सोशल सर्विस लीग की स्थापना किसने और कब की थी , social service league was founded by in hindi
जानिये सोशल सर्विस लीग की स्थापना किसने और कब की थी , social service league was founded by in hindi ?
प्रश्न: सोशियल सर्विस लीग
उत्तर: नारायण मल्लाहर जोशी ने 1911 में बम्बई में सोशियल सर्विस लीग की स्थापना की। लीग के जरिए एन.एम.जोशी ने समाज सुधार एवं राजनीतिक शिक्षा का कार्य किया।
भाषा एवं साहित्य
गुजराती
गूर्जर अपभ्रंश की एक बोली से गुजराती निकली है। इसकी अलग पहचान 12वीं शताब्दी में बनी। इसके विकास के प्रारंभिक चरणों में जैन प्रभाव देखा जा सकता है। जैन लेखकों ने ‘रास’,एक लोक नृत्य, को श्रुतिमधुर नाट्य काव्य बना दिया।
गुजराती भाषा में शुरुआती लेखन जैन लेखकों ने किया। रसस लंबी कविताएं होती थीं जो आवश्यक रूप से नायकवादी, रोमांटिक या वर्णनात्मक प्रकृति की होती थीं। शालीभद्र सूरी का भारतेश्वर बाहुबलीरस (1185 ईस्वी), विजयसेना की रवंतगिरी-रस (1235 ईस्वी), अंबादेवा की समरारस (1315 ईस्वी) और विनयप्रभा की गौतम स्वामीरस (1356 ईस्वी) इस रूप के बेहद स्वर्णिम उदाहरण हैं। इस काल की अन्य उल्लेखनीय प्रबंध या वर्णनात्मक कविताओं में श्रीधर की रन्नमल्ला चंदा, मेरूतुंगा की प्रबोधचिंतामणि, पदमनाभ की कन्हादेद प्रबंध और भीमा की सदायवत्स कथा शामिल हैं।
गुजराती की पहली साहित्यिक कृति थी सालिभद्र लिखित भारतेश्वर बाहुबली रास (1185 ई.)। काव्य का संक्षिप्त और अधिक गीतमय रूप है ‘फागु’, जिसका मुख्य विषय होता है ‘विरह’। गद्य को जैन विद्वानों ने विकसित किया। माणिक्यसुंदरीसुरी का पृथ्वीचंद्र काव्यात्मक पद्य का उत्कृष्ट उदाहरण है।
पंद्रहवीं शताब्दी के मध्य तक भक्ति आंदोलन के अंतग्रत हिंदुत्व ने साहित्यिक कार्यों के लिए प्रेरणा स्रोत का काम किया। नरसी मेहता गीतों और कविताओं का विशाल संकलन छोड़ गए हैं, जिसमें सबसे प्रसिद्ध हैं गोविंद गमन और सुदामाचरित। यद्यपि मीराबाई को लेकर कुछ मतभेद हैं वह गुजराती साहित्यिक परंपरा से सम्बद्ध हैं या राजस्थानी से? नकारा और विष्णुदास इसी काल के लेखक हैं, जिन पर वेदांतिक विचारों का प्रभाव था। भालना ने बाण की कादम्बरी को गुजराती में काव्य रूप में पेश किया।
नरसिंह मेहता के साथ मीरा एवं दयाराम सगुण भक्ति धारा के अग्रणी योगदानकर्ता थे। श्यामल भट्ट बेहद सृजनशील एवं उत्पादक कवि थे (पद्मावती, बतरीस पुतली, नंदा बतरीसी, सिंहासन बतरीसी और मदन मोहन)। दयाराम (1767-1852) ने धार्मिक, नैतिक एवं रोमांटिक गीत लिखे जिनमें भक्ति पोषण, रसिक वल्लभ और अजमल आख्यान प्रमुख हैं। परमानंद, ब्रह्मानंद, वल्लभ, हरिदास, रणछोड़ और दीवाली बाई इस काल के अन्य प्रमुख ‘संत कवि’ थे।
19वीं शताब्दी के मध्य से, गुजराती अधिक पश्चिमी प्रभाव में आए, जिसका कारण औपनिवेशिक रेजीडेंस था। गुजराती साहित्य दलपतराम (1820-1898) से जिन्होंने विनयचरित लिखा और नार्मड (1833-1886) से जिन्होंने प्रथम गुजराती शब्दकोश नरमकोश लिखा, से सम्बद्ध है। नार्मड की रुक्मिणी, हरन और वीरसिंह को सर्वोच्च कृति माना जाता है। भोलानाथ साराभाई की ईश्वर प्रार्थनामाला (1872), नवलराम की भट्ट नु भोपालु (1867) और वीरमति (1869), और नदशंकर मेहता की कराना घेलो (1866) गुजराती का पहला उपन्यास इस काल के अन्य महत्वपूर्ण कार्य हैं। रणछोड़लाल उदयराम देव (1837-1923) को गुजराती में नाटक लेखन कौशल में परम्परा तोड़ने वाला माना जाता है। अन्य प्रमुख नाटककारों में दलपतराम, नार्मड एवं नवलराम हैं। गोविंदराम त्रिपाठी (1855-1907), जिन्होंने सरस्वती चंद्र लिखा, गुजराती साहित्य के प्रमुख उपन्यासकारों में थे।
गांधीजी के प्रभाव के काल के दौरान, गुजरात विद्यापीठ सभी साहित्यिक गतिविधियों का मुख्य केंद्र बन गया। उपन्यास, लघु कथाएं, डायरी, पत्र, नाटक, निबंध, आलोचना, जीवन कथा, यात्रा वृत्तांत और सभी प्रकार के पद्यांश गुजराती साहित्य में लिखे जागे लगे।
आधुनिक गुजराती गद्यलेखन को के.एमण् मुंशी ने एक नई ऊंचाई दी। 1940 के दशक के दौरान कम्युनिस्ट कविता में एक नवीन उत्थान हुआ और इसने गुजरात में प्रगतिशील साहित्य के आंदोलन को प्रेरित किया। उमाशंकर, सदाराम, शेष, स्नेहरश्मि एवं बेतई जैसे कवियों ने सामाजिक बदलाव और स्वतंत्रता संघर्ष में योगदान दिया। रबीन्द्रनाथ टैगोर से प्रेरित, उमाशंकर जोशी ने टैगोर की शैली में लेखन द्वारा गुजराती साहित्य को समृद्ध किया। उनके लेखन में प्राचीन, महाप्रस्थान, निपीथ (1967 में ज्ञानपीठ पुरस्कार) प्रमुख हैं।
चंद्रवंदन मेहता, उमाशंकर जोशी, जयंती दलाल एवं चुन्नीलाल माडिया प्रमुख नाटककारों में से थे और काका कालेलकर, रतिलाल त्रिवेदी, लीलावतीमुंशी, ज्योतिन्द्र देव और रामनारायण पाठक इस समय के प्रमुख निबंधकारों में थे।
1940 और 1950 के दशक में, कविता का प्रभुत्व रहा। राजेन्द्र शाह, निरंजन भगत, वेणीभाई पुरोहित, प्रहलाद पारिख और बालमुकुंद देव प्रमुख कवि थे।
स्वतंत्रता-पश्चात् गुजराती कविता ने बेहद आत्मपरकता प्रकट की और नवीन दर्शनों, विचारों एवं कल्पना को उभारा। कविताएं बेहद आत्मपरक एवं पश्विक होती थीं। इस समय के कवियों में सुरेश जोशी, गुलाम मोहम्मद शेख, हरिन्दर देव, चीनू मोदी, नलिन रावल और आदिल मंसूरी थे।
स्वातंत्रयोत्तर काल में गद्यलेखन साहित्य के दो भिन्न प्रारूप थे परम्परागत एवं आधुनिक। परम्परागत प्रतिरूप को नैतिक मूल्यों के लेखकों (गुलाबदास ब्रोकर, मनसुखलाल झावेरी, विष्णु प्रसाद त्रिवेदी एवं अन्य) ने प्रतिबिम्बित किया। आधुनिक प्रतिरूप में अस्तित्ववाद, स्पष्टवाद एवं प्रतीकात्मकता से प्रभावित लेखक (चंद्रकांत बख्शी, सुरेश जोशी, मधु राॅय, रघुवीर चैधरी, धीरूबेन पटेल, सरोज पाठक एवं अन्य) शामिल हैं। विट्ठल पांड्य, सारंग बरोट, दिनकर जोशी, हरकिशन मेहता, अश्विनी भट्ट ने ऐसे उपन्यास लिखे जिन्होंने लोगों का दिल जीत लिया। पन्नालाल पटेल के उपन्यास मानवी नी भवाई को 1985 में ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ।
1980 के दशक के मध्य के पश्चात्, गुजराती साहित्य में भगवती कुमार शर्मा, विनेश अंटानी, ध्रुव भट्ट, योगेश जोशी, बिंदु भट्ट, कांजी पटेल जैसे लेखकों को पसंद किया जागे लगा जो उपन्यासों में एक नई ताजगी लेकर आए।
गुजरात विद्या सभा, गुजरात साहित्य सभा, और गुजराती साहित्य परिषद् अहमदाबाद में स्थापित साहित्यिक संस्थान हैं जो गुजराती साहित्य के विकास को प्रोत्साहित करते हैं।
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