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तारामीन का श्वसन तंत्र , उत्सर्जन , तंत्रिका तंत्र , संवेदांग , संवेदी अंग क्या है starfish Respiratory System in hindi

इसमें जाने तारामीन का श्वसन तंत्र , उत्सर्जन , तंत्रिका तंत्र , संवेदांग , संवेदी अंग क्या है starfish Respiratory System in hindi ?

श्वसन तंत्र (Respiratory System)

ऐस्टेरिआस में मुख्य रूप से श्वसन क्रिया अपमुख सतह पर उपस्थित अनेक चर्मीय क्लोमों (dermal branchiae) या पेप्यूली (papulae) द्वारा सम्पन्न होती है। चर्मीय क्लोम त्वचा की पतली भित्ति के बने उभार होते हैं। इनकी गहा, प्रगहा में सतत रहती है। जल में घुलनशील ऑक्सीजन इन चीय क्लोमों में विसरित होकर शरीर में भीतर चली जाती है तथा कार्बन डाइ ऑक्साइड विसरित होकर बाहर निकाल दी जाती है। चर्मीय क्लोमों की बाहरी सतह पक्ष्माभी होने के कारण निस्तर जल धारा का प्रवाह बनाये रखा जाता है जो चर्मीय क्लोमों के ऊपर होकर गुजरती है जिससे जैसे का आदान-प्रदान होता है।

नाल पाद में भी जल प्रवाह होने के कारण व भित्ति पतली होने के कारण ये भी श्वसन क्रिया में भाग लेते हैं।

उत्सर्जन (Excretion)

ऐस्टेरियास में विशिष्ट उत्सर्जी अंगों का अभाव होता है। शरीर में बनने वाले नाइट्रोजन युक्त अपशिष्ट पदार्थ जैसे अमोनिया, यूरिया एवं क्रिएटिन आदि प्रगुहीय तरल में विसरित हो जाते हैं। जहाँ से प्रगुहीय तरल में विचरण करने वाली अमीबाभ प्रगुहीय कोशिकाओं द्वारा निगल लिया जाता है तथा अन्त में ये प्रगुहीय कोशिकायें चर्मीय क्लोम में होकर शरीर के बाहर निकाल दी जाती है। इन उत्सर्जी पदार्थों युक्त अमीबाभ कोशिकाओं को बाहर निकालने के लिए चर्मीय क्लोमों के सिरे संकुचित होते हैं। नाल पादों द्वारा भी विसरण की क्रिया द्वारा भी उत्सर्जी पदार्थों को बाहर निकाला जाता है।

तंत्रिका तंत्र (Nervous System)

ऐस्टेरिआस में तंत्रिका तंत्र सरल व आदिम प्रकार का होता है। ऐस्टेरिआस में तंत्रिका तंत्र गुच्छक युक्त तंत्रिका जाल के के रूप में पाया जाता है। इनमें से आन्तरांग तंत्रिका जाल (visceral nerve plexus) अरीय नाल की भित्ति में स्थित होता है। शेष सब देह भित्ति में ही समित रहता है। कुछ स्थानों पर तंत्रिका कोशिकायें एकत्रित होकर स्पष्ट रज्जुओं (nerve cords) का निर्माण करती है। ऐस्टेरिआस के तंत्रिका तंत्र को चार इकाईयों में बांटा जा सकता है

 

(1) सतही या बाह्य तंत्रिकीय तंत्रिका तंत्र ( Superficial ectoneural nervous system): यह उपचर्म के ठीक नीचे स्थित होता है तथा यह निम्नलिखित भागों से मिलकर बना होता है- (1) परिमुख तंत्रिका वलय (circumoral nerve ring) (ii) पांच अरीय तंत्रिकाएँ (five radial nerve), (iii) उप अधिचर्मीय जालिका (sub epidermal plexus)।

परिमुख तंत्रिका वलय पंचभुजाकर परिमुख की परिधि के नीचे स्थित होता है। इससे निकलने वाले तंत्रिका तन्तु परिमुख एवं ग्रसिका में जाते हैं।

पंचभुजाकार परिमुख वलय के प्रत्येक कोण से एक अरीय तंत्रिका रज्जू निकलकर अपनी ओर की भुजा की वीथि खांच में प्रवेश कर जाती है और अन्तस्थ स्पर्शक के आधार पर पहुंच कर एक संवेदी गद्दी में समाप्त हो जाती है। इन अरीय तंत्रिकाओं से तंत्रिका तन्तु निकल कर नाल पादों व तुम्बिकाओं में जाते हैं। उप अधिचर्मीय जालिका सम्पूर्ण देहभित्ति में एक तंत्रिका जाल के रूप में पायी जाती है। प्रत्येक भुजा में यह महीन तंत्रिका तन्तुओं द्वारा अरीय तंत्रिका रज्जू से जुड़ा रहता है। यह उप अधि-चर्मीय जालिका से एक जोड़ी अभ्यरीय (adradial ) या सीमान्त (marginal) तंत्रिकाएं निकलती हैं जो वीथि खांच के दोनों ओर भुजा की पूरी लम्बाई में फैली रहती है। यह जालिका प्रत्येक नाल पाद के चूषक में एक तंत्रिका वलय बनाती है। इस सतही तंत्रिका तंत्र में संवेदी एवं प्रेरक दोनों प्रकार के तंत्रिका तन्तु पाये जाते हैं। इस प्रकार यह अन्य जन्तुओं के समान उद्दीपनों को ग्रहण कर उनकी अनुक्रियाओं को समन्वित करने का कार्य करता है।

  1. गहरा या अधोतंत्रिकीय तंत्रिका तंत्र (Deep or hyponeural nervous system) : इस तंत्र में बाह्य तंत्रिकीय तंत्रिका वलय के ठीक ऊपर मुख तल पर एक दोहरा परिमुख वलय और पाँच जोड़ी लैंगें की तंत्रिकाएँ (Lange’s nerves) खोजकर्ता के नाम पर रखा गया नाम) पायी जाती हैं। एक जोड़ी लैगें की तंत्रिकायें परिमुख वलय से निकल कर प्रत्येक भुजा में चली जाती है तथा इसकी शाखायें भुजा की पेशियों में जाती है। अधितंत्रिकीय तंत्रिका तंत्र की उत्पत्ति मीजोडर्म से होती है तथा यह प्रेरक प्रवृत्ति का होता है।
  2. अपमुखीय या प्रगुहीय तंत्रिका तंत्र (Aboral or coelomic nervous system) : यह तंत्र अपमुखीय देह भित्ति में प्रगुहीय उपकला भित्ति के ठीक ऊपर स्थित होता है। यह एक पतली तंत्रिका जालिका द्वारा निरूपित होता है। यह केन्द्रीय बिम्ब में मोटा होकर गुदीय तंत्रिका वलय (anal nerve ring) का निर्माण करता है। इस वलय से निकलकर प्रत्येक भुजा में एक तंत्रिका जाती है जो कई पार्श्व तंत्रिकाओं द्वारा सीमान्तीय तंत्रिकाओं से जुड़ी रहती है । यह तंत्र भी प्रेरक प्रवृत्ति का होता है व इसकी उत्पत्ति भी मीजोडर्म से होती है।
  3. आन्तरांगीय तंत्रिका तंत्र (Visceral nervous system) : इस तंत्र में आहार नाल की भित्ति में एक तंत्रिका जालिका पायी जाती है जो आहार नाल की भित्ति की पेशियों को तंत्रिकाऐं भेजती हैं।

संवेदांग (Sense organs)

ऐस्टेरिआस एक सुस्त प्रकृति का जन्तु होता है अतः इसमें संवेदांग अल्प विकसित होते हैं। इसमें निम्न संवेदांग पाये जाते हैं

  • तंत्रिका संवेदी कोशिकाएँ (Neuro sensory cells) : ये कोशिकायें सम्पूर्ण उपचर्म (epidermis) पर फैली हुई होती है तथापि नाल पादों के चूषकों, वृन्त पादों, शूलों के आधारों का अन्तस्थ स्पर्शकों पर इनकी संख्या अधिक हो जाती है। प्रत्येक तत्रिका संवेदी कोशिका तकरूपी होती है। इसके स्वतंत्र सिरे पर एक धागे समान संवेदी प्रवर्ध होता है जो नीचे की ओर महीन तंत्रिका तन्तुओं के माध्यम से उप-अधिचर्मीय तंत्रिका जालिका से जुड़ी रहती है। ये कोशिकायें स्पर्शयाली (tactile receptor) व घ्राण ग्राही (olfactory receptor) प्रकार की होती है।

(ii) नेत्र (Eves): ऐस्टेरिआस में पांच चमकीले लाल रंग के नेत्र चिह्न (eve spots) पाये जाते हैं। ये नेत्र चिन्ह पांचों भुजाओं के सिरों पर उपस्थित अन्तस्थ स्पर्शकों के आधार पर मुखीय तल की ओर एक-एक स्थित होते हैं। प्रत्येक नेत्र चिन्ह का निर्माण अरीय तंत्रिका रज्जू के फूलकर विशेष प्रकार की संवेदी गद्दी व अन्तस्थ स्पर्शक के आधार पर उप-अधिचर्मीय तंत्रिका जालिका के मोटा हो जाने के कारण होता है। अतः इसे दृक गद्दी (optic cushion) भी कहते हैं। नेत्र चिन्ह वास्तव में कई प्रकाशग्राही नेत्रकों के बने होते हैं। प्रत्येक नेत्रक (ocelli) प्याले के आकर की अधिचर्मीय संरचना होती है जिसमें पारदर्शी जिलेटिनी ऊत्तक भरा रहता है। यह ऊपर से पारदर्शी क्यूटिकल द्वारा ढका रहता है। क्यूटिकल के नीचे एक पारदर्शी लैन्स पाया जाता है। नैत्रक प्याले की भित्ति में वर्णक कोशिकायें (pigment cells) व रेटिनी कोशिकायें (retenal cells) पायी जाती है। वर्णक कोशिकाओं में लाल रंग की वर्णक कणिकायें पायी जाती है जिसके कारण नेत्रक लाल रंग के दिखाई देते हैं। रेटिना कोशिकाओं का भीतरी सिरा अपवर्तनीय व बल्ब के समान होता है और नेत्रक प्याले की गुहा में उभरा रहता है। रेटिना कोशिकाओं के बाहरी सिरे से एक महीन तंत्रिका तन्तु निकल कर नीचे की ओर स्थित अरीय तंत्रिका से जुड़ जाता है। ये नेत्र चिन्ह ऐस्टेरिआस को प्रकाश मात्रा ज्ञान कराते हैं।