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बीजों में भोज्य पदार्थो का संचय (storage of nutrients in seeds) | बीज में वसा प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट का भंडारण

(storage of nutrients in seeds in hindi) बीजों में भोज्य पदार्थो का संचय बीज में वसा प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट का भंडारण ?

द्वितीयक प्रसुप्ति (secondary dormancy in seeds) : अनेक पौधों में बीजांकुरण अध्ययन के दौरान यह देखा गया है कि इसमें अनुकूल परिस्थितियों के कारण पहले तो बीजों का अंकुरण प्रारंभ हो जाता है परन्तु बाद में किसी कारणवश इनकी अंकुरण क्षमता विलुप्त हो जाती है। इस प्रकार बीजों में अंकुरण की प्रक्रिया का अचानक रुक जाना द्वितीयक प्रसुप्ति कहलाता है। कुछ पौधों जैसे टेक्सस के बीजों में द्वितीयक प्रसुप्ति स्वत: ही कार्यिकी परिवर्तनों के कारण होती है। कुछ पौधों जैसे नाइजैला के बीजों को लगातार प्रकाश में लम्बे समय तक रखने से इनमें अंकुरण नहीं होता परन्तु लम्बे समय तक अंधकार में रखने पर इनमें अंकुरण हो जाता है। इसके विपरीत इस पौधे के बीजों को लम्बे समय तक प्रकाश में रखने के बाद यदि अंधकार में रखा जाए तो इनमें अंकुरण नहीं होता। दुसरे शब्दों में नाइजैला के बीजों में द्वितीयक प्रसुप्ति इसलिए भी हो सकती है कि यहाँ अंकुरण की प्रक्रिया शुरू में संचालित होने के बाद अंकुरण के लिए आवश्यक एक अथवा एक से अधिक कारक अनुकूल नहीं होते अथवा अनुपस्थित होते है। 

द्वितीयक प्रसुप्ति की प्रक्रिया बीजों और पौधों के स्थानीय परिवेश में स्थापन में सहायक होती है। यहाँ शुरू में अंकुरण संचालित हो जाने के बाद यदि प्रतिकूल परिस्थितियाँ मौजूद हो तो बीज फिर से प्रसुप्तावस्था में प्रविष्ट हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप भ्रूण और भ्रूणपोष को होने वाली क्षति कम से कम होती है , अथवा बीज के इन भागों को कोई क्षति नहीं पहुँचती। आगे चलकर प्रतिकूल परिस्थितियां समाप्त हो जाने पर ये बीज फिर से अंकुरित हो जाते है। शीतकालीन एक वर्षीय पौधों में अनेक प्रजातियों के बीज प्रकीर्णन के पश्चात् कुछ समय तक अनुकूल तापमान उपलब्ध नहीं हो पाने के कारण प्रसुप्तावस्था में रहते है लेकिन ग्रीष्म ऋतू के पश्चात् सर्दियाँ प्रारंभ होते ही अंकुरण प्रारंभ कर देते है। यदि किसी कारणवश ऐसा नहीं हो पाता तो आगामी वर्ष में यही प्रक्रिया फिर से दोहराई जाती है और नवोद्भिदो का निर्माण हो जाता है।

प्रसुप्ति भंग करने की विधियाँ (methods of breaking seed dormancy)

बीज प्रसुप्ति को नियंत्रित अथवा संचालित करने वाले कारकों को यदि हटा दिया जाए तो प्रसुप्ति को दूर किया जा सकता है , इसकी कुछ प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित प्रकार से है –

  1. बीज चोल को क्षतिग्रस्त करके (by damaging seed coat): अनेक पौधों में बीज चोल अत्यधिक मोटा अथवा स्थुलित भित्ति वाली कोशिकाओं द्वारा निर्मित होता है। इसके अतिरिक्त कुछ बीजों के आस पास क्यूटिन अथवा मोम की परतें मौजूद होती है , जिसके कारण बीज के भीतर वायु और जल का प्रवेश नहीं हो पाता और अंकुरण भी संभव नहीं होता। इस प्रकार के बीजों में यदि बीज चोल को आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया जाए तो इनके भीतर जल और वायु प्रविष्ट हो सकते है और बीज का अंकुरण प्रारंभ करवाया जा सकता है। परन्तु ऐसा सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए जिसमें भ्रूण को किसी प्रकार की क्षति न पहुंचे।
  2. शीत उपचार द्वारा (by low temperature treatment): अनेक पौधों जैसे एसर के बीजों को निम्न ताप पर उपचारित करने से इनकी प्रसुप्तावस्था समाप्त हो जाती है और अंकुरण प्रारंभ हो जाता है।
  3. प्रकाश उद्भासन द्वारा (photo illumination of seeds): कुछ पौधों के बीजों को अंधकार में रखने पर इनका अंकुरण नहीं हो पाता परन्तु इनको प्रकाश में स्थानान्तरण करने पर इनमें अंकुरण प्रारंभ हो जाता है। इस सन्दर्भ में लोबेलिया इनफ्लैटा नामक पादप के बीजों में मुन्शर (1936) द्वारा किये गए अध्ययन से यह प्रमाणित किया गया कि इन पौधों के बीजों को 3 से 20 दिन तक प्रकाश में आलोकित अथवा उद्भासित करके बीज प्रसुप्ति को भंग किया जा सकता है और अंकुरण को प्रारंभ कर सकते है।
  4. एकान्तरित निम्न और उच्च ताप (alternating low and high temperature): कुछ पौधों के बीजों को बारी बारी से या एकान्तरित रूप से निश्चित समयावधि के लिए निम्न और उच्च तापमान पर उपचारित किया जाता है। जिसके फलस्वरूप बीजों को प्रसुप्तावस्था समाप्त हो जाती है और ये अंकुरित हो जाते है।

बीजों की प्रसुप्तावस्था को समाप्त करने के लिए उपर्युक्त विधियाँ सभी पौधों पर समान रूप से लागू नहीं होती , अपितु विभिन्न पौधे इस प्रकार की परिस्थितियों के प्रति अपनी अनुक्रिया अलग अलग प्रकार से प्रदर्शित करते है।

बीजों में भोज्य पदार्थो का संचय (storage of nutrients in seeds)

बीज के अंकुरण के परिणामस्वरूप विकसित नावोद्भिद की पोषण आपूर्ति के लिए बीजों में विशेष प्रकार के भोज्य पदार्थो का संचय होता है। इसके लिए पौधे में वैसे तो परागण और निषेचन से पहले किसी प्रकार की विशेष तैयारी नहीं होती लेकिन परागण क्रिया के सफलतापूर्वक समपन्न हो जाने के पश्चात् परिस्थितियां एकदम बदल जाती है। भोज्य पदार्थो के अनावश्यक उपयोग को रोकने के लिए पुष्प के अन्य भाग सुख कर गिर जाते है। अब पुष्प के अधिकांश भोज्य पदार्थो का संवहन बीजाण्ड में और इसमें भी विशेष रूप से भ्रूणकोष की केन्द्रीय कोशिका की तरफ होने लगता है। यह केन्द्रीय कोशिका एक प्रकार से भ्रूणपोष मातृ कोशिका के समान कार्य करती है और तेजी से बारम्बार विभाजित होकर भ्रूणपोष का विकास करती है। इस प्रकार बहुकोशीय भ्रूणपोष ही भोज्य पदार्थों का संचय करता है , जिससे आगे चलकर विकासशील भ्रूण की वृद्धि के लिए वांछित उपापचय पदार्थो की आपूर्ति होती है। कुछ बीजों में पोषक पदार्थो का संचयन बीजपत्रों में होता है।

प्राय: प्रोटीन , कार्बोहाइड्रेटस और वसा बीजों में संचित प्रमुख पदार्थो के रूप में पाए जाते है। लगभग सभी बीजों में ये पदार्थ आवश्यक रूप से मिलते है। परन्तु इनकी आनुपातिक मात्रा विभिन्न बीजों में अलग अलग होती है , जैसे सोयाबीन के बीजों में 40% प्रोटीन और 20% वसा पायी जाती है जबकि अनाजों में स्टार्च अत्यधिक मात्रा में लगभग सत्तर से अस्सी प्रतिशत तक पाया जाता है। वही दूसरी तरफ सरसों के बीज में वसा की मात्रा 40 प्रतिशत होती है।

(A) कार्बोहाइड्रेटस का संग्रहण (storage of carbohydrates) : प्राय: अनाजों और दलहनों के अनेक सदस्यों के बीजों में कार्बोहाइड्रेट्स स्टार्च कणों के रूप में संचित होते है। ये स्टार्च कण एकल कणों अथवा बहुल कणों के रूप में मण्डललवकों में उपस्थित होते है। मंडलवक विभिन्न पौधों में विविध प्रकार की आकृतियों के और छोटे अथवा बड़े हो सकते है। गेहूं के बीज में जब भ्रूणपोष की बाहरी कोशिकाओं का निर्माण प्रारंभ होता है लगभग तब से स्टार्च का संश्लेषण प्रारंभ होता है। इसके कारण बाहरी कोशिकाओं की तुलना में भीतरी कोशिकाओं में स्टार्च की मात्रा अधिक होती है। ग्रेमिनी कुल और कुछ अन्य कुलों के पादप बीजों में प्राय: परिपक्व अवस्था में भ्रूणपोष जीवित नहीं पाया जाता है। ग्रेमिनी कुल के बीजों में भ्रूणपोष की बाह्य स्तर एल्यूरोन परत के रूप में विभेदित हो जाती है। इसी प्रकार लेग्यूमिनोसी कुल के सदस्यों के बीजों में भी भ्रूणपोष की सबसे बाहरी परत , एल्यूरोन स्तर के समान ही कार्य करती है। गेहूं , ज्वार , बाजरा , मक्का , जौ और कुछ लेग्यूम बीजों में प्रमुखतया स्टार्च कणों के रूप में कार्बोहाइड्रेटस पाए जाते है।

स्टार्च कण एमाइलोपेक्टिन और एमाइलोस (जो ग्लूकोज के बहुलक होते है ) के रूप में मिलते है। इसके अतिरिक्त कुछ बीजों में स्टार्च कण रेफिनोस , हेमीसेल्यूलोज , एमाइलाइड और गेलेक्टोमेनान के रूप में भी पाए जाते है। इसी क्रम में कुछ बीजों में सुक्रोस और अन्य डाई और ट्राइसेकेराइड शर्कराओं के रूप में भी कार्बोहाइड्रेट्स पाए जाते है। उदाहरणतया , जौ के भ्रूण अक्ष में शुष्क भार का लगभग 14% और मक्का के भ्रूण अक्ष में शुष्क भार का लगभग 18% हिस्सा सुक्रोस शर्करा का होता है।

कुछ पौधों जैसे एस्पेरेगस के भ्रूणपोष में और ट्रोपियोलम और लूपिनस के बीजपत्रों में कार्बोहाइड्रेट्स प्राय: हेमी सेल्यूलोज के रूप में कोशिका भित्ति स्थूलन में भी मौजूद होते है।

विभिन्न प्रकार के बीजों में संचित पोषक पदार्थ –

 नाम 

 वनस्पतिक नाम 

 कार्बोहाइड्रेट्स (%)

 प्रोटीन (%)

 वसा (%)

 संग्रही अंग

 1. गेहूँ 

 Triticum vulgare

 7.14

 12.3

 1.8

 भ्रूणपोष 

 2. मक्का 

 zea mays

 76.8

 7.8

 2.6

 भ्रूणपोष

 3. बाजरा 

 peunisetum typhoides

 73.0

 10.4

 3.3

 भ्रूणपोष 

 4. चावल 

 oryza sativa

 77.4

 7.5

 1.9

 भ्रूणपोष 

 5. सोयाबीन 

 glycine max

 30.9

 43.2

 19.5

 बीजपत्र 

 6. चना 

 cicer aritinum

 61.0

 17.1

 15.2

 बीजपत्र 

 7. मटर 

 pisum sativum 

 65.9

 7.2

 0.1

 बीजपत्र 

 8. सरसों 

 Brassica campestris 

27.8 

 22

 39.7

 बीजपत्र 

 9. मूंगफली 

 Arachis hypogaea

 26.1

 25.3

 40.1

 बीजपत्र 

 10. अरण्डी 

 Ricims communis 

 16.5

 20

 45-55

 भ्रूणपोष 

(B) प्रोटीनों का संचय (storage of protein)

प्राय: बीजों के विकास के दौरान कार्बोहाइड्रेट्स और वसा के साथ साथ संचयी प्रोटीन्स का भी संश्लेषण होता है .फेबेसी कुल के सदस्यों के पादप बीजों में प्रोटीन ग्लोब्यूलिन के रूप में पायी जाती है और छितराई हुई संरचनाओं के रूप में इधर उधर फैली हुई पायी जाती है। पोएसी कुल के सदस्यों के बीजों में प्रोटीन्स प्राय: एल्यूरोन कणों या एल्यूरोन परत के रूप में मौजूद होते है। कुछ वनस्पतिशास्त्रियों द्वारा अन्य बीजों में उपस्थित प्रोटीन्स के लिए भी एल्यूरोन शब्द का ही उपयोग किया जाता है। विभिन्न प्रकार के बीजों में उपस्थित प्रोटीन्स के व्यवस्था क्रम में 0.1 से 0.25 mm. व्यास के अनेक प्रोटीन कण , एक प्रोटीन द्वारा निर्मित पीठिका में पाए जाते है। इसके अतिरिक्त अनेक बीजों में उपस्थित प्रोटीन्स क्रिस्टलों के रूप में और कुछ बीजों में प्रोटीन काय के रूप में पाए जाते है। प्रोटीन काय के निर्माण के अन्तर्गत अनेक प्रोटीन अणु पहले रिक्तिका में एकत्र होते रहते है। जब इनके एकत्रीकरण की प्रक्रिया पूरी हो जाती है तो ये एकिक झिल्ली के द्वारा आवरित एक प्रारूपिक प्रोटीन काय का निर्माण करते है।

जल और अन्य विलायकों में इनकी घुलनशीलता के आधार पर विभिन्न बीजों में चार प्रकाश की प्रोटीन पायी जाती है –

(a) एलब्यूमिन : ये जल और लवणयुक्त विलयन में घुलनशील होते है।

(b) ग्लोब्यूलिन : ये जल में अघुलनशील लेकिन लवणयुक्त विलयन में घुलनशील होते है।

(c) ग्लूटेलिन : ये क्षार और तनु अम्ल में घुलनशील होते है।

(d) प्रोलमिन : ये प्रोटीन लगभग 70-80% सान्द्र एल्कोहल में घुलनशील होते है। विभिन्न प्रकार के पौधों के बीजों में अलग अलग प्रकार के प्रोटीन पाए जाते है। यहाँ तक कि एक कुल के सदस्यों में अलग अलग प्रकार के प्रोटीन पाए जाते है। उदाहरण के तौर पर पोऐसी कुल के अनाज बीजों में ऐसा पाया जाता है। यहाँ गेहूँ में मुख्य घटक प्रोटीन ग्लूटेनिन और ग्लाइडिन मक्का में जिएन और चावल में ओरइजिन और ओरिजिनिन के रूप में पाए जाते है। अन्य पौधों जैसे लेग्यूम बीजों में अरहर में मुख्य प्रोटीन घटक केजेनिन और कानकैजिनिन के रूप में पाए जाते है।  यह भी पाया गया है कि अनाज वर्ग के अधिकांश बीजों के उदाहरणों में लाइसिन प्रोटीन कम मात्रा में पाया जाता है। वही दूसरी ओर लेग्यूम बीजों में लाइसिन अधिक और मिथियोनिन कम मात्रा में पाया जाता है। प्राय: बीजों में पायी जाने वाली संचयी प्रोटीन उपापचयी रूप से निष्क्रिय होती है , हालांकि कुछ पादप बीजों में एल्बूमिन प्रोटीनों के रूप में सक्रीय होते है।

(C) वसा का संचय (storage of fats and lipids)

भ्रूणपोषी बीजों में वसा का संचय भ्रूणपोष में जबकि अभ्रूण पोषी बीजों में बीज पत्रों में और अनाज बीजों में स्कूटैलम में होता है। बीजों की कोशिकाओं में वसा , तेल काय के रूप में पायी जाती है। अनेक पादप बीजों में वसा स्फीरोसोम्स अथवा लिपिडयुक्त रिक्तिकाओं के रूप में भी पायी जाती है और एक पतली इकाई झिल्ली द्वारा घिरी होती है।

विभिन्न प्रकार के बीजों में संचित वसा सामान्यतया ट्राइग्लिसराइड्स के रूप में पायी जाती है। अभ्रूणपोषी बीजों जैसे सरसों और मटर के बीज पत्रों की मृदुतकी कोशिकाओं में वसा तेल अथवा लिपिडकाय अथवा सूक्ष्म लिपिड गोलिकाओं के रूप में पायी जाती है।

कुछ अन्य पौधों जैसे फार्बिटिस निल और कोनवाल्वुलेसी कुल के पादप बीजों में लिपिड्स बीज पत्रों की सुदिर्घित कोशिकाओं में छोटी छोटी बूंदों के रूप में पाए जाते है। इसी प्रकार कुल पेसीफ्लोरेसी के कुछ सदस्यों के बीजों में एरिल एक विशेष संरचना के रूप में पाया जाता है। यह बीज चोल की तीसरी परत के रूप में काम करता है। इसके अतिरिक्त इसकी पतली भित्तियुक्त मृदुतकी कोशिकाओं में सूक्ष्म तेल बूंदों के साथ स्टार्च और अनेक वर्णक भी पाए जाते है।