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swarm theory of liquid crystals in hindi , समूह या झुण्ड सिद्धांत क्या है , द्रव क्रिस्टलों का सिद्धान्त (Theory of Liquid Crystals)

B.sc नोट्स कड़ी में swarm theory of liquid crystals in hindi , समूह या झुण्ड सिद्धांत क्या है ?

द्रव क्रिस्टलों का सिद्धान्त (Theory of Liquid Crystals)

 समूह या झुण्ड सिद्धान्त (Swarm Theory) – यह सिद्धान्त ई. बोस (E. Bose) ने सन् 1909 में दिया था। इस सिद्धान्त के अनुसार चूंकि मीसोमॉर्फिक अवस्था ऐसे पदार्थों का गुण है जिनमें अणु लम्बी शृंखलायुक्त संरचना में होते हैं, अतः ऐसे अणु स्वयं को परस्पर एक-दूसरे के समानान्तर व्यवस्थित होने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार अणुओं के कई झुण्ड या समूह बन जाते हैं। किसी एक झुण्ड के समस्त अणु तो परस्पर समानान्तर होते हैं, लेकिन यह आवश्यक नहीं कि वे किसी अन्य झुण्ड के अणुओं के भी समानान्तर हों। इस प्रकार इन अणुओं के झुण्डों की तुलना क्रिस्टलों से की जा सकती है यद्यपि इनकी पैकिंग इतनी दृढ़ नहीं होती और उनकी आकृति व आकार भी स्थिर नहीं होते।

द्रव क्रिस्टलों की आविल प्रकृति (turbidity) को भी झुण्ड सिद्धान्त के आधार पर समझाया जा सकता है। द्रव क्रिस्टलों में विद्यमान झुण्ड प्रकाश को विकीर्णित (scatter) कर देते हैं। यह प्रभाव बिल्कुल उस प्रकार का है जिस प्रकार किसी स्पष्ट क्रिस्टल या कांच को महीन चूर्णरूप में कर लिया जाता है। जब ताप बढाया जाता है तो अणुओं की बढ़ी हुई गतिज ऊर्जा के कारण झुण्ड टूटकर विलुप्त होने लगते हैं। जब पदार्थ गलनांक बिन्दु पर आ जाता है तो इन झुण्डों का आकार इतना छोटा हो जाता है कि वे प्रकाश को प्रकीर्णित नहीं कर पाते और वह पारदर्शी द्रव बन जाता है।

झण्ड सिद्धान्त की सीमाएं (Limitations of Swarm Theory) : यद्यपि झण्ड सिद्धान्त द्रव क्रिस्टलों की प्रकृति की काफी स्पष्ट व्याख्या कर सकता है, लेकिन फिर भी मीसोमॉर्फिक अवस्था इतनी सरल नहीं है कि उसकी व्याख्या इतनी आसानी से हो जाए। इस सिद्धान्त की प्रमुख सीमाएं निम्न हैं : (1) इस सिद्धान्त के अनुसार ताप बढ़ाने पर झुण्ड टूटकर विलुप्त होने लगते हैं और आविल द्रव स्वच्छ द्रव में परिवर्तित हो जाता है, अतः स्वच्छ द्रव बनने का प्रक्रम धीरे-धीरे व लगातार होना चाहिए, जबकि वस्तुस्थिति यह है कि आविल द्रव एक निश्चित ताप (गलनांक की भांति) पर तुरन्त ही स्वच्छ द्रव में परिवर्तित हो जाता है। झुण्ड सिद्धान्त के अनुसार इसकी व्याख्या सम्भव नहीं है।

(2) आविल होने का गुण केवल उन यौगिकों में पाया जाता है जिनकी आण्विक संरचना लम्बी श्रृंखला के रूप में होती है, लेकिन समस्त लम्बी श्रृंखलायुक्त यौगिकों में यह गुण नहीं पाया जाता है। कुछ लम्बी श्रृंखला वाले यौगिक यह गुण दर्शाते हैं, जबकि समस्त नहीं दर्शाते। इसकी व्याख्या भी इस सिद्धान्त के अनुसार नहीं की जा सकती है।

(3) स्मेक्टिक द्रव क्रिस्टलों को कांच की प्लेट पर रखने से वे एक सीढ़ीनुमा संरचना बना लेते हैं, ऐसा क्यों होता है इसकी व्याख्या भी इस सिद्धान्त के आधार पर सम्भव नहीं है।

द्रव क्रिस्टलों के अनुप्रयोग (Applications of liquid Crystals)

  1. इनके गुण क्रिस्टलीय ठोस और समदैशिक द्रवों के मध्यवर्ती होते हैं, अतः इनका उपयोग गैस-द्रव क्रोमैटोग्राफी में किया जाता है।
  2. नेमैटिक द्रव क्रिस्टलों में प्रबल विषमदैशिक प्रकाशीय गुण होते हैं और विद्युत क्षेत्र में भी प्रतिक्रिया दर्शाते हैं अतः इनका कैलकुलेट और घड़ियों में संख्याएं प्रदर्शित (data display) करने में प्रयुक्त किया जाता है।
  3. विषमदैशिक यौगिकों की संरचना की स्पेक्टोस्कोपीय विधियों में विलायक के रूप में इनका उपयोग किया जाता है।
  4. विभिन्न स्नेहक वस्तुतः पदार्थों की द्रव क्रिस्टल अवस्था ही होते हैं। अतः विभिन्न औद्योगिक इकाइयों में स्नेहक (lubricant) के रूप में इनका व्यापक उपयोग होता है।
  5. हमारे शरीर में प्रोटीन, वसा आदि का पाचन भी द्रव क्रिस्टलों के माध्यम से ही होता है।
  6. कोलेस्टीरिक द्रव क्रिस्टलों का महत्वपूर्ण उपयोग थर्मोग्राफी में होता है।

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