेचना कीजिये। 

उत्तर : राजपूत शासकों द्वारा अपने सगे सम्बन्धियों , सैनिक , असैनिक अधिकारियों को अपने राज्य क्षेत्र में से एकाधिक गाँव जागीर के रूप में देने की प्रथा सामन्तवाद कहलाती थी। जो शासन प्रशासन के विकेन्द्रीकरण सिद्धान्त पर आधारित थी। जिसकी विद्यमानता ने राज्य के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डाला। जिसे निम्नलिखित बिन्दुओं के तहत स्पष्ट किया जा सकता है –
अपने अपने क्षेत्रों में कूप मन्डूकता को बनाये रखना : सामंत प्राय: रुढ़िवादी तथा परम्परावादी होते थे। परिवर्तित परिस्थितियों में इन्हें अपनी जागीर / राज्य की प्रगति पसंद न थी। वे अपनी जागीर के लोगों को बाहरी लोगों के प्रभाव से बचाने के लिए न तो यातायात के साधनों का विकास करते थे तथा न अपनी जागीर से किसी को अपनी भूमि बेचकर अन्यत्र जाने देते थे। इस प्रकार लोगों को एक सिमित दायरे में संकुचित कर विकास को अवरुद्ध किया।
कृषि व्यवस्था का हास : राजस्थान कृषि प्रधान प्रदेश रहा है और सम्पूर्ण अर्थ व्यवस्था कृषि पर ही टिकी हुई थी। इस समय ब्रिटिश इण्डिया में नयी वैज्ञानिक तकनीकों द्वारा कृषि का आधुनिकीकरण और वाणिज्यिकरण हुआ। बड़ी बड़ी सिंचाई परियोजनाएँ , कृषि फ़ार्म , कल्टीवेटर आदि का विकास हुआ परन्तु सामन्तों ने इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया और कृषि को परम्परागत बनाये रखने का ही प्रयास कर विकास को अवरुद्ध किया।
अत्यधिक आर्थिक शोषण और विद्रोह : बदले हुए समय के साथ साथ सामन्तों को अपनी शानों शौकत को पूरा करने के लिए जब धन की अत्यधिक आवश्यकता पड़ती तो वे अपने किसानों पर अत्यधिक कर लगा देते और बेगार लेते थे। जिससे जगह जगह कृषक विद्रोह हुए। इससे एक तरफ राज्य की कृषि व्यवस्था चौपट हुई तो दूसरी तरफ कृषि आधारित उद्योगों और शांति व्यवस्था के न होने पर व्यापार वाणिज्य की अवनति हुई।
व्यापार वाणिज्य और परिवहन संचार को हतोत्साहित करना : सामन्ती व्यवस्था ने कूप मण्डुकता बनाये रखने के लिए परिवहन संचार का विकास ही नही होने दिया जिससे व्यापार वाणिज्य चौपट हो गया। व्यापारियों पर अनेक प्रकार के सामन्ती कर वसूल किये जाते थे। कभी कभी सामन्तों द्वारा व्यापारियों के काफिलों को लूटा भी जाता था। ऐसी स्थिति में विकास की आशा नहीं की जा सकती।
व्यावसाय उद्योग को प्रोत्साहन नहीं : सामन्तो ने कभी भी व्यावसायियों को नए उद्योग लगाने के लिए न तो कभी धन उपलब्ध कराया तथा न ही उन्हें प्रोत्साहन दिया गया। इसलिए यहाँ के व्यावसायियों को देश के अन्य भागों में पलायन करना पड़ा। वहां जाकर उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा समस्त देशवासियों को मनवाया।
फिजूलखर्ची को अत्यधिक बढ़ावा : सामंतों का श्रेणीकरण होने से उनमें पारस्परिक द्वेष उत्पन्न हुआ। वे एक दुसरे को हमेशा नीचा दिखाने में उलझे रहे थे। विवाह आदि के अवसर पर एक दुसरे से अधिक खर्च करना अपनी शान समझते थे जिसका सीधा भार कृषकों और व्यापारियों पर पड़ता था।
विलासितापूर्ण जीवनयापन : प्रारंभ में मुग़ल और बाद में ब्रिटिश संरक्षण प्राप्त होने पर शासक और समान्त दोनों का ही जीवन विलासितापूर्ण हो गया क्योंकि अब सैनिक सेवा की आवश्यकता नहीं रही। यह विलासिता व्रिटिश काल में और बढ़ गयी। सामन्तों की हवेलियों में नृत्य और संगीत की झंकार और शराब के प्यालों की टकराहट सुनाई देती थी। ऐसे में उनसे राज्य के विकास की अपेक्षा नहीं की जा सकती थी।