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स्विचन किसे कहते हैं परिभाषा उदाहरण SWITCHING in hindi डायोड स्विच के रूप में (Diode as a switch)

डायोड स्विच के रूप में (Diode as a switch) स्विचन किसे कहते हैं परिभाषा उदाहरण SWITCHING in hindi ?

स्विचन (SWITCHING)

(i) डायोड स्विच के रूप में (Diode as a switch) –  किसी विद्युत परिपथ में धारा को ऑन (on) या ऑफ (off) करने का कार्य स्विच (switch) करता है। आदर्श स्विच का ऑन अवस्था में प्रतिरोध शून्य होता है तथा ऑफ अवस्था में प्रतिरोध अनंत होता है। अर्धचालक डायोड स्विच के अनुरूपी होता है, यथेष्ट रूप से अग्रबायसित अवस्था में इसका प्रतिरोध बहुत कम होता है (~20052) परन्तु शून्य नहीं, इसी प्रकार पश्च बायसित अवस्था में इसका प्रतिरोध बहुत अधिक (~10552) होता है परन्तु अनंत नहीं। इस प्रकार स्विचन के लिए डायोड एक आदर्श युक्ति नहीं है। इसके अतिरिक्त डायोड के प्रतिरोध पर वोल्टता पतन से संकेत का विपोषण (अपह्रासन, degeneration) होता है जिससे यदि संकेत को एक से अधिक डायोडों से गुजरना पड़े तो हासन इस सीमा तक हो सकता है कि उच्च वोल्टता संकेत (अवस्था 1) निर्गम पर निम्न वोल्टता संकेत (अवस्था 0) के रूप में प्रेक्षित हो जाता है। तर्क-परिपथों (logic circuits) में शक्ति व्यय भी एक महत्वपूर्ण घटक है। युक्ति प्रतिरोध अधिक होने के कारण अधिक वोल्टता के स्रोत प्रयुक्त करने पड़ते हैं तथा साथ ही उपयुक्त शीतलन व्यवस्था आवश्यक होती है।

अर्ध चालक डायोड में P-N संधि पर अवक्षय परत (depletion layer) की उपस्थिति में धारिता (capacitance) उत्पन्न होती है जिसका मान बायसन वोल्टता पर निर्भर होता है। इसके अतिरिक्त मुक्त इलेक्ट्रॉन व होल की गतिशीलता (mobility) में अन्तर के कारण ( मुक्त इलेक्ट्रॉन, होल के सापेक्ष अधिक गतिशील होते हैं) यदि किसी समय डायोड पर वोल्टता यकायक परिवर्तित कर दी जाये तो इलेक्ट्रॉन इस परिवर्तन के अनुरूप तुरन्त व्यवहार करने लगते हैं होल ऐसा नहीं कर पाते। इन कारणों से डायोड में स्विचन चाल (switching speed) सीमित होती है।

 (ii) ट्रांजिस्टर स्विच के रूप में (Transistor as a switch)—

स्विचन कार्य के लिए द्विध्रुवी संधि ट्रॉजिस्टर (bipolar Junction transistor, BJT) को उभयनिष्ठ उत्सर्जक विधा (common emitter mode) में प्रयुक्त किया जाता है। इसका कारण है कि ट्रांजिस्टर एक धारा नियंत्रित युक्ति है और उभयनिष्ठ उत्सर्जक विधा में आधार धारा ig द्वारा निर्गम पर वोल्टता व धारा नियंत्रित होती है तथा ig का मान अत्यल्प ( माइक्रोऐम्पियर में ) होता है। उभयनिष्ठ उत्सर्जक विधा में निर्गम अभिलाक्षणिक का प्रारूप चित्र ( 8.8 – 1 ) में प्रदर्शित किया गया है। चित्र में लोड RL व संग्राहक पर प्रयुक्त स्रोत वोल्टता Vcc के लिए लोड लाइन (load line) भी दिखाई गई है।

निर्गम अभिलाक्षणिकों को तीन भागों में विभाजित

किया जा सकता है-

(i) अंतक क्षेत्र (Cut off region)

(ii) संतृप्त क्षेत्र (Saturation region)

(iii) सक्रिय क्षेत्र (Active region)

अंतक क्षेत्र में Ig = 0 जिससे Ic = ICEO जहाँ ICEO संग्राहक धारा I का वह मान है जब कि आधार धारा शून्य हो तथा संग्राहक संधि पश्च बायसित हो। इस स्थिति में ट्रॉजिस्टर ऑफ अवस्था में कहा जा सकता है। अंतक अवस्था में संग्राहक पर वोल्टता लगभग Vcc के तुल्य होती है। सिलीकन ट्रॉजिस्टर के लिये ICEO = 20nA = 2 × 10-8 A होता  है यदि Vcc = 15V तो ऑफ अवस्था में ट्रॉजिस्टर का प्रतिरोध जो बहुत अधिक है अर्थात् ऑफ अवस्था के लिये ट्रॉजिस्टर लगभग आदर्श स्विच की भाँति कार्य करेगा। संतृप्त क्षेत्र में उत्सर्जक- आधार संधि के साथ संग्राहक – आधार. संधि भी अग्र बायसित हो जाती है। उदाहरणस्वरूप सिलीकन NPN ट्रॉजिस्टर में संतृप्त अवस्था में VCE = 0.2V, VBE = 0.8V जिससे VBC + 0.6V। इस क्षेत्र में संग्राहक वोल्टता अत्यल्प (शून्य वोल्टता के निकट) रहती है। इसके अतिरिक्त VCE तथा I की आधार धारा IB पर निर्भरता भी बहुत कम होती है। यदि इस क्षेत्र में VcE/IC का मान ज्ञात करें तो वह संतृप्त प्रतिरोध (saturation resistance) कहलाता है व यह अत्यल्प ~15 प्राप्त होता है। इस प्रकार संतृप्त क्षेत्र में कार्यरत ट्राजिस्टर ऑन अवस्था में माना जा सकता है। ध्यान रखिये कि ट्रॉजिस्टर की ऑफ अवस्था में निर्गम पर अधिक वोल्टता प्राप्त होती है तथा उसकी ऑन अवस्था में निर्गम पर वोल्टता निम्न स्तर पर होती है। ट्रॉजिस्टर इस प्रकार प्रतिलोमक (inverter) की भांति व्यवहार करता है।

दोनों अंतक क्षेत्र व संतृप्त क्षेत्र में शक्ति हास बहुत कम होता है (Pcut off = 15 × 2 × 10-8 = 3 × 10-7 W, Psat = 0.2 × 18 × 10-3 = 3.6 x 10-3 W ) ।

संकेत अपह्रासन (degeneration) की समस्या ट्रॉजिस्टर स्विचन में नहीं होती है क्योंकि ट्रॉजिस्टर प्रवर्धक की भाँति भी कार्य करता है।

डायोड की भांति ट्रॉजिस्टर में भी धारितीय प्रभाव महत्वपूर्ण होते हैं जिससे ट्रॉजिस्टर की निर्गम पर अनुक्रिया निविष्ट संकेत के सापेक्ष विलम्बित होती है। ट्रॉजिस्टर को तत्काल अंतक क्षेत्र में लाना संभव नहीं होता । यदि ट्रॉजिस्टर के आधार पर वर्गाकार स्पंद (square pulse) का निवेश किया जाय तो निर्गम पर स्पंद चित्र ( 8.8 – 3 ) की भांति प्राप्त होगा। किसी तरंग आकृति को अधिकतम मान के 10% से 90% तक पहुंचने में लगा समय उत्थान काल (rise time) कहलाता है। आदर्श स्थिति में यह शून्य होता है। इसी प्रकार अवपतन काल भी परिभाषित किया जा सकता है। उत्थान व अवपतन काल प्रभावी धारिता व प्रतिरोध के अनुक्रमानुपाती होते हैं। एक अवस्था से दूसरी में स्विचन में विलम्ब स्पंदों के रूप में संकेत संचरण की गति को सीमित करता है।

सारांशतः आदर्श ट्रॉंजिस्टर स्विच में अभिलाक्षणिक अपेक्षित है- (i) अनंत निवेश प्रतिरोध (ii) शून्य निर्गम प्रतिरोध (iii) अनंत लब्धि (iv) संतृप्त अवस्था में शून्य संग्राहक उत्सर्जक विभवान्तर

द्विध्रुवी संधि ट्रॉजिस्टर में निवेश प्रतिरोध कम (~1k की कोटि का ) होता है, निर्गम प्रतिरोध बहुत अधिक नहीं होता (~100 kकी कोटि का), लब्धि बहुत अधिक नहीं होती (~100) तथा संतृप्त क्षेत्र में VCE ~ 50 – 100mV होता है। इस प्रकार ये ट्रॉजिस्टर बहुत अच्छे तर्क परिपथ अवयव नहीं है। क्षेत्र प्रभाव ट्रॉजिस्टर (field-effect transistor) तथा धातु-ऑक्साइड अर्धचालक युक्तियाँ (metal oxide semiconductor devices) संधि ट्रॉजिस्टरों का अब स्थान लेती जा रही हैं।

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