Specific Heat Anomaly of Metals in hindi धातुओं की विशिष्ट ऊष्मा में विसंगति क्या है परिभाषा बताइए
जानिए Specific Heat Anomaly of Metals in hindi धातुओं की विशिष्ट ऊष्मा में विसंगति क्या है परिभाषा बताइए ?
धातुओं की विशिष्ट ऊष्मा में विसंगति (Specific Heat Anomaly of Metals)
धातुओं में ऊष्मीय ऊर्जा के कारण परमाणुओं के कम्पनों के अतिरिक्त मुक्त इलेक्ट्रॉनों की यादृच्छ स्थानांतरीय गति भी होती है। अतः धातुओं के लिये
C = Cv (परमाणुक) + Cv (इलेक्ट्रॉनिक)
ठोसों में परमाणु अपनी माध्य स्थिति के प्रति कम्पन करते हैं। एक विमीय कम्पन गति में गतिज ऊर्जा व स्थितिज ऊर्जा दोनों सम्बद्ध (क्रमश: वेग व विस्थापन) की द्विघाती फलन होती है। समविभाजन सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक स्वतन्त्रता की कोटि के लिए प्रति कण ऊर्जा kT/2 होगी। अतः एकविमीय कम्पन गति के संगत औसत ऊर्जा 2 x kT/2 = KT होगी। परन्तु परमाणुओं के कंपन त्रिविमीय होते हैं। अतः प्रति परमाणु औसत ऊर्जा 3KT होगी।
एक मोल पदार्थ के लिए औसत ऊर्जा
E (परमाणक) = 3 No kT = 3RT ….(1)
जहाँ No आवोगाद्रो संख्या है। अतः
Cv (परमाणुक ) = dE/dT = 3R ….(2)
यही मान डिबाई सिद्धान्त से उच्च तापों पर प्राप्त होता है। मुक्त इलेक्ट्रॉनों में केवल गतिज ऊर्जा होती है। अत: उपर्युक्त सिद्धान्त के अनुसार
Cv(इलेक्ट्रॉनिक) = 3R/2
जिससे सामान्य तापों पर
Cv = 3R + 3R/2 = 9R/2
अपेक्षित है। प्रयोगानुसार धातुओं के लिए कक्ष ताप पर Cv का मान 3R के निकट होता है अर्थात् इलेक्ट्रॉनों का योगदान अत्यल्प होता है। धातुओं की विशिष्ट ऊष्मा से सम्बद्ध यह विसंगति चिरसम्मत सांख्यिकी की प्रमुख विफलताओं में से एक थी। इस विसंगति का समाधान फर्मी – डिरैक सांख्यिकी के द्वारा प्राप्त हुआ। फर्मी-डिरैक सांख्यिकी के अनुसार परम शून्य ताप पर इलेक्ट्रॉनों F तक हो सकती है । शून्य से εF तक सब ऊर्जा स्तरों के लिए अधिष्ठान प्रायिकता ( occupational probability) एक होती है। यदि इलेक्ट्रॉन गैस का ताप 0 से T K तक बढ़ाया जाय तो केवल वे इलेक्ट्रॉन जो ε = εF स्तर के निकट कुछ KT चौड़ाई के बैंड में स्थित होते हैं वे ही ऊर्जा अवशोषित कर पाते हैं और εF से अधिक ऊर्जा के स्तरों में अध्यासित हो जाते हैं (चित्र 7.12-1)।
अतः यदि इलेक्ट्रॉनों की कुल संख्या N है तो उन इलेक्ट्रॉनों की संख्या n जो T ताप पर ऊर्जा अवशोषित कर उच्च ऊर्जा के स्तरों में संक्रमण करते हैं, निम्न कोटि की होगी :
जहाँ Z प्रति परमाणु संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या है (संयोजी इलेक्ट्रॉन ही मुक्त इलेक्ट्रॉनों की भांति व्यवहार करते हैं। ) । यदि N आवोगाद्रो संख्या है तो Nk =R व मोलर इलेक्ट्रॉनिक विशिष्ट ऊष्मा
अर्थात् कुल विशिष्ट ऊष्मा में इलेक्ट्रॉनों का योगदान 1 प्रतिशत के लगभग होता है, जो प्रयोगों के अनुरूप है। निम्न तापों पर डिबाई के सिद्धान्त से Cv (परमाणुक) αT^3 = BT^3
अतः कुल विशिष्ट ऊष्मा
Cv = Cv (इलेक्ट्रॉनिक ) + Cv (परमाणुक)
= AT + BT^3
जहाँ A व B नियतांक हैं। निम्न तापों पर C के मानों की ताप पर निर्भरता चित्र (7.12-2 ) में दिखाई गई है।
नाभिकीय स्पिन सांख्यिकी : ऑर्थो व पैरा हाइड्रोजन (Nuclear Spin Statistics: Ortho and Para Hydrogen)
इलेक्ट्रॉन की भांति प्रोटोन और न्यूट्रॉन में भी नैज चक्रण कोणीय संवेग होता है जिससे परमाणुओं के नाभिकों में परिणामी कोणीय संवेग होता है जिसे सामान्य रूप से नाभिकीय चक्रण ( nuclear spin) कहा जाता है। नाभिकीय चक्रण के संगत क्वान्टम संख्या को I से प्रदर्शित किया जाता है और इसे नाभिकीय चक्रण क्वान्टम संख्या ( nuclear spin quantum number) कहा जाता है। नाभिकीय चक्रण कोणीय संवेग का परिमाण [I (I + 1)] ^1/2 h के तुल्य होता है।
नाभिकीय कोणीय संवेग सदिश परमाण्विक कोणीय संवेग संदिश की भांति आकाशी क्वान्टीकरण प्रदर्शित करता है। चक्रण I वाले नाभिक के कोणीय संवेग के बाह्य क्षेत्र में (2I + 1) अभिविन्यास सम्भव है, अर्थात् चक्रण क्वान्टम संख्या I के (2I + 1) स्तर होते हैं जिनसे सम्बद्ध ऊर्जा भी समान होती है, अर्थात् अपभ्रष्टता (2I + 1) गुणा होती है।
नाभिकीय चक्रण के लिए प्राप्त प्रायोगिक परिणामों से चक्रण क्वान्टम संख्या I व नाभिक की द्रव्यमान संख्या में महत्वपूर्ण संबंध ज्ञात होता है। जिस नाभिक की द्रव्यमान संख्या विषम (odd) होती है उसके लिए I का मान अर्ध विषम पूर्णांक (half odd integer) होता है तथा जिस नाभिक की द्रव्यमान संख्या सम (even) होती है उसके लिए I का मान पूर्णांक (integer) होता है।
अब हम एक द्विपरमाणुक अणु पर विचार करते हैं । द्विपरमाणुक अणु के घूर्णी ऊर्जा स्तर सन्निकटतः निम्न संबंध द्वारा दिये जाते हैं-
संवितरण फलन के परिकलन में योग का समाकलन से प्रतिस्थापन चिरसम्मत सीमा ( classical limit) कही जा सकती है, अर्थात् KT का मान ऊर्जा स्तरों में अन्तर से बहुत अधिक होता है। यदि द्विपरमाणुक अणु में दोनों परमाणु समान होते हैं तो अणु को ग कोण से घुमाने पर प्राप्त अवस्था प्रारम्भिक अवस्था से अविभेद्य होती है, अर्थात् प्रत्येक पूर्ण चक्कर में समान अवस्था दो बार प्राप्त होती है। इस त्रुटि को के लिए संवितरण फलन को निम्न रूप में लिखा जाता है।
जहाँ संख्या σ सममिति गुणक (symmetry factor) है, σ = 2 यदि अणु में दोनों परमाणु समान हैं तथा σ = 1 यदि परमाणु भिन्न हैं ।
Zघूर्णन के परिकलन में अब तक हमने नाभिकीय चक्रण (नाभिकीय कोणीय संवेग) के अस्तित्व की उपेक्षा की है। नाभिकीय चक्रण के होने पर चक्रण के अनेक अभिविन्यास संभव हैं। यद्यपि सन्निकटत: नाभिकीय चक्रण से अणु की घूर्णन ऊर्जा प्रभावित नहीं होती है परन्तु ऊर्जा स्तरों में अपभ्रष्टता उत्पन्न हो जाती है। सामान्यतः इसके प्रभाव स्वरूप संवितरण फलन को एक लघु पूर्णांक (small integer) n से गुणा कर दिया जाता है जहाँ n चक्रण बहुकता गुणक (spin multiplicity factor) कहलाता है तो ताप व अन्य अवस्थाओं पर निर्भर नहीं होता।
इस प्रकार सामान्यत: नाभिकीय चक्रण के प्रभाव को (गुणक η प्रयुक्त करने के अतिरिक्त) नगण्य माना जा सकता है। समान परमाणुओं वाले अणुओं में जब जड़त्व आघूर्ण Io का मान अत्यल्प होता है तो चिरसम्मत सीमा का निम्न तापों पर भंजन हो जाता है अर्थात् घूर्णन ऊर्जा स्तरों के अन्तर को kT के सापेक्ष अत्यल्प नहीं मान सकते। हाइड्रोजन परमाणु में Io का मान अत्यल्प होने से लगभग 100 K तक चिरसम्मत सीमा प्रयुक्त नहीं हो सकती व संवितरण फलन के
परिकलन में योग को समाकलन से प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता। हाइड्रोजन अणु के दोनों परमाणुओं के नाभिकों का चक्रण 1/2 होता है और इसलिए अणु के लिए परिणामी कोणीय संवेग j के लिए दो सम्भावनायें प्राप्त होती हैं। यदि नाभिकों की चक्रण अवस्थाओं को α व β से प्रदर्शित करें तो अणु की परिणामी चक्रण अवस्था के लिए निम्न प्रारूप प्राप्त होते हैं
प्रथम तीन सममित फलन हैं व अन्तिम एक प्रतिसममित । चूंकि परिणामी चक्रण I की अपभ्रष्टता (2I + 1) के बराबर है, समदिश प्रचक्रण (parallel spins) के लिए I का मान 1 होगा जिससे ( 2I + 1) का मान 3 होगा तथा समीकरण (5) में प्राप्त पहली तीन अवस्थायें प्राप्त होगी। ये तीनों अवस्थायें सममित (symmetric) चक्रण अवस्थाओं के संगत हैं। जब परिणामी चक्रण I का मान शून्य होता है तब (2I + 1) का मान एक होगा तथा समीकरण (5) की चौथी अवस्था ( अभिविन्यास ) प्राप्त होती है जो कि प्रतिसममित (antisymmetric) घूर्णन अवस्था के संगत होगी। अतः समदिश चक्रण (parallel spin) की आश्विक अवस्था की प्रायिकता (probability) या सांख्यिकीय भार (statistical weight), प्रतिदिश चक्रण ( anti parallel spins) की आण्विक अवस्था की तुलना में तीन गुना होगी। यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि सममित चक्रण अवस्थाओं व प्रतिसममित चक्रण अवस्थाओं में आपस में संक्रमण (transition) सम्भव नहीं है। अणु के नाभिकीय तरंग फलन में स्थानान्तरीय (translational), कंपनिक ( vibrational), घूर्णी (rotational) व चक्रणी (spin) भाग होते हैं। स्थानान्तरीय भाग केवल गुरुत्व केन्द्र की गति पर निर्भर होता है और उसमें नाभिकों की स्थिति विनिमय ( अदल-बदल ) का कोई प्रभाव नहीं होता अर्थात् वह सममित होता है। कंपनिक भाग जो केवल नाभिकों के मध्य दूरी पर निर्भर होता है वह भी सममित होता है। घूर्णी भाग नाभिकों की परस्पर स्थिति परिवर्तन पर निर्भर हो सकता है तथा वह सममित या प्रति सममित हो सकता है। घूर्णी तरंग फलन के लिए यह ज्ञात होता है कि जब घूर्णन क्वान्टम संख्या j सम (even) होती है तो घूर्णन तरंग फलन सममित होता है तथा जब विषम j (old) होता है तो तरंग फलन प्रतिसममित होता है हाइड्रोजन परमाणु में केवल एक प्रोटोन होता है। अतः हाइड्रोजन अणु के लिए नाभिकीय गति से सम्बद्ध पूर्ण तरंग फलन प्रतिसममित होना चाहिये। यह तब ही संभव है जब j के सम मानों से सम्बद्ध घूर्णन तरंग फलन प्रति सममित चक्रण फलन से संयोग करे या जब j के विषम मानों से संगत घूर्णन तरंग फलन सममित चक्रण फलन से संयोग करे । अतः चक्रण अवस्था की बहुकता (multiplicity) का ध्यान रखते हुए
वे घूर्णन अवस्थाएं जिनके लिए क्वान्टम संख्या J के मान विषम 1, 3, 5,… होते हैं। ( घूर्णन तरंग फलन प्रति सममित ) व चक्रण अवस्था सममित होती है उनकी साम्यावस्था में प्रायिकता का मान अधिक होगा तथा ये ऑर्थो अवस्था (ortho-state) कहलाती है। J सम मान वाली घूर्णन अवस्थाओं अर्थात् 0, 2, 4,……
मान की अवस्थाओं में घूर्णन तरंग फलन सममित परन्तु चक्रण अवस्था प्रतिसममित होती है। इस अवस्था की प्रायिकता कम होती है व इसे पैरा अवस्था (para state) कहते हैं। अतः सामान्य हाइड्रोजन सामान्य ताप पर 3 भाग ऑर्थो हाइड्रोजन (ortho hydrogen) व एक भाग पैरा हाइड्रोजन (para hydrogen) से बनी हुई होती है। यदि सामान्य हाइड्रोजन को ऑर्थो व पैरा हाइड्रोजन का मिश्रण मान लिया जाय तो पैरा व ऑर्थो हाइड्रोजन के घूर्णन संवितरण फलनों को निम्न रूप में लिखा जा सकता है
जहाँ η = 4 (चक्रण बहुकता) व η = 2 (समान परमाणु होने से )
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि जब दो हाइड्रोजन परमाणु संयुक्त होकर हाइड्रोजन अणु बनाते हैं तो उस पर दोनों इलेक्ट्रॉनों का चक्रण पॉली अपवर्तन सिद्धान्तानुसार विपरीत दिशाओं में होता है । परन्तु दोनों प्रोटोनों का चक्रण (नाभिकीय चक्रण) एक दिशा में भी हो सकता है और विपरीत दिशा में भी। इस प्रकार हाइड्रोजन के दो रूप हो सकते हैं। जब हाइड्रोजन अणु में दोनों परमाणुओं के नाभिकों का चक्रण एक ही दिशा में होता है तो उसे ऑर्थो हाइड्रोजन, और यदि विपरीत दिशा में होता है तो पैरा हाइड्रोजन कहते हैं।
समान ताप पर साधारण हाइड्रोजन में ऑर्थो व पैरा रूपों की प्रतिशततः क्रमशः 75 व 25 है । ताप कम करने पर ऑर्थो की प्रतिशतता कम हो जाती है और पैरा की प्रतिशतता बढ़ जाती है।
हाइड्रोजन के ऑर्थो और पैरा रूप रासायनिक गुणों में तो समान होते हैं परन्तु भौतिक गुणों में कुछ भिन्नता होती है। कुछ भौतिक गुण सारिणी 7.1 में दर्शाये गये हैं। यद्यपि ऑर्थो हाइड्रोजन में नाभिकीय चक्रण समान हैं परन्तु फिर भी यह प्रति चुम्बकीय है। नाभिकीय चुम्बकीय आघूर्ण का मान इलेक्ट्रॉन के चुम्बकीय आघूर्ण की तुलना में अत्यल्प होता है। H2 में कोई अयुग्मित इलेक्ट्रॉन नहीं होता है। ऑर्थो तथा पैरा रूपों की आन्तरिक आणविक ऊर्जा भिन्न होती है। पैरा रूप ऑर्थो रूप की अपेक्षा अधिक स्थायी होता है। ऑर्थो रूप के पैरा रूप में बदलने पर ऊर्जा का उत्सर्जन होता है।
उच्च तापों पर समीकरण (9) का उपयोग करके विशिष्ट ऊष्मा के परम्परागत मान ज्ञात किये जा सकते हैं। निम्न तापों पर, जहाँ क्वान्टम प्रभाव प्रतिलक्षित होते हैं, आन्तरिक ऊर्जा का परिकलन संवितरण फलन को श्रेणी के रूप में व्यक्त करके किया जाता है। घूर्णन विशिष्ट ऊष्मा को ज्ञात करने के लिये श्रेणी का पदवार अवकलन किया जाता है। चित्र (7.13.1) में हाइड्रोजन के विभिन्न रूपों के लिये घूर्णन विशिष्ट ऊष्मा को ताप के साथ आलेखित किया गया है। चित्र से स्पष्ट है कि पैरा हाइड्रोजन के लिये विशिष्ट ऊष्मा ताप के बढ़ने से बढ़ती है तथा एक ताप पर महत्तम हो जाती है और इसके पश्चात् ताप बढ़ाने पर उच्च ताप के मान की ओर घटती है।
हाइड्रोजन की घूर्णन विशिष्ट ऊष्मा (O = ऑर्थो; p = पैरा; n = सामान्य
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