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Specificity of antibodies in hindi , प्रतिरक्षी की विशिष्टता क्या है , प्रतिरक्षीग्लोबुलिन्स में विविधता (Antibody diversity)

पढ़िए Specificity of antibodies in hindi , प्रतिरक्षी की विशिष्टता क्या है , प्रतिरक्षीग्लोबुलिन्स में विविधता (Antibody diversity) ?

प्रतिरक्षीग्लोबुलिन (Immunoglobulin) M (IgM)

IgM सबसे वृहत् प्रकार का प्रतिरक्षीग्लोबुलिन अणु है इसका अणुभार 950,000 होता है यह प्लाज्मा में उच्च पॉलिमेराइज्ड अवस्था में (चित्र 3.5 ) आधारभूत चार श्रृंखलाओं से निर्मित पेन्टा के रूप में पाया जाता हैं जिसकी प्रत्येक इकाई डाइ सल्फाइड बन्धों के द्वारा बन्धित रहती हैं। एक अपेक्षाकृत छोटा अणु Jश्रृंखला IgM के पॉलीमेराइजेशन में सल्फाइड्रिल अवशेष के साथ कार्बोक्सी अन्तः पर पाया जाता है। इसकी भारीश्रृंखलाएँ श्रृंखला कहलाती हैं। इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शिक अध्ययन के अनुसार यह सितारे के आकौर का अणु होता है। जीवाणुओं की देह पर ये प्रतिजन बन्धन स्थलों द्वारा केकड़े की भाँति चिपक जाती है। ये कुल प्रतिरक्षीग्लोबुलिन्स का 5-10% होती है।

इसकी श्रृंखला पर एक C क्षेत्र और पाया जाता है अतः इस पर CH से -CH4 क्षेत्र पाये जाते हैं। किसी संक्रमण के होने पर ये सर्वप्रथम प्रतिक्रिया हेतु उपलब्ध होती है तथा जीवाणुओं के प्रति अधिक क्रियाशील रहती है। यह अपरा को पार नहीं करता किन्तु रज्जु के रक्त में इसकी उपस्थिति का पता चलता है एवं भ्रूण में संक्रमण होने पर तुरन्तु क्रियाशील हो जाता है। यह समूहन व कोशिका

लयनकारी (agglutinating and cytolytic) कारक के रूप में प्रभाव दर्शाती है। इनका प्रभाव थोड़े से काल के लिये होता है B – लिम्फोसाइड कोशिकाओं की कोशिका कला पर इनकी उपस्थिति के कारण यह प्रतिजनस की पहचान बनाने वाला ग्राही क्षेत्र बनाता है।

प्रतिरक्षीग्लोबुलिन (Immunoglobulin) A (IgA)

IgA यह लिम्फॉइड ऊत्तक से सम्बद्ध श्लेष्म कला से स्त्रावित होते हैं। लार, आँसुओं, नासिक्य तरल, फेफड़ों के स्त्रवणों, मूत्रजनन व आमाशय – आन्त्र के स्त्रवणों एवं नवदुग्ध में पाया जाता है। अतः स्त्रावी इम्यूनोग्लोबुलिन भी कहलाता है। यह प्रतिरक्षा हेतु भिन्न मार्ग अपनाता हैं यह परिपूरक

तंत्र को बिना प्रतिजन प्रतिरक्षी जटिल बने भी सक्रिय कर देता है। यह सूंघने के एवं निगले जाने के कारण संक्रमण हेतु प्रथम सुरक्षा प्रदान करने वाला प्रतिरक्षी होता हैं। यह व्यक्ति को सूक्ष्मजीव से संवेदीकृत होने से पूर्व ही लड़ने में सक्षम बनाता है। यह अनेकों प्रतिजनों के प्रति प्रभावी रहता है किन्तु बहुशर्कराओं वाले प्रतिजनों हेतु अधिक सक्षम होता है। इनमें एक पेप्टाइड श्रृंखला पायी जाती है जिसका अणु भार 60.000 होता है। ये स्त्रावित होने वाले स्थलों की प्लाज्मा कोशिकाओं से संश्लेषित होते हैं एवं स्त्रवण में आने से पूर्व इन्हें सिस्टीन बहुमूल्य पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला जिसे J श्रृंखला कहते हैं के द्वारा डाइमर (dimer) में रूपान्तरित कर दिया जाता है। ये कुल प्रतिरक्षीग्लोबुलिन का लगभग 10% भाग बनाती है तथा श्लेष्मिक कला से होकर आने वाले सूक्ष्मजीवों से देह की सुरक्षा करती है।

प्रतिरक्षीग्लोबुलिन ( Immunoglobulin) E (IgE)

IgE ये सीरम में सूक्ष्म मात्रा में पायी जाती हैं। ये बेसोफिल (basophil) एवं मास्ट कोशिकाओं के प्रति अधिक आकृषित होती हैं। देह प्रत्युजर्या (allergic) सम्बन्धी प्रतिजनों (antigens) से देह की सुरक्षा करती हैं। ये श्वंसनीय उपकला व आमाशय- आन्त्र उपकला पर पायी जाती हैं। IgE वेबोफिल व मास्ट कोशिकाओं से संयुक्त हो जाती हैं एवं प्रतिजन से उद्भासित होने पर अन्त कोशिकीय अशों जैसे हिस्टामीन (histamine) का स्त्रवण करती है। एलर्जी से होने वाले ज्वर, अस्थमा तथा त्वक रोगों से देह की सुरक्षा करती है। जब कोई एलर्जिक तत्व त्वचा से सम्पर्क करता है तो मास्ट कोशिकाओं के कण अपघटन की क्रिया होती है एवं वासो एक्टिव अमीन्स अमीन्स (vaso active amines) मुक्त होते हैं जो त्वचा में शोथ (inflammation) उत्पन्न करते हैं।

प्रतिरक्षीग्लोबुलिन ( Immunoglobulin) D-(IgD)

lgD यह भी सीरम में अल्प मात्रा में पाया जाता है, अधिकतर B -लिम्फोसाइट्स की सतह पर वितरित रहता है। यह आधारभूत चार पेप्टाइड श्रृंखलाओं से बना होता है। इसके मुख्य कार्य के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त नहीं हो पायी है। यह विषैले पदार्थों व एलरजन्स के विरुद्ध प्रभावशाली होता है।

जैसा कि पूर्व में बताया गया है कि IgG4 समप्ररुप IgGl, IgG2, IgG3 व IgH4 उपवर्गों के रूप में पाये गये हैं। इन अणुओं की Hश्रृंखला में अन्तर पाये जाते हैं अतः इनके कार्यों व जैविक लक्षणों में भिन्नता पायी जाती है जैसे IgG3 स्टेफिलोकोकाई प्रोटीन के साथ नहीं जुड़ता, IgG2 आसानी से अपरा को पार नहीं करता । IgG4 सामान्य प्रकार से मोनोसाइट कोशिकाओं से बन्धन नहीं बनाता। IgA दो समप्ररूपों IgA1 व IgG2 में पाया जाता है।

विभिन्न प्रकार के प्रतिरक्षीग्लोबुलिन्स के मुख्य लक्षणों को सारणी द्वारा दर्शाया

सारणी 3.1 मानव प्रतिरक्षीग्लोबुलिन्स के प्रमुख वर्गों के लक्षण

वर्ग लक्षण
IgG भक्षाणुकोशिकाओं से भक्षाणुनाशन हेतु विशिष्ट सहलग्नता, आवॅल से पार जाने की
IgM प्राथमिक प्रतिरक्षण अभिक्रिया, सम्पूरक स्थिरन एवं मेक्रोफेज द्वारा भक्षण हेतु IgM उद्दीपन ।
IgA बाह्य स्त्रवर्गों जैसे लार, दुग्ध, श्लेष्मा आदि में स्त्रावित किया जाना नवजात शिशु में निष्क्रिय ।

 

IgE बेसोफिल व मास्ट कोशिकाओं से (WBC) विशिष्ट सहलग्नता ।

 

IgD कार्य अस्पष्ट अति सूक्ष्म मात्रा में रक्त में उपस्थित

 

 

सारणी 3.2 – विभिन्न प्रकार के प्रतिरक्षीग्लोबुलिन्स

लक्षण

 

IgG

 

IgM

 

IgA

 

IgE

 

IgD

 

अवसादन

गणनांक

 

7s 19s 11s 8s 7s
अणुभार 150,000

 

900,000

 

160,000

 

200,000

 

185,000

 

कार्य

 

आन्तरांगों के बाहर गुहा में रहते हैं सूक्ष्मजीवों व इनके आविष को निष्क्रिय बनाते हैं। अपरा को पार  करने की,

क्षमता रखते

हैं।

 

 

 

 

 

 

जीवाणुओं से सुरक्षा की प्रथम रेखा बनाते हैं समूहन क्रिया को प्रभावी बनाते हैं।

 

 

 

 

 

श्लेष्म स्त्रवणों में उपस्थित, देह की बाह्य सतह पर रहकर सुरक्षा प्रदान करते हैं।

 

 

 

 

 

एलर्जी व परजीवियों सुरक्षा प्रदान करते हैं।

 

 

 

 

 

B लिम्फोसाइट्स की सतह पर

उपस्थित रहते हैं।

 

उपस्थिति % में

अर्धजीवन काल दिनों में संश्लेश्ण

की दर

 

 

 

75-80%

23

5-10%

5.3-1

10%

5.8

0.05%

2.5

1-3%

2.8

mg/hg

प्रतिदिन सीरम में

 

33 6.7 24 0.016 0.4
औसत

उपस्थिति mg/ml

 

 

12 1.0 1.8 0.003 0.03

 

प्रतिरक्षीग्लोबुलिन्स में विविधता (Antibody diversity)

किसी भी प्राणी में प्रतिरक्षी तंत्र के बिना जीवन असम्भव है। इसके न होने की स्थिति में बाह्य संक्रमणों से होने वाले विपरीत प्रभाव व मौत को टाला नहीं जा सकता। प्रतिरक्षी तंत्र के अणु सिपाही या सैनिक की तरह देह की सीमाओं पर निगरानी रखते हैं। ये देह में प्रवेश करने वाले बाह्य पदार्थों की पहचान करते हैं एवं लगभग हर प्रतिजन से बन्धन बनाकर इसे निष्क्रिय करने या नष्ट करने का कार्य करते हैं। इसमें स्मृति का गुण भी अभूतपूर्व होता है किसी संक्रमण करने योग्य पदार्थ का दोबारा देह में प्रवेश करने पर इससे अधिक दक्षता के साथ निपटा जाता है। यह हम भली-भाँति जानते हैं कि प्रतिजन ( antigens) लाखों प्रकार के होते हैं जो देह में संक्रमण करते हैं। यह भी स्पष्ट है कि इनसे लड़ने या निपटने के लिये लाखों प्रकार के प्रतिरक्षी ग्लोबुलिन या प्रतिरक्षी (antibody) अणु भी होने चाहिये। प्रत्येक प्रतिरक्षी विशिष्ट प्रोटीन श्रृंखलाओं का एक समूह (assembly) होता है। इसकी संरचना का कार्य जीन द्वारा निर्दिष्ट होता है। इसके लिये प्राणी के जीनोम (genome) में लाखों करोड़ों प्रतिरक्षी जीन्स का होना आवश्यक है क्योंकि प्रत्येक प्रतिरक्षी-प्रतिजन के अनुसार भिन्न होता है एवं प्रतिजन के देह में प्रवेश करने पर इसी के अनुरूप प्रतिरक्षी बनने का कार्य आरम्भ होता है। यह जटिल कार्य किस प्रकार सम्पन्न होता है इस पर वैज्ञानिक एक मत नहीं हैं। इसके लिये जनन रेखा (germ line) एवं कालिक पुर्नसंयोजन (somatic recombination) मत प्रस्तुत किये गये हैं।

प्रतिरक्षी की विशिष्टता (Specificity of antibodies)

शरीर में विभिन्न प्रकार के कायिक उत्परिवर्तनों (somatic mutation) एवं RNA प्रक्रमन (RNA processing) की विभिन्नताओं के परिणामस्वरूप B द्वारा विभिन्न प्रकार की प्रतिरक्षियों का निर्माण होता है। Bलिम्फोसाइट के निगम की कुछ विशेष कोशिकायें प्रतिजन से प्रेरित होकर B- कोशिकाओं का क्लोन (clone) बनाती है। इनमें एक समान आनुवंशिक सूचनाएं होती है। इसे क्लोनल चयन सिद्धान्त (clonal selection theory) कहते हैं । इस सिद्धान्त का प्रतिपादन 1957 में एम.एफ बर्नेट (M.F. Burnet). डेविड डब्ल्यू. टाल्मेज (David W. Talmage) एवं निल्स काज जर्ने (Niels Kaj Jerne) ने संयुक्त रूप से किया था ।

B- कोशिकाओं के क्लोन की उपस्थिति में किसी विशिष्ट या सीमित संख्या वाले प्रतिजन से उत्प्रेरित होकर सही प्रतिरक्षी का निर्माण होता है। प्रतिजन स्वयं अपने अनुरूप B – कोशिकाओं के क्लोन की पहचान करता है। इस प्रकार अन्य कोशिकाओं के क्लोन अप्रभावित रहते हैं।

प्रत्येक B- कोशिकीय क्लोन प्रतिजन के प्रवेश से पूर्व अपने विशिष्ट प्रतिजन के प्रति अनुक्रिया दर्शाने के लिए आनुवंशिक रूप से कार्यक्रम बनाती हैं। विशिष्ट प्रतिरक्षी जिस लिए B – कोशिका आनुवंशिक रूप से प्रतिस्पर्द्धात्मक होती है। यह प्रतिरक्षी B- कोशिका की प्लाज्मा झिल्ली में समाकलित हो जाती है एवं अपने संगत प्रतिजन के लिए प्रतिजन ग्राही का कार्य करती है। प्रतिजन-प्रतिरक्षी क्रिया के कारण यह B – कोशिका गुणित एवं विभेदित होकर प्लाज्मा कोशिकाओं एवं स्मृति कोशिकाओं का निर्माण करती हैं।

प्लाज्मा कोशिकायें एक प्रकार की प्रोटीन फैक्ट्री होती है जो अपने 5-7 दिन के जीवन काल में लगभग 2,000 प्रकार की प्रतिरक्षी का निर्माण करती है। स्मृति कोशिकायें विशिष्ट प्रतिजन की पहचान करने के बाद प्रतिरक्षी मध्यवर्ती प्रतिरक्षी अनुक्रिया (Antibody mediation immune ) को प्रेरित करती है। स्मृति कोशिकायें रक्त से परिवहित होकर लसिका में आ जाती है। response) यहां ये कई वर्षों तक जीवित रहती है। स्मृति कोशिकाएं प्रतिरक्षी तंत्र की द्वितीय प्रतिरक्षी अनुक्रिया के लिए उत्तरदायी होती हैं।

प्रतिरक्षी की विविधता (Diversity of antibodies)

प्रतिरक्षी का सबसे महत्वपूर्ण लक्षण इसमें पाई जाने वाली विविधता (Diversity) होती है। ऐसा माना जाता है कि मनुष्य में लगभग 10 करोड़ प्रकार की प्रतिरक्षियों का निर्माण हो सकता है। यह विविधता उत्पन्न होने के लिए निम्नलिखित तीन कारण होते हैं-

  • प्रतिरक्षी के जीनीय खण्डों में पुर्नव्यवस्था ( Rearrangement of genetic segments of antibodies) : प्रतिरक्षी जीन विपाटित जीन (split gene) होते है। जिनमें कई अक्सोन (Exon) श्रृंखलायें पाई जाती हैं। भ्रूणीय B – कोशिका में हल्की – श्रृंखला स्थिर क्षेत्र को निर्धारित करने वाली अक्सोन एक ही गुणसूत्र पर उपस्थित होती है। इसी गुणसूत्र पर थोड़ा हटकर हल्की श्रृंखला के परिवर्तनशील क्षेत्र (variable region) को निर्धारित करने वाली अक्सोन का झुण्ड पाया जाता है। B- कोशिका के विभेदन के दौरान स्थिर क्षेत्र का एक अक्सोन भिन्नीत क्षेत्र के एक अक्सोन से विपाटित हो जाता है। इस विपाटन में हल्की श्रृंखला के जीन का निर्माण होता है। इसी प्रकार की विपाटन प्रक्रिया प्रतिरक्षी की भारी श्रृंखला के स्थाई तथा परिवर्तनशील क्षेत्र के जीन के लिए होती है। हल्की श्रृंखला के जीन के तीन भाग होते हैं, जबकि भारी श्रृंखल के जीन के चार भाग होते हैं।

जमलाइन DNA में हल्की श्रृंखला के जीन में बहुकोडित (multiple coding) श्रृंखलायें होती जिन्हें एवं J (joining) क्षेत्र कहते हैं। B- कोशिका के विभेदन के दौरान विलोपन होता है। विलोपन के बाद एक V अक्सोन, J- अक्सोन के साथ जुड़ जाता है। स्थिर क्षेत्र को कोडित करने वाले DNA के क्षेत्र में अनुलेखन लगातार चलता रहता है। RNA के विपाटन के पश्चात् VJ तथा C क्षेत्र आपस में जुड़कर mRNA का निर्माण करते हैं। यह संयोजन संचय विन्यास संयोजन (combination joining) कहलाता है।

भारी श्रृंखला के जीन की उत्पत्ति में संचय विन्यास संयोजन VJ एवं D (diversity) क्षेत्रों के संयोजन के कारण होता है। प्रारम्भ में सभी प्रकार की भारी श्रृंखलाओं में u प्रकार का स्थाई क्षेत्र होता है। अन्य DNA खण्ड विघटित होकर VJD क्षेत्र के साथ जुड़कर सम्पूर्ण प्रतिरक्षी के उत्पादित करने वाले जीन में परिवर्तित हो जाती है।

  • कायिक उत्परिवर्तन (Somatic mutation )- जर्मलाइन DNA के क्षेत्र कायिक उत्परिवर्तन के प्रति अधिक सुग्राही होते हैं। इन उत्परिवर्तनों के कारण B – कोशिकीय क्लोन विभिन्न प्रकार की पोलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं का निर्माण करते हैं।
  • विभिन्न प्रकार के कोडोन का उत्पादन (Production of different type of codones)—VJ एवं VDJ संयोजन के दौरान विभिन्न प्रकार से न्यूक्लिओटाइड की श्रृंखलाओं संयोजन होता है। इस प्रकार विपाटित जीन में भिन्न-भिन्न प्रकार के कोडोन का निर्माण होता है। जैसे VJ संयोजन में V श्रृंखला CCC का J श्रृंखला TGG TGG के साथ संयोजन दो प्रकार से होता है।

* CCTCCC + TGGTGG CCGTGG

यह संयोजन प्रोलिन एवं ट्रिप्टोफेन एमिनों अम्लों को कोडित करता है ।

* CCTCCC + TGG TGC CTT CGG

यह संयोजन प्रोलिन एवं आर्जिनिन एमीनो अम्लों को कोडित करता है।

प्रतिरक्षियों के स्रोत (Source of antibodies)

वर्तमान समय में संमांगी प्रतिरक्षियों की आवश्यकता अत्यधिक बढ़ गयी है। प्रतिरक्षियों उत्पादन दो विधियों द्वारा किया जाता है-

(1) प्राकृतिक विधि (Natural method)

(2) कृत्रिम विधि ( Artificial method)

(1) प्राकृतिक विधि (Natural method) : वर्तमान समय में प्राकृतिक विशिष्ट प्रतिरक्षकों का उत्पादन चौपाये प्राणियों में प्रतिरक्षीकरन (immunization) द्वारा किया जाता है। परपोषी में प्रतिजन प्रवेश कराया जाता है। परपोषी का प्रतिरक्षी तन्त्र इन प्रतिजन की पहचान करता है एवं B- लिम्फोसाइट कोशिकायें प्रचुरोद्भवन (proliferation) एवं विभेदन ( differentiation) द्वारा विशिष्ट प्रतिरक्षों का उत्पादन करती है। प्रतिरक्षी के उत्पादन को प्रेरित करने के लिए प्रतिजन के साथ समायोजन (adjuvant) को मिलाया जाता है। नियमित अंतराल पश्चात् प्रतिजन का इंजेक्शन लगाया जाता है। बाद में परपोषी का रक्त लिया जाता है एवं उसका स्कंदन ( clotting) किया जाता है। स्कंदन के पश्चात् शेष बचा लाल सिरम (serum) कहलाता है। यह सिरम एंटीसिरम (Antiserum) कहलाता है।

(2) कृत्रिम विधि ( Artificial method): मनुष्य के स्वास्थ्य की रक्षा के लिये प्रतिरक्षियों की आवश्यकता होती है। इसलिये इस क्षेत्र में प्रतिरक्षियों के उत्पादन बढ़ाने के लिए कई शोध कार्य हो रहे हैं। आजकल कृत्रिम रूप से प्रतिरक्षी का उत्पादन प्रयोगशाला में किया जा रहा है। औद्योगिक क्षेत्र में भी वेक्सीन एवं औषधियों का उत्पादन इस विधि द्वारा किया जा रहा है। शोध कार्यों के लिए प्रतिरक्षियों को प्रायः प्राणी के प्रतिजन द्वारा उपचारित करके तथा प्राणा को मार कर प्राप्त किया जाता है। इन अति प्रतिरक्षित प्राणियों के रक्त सीरम से प्रतिरक्षियां अलग किया जाता है। यद्यपि रक्त सीरम से प्राप्त प्रतिरक्षियां विषमांगी प्रकार की होती हैं क्योंकि कोशिकायें अलग-अलग प्रकार की प्रतिरक्षियों का उत्पादन करती हैं। दूसरी तरफ मोनोक्लोनल प्रतिरक्षियों का उपयोग स्क्रीनिंग तथा निदान के लिए किया जाता है।

प्रश्न (Questions)

  1. निम्नलिखित के अतिलघु / एक शब्द में उत्तर दीजिये-

Give very short/one word answer of the following-

  1. प्रतिरक्षी काय देह की किन कोशिकाओं से उत्पन्न होती है ?

From which cells of body antibodies are produced?

  1. प्रतिरक्षीग्लोबुलिन अणु की आकृति कैसी होती है ?

The shape of immunoglobulin is of what type?

  1. पेपेन किण्वक का प्रतिरक्षी ग्लोबुलिन के किस क्षेत्र पर अधिक प्रभाव होता है ?

On which region of immunoglobulin papain enzyme acts mostly?

  1. कौनसा प्रतिरक्षी ग्लोबुलिन जीवाणुओं से सुरक्षा हेतु प्रथम सुरक्षा रेखा बनाता है?

Which immunoglobulin makes first line of defense against protection from bacteria?

  1. अपरा को पार करने वाला क्षमता युक्त प्रतिरक्षीग्लोबुलिन कौनसा है ?

Which immunoglobulin can cross placenta ?

  1. प्रतिजन के प्रभाव से सर्वप्रथम निर्मित होने वाली प्रतिरक्षी कौनसी है ?TgG

Which is the first formed antibody exposed to antigen.

  1. सर्वाधिक मात्रा में पायी वाली प्रतिरक्षी मनुष्य में कौनसी है

Which type of antibody is found in man in maximium amount?

  1. अपरा पार न करने वाली प्रतिरक्षी जो रक्त सीरम का 1% भाग बनाती है, कौनसी है ?

Antibody which can not pass placenta and forms 1% part of blood serum which is that ?

  1. प्रत्युजर्या व रोगजनक अवस्था में किस प्रकार के इम्यूनोग्लोबुलिन की मात्रा में वृद्धि होती है जबकि सामान्यतः यह अल्प मात्रा में पायी जाती है।

Which type of immunoglobin increases in the amount during allergy or disease while in normal condition it is found in traces.

  1. मनुष्य में लगभग कितनी प्रकार की प्रतिरक्षियों का निर्माण हो सकता है ?

How many type of antibodies can be produced in human body?

  1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार दीजिये-

Write down the answers of following question in detail.-

  1. प्रतिरक्षी को परिभाषित कीजिये । किन्हीं चार प्रकार के प्रतिरक्षियों की संरचना का वर्णन कीजिये ।

Define antibody. Describe structure of any fore major types of antibodies with in help of suitable diagrams.

  1. टिप्पणी कीजिये इम्यूनोग्लोबुलिन

Write short note on Immunoglobulin

  1. प्रतिरक्षीग्लोबुलिन की आधारभूत संरचना का वर्णन कीजिये व इसके WHO वर्गीकरण की विवेचना कीजिये ।

Describe basic structure of immunoglobulin molecule and discuss the who classification on of immunoglobulin

  1. विभिन्न प्रकार की प्रतिरक्षियों की संरचना एवं कार्य का वर्णन कीजिये ।

Describe different types of antibodies and their functions.

  1. एन्टीबॉडी का नामांकित चित्र बनाइये प्रत्येक प्रतिरक्षीग्लोबुलिन अणु की परिभाषा व कार्य लिखिये ।

Draw will labelled diagram of antibody. Write the definition and function of each class of immunoglobulin.