सौर कुकर (solar cooker in hindi) दो सिद्धात पर कार्य करते है।
1. परावर्तक पृष्ठ अथवा श्वेत पृष्ठ की तुलना में काला पृष्ठ अधिक ऊष्मा अवशोषित करता है। अत: सौर कुकर को चारो तरफ से काले रंग से रंग जाता है जिसके कारण यह उर्जा को अधिक से अधिक अवशोषित के सके।
2. सौर कुकरों में काँच की शीट का ढक्कन लगा होता जो की एक बार सौर कुकरों में प्रवेश करने वाली सूर्य की किरणों को बाहर निकलने नहीं देती है जिसके कारण सौर कुकरों में में अधिक से अधिक उर्जा बनी रहती है।
सौर कुकर का उपयोग बहुत अधिक मात्रा में किया जा सकता है ताकि सौर उर्जा सूर्य से आने वाली उर्जा है जो की बहुत अधिक मात्रा में होती है। यह पर्यावरण में प्रदुषण को नहीं फैलाता है।इन कुकर में एक या एक से अधिक भोजन एक साथ बनाया जाता है। सौर कुकर का उपयोग करने के लिए अधिक धुप का होना आवश्यक है।
सौर सेल
सौर सेल वह युक्ति है जिसके दवारा सौर उर्जा को विधुत उर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है। धूप में रखे जाने पर किसी एक सौर सेल से 0.5-1.0 v तक वोल्टता विकसित की जा सकती है तथा लगभग 0.7A विद्युत उत्पन्न कर सकते हैं।
सौर पैनल
जब बहुत अधिक संख्या में सौर सेलों को आपस में जोड़ा जाता हैं तो यह व्यवस्था सौर पैनल कहलाती है जिनसे व्यावहारिक उपयोग के लिए पर्याप्त विद्युत प्राप्त हो जाती है। सौर पैनल में सौर सेलों को चांदी (SILVER) का उपयोग करके जोड़ा जाता है।
सौर सेल को बनाने के लिए सिलिकॉन का उपयोग किया जाता है जो प्रकृति में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। उच्च लागत होने पर भी सौर सेलों का उपयोग बहुत से वैज्ञानिक दवारा तथा प्रौद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए किया जाता है।
सौर सेल के लाभ
1.सौर सेल में कोई भी गतिमान पुरजा नहीं होता है जिसके कारण इनका रखरखाव सस्ता होता है
2..ये बिना किसी फोकसन युक्ति के काफी संतोषजनक कार्य करते हैं।
3. सौर सेल सुदूर तथा अगम्य स्थानों में स्थापित किया जा सकता है। इन्हें ऐसे छितरे बसे हुए क्षेत्र में भी स्थापित किया जा सकता है जहाँ विधुत उर्जा के लिए केबल बिछाना अत्यंत खर्चीला तथा व्यापारिक दृष्टि से व्यावहारिक नहीं होता।
सौर सेल की हानिया (LIMITATION)
1.सौर सेलों को बनाने के लिए विशिष्ट श्रेणी के सिलिकॉन की आवश्यकता होती है जिसकी उपलब्धता सीमित है।
2.सौर सेलों के उत्पादन की समस्त प्रक्रिया बहुत महँगी होती है। सौर सेलों को परस्पर संयोजित करके सौर पैनल बनाने में सिल्वर का उपयोग होता है जिसके कारण लागत में और अधिक वृद्धि हो जाती है।
3. अत्यधिक मँहगा होने के कारण सौर सेलों का घरेलू उपयोग सीमित है।
सौर सेल के उपयोग (APPLICATION)
1.मानव-निर्मित उपग्रहों तथा अंतरिक्ष अन्वेषक युक्तियों में सौर सेलों का उपयोग प्रमुख ऊर्जा स्रोत के रूप में किया जाता है।
2.रेडियो अथवा बेतार संचार तंत्र अथवा सुदूर क्षेत्र के टी-वी- रिले केंद्रों में सौर सेल पैनल उपयोग किए जाते हैं।
3.ट्रैफिक सिग्नलों, परिकलकों तथा बहुत से खिलौनों में सौर सेल लगे होते हैं। सौर सेल पैनल विशिष्ट रूप से डिजाइन की गई छतों पर स्थापित किए जाते हैं ताकि इन पर अधिक से अधिक सौर ऊर्जा आपतित हो।
समुद्रों से प्राप्त ऊर्जा
ज्वारीय ऊर्जा
समुद्र में उत्पन्न ज्वार-भाटा के कारण प्राप्त उर्जा को ज्वारीय ऊर्जा कहते है। ज्वारीय ऊर्जा ज्वार-भाटा में जल के स्तर के गिरने या बडने के कारण प्राप्त होती है।
ज्वार-भाटा
समुद्र में जल के स्तर का पुरे दिन में परिवतन होता रहता है। इस परिघटना को ज्वार-भाटा कहते हैं। घूर्णन गति करती पृथ्वी पर मुख्य रूप से चंद्रमा के गुरुत्वीय खिंचाव के कारण सागरोंमें जल का स्तर चढ़ता व गिरता रहता है।
ज्वारीय ऊर्जा का दोहन
ज्वारीय ऊर्जा का दोहन सागर के किसी संकीर्ण क्षेत्र पर बाँध का निर्माण करके किया जाता है। बाँध के द्वार पर स्थापित टरबाइन ज्वारीय ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करने के लिए जिम्मेदार होती है। इस प्रकार की जगह जहा यह बाँध निर्मित किए जा सकते है सीमित हैं।
तरंग ऊर्जा
समुद्र तट के निकट विशाल तरंगों की गतिज ऊर्जा का उपयोग विद्युत उत्पन्न करने में किया जाता है। महासागरों के पृष्ठ पर आर-पार बहाने वाली प्रबल पवन तरंगें उत्पन्न करती है। इस तरंग ऊर्जा का वहीं पर व्यावहारिक उपयोग हो सकता है जहाँ तरंगें अत्यंत प्रबल हों। तरंग ऊर्जा को ट्रेप करने के लिए विविध युक्तियाँ विकसित की गई हैं ताकि इस तरंग उर्जा से टरबाइन को घुमाकर विद्युत उत्पन्न करने के लिए इसका उपयोग किया जा सके।
महासागरीय तापीय ऊर्जा
समुद्रों अथवा महासागरों के पृष्ठ का जल सूर्य के द्वारा प्राप्त उर्जा से गर्म हो जाता है जबकि इन समुद्रों की गहराई पर जल अपेक्षाकृत ठंडा होता है। ताप में इस अंतर के कारण प्राप्त तापीय उर्जा का उपयोग विद्युत संयंत्र में ऊर्जा प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
महासागरीय तापीय ऊर्जा का दोहन
वह यन्त्र जिसका उपयोग समुद्रों अथवा महासागरों के पृष्ठ तथा गहराई के तापमान में अंतर से प्राप्त तापीय उर्जा को विधुत उर्जा में परिवर्तित करता है OTEC विधुत सयंत्र कहलाता है। OTEC विद्युत संयंत्र केवल तभी प्रचालित होते हैं जब महासागर के पृष्ठ पर जल का ताप तथा 2 KM तक की गहराई पर जल के ताप में 20०C का अंतर हो। पृष्ठ के गर्म जल का उपयोग अमोनिया जैसे वाष्पशील द्रवों को उबालने में किया जाता है। इस प्रकार बनी द्रवों की वाष्प से फिर जनित्र के टरबाइन को घुमाया जाता है। महासागर की गहराइयों से ठंडे जल को पंपों से खींचकर अमोनिया को गर्म करने से बनी वाष्प को ठंडा करके फिर से द्रव में संघनित किया जाता है।
महासागरों से प्राप्त ऊर्जा की क्षमता (ज्वारीय-ऊर्जा, तरंग-ऊर्जा तथा महासागरीय-तापीय ऊर्जा) अति विशाल है परंतु इसके दक्षतापूर्ण व्यापारिक दोहन में बहुत सी कठिनाइयाँ आती हैं।