सामाजिक परिवर्तन का अर्थ क्या है | सामाजिक क्रांति किसे कहते है परिभाषा बताइए social change in sociology in hindi
social change in sociology in hindi सामाजिक परिवर्तन का अर्थ क्या है | सामाजिक क्रांति किसे कहते है परिभाषा बताइए ?
सामाजिक परिवर्तन एवं क्रांति
आइये, अब हम सामाजिक परिवर्तन एवं क्रांति पर मार्क्स के विचारों की विवेचना करें। जर्मन आइडियोलॉजी (1845-46) में मार्क्स और एंजल्स दोनों ने ही इतिहास को एक नई परिकल्पना दी। इसमें उत्पादन प्रणाली पर आधारित क्रमिक ऐतिहासिक अवस्थाओं के बारे में प्रमुख विचार दिये गये हैं। मार्क्स तथा एंजल्स ने एक अवस्था से दूसरी अवस्था में परिवर्तन को क्रांति की अवस्था माना है जो प्राचीन संस्थाओं और नई उत्पादक शक्तियों के बीच संघर्ष के कारण हुई। बाद में मार्क्स और एंजल्स दोनों ने ब्रिटिश, फ्रांसीसी तथा अमरीकन क्रांतियों पर अधिक ध्यान दिया और उनका गहन अध्ययन किया। उन्होंने इन क्रांतियों को बुर्जुआ क्रांति कहा। बुर्जुआ क्रांति की मार्क्स की परिकल्पना ने यूरोप और अमरीका में सामाजिक परिवर्तन के अध्ययन के लिये हमें एक परिप्रेक्ष्य प्रदान किया। सामाजिक परिवर्तन पर विद्वानों को और आगे शोध करने के लिये इस परिप्रेक्ष्य ने प्रेरणा दी।
मार्क्स ने एक दूसरे प्रकार की क्रांति की चर्चा की। यह क्रांति साम्यवाद से संबंधित थी। मार्क्स ने साम्यवाद को पूंजीवाद के बाद की अवस्था माना है। मार्क्स के अनुसार, साम्यवाद सभी प्रकार के वर्ग विभाजनों को समाप्त कर देगाय इस प्रकार नैतिक तथा सामाजिक परिवर्तन के लिये एक नई शुरूआत करेगा। भावी समाज के बारे में मार्क्स और एंजल्स दोनों इसी प्रकार की छवि रखते थे।
समाजवादी क्रांति की मार्क्स की अवधारणा पूंजीवाद से समाजवाद में परिवर्तन को मानकर चलती है । वह बुर्जुआ क्रांति की व्याख्या कुलीनतन्त्र (aristocracy) की पराजय के रूप में करता है। इसके अनुसार यह पराजय पूंजीवाद के चरम सीमा पर पहुंचने के बाद होती है। दूसरी ओर, बुर्जुआ वर्ग की पराजय पूँजीवाद से समाजवाद में क्रांतिकारी परिवर्तन की पहली अवस्था है। मार्क्स के अनसार क्रांति की इस समाजवादी अवस्था में वर्ग, श्रम का व्यावसायिक विभाजन तथा बाजार अर्थव्यवस्था बने रहेंगे। प्रत्येक की आवश्यकताओं के अनुसार वस्तुओं का वितरण क्रांति की उच्चतर अवस्था में ही संभव होगा। यह अवस्था साम्यवाद की अवस्था होगी। अतः मार्क्स के अनुसार साम्यवाद तक का परिवर्तन कई चरणों में से गुजर कर आता है तथा यह सम्पूर्ण उत्पादन प्रणाली में क्रांतिकारी परिवर्तन लाता है। भारत में मार्क्सवादी विचारों का प्रभाव देखने के लिये ‘सोचिए और करिये 2‘ में दिये प्रश्नों को हल करिये।
सोचिए और करिए 2
यह सभी मानते हैं कि मार्क्सवादी विचारों ने अनेक भारतीय विद्वानों, राजनीतिज्ञों, साहित्यकारों तथा चिन्तकों को प्रभावित किया है। निम्न प्रश्नों का उत्तर देते हुये उन्हें पहचानने का प्रयास कीजिये।
(प) मैं कौन हूँ? मैंने हिन्दू धर्म के उद्विकास की आलोचनात्मक विवेचना देने वाला एक उपन्यास लिखा है। मेरा एक उपन्यास दूरदर्शन पर सीरियल के रूप में 1990 में प्रदर्शित किया गया था।
(पप) मैं कौन हूँ? मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद ने मुझे प्रभावित किया। इससे प्रभावित होकर मैंने 1966 में लाइट ऑन अर्ली इण्डियन सोसायटी एण्ड इकॉनॉमी नामक पुस्तक लिखी।
(पपप) मैं कौन हूँ? मुझे ब्रिटिश कम्युनिस्ट पार्टी के भारतीय सिद्धांत शास्त्री के रूप में माना जाता रहा है।
(पअ) मेरा नाम क्या है? मैं केरल का वयोवृद्ध इतिहासवेत्ता तथा कम्युनिस्ट पार्टी का नेता रहा हूँ।
(अ) मैं कौन हूँ? मैंने भौतिकवाद पर एक पुस्तक लिखी तथा मार्क्सवादी ऐतिहासिक सिद्धांत की आलोचना की। भारतीय क्रांतिकारियों के लिये प्रशिक्षण केन्द्र आयोजित करने के लिये मुझे 1920 में ताशकन्द भेजा गया था। मैंने कम्युनिस्ट इन्टरनेशनल की दूसरी कांग्रेस में भाग लिया था। मैंने कांग्रेस द्वारा स्वीकृत उपनिवेश सिद्धांत (बवसवदपंस जीमेपे) का प्रारूप बनाया। इस प्रारूप को लेनिन ने परिवर्तित किया था।
वस्तुतः मार्क्स ने वर्ग विरोध का चरमोत्कर्ष पूंजीवाद में ही माना है। क्योंकि उत्पादन की नई शक्तियां उत्पादन संबंधों के अनुरूप नहीं होती। उत्पादन के वितरण के स्तर में दोनों वर्गों के मध्य खाई बढ़ती जाती है। इसके फलस्वरूप सर्वहारा वर्ग अपने वर्ग हितों के प्रति अत्यधिक जागरूक तथा गहन रूप से अलगावित (ंसपमदंजमक) महसूस करता है। पूंजीवाद में उत्पादन की नई शक्तियां वृहत् स्तरीय उत्पादन में सक्षम होती हैं तथा इसके कारण बुर्जुआ वर्ग की समृद्धि बढ़ जाती है। लेकिन इससे सर्वहारा वर्ग की दशा में कोई अन्तर नहीं होता और सर्वहारा वर्ग निर्धनता और तंगहाली में गुजर-बसर करता रहता है। इसके कारण वर्ग चेतना में वृद्धि होती है तथा समाजवादी क्रांति की दशाएं परिपक्व हो जाती हैं। मार्क्स के अनुसार, समाजवादी क्रांति विगत काल की सभी क्रांतियों से गुणात्मक रूप में भिन्न होगी। क्योंकि शोषण और असमानता के इतिहास के प्रारंभ होने के बाद यह पहला अवसर होगा जब कि समाज में एक वर्गविहीन स्थिति आयेगी और समाज के सभी सदस्यों के लिये आशा का संचार करेगी।
सारांश
इस खंड की प्रस्तुत अंतिम इकाई में हमने मार्क्स के वाद-सवांद प्रक्रियापरक भौतिकवाद व सामाजिक परिवर्तन के गंभीर दार्शनिक योगदान का अध्ययन किया। सर्वप्रथम आपको वाद-संवाद प्रक्रिया की अवधारणा से अवगत कराया गया, तत्पश्चात् वाद-सवाद प्रक्रिया एवं परिवर्तन के मौलिक नियम बताये गये। तदुपरांत समाज में क्रमिक उत्पादन प्रणालियों व सामाजिक परिवर्तन की विवेचना की गई। इस इकाई में हमने कार्ल मार्क्स द्वारा दिये गये वाद-संवाद प्रक्रिया के सिद्धांतों के संदर्भ में क्रमिक सामाजिक अवस्थाओं अथवा उत्पादन प्रणालियों का अध्ययन किया। अन्त में हमने क्रांति एवं सामाजिक परिवर्तन पर मार्क्स के विचारों की विवेचना की।
संदर्भ ग्रंथ सूची
(यह सूची उन विद्यार्थियों के लिये दी गई है जिन्हें कुछ विशिष्ट विषयों का अध्ययन विस्तार से करना हो।)
अ)
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ब) हिन्दी में उपलब्ध पुस्तकें
बोटोमोर, टी.बी., 1975. मार्क्सवादी समाजशास्त्र. (अनुवादकः सदाशिव द्विवेदी) मैकमिलन कंपनी ऑफ इंडिया लिमिटेडः नई दिल्ली
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