सिंगापुर के बारे में जानकारी singapore information in hindi सिंगापुर का इतिहास स्वतंत्रता कहां है
(singapore information in hindi) सिंगापुर के बारे में जानकारी सिंगापुर का इतिहास स्वतंत्रता कहां है जनसंख्या मौसम |
सिंगापुर
इकाई की रूपरेखा
उद्देश्य
प्रस्तावना
इतिहास
प्रारंभिक योरोपीय संपर्केा में मलाका का महत्व
जौहर क सुल्तान का शासन
आधुनिक सिंगापुर की स्थापना
द्वितीय विश्व युद्ध एवं सिंगापुर
स्वतंत्रता
प्रारम्भिक राजनीतिक संरचना
नये मंविधान की उत्पत्ति
सन् 1955 का रैन्डल संविधान
सन् 1955 के चुनाव
डेविड मार्शल एवं उसके बाद
सिंगापुर का मलाया के साथ विलयन का मुद्दा
पीपुल्स एक्शन पार्टी की आन्तरिक समस्याएं
मलेशिया महासंघ का गठन
सरकार एवं राजनीति
सिंगापुर की लोक सभा
न्यायिक प्रणाली
सामाजिक व्यवस्था
अर्थव्यवस्था
आर्थिक रूप का आरंभिक परिवर्तन
विशेषज्ञ उन्मुख आर्थिक विकास की नीति
ए.एम.ई.ए.एन (आभियान) का गठन
आयात प्रतिस्थापन से निर्यात प्रोत्साहन तक
विदेशी मद्रा भंडार एवं आर्थिक विकास
सरकारी कदम
सुरक्षा एवं विदेश नीतियां
पीपुल्म एक्शन पार्टी एवं साम्यवादी प्रभाव का विलोपन
सारांश
कुछ उपयोगी पुस्तकें
बोध प्रश्नों के उत्तर
उद्देश्य
इस इकाई के उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
ऽ आपको यह जानकारी प्राप्त कराना कि दक्षिण-पूर्व एशिया के प्रमुख व्यापारिक केन्द्र के रूप में सिंगापुर की खोज किस प्रकार हुई थी।
ऽ सिंगापुर के स्वतंत्रता संघर्ष एवं वहां के संविधान और सरकार के बारे में आपको बताना।
ऽ सिंगापुर द्वारा अपनाई गई आर्थिक रणनीति का मूल्यांकन करने में आपको सहायता प्रदान करना।
ऽ सिंगापुर की सुरक्षा एवं विदेश नीतियों के बारे में जानकारी प्राप्त करने में आपको सहायता प्रदान करना।
दक्षिण-पूर्व एशिया में सरकार एवं राजनीति
प्रस्तावना .
जैसा कि नाम से विदित होता है, सिंगापुर या सिंहपुर (शेरों का नगर) स्वयं यह प्रमाणित करता है कि दक्षिण-पूर्वी एशिया के इस क्षेत्र पर भारतीय धर्मों एवं संस्कृति का काफी प्रभाव है। सिंगापुर जो अलग होने तक एवं सन् 1965 में अपने आप को एक स्वतंत्र गण राज्य घोषित करने तक मलाया प्रायद्वीप (मलेशिया) का एक भाग था, उसका अपना कोई गौरवपूर्ण इतिहास नहीं है। सामरिक स्थिति के रूप में सिंगापुर के महत्व की खोज मूल रूप से योरोपीय महानगरी द्वारा व्यापारिक एवं अन्य व्यावसायिक गतिविधियों के लिये क्षेत्रों एवं बन्दरगाहों पर नियंत्रण करने की प्रतिद्वन्द्विता के फलस्वरूप हुआ था। स्वतंत्रता के पश्चात् दीर्घकालीन संदर्शाें एवं दूरदर्शी नेतृत्व ने सिंगापुर की रणनीतिक भौगोलिक स्थिति का सफलतापूर्वक लाभ उठाया है। दूसरी तरफ शीत युद्ध के प्रभाव स्वरूप इस दक्षिण-पूर्व एशियायी राज्य की राजनीति ने एक अत्यधिक रूप से प्रभावशाली एवं समृद्ध ऐसे नगर-राज्य का विकास किया है जहां पर प्रति व्यक्ति आय सम्पूर्ण एशिया प्रशान्त में दूसरे नम्बर की है। आज सिंगापुर सारे सुदूर पूर्व में बैंकों, वित्तीय एवं सेवाओं की गतिविधियों में एक प्रमुख केंद्र के रूप में उभर कर आया है। अब यह बिजली के सस्ते सामानों का बाजार मात्र नहीं रहा, परन्तु वास्तव में उच्च तकनीकी एवं बहुमूल्य वस्तुओं का एक महत्वपूर्ण उत्पादन केन्द्र बन गया है। मलेशिया के दक्षिणी मुहाने पर भूमध्य रेखा के समीप स्थित सिंगापुर की स्वच्छता एवं कार्यकशलता मंत्र मुग्ध कर देने वाली भावनाओं का अहसास देती है।
इतिहास
सिंगापुर के प्रारंभिक इतिहास के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त नहीं है। सिंगापुर का वर्णन सबसे पूर्व जावा के ‘नगराक्रोगामा‘ में किया गया है जिसमें इसको द्वीप का टैमसिक (ममन्द्री कस्बा) कहा गया है। सिंगापुर के आरंभिक काल की अधिकतर जानकारी सिजरा मलाय या ‘‘माले ऐनाल्स’’ में विस्तृत रूप से दी गई है। ऐसा कहा जाता है कि सिंगापुर का नाम श्री ट्री बौरा का दिया हुआ है जो कि पालेमबग का शासक था और एक दिन तूफान से बचने के लिये टेमासिक पर रुक गया था। उसने वहां एक जानवर को देखा जिसको उसने शेर समझा और वहां एक बस्ती बसाने का निर्णय लिया जिसका नाम सिंगापुर रखा गया। चैदहवीं शताब्दी में माले प्रायः द्वीप पर नियंत्रण के प्रश्न पर सिंगापुर को लेकर सियाम (थाईलैंड) एवं जावा के माजापहित साम्राज्य के बीच काफी समय तक झगड़ा चलता रहा। ‘‘नगराक्रोगामा’’ के अनुसार एक माजापहित हमले में सिंगापुर पर विजय प्राप्त कर ली गयी थी परन्तु जब इस द्वीप पर पालेम बाँग का एक राजकुमार परमेश्वर आया तब इसका महत्व फिर से बढ़ गया। परमेश्वर ने स्थानीय सूबेदार को मार डाला और स्वयं को इस द्वीप का शासक घोषित कर दिया। सन् 1400 के कुछ पूर्व माजापहित साम्राज्य के जावानीज टुकड़ियों ने सिंगापुर पर हमला कर दिया और परमेश्वर को वहां से भागना पड़ा। उसके पश्चात उसने पड़ोसी मलाया में मलाका सल्तनत की स्थापना की।
प्रारंभिक योरोपीय संपर्को में मलाका का महत्व
बिटिशों द्वारा सिंगापुर को एक प्रमुख बन्दरगाह के रूप में विकसित करने के काफी पहले यह मलाका का एक शहर था जो इस बसेरे पर शासन करके सदियों तक दक्षिण-पूर्व एशिया के इस द्वीप का उपयोग समुन्द्री व्यापार द्वारा धन अर्जित करने में लगा रहा था। दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ यूरोपीयों का पहला सम्पर्क सन् 1509 में मलाका में हुआ था और सन् 1511 में पुर्तगालियों ने एक घमासान युद्ध कर के इस शहर पर अपना अधिकार कर लिया। अपनी सामरिक महत्व की स्थिति एवं व्यापारिक गतिविधियों के कारण इस शहर को महत्वपूर्ण माना जाता था। मलाका पर एक सदी से भी अधिक काल तक नियंत्रण रखने के पश्चात् पूर्तगालियों का स्थान डचों ने ग्रहण कर लिया। विश्व के इस भाग में अपना स्थान बनाने की आवश्यकता एवं ब्रिटिशों और डचों की प्रतिद्वन्द्विता के कारण ब्रिटिश की ईस्ट इन्डिया कम्पनी ने अपने एक महत्वाकांक्षी ब्रिटिश कैप्टेन फ्रान्सिस लाइट को केदाह के सुल्तान से मलेशिया के पश्चिमी तट पर बसे पैनाना द्वीप पर कब्जा करने की स्वीकृति प्रदान कर दी। बाद में सन् 1786 में यहां पर कम्पनी ने अपना अधिकार कर लिया। नीदरलेन्ड पर नेपोलियन के अधिकार के कारण ब्रिटिश तुरन्त मलाका पर अधिकार प्राप्त करने के लिये प्रेरित हुए थे। वास्तव में, उनको ये अधिकार सन् 1824 में एन्गलो-डच मैत्री द्वारा प्राप्त हुआ था। ब्रिटिश द्वारा पहले से स्थापित पैनाना और मलाका के बन्दरगाहों में एक अन्य बन्दरगाह सिंगापुर को मिला लिया गया। बाद के वर्षों में इसका विकास ब्रिटेन साम्राज्य के बहुमूल्य अधिकार क्षेत्रों के रूप में हुआ।
जौहर के सुल्तान का शासन
उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भ में सिंगापुर पर नाममात्र के लिये जौहर के सुल्तान का शासन था एवं उसने अपने प्रतिनिधि के रूप में इस द्वीप पर एक ‘‘टैमेन्योंन्य‘‘ (सुरक्षामंत्री) को रखा गया था। उसी समय ब्रिटिशों ने सिंगापुर की सामरिक स्थिति के महत्व को समझा। चीन के साथ बढ़ते हुए व्यापारिक सम्बन्धों को देखते हुए ब्रिटेन को माले महाद्वीप में एक ऐसे बन्दरगाह की आवश्यकता महसूस हुई जिसका भारत से चीन जाने वाले जहाजों के लिये विश्राम पत्तन के रूप में उपयोग किया जा सके, माले द्वीप समूह में व्यापार पर नियंत्रण कर सके एवं ईस्ट इन्डीज में डचों की पूर्व की तरफ होने वाली प्रगति को रोक सके।
आधुनिक सिंगापुर की स्थापना
आधुनिक सिंगापुर की स्थापना सन् (1781-1826) में सर स्टैमफोर्ड रैफलस द्वारा की गई थी जो उस समय बैन्कोलेन का लैफिटीनेन्ट-गर्वनर था एवं जिसने सन् 1818 में भारत के गवर्नर जनरल लौर्ड हेस्टिंगस से माले महाद्वीप के दक्षिणी मुहाने पर एक व्यापारिक केन्द्र स्थापित करने की निहित स्वीकृति प्राप्त कर ली थी। सन् 1819 की 29 जनवरी को सिंगापुर पर उतरते ही रैफल्स को इस क्षेत्र की सम्भावित सक्षमता का आभास हो गया। उसी वर्ष फरवरी में रैफिल्स ने जौहर के सुल्तान हुसैन के साथ एक प्रस्ताविक सन्धि कर ली। तीन वर्ष के अन्दर ही सिंगापुर द्वारा अर्जित राजस्व की मात्रा पैनाना जैसे सस्थापित बन्दरगाह से भी अधिक होने लगी, जिसके फलस्वरूप सन् 1824 में सिंगापुर का द्वीप ब्रिटेन के साम्राज्यवादी शासन के अधिराजस्व में आ गया। उन्नीसवीं सदी के बाद के काल में विशेष तौर से सन् 1869 में स्वेज नहर के खुल जाने से एवं भाप से चलने वाले जहाजों के आविष्कार के बाद (जिससे हवा द्वारा चलने वाले जहाजों पर निर्भरता समाप्त हो गई थी), यूरोप से सुदूर पूर्व जाने वाले जहाजों के लिये विश्राम पक्षिका के रूप में सिंगापुर एक आदर्श बन्दरगाह बन गया था, जिसका प्रमुख कारण इस द्वीप की भौगोलिक स्थिति एवं इसके किनारों पर समुन्द्र का गहरा पानी था। उन्नीसवीं सदी के अन्त एवं बीसवीं सदी के शुरू होने पर सिंगापुर के विकास में एक नाटकीय रूप की वृद्धि हुई क्योंकि सन् 1873 एवं सन् 1913 के मध्य इसका व्यापार आठ गुना बढ़ा। इस समय तक सिंगापुर पूर्ण रूप से अपने से अधिक पुराने पैनाना एवं मलाका के बन्दरगाहों पर छा गया था। इसके फलस्वरूप सिंगापुर में चीन (चीनी कुली) एवं भारतीय (भारतीय कल्र्क) प्रवासी आ कर बसने लगे। सन् 1860 में की गई जनगणना के अनुसार सिंगापुर की जनसंख्या बढ़ कर 80000 से ऊपर हो गई जिसमें चीनी, द्वीप की कुल जनसंख्या के 61.9 प्रतिशत थे, एवं मलाया और भारतीय 13.5-प्रतिशत एवं 16.05 प्रतिशत थे। यूरोपियनों को मिला कर बाकी के व्यक्ति 8.5 प्रतिशत थे।
द्वितीय विश्व युद्ध एवं सिंगापुर
द्वितीय विश्व युद्ध में बाकी दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ-साथ सिंगापुर भी जापान के अधिकार में आ गया। जापानी दलों ने 15 फरवरी सन् 1942 में सिंगापुर पर अपना अधिकार कर लिया एवं इसका नाम बदल कर स्योनान (दक्षिण का उजाला) रख दिया।
युद्ध के समाप्त होने तक सिंगापुर पर जापान का अधिकार रहा और जब ब्रिटिशों ने पुरानी स्थिति को बहाल करने का प्रयत्न किया तब तक सिंगापुर बिल्कुल बदल चुका था। युद्ध काल के बाद के सिंगापुर में शक्ति संतलन एवं अपेक्षाओं में काफी बदलाव आ गया था और ब्रिटिशों को युद्ध काल के पहले जैसा सम्मान फिर कभी प्राप्त नहीं हो सका। इसके अतिरिक्त शान्ति हो जाने के बावजूद आर्थिक तंगी का अन्त नहीं हुआ क्योंकि खाद्य पदार्थों की कमी हो गई थी, जीवन-यापन के खर्चों में वृद्धि हो गई थी एवं आवश्यक सेवाएं करीब-करीब समाप्त हो गई थी।
बोध प्रश्न 1
टिप्पणी क) अपने उत्तर के लिये नीचे दी गई जगह का उपयोग कीजिये।
ख) इस इकाई के अन्त में दिये गये उत्तर से अपने उत्तरों का मिलान कीजिये।
1) साम्राज्यवादी शासन के अन्तर्गत सिंगापुर का महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त करने के क्या कारण थे?
2) आधुनिक सिंगापुर की स्थापना किसने एवं क्यों की थी?
स्वतंत्रता
अप्रैल सन् 1946 में सिंगापुर को एक अलग ब्रिटिश साम्राज्य का उपनिवेश घोषित कर के उस के मलाया के साथ चले आ रहे पुराने सम्बन्धों को समाप्त कर दिया। शेष मलाया को स्वतंत्र घोषित करते समय अंग्रेजों का विचार था कि सिंगापुर को वह अपने व्यापार एवं सैनिक आधार के रूप में अपने अधिकार में रखेगा।
प्रारंभिक राजनीतिक संरचना
प्रारंभ में सिंगापुर की संवैधानिक सत्ता वहां के गवर्नर के हाथों में रहती थी और उसकी सहायता के लिये सरकारी कर्मचारियों एवं नामजइ गैर सरकारी व्यक्तियों की एक सलाहकार समिति का गठन किया जाता था। जुलाई सन् 1947 में इसकी जगह अलग-अलग कार्यकारी परिषद एवं विधान परिषद का गठन किया गया। हालांकि उपनिवेश अभी भी गवर्नर के पूर्ण नियंत्रण में रहता था परन्त विधान परिषद के छः सदस्यों को जनमत द्वारा चुना जा सकता था। इसलिये विधान परिषद के छः सदस्यों का चुनाव करने के लिये 20 मार्च सन् 1948 में सिंगापुर में सर्वप्रथम चनाव कराये गये।
हालांकि सिंगापुर में अंत तक कोई हिंसक घटनायें नहीं हुई थी फिर भी जून सन् 1948 के माले महाद्वीप के (कंम्युनिस्ट) साम्यवादी आन्दोलन को कुचलने के लिये ब्रिटिशों द्वारा घोषित आपात कालीन स्थिति को सिंगापुर में भी लागू कर दिया गया था।
नये संविधान की उत्पत्ति हालांकि अंग्रेजों का विचार था कि सिंगापुर की सत्ता को धीरे-धीरे ऐसे अंग्रेजी-शिक्षित वर्ग को स्थानान्तर कर दिया जाये, जो उनके विचार से उनके प्रति निष्ठावान बना रहेगा परन्तु चीन में हुए साम्यवादी आन्दोलन की गतिशीलता के प्रभाव को वे आभास करने में असमर्थ रहे क्योंकि इस आन्दोलन द्वारा चीन का शिक्षित युवा वर्ग बहुत शक्तिशाली रूप से प्रेरित हुआ था। सन् 1953 के अंत में ब्रिटिश सरकार ने सिंगापुर की संवैधानिक स्थिति की समीक्षा करने के लिये सर जौजे रैन्डिल के आधीन एक आयोग की नियुक्ति की एवं उससे परिवर्तन के लिये अपने सुझाव देने के लिये कहा। इस आयोग के सझावों के आधार पर, जिन्हें सरकार ने स्वीकार कर लिया था, सिंगापुर को एक नया संविधान प्रदान किया जिसके अन्तर्गत सिंगापुर को स्वशासन के अधिक अधिकार प्राप्त हुए।
सन् 1955 का रैन्डल संविधान
सन् 1955 में बनाये गये रैन्डल संविधान के प्रमुख आकर्षणों में यह सुझाव था कि कार्यकारी परिषद के स्थान पर नौ मंत्रियों की एक परिषद बनाई जाये जिसको सुरक्षा, विदेशी मामले एवं आन्तरिक सुरक्षा के अलावा अन्य सब मसलों के लिये संयुक्त रूप से उत्तरदायी बनाया जाये। मंत्रियों की इस परिषद का सभापति गर्वनर होगा जिसको महत्वपूर्ण विषयों पर मुख्यमंत्री (विधान परिषद में सबसे बड़ी पार्टी का नेता) से सलाह लेना अनिवार्य था। मंत्रियों की परिषद में छः मंत्री मुख्य मंत्री की सलाह पर रखे जाते थे एवं 3 मंत्री गवर्नर द्वारा नियुक्त किये जाते थे। यह परिषद बत्तीस सदस्यों की विधान सभा के प्रति उत्तरदायी होती थी। रैन्डल द्वारा इस संविधान का सुझाव दिये जाने पर दो राजनीतिक दलों का गठन हुआ: डेविड मार्शल के नेतृत्व में मजदूर मोर्चा (लेबर फ्रन्ट) एवं ली, कुआं वी के नेतृत्व में पीपुल्स एक्शन पार्टी (पी.ए.पी.)।
सन् 1955 के चुनाव
सिंगापुर के इतिहास में सन् 1955 का चुनाव पहला जीवन्त राजनैतिक संघर्ष था। स्वतः पंजीकरण के कारण मतदाताओं की सूची की संख्या 75000 से बढ़ कर 300000 से भी ऊपर पहुंच गई थी जिसमें चीनियों की एक बहुत बड़ी संख्या सम्मिलित थी, जिन्होंने पिछले चुनाओं में कोई रुचि नहीं दिखायी थी। छः राजनैतिक दलों के चुनाव में भाग लेने के फलस्वरूप चुनाव अभियान एवं विशेषतौर से बड़ी-बड़ी रैलियों सिंगापुर के व्यक्तियों के लिये कुछ ऐसी राजनीतिक घटनायें थी जिनका उन लोगों ने पहले कभी नहीं अनुभव नहीं किया था। सन् 1955 के चुनाव के फलस्वरूप सिंगापुर में एक नये युग का प्रारंभ हुआ जिसके फलस्वरूप ब्रिटेन समर्थक रूढ़िवादी तत्वों का खात्मा हो गया। परिषद् में दस स्थानों पर विजय प्राप्त करके, मजदूर मोर्चा (लेबर फ्रन्ट) सबसे बड़े दल के रूप में उभर कर आया जब कि तीन स्थानं पीपुल्स एक्शन पार्टी (पी.ए.पी.) को प्राप्त हुए। इन दोनों दलों को वामपंथी माना जाता था और दोनों ही द्वीप में साम्राज्यवादी शासन को समाप्त करने के लिये दृढ़ संकल्प थे।
डेविड मार्शल एवं उसके बाद
सन् 1955 में डेविड मार्शल अपने मजदूर मोर्चे (लेबर फ्रंट) की मिली-जुली सरकार का सिंगापुर का पहला मुख्यमंत्री बना जिसे यूनाइटेड मालाया नेशनल आर्गनाइजेशन (यू.एम.एन.ओ.) एवं मलायन.चाइनीज एसोसिएशन (एम.सी.ए.) को मिला कर बनाया गया था। हालांकि मार्शल के शासन काल में कई बार मजदूरों द्वारा हिंसक आन्दोलन किये गये थे फिर भी उसने ब्रिटिशों पर दबाव डाल कर सिंगापुर के भावी संविधान के विषय पर विधान सभा के समापन के पूर्व सन् 1956 में किसी तरह बातचीत की व्यवस्था की।
लन्दल में अप्रैल-मई 1956 में संविधान के संबंध में हुई बातचीत में मार्शल सिंगापुर को पूर्ण रूप से आंतरिक स्वयं सरकार दिलवाने के लिये शपथबद्ध था पर बातचीत के इस दौर में असफल होने पर छः जून 1956 को उसने अपना पद त्याग दिया। जून 1956 में लिन वी हौक, जो मार्शल के शासन काल में उप मुख्यमंत्री था, मुख्यमंत्री बना और उसके शासन काल में (जो सन् 1959 तक चला था) साम्यवादियों के अधिकांश अग्र-संगठनों का सफाया कर दिया गया। मार्च सन् 1957 में लिन वी हौक के नेतृत्व में एक संवैधानिक लन्दन गया और सिंगापुर के नये संविधान की मुख्य शर्ताें को स्वीकार करने में उसने सफलता प्राप्त की। इसके अंतर्गत सिंगापुर को अपनी स्वयं की आन्तरिक सरकार बनाने का अधिकार दिया गया परन्तु सुरक्षा का भार एक आन्तरिक सुरक्षा परिषद को सौंपा गया था जिसमें सिंगापुर एवं ब्रिटिश सरकार के तीन-तीन प्रतिनिधि रखे जाने थे।
सन् 1959 में सिंगापुर एक साम्राज्यवादी उपनिवेश के स्थान पर स्वःशासित सरकार वाला राज्य बन गया। मई सन् 1959 में सिंगापुर की प्रथम पूर्ण रूप से चुनी गई विधान सभा के 51 प्रतिनिधियों को चुनने के लिये प्रथम आम चुनाव करवाये गये। 51 सीटों में से 43 सीटों पर विजय प्राप्त कर के, ली कुओ वी के नेतृत्व वाली पीपुल्स एक्शन पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभर कर आई। 3 जून सन् 1959 को सिंगापुर की सरकार को स्वायत्तता प्रदान करने वाले नये संविधान को लाग करने की घोषणा गवर्नर द्वारा की गई। सिंगापुर राज्य की सर्वप्रथम सरकार को 5 जून को शपथ ग्रहण करवाइ गई एवं ली कुओ वी वहां का नया प्रधान मंत्री बना।
सिंगापुर का मलाया के साथ विलयन का मुद्दा
मलाया एवं सिंगापुर दोनों जगहों के शिक्षित चीनी व्यक्तियों में इस समय तक सिंगापुर एवं मलाया के विलयन के सम्बन्ध में वाद-विवाद होना प्रारम्भ हो गया था। सन् 1959 के चुनाव में विजय प्राप्त कर लेने के बावजूद भी ली कुओ वी इस विलयन प्रस्ताव का सबसे बड़ा समर्थक बन गया। उसके विचार से स्वतंत्र सिंगापुर का कोई विशेष आर्थिक भविष्य नहीं था। मलाया में रहने वाले चीनी इस विलयन को इसलिये चाहते थे जिससे कि संयक्त मलाया में चीनी समुदाय की शक्ति में सम्पूर्ण रूप से वृद्धि हो सके। इसका कारण था कि सिंगापुर की जनसंख्या में 75 प्रतिशत व्यक्ति मूल रूप से चीनी थे और विलयन हो जाने से मलाया में चीनियों की सौदे करने की शक्ति में स्वतः वृद्धि होगी। मलाया में जन जातियों के एक असाधारण संगठन के कारण, जिसमें करीब 50 फीसदी मलाया के स्वदेशी व्यक्ति थे, 35 फीसदी चीनी थे एवं 15 फीसदी भारतीय थे, मलाया मूल के निवासी सिंगापुर के साथ विलयन करने के लिये अधिक उत्सुक नहीं थे। सिंगापुर में रहने वाले तेरह लाख (1.3 मिलियन) चीनियों के मिल जाने से लाया के जाति संगठन के सन्तलन के बिगड़ जाने का ही खतरा नहीं था बल्कि मलाया के साथ विलयन के कारण सिंगापुर का महत्व मलाया की तुलना में ज्यादा हो जाने की भी आशंका थी क्योंकि मलाया का अधिकांश व्यापार सिंगापुर द्वारा ही होता था। मलाया वासी सिंगापुर की वामपंथी झुकाव वाले राजनीतिक दलों से भी आशकित थे जिनमें ली कुओ वी की पीपुल्स एक्शन पार्टी भी सम्मिलित थी।
पीपुल्स एक्शन पार्टी (पी.ए.पी.) की आन्तरिक समस्याएं
अपनी सम्पूर्ण विजय के बावजूद भी पीपुल्स एक्शन पार्टी की अपनी आन्तरिक समस्यायें थी। जिस घटना ने पीपुल्स एक्शन पार्टी के अन्दर विघटन की शुरुआत करवायी थी, वह 27 मई सन् 1961 को मलाया संघ के प्रधानमंत्री श्री टुन्कू अब्दुल रहमान का ऐतिहासिक भाषण था। रहमान ने पहली बार मलाया, सिंगापुर, सारावाक, उत्तरी बीरनीओ (साबाह) एवं बर्नी के राज्यों को मिला कर मलेशिया महासंघ के गंठन करने का प्रस्ताव किया था। रहमान को चिन्ता थी कि यदि उसने विलयन के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया तो सिंगाप अवश्य ही एक वामपंथी स्वतंत्र राज्य बन जाएगा एवं दक्षिण-पूर्व एशिया का क्यूबा बन जायेगा।
अन्त में सितम्बर सन् 1961 में मलाया एवं सिंगापुर के प्रधानमंत्रियों के मध्य एक विलयन प्रस्ताव पर एक समझौता हो गया और यह योजना बनाई गई कि दोनों राज्य क्षेत्रों का जन 1963 के पूर्व एकीकरण कर दिया जाये।
मलेशिया महासंघ का गठन
सितम्बर 1963 में मलेशिया महासंघ के गठन होने के समय ब्रूनी ने निर्णय कर लिया कि विलयन के बजाय वह एक ब्रिटिश संरक्षित राज्य के रूप में बना रहना पसन्द करेगा। मलेशिया महासंघ में सिंगापुर की सदस्यता भी कुछ काल तक ही रही। नई राजनैतिक व्यवस्था में जातीय मतभेद शायद निभ भी जाते परन्तु टुन्कू अब्दुल रहमान एवं ली कुओ वी इन दोनों प्रतिद्वन्द्वी नेताओं के बढ़े हुए अस्कार का परस्पर मेल खाना मुश्किल हो गया। इन दोनों नेताओं के मध्य बीच-बचाव करके समझौता करवाने के ब्रिटिशों के सारे प्रयास विफल हो गये और उसके पूर्व कि ब्रिटेन या राष्ट्र मंडल के कुछ अन्य नेता कुछ अधिक प्रयत्न कर पाते रहमान ने अगस्त सन् 1965 में अकस्मात सिंगापुर को मलेशियन महासंघ से बाहर निकाल फेंका। इसके पश्चात् सिंगापुर द्वारा स्वयं में सम्पन्न बने रहने एवं अपने यहां की असमान आप्रावासियों की जनसंख्या में एक राष्ट्रीय भावना जागत करने एवं स्वयं को एक राष्ट्र के रूप में प्रेषित करने के संघर्ष की शुरुआत हुई।
बोध प्रश्न 2
टिप्पणी: क) अपने उत्तर के लिये नीचे दिये गये स्थान का उपयोग कीजिये।
ख) इस इकाई के अन्त में दिये गये उत्तरों के साथ अपने उत्तरों का मिलान कीजिये।
1) रेन्डिल संविधान के प्रमुख आकर्षणों की संक्षिप्त रूप में व्याख्या कीजिये।
2) मलेशिया का गठन करने के लिये सन् 1962 में सिंगापुर एवं मलाया का विलयन क्यों हुआ था? सन् 1965 में सिंगापुर उससे अलग क्यों हो गया?
सरकार एवं राजनीति
सिंगापुर एक गणराज्य है एवं वहां एक संसदीय प्रणाली की सरकार है। यहां के लिखित संविधान के अनुसार राष्ट्रपति राज्य का अध्यक्ष होता है, जिसका प्रत्येक चार वर्ष बाद वहा की लोक सभा द्वारा चुनाव किया जाता है। अभी हाल ही में संविधान में किये गये संशोधना के अनुसार राष्ट्रपति का चुनाव आम चुनाव द्वारा किया जायेगा एवं राजकीय बजट एवं सार्वजनिक नियुक्ति में राष्ट्रपति को वीटो अधिकार होगा। लोक सभा के इस सदम्य का राष्ट्रपति द्वारा प्रधान मंत्री के रूप में नियुक्त किया जाता है, जो लोक सभा में बहुमत विश्वास पात्र होता है। प्रधान मंत्री एवं केबिनेट के अन्य मंत्रियों को राजनीतिक शक्ति निहित होती है एवं वे लोक सभा के प्रति उत्तरदायी होते हैं, जो संवैधानिक रूप से सर्वोच्च विधायी सत्ता मानी जाती है। सिंगापुर की नौकरशाही के दक्ष होने के कारण सिंगापुर को एक प्रशासनिक राज्य भी कहा जाता है। यहां करीब तीन सौ से अधिक सुशिक्षित एवं निष्ठावान उद्योग तंत्रवादी व्यक्तियों का अधिकारी वर्ग है जो राज्य की नौकरशाही एवं सांविधिक समितियों एवं निगमों में उच्च पदों पर आसीन है।
सिंगापुर की लोक सभा
सिंगापुर की लोक सभा एक सदनीय है और इस में 81 सदस्य होते हैं जिनको गुप्त मतदान द्वारा चुना जाता है और जहां 21 वर्ष एवं उससे अधिक आयु के प्रत्येक नागरिक को मतदान करने का अधिकार प्राप्त होता है। एक लोक सभा के भंग हो जाने के तीन माह के अन्दर आम चुनाव करवाये जाते हैं एवं लोक सभा की अधिक से अधिक आय पांच वर्ष होती है। सन् 1959 से चुनावों में मतदान करना अनिवार्य घोषित कर दिया गया है। सन् 1959 से बाद के सारे आम चुनावों में विजय प्राप्त करके पीपुल्स एक्शन पार्टी (पी.ए.पी.) सत्ता में बनी हई है। सन् 1988 के आम चुनावों के बाद से सिंगापुर को पचपन (55) चुनावी खण्डों में विभाजित कर दिया गया है जिनमें ब्यालीस (42) मतदान क्षेत्र एक सदस्यीय हैं एवं तेरह (13) मतदान क्षेत्रों से सामूहिक रूप से प्रतिनिधियों का चुनाव करवाया जाता था। प्रत्येक सामूहिक मतदान क्षेत्र से तीन लोक सभा के सदस्यं चने जाते हैं जिनमें से एक का माले, भारतीय या किसी अन्य अल्प समुदाय का होना आवश्यक होता है।
न्यायिक प्रणाली
न्यायिक सत्ता उच्च न्यायालय, पुनरावेदन न्यायालय, एवं तेईस (23) उप न्यायालयों में निहित होती है। न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। अभिनिर्णयक न्याय प्रयोग को सन् 1970 में समाप्त कर दिया गया। जिन व्यक्तियों द्वारा देश की सुरक्षा को खतरा होने की आशंका होती है, उनको आन्तरिक सुरक्षा कानून के अंतर्गत न्याय प्रयोग किये बगैर बन्द किया जा सकता है जिसकी मियाद दो वर्ष की होती है। उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश एवं अन्य ऐसे न्यायाधीश होते हैं जिनकी समय-समय पर नियुक्ति की जाती है। संविधान में ऐसे विशेष प्राविधान हैं जिनके द्वारा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के कार्यकाल एवं स्वतंत्रता की सुरक्षा की जा सके। .
सामाजिक व्यवस्था
आकार एवं जनसंख्या के आधार पर आपेक्षित रूप से छोटा होते हुए भी सिंगापुर में एक बहुजातीय समाज है। यहां के जातीय विश्लेषण के अनुसार यहां पर 77.7 प्रतिशत चीनी, 14.1 प्रतिशत माले, 7.17 प्रतिशत भारतीय, एवं 11 प्रतिशत अन्य जाति के व्यक्ति रहते हैं। स्वाभाविक रूप से यह एक बहु सम्प्रहायवादी राज्य है। फिर भी यह राज्य स्वयं को धर्मनिरपेक्ष कहता है। विशेष बात यह है कि यहां की बहुजातियों की 86 प्रतिशत इमारतों का निर्माण सरकार द्वारा करवाया गया है। .
अर्थव्यवस्था
चूंकि सिंगापुर की आर्थिक सफलता का क्षेत्र प्रायः यहां के उन्नत निर्यात को दिया जाता है इसलिये यहां की आर्थिक नीतियों एवं आर्थिक पद्धतियों के बारे में जानकारी प्राप्त करना बहुत आवश्यक है। स्पष्ट रूप से सिंगापुर को अन्य देशों के लिये एक नमूने के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता क्योंकि किसी भी एक विशेष देश की समस्याएं अन्य देशों की समस्याओं से विभिन्न होती हैं। इसके अलावा सिंगापुर एक बहुत ही छोटा-सा शहरी द्वीप राज्य है जहां की जनसंख्या दिल्ली से भी करीब 26 लाख कम है। परन्तु अन्य देशों को यहां से बहुत कुछ सीखने को मिल सकता है।
आर्थिक रूप का आरंभिक परिवर्तन
सिंगापुर के आर्थिक परिवर्तन का आरंभ सन् 1959 से हुआ जब इस देश की स्वयं की आन्तरिक सरकार बनी। उस समय से यहां की अर्थ व्यवस्था में अनेक स्तरों पर विकास हुआ है जिस के फलस्वरूप सिंगापुर आज एक आधुनिक एवं विभिन्न व्यापार का केन्द्र माना जाता है। आरंभ के वर्षों में सिंगापुर की अर्थव्यवस्था के विकास के लिये रोजगार बढ़ाने पर बल दिया गया क्योंकि यहां बेरोजगारी व्याप्त थी। सन् 1961 में प्रौद्योगीकरण कार्यक्रम को विस्तृत रूप देने के लिये यहां एक आर्थिक विकास बोर्ड की स्थापना की गई जिसका उद्देश्य उद्योगों की स्थापना द्वारा रोजगार उत्पन्न कराना था।
विशेषज्ञ उन्मुख आर्थिक विकास की नीति
सन् साठ के दशक में जब अन्य विकासशील देश बहुराष्ट्रीय निगमों पर कम निर्भरता एवं स्वयं की निर्भरता पर बल दे रहे थे सिंगापुर ने निर्यात उन्मख आर्थिक विकास की नीति को अपनाया। इस नीति को अपनाने का मूल कारण यहां के बाजार का छोटा आकार एवं बड़े उद्योगों को स्थापित करने हेतु पूँजी की कमी थी। स्थानीय रूप से पूँजी निवेशों एवं प्रौद्योगिकी के लिये सिंगापुर के पास बाहरी साधनों, विशेषतौर से बहराष्ट्रों का सहारा लेने के सिवा कोई चारा नहीं था। अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक पटल पर सिंगापुर ने ऐसे समय पर प्रवेश किया जब कि प्रबल प्रतियोगिता के कारण बहुराष्ट्रीय देश अपने उत्पादनों के लिए और अधिक प्रतियोगितावाद की तलाश में थे। सिंगापुर प्रोत्साहनों एवं पूंजी निवेशों के लिए श्रेष्ठ अवसरों को प्रदान करके मजदूर प्रबलित उद्योगों की स्थापना के लिये शीघ्र ही स्वर्ग बन गया क्योंकि साठ के दशक के अन्तिम काल एवं सत्तर के दशक के प्रारंभिक काल में मजदूरी की कीमत बहुत कम थी।
ए.एस.ई.ए.एन. (आसियान) का गठन
सन् 1967 में सिंगापुर, इन्डोनेशिया, मलेशिया, फिलिपाइन्स एवं थाईलैंड को मिलाकर दक्षिण-पूर्व एशियन राष्ट्रों के संगठन का गठन करने से सिंगापुर के आर्थिक विकास को एक अतिरिक्त गतिशीलता प्रदान हुई। (असियान) के गठन से दक्षिण-पूर्व एशिया की। राजनैतिक स्थिरता को आवश्यक बल प्राप्त हुआ, जो कि युद्धों एवं विद्रोहों के कारण क्षतिग्रस्त बना हुआ था। हालांकि अमेरिका के सीधे सैनिक हस्तक्षेप के कारण वियतनाम का युुद्ध अब भी जारी था परन्तु सौभाग्यवश यह शेष दक्षिण-पूर्व एशिया में नहीं फैल पाया था, जिसका मूल कारण असियान देशों को अमेरिका द्वारा प्रदान किया हुआ संरक्षण था। सन् 1965 में इन्डोनेशिया में जनरल सुहाों द्वारा वहां के राष्ट्रपति सुकानों को पदच्युत कर देने के साथ ही दक्षिण-पूर्व एशिया के द्वीप क्षेत्र की अधिकांश अन्तरक्षेत्रीय समस्याओं का समाधान हो गया। इन राजनैतिक परिवर्तनों का (असियान) के सदस्य देशों की आर्थिक नीतियों एवं विकास क्रिया पर सीधा प्रभाव पड़ा।
आयात प्रतिस्थापन से निर्यात प्रोत्साहन तक
आयात प्रतिस्थापन से निर्यात प्रोत्साहन तक सारी अर्थव्यवस्थाओं की योजनाओं में विकास के लिये सशक्त परिवर्तनों को प्रोत्साहित करने के प्रयास किये गये। अमेरिका एवं अन्य पश्चिमी देशों द्वारा अधिक मात्रा में पूंजी निवेश कर के आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के आत्मीय प्रयासों का सबसे अधिक लाभ सिंगापुर को प्राप्त हुआ। सन् 1970 के दशक के शुरू में ही जापान भी एक बहुत बड़े पूँजी निर्यात करने वाले देश के रूप में उभर कर आया। अपनी राजनीतिक स्थिरता एवं आर्थिक नीतियों के कारण सिंगापुर जैसा देश जापान के लिये स्वभाविक पसंद बन गया। आर्थिक रूप से यह अमेरिका, पश्चिमी देशों एवं विश्व बैंक और अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी वित्तीय संस्थाओं द्वारा अपनाई गई एक निश्चित नीति थी जिससे सिंगापुर, हांगकांग, ताईवान एवं दक्षिणी कोरिया जैसे छोटे देशों का तेजी से विकास के द्वारा आर्थिक समृद्धता लाकर सर्व प्रथम वामपंथी प्रवाह को रोका जा सके और दूसरा शेष विकासशील देशों को पूंजीवाद एवं मुक्त व्यवसाय की आर्थिक नीतियों के महत्वों को बताया जा सके।
विदेशी मुद्रा भण्डार एवं आर्थिक विकास
विदेशी व्यापार एवं पूंजी निवेश के फलस्वरूप एशिया में सबसे अच्छा आर्थिक विकास कर लेने के पश्चात सिंगापुर अब अपने विदेशी मुद्रा भण्डार को निवेश करने की योजना बना रहा है। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि सिंगापुर के पास विदेशी मुद्रा भंडार के रूप में 30 अरब से भी अधिक अमेरिकी डालर हैं-जो एशिया भर में प्रति व्यक्ति सबसे अधिक मुद्रा कोष की दर है। सिंगापुर की दष्टि में द्वीप की बढती हई जनसंख्या को देखते हए आर्थिक विकास को बनाये रखने के लिए अपनी पूंजी एवं अपने प्रबंध कौशलों को विदेशों में निवेश करना बहुत आवश्यक है। सिंगापुर अपनी बहुजातीय विशेषता का भी पूर्ण लाभ उठा कर समस्त एशिया के उच्च कौशल प्राप्त व्यक्तियों को अपनी तरफ आकर्षित करना चाहता है जिससे कि यह चीनी एवं भारतीय प्रसारों के केन्द्र बिन्दु बन सके।
सिंगापुर जोहोर बारू का दक्षिणी मलेशियाई प्रान्त एवं बाटाम एवं इन्डोनेशिया के अन्य द्वीपों की पूर्व नियोजित ‘‘विकास त्रिकोण‘‘ के प्रौद्योगीकरण, प्रसारण यंत्र एवं अवसंरचना की परियोजनाओं में सिंगापुर पहले से ही संयुक्त उद्योग का एक भागीदार है। अपने विशाल कोष की सहायता से सिंगापुर अपने को एक बहुत बड़ा पूँजी निर्यात करने वाला देश बनाने की योजना बना रहा है। भूमण्डल के मापदण्डों के हिसाब से वर्तमान विकास अभी भी प्रभावशाली है परन्तु यह एशियाई पड़ोसियों के मकाबिले गिर रहा है। भविष्य में सिंगापुर आधुनिक अर्थव्यवस्था के साथ कुछ मध्यमगति के विस्तार कार्यक्रम को अपनाना पड़ सकता है।
सरकारी कदम
सिंगापुर की धनी कम्पनियों को बाहरी देशों में पूँजी निवेश करने एवं अपने यहां की जनसंख्या को बढ़ाने और उनके कौशल का स्तर ऊपर बढ़ाने के लिये पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने अनेक कदम उठाये हैं। सिंगापुर को एक अन्तरराष्ट्रीय शहर बनाने की उच्चाकांक्षा की योजना अवरोध रहित नहीं है। अपना आकार कम होने के कारण आर्थिक विकास लाने हेतु सिंगापुर को अपने स्थानीय बाजार का विकास करने का बहुत सीमित साधन है, न ही अवसंरचना का विकास करने की अधिक गुंजाइश है क्योंकि अधिकांश प्रवसंरचना भली-भांति विकसित एवं आधुनिक है। दूसरा कारण यह है कि सिंगापुर के पास धन तो है परन्तु प्रौद्योगिकी की कमी है। कुछ और अधिक महत्वपूर्ण कारण यह है कि अगले कुछ दशकों में सिंगापुर में जनसांख्यिक परिवर्तनों के होने की सम्भावना है। सिंगापुर की जनसंख्या 27 लाख है जिसका विकास कुछ मध्यम गति से हो रहा है, और यह वृद्धावस्था की ओर बढ़ रही है और ऐसी आशंका की जाती है कि अगली सदी में वहां मजदूरों की कमी पड़ सकती है। ऐसी आशा की जाती है कि 1990 के दशक में जनसंख्या का विकास 1 फीसदी की दर से भी कम होगा एवं सन् 2025 तक विकास की दर 0.2 फीसदी तक गिर सकती है। जनसंख्या के विकास की मध्यम गति से भी अधिक चिन्ता का विषय यहीं की आयु की संरचना में हो रहा परिवर्तन है। वृद्ध व्यक्तियों की बढ़ती संख्या के निर्वाह करने के कारण सामाजिक सेवाओं का विस्तार करने की आवश्यकता पड़ेगी एवं साथ ही जीविका-उपार्जन करने वाले व्यक्तियों एवं अवकाश प्राप्त व्यक्तियों के बीच का अनुपात और नीचे गिरेगा। इसलिये सिंगापुर को अपनी संपन्नता की गति बनाये रखने हेतु आने वाले वर्षों के लिये योजनाएं तैयार करने की आवश्यकता है। इसलिये उन्नत तकनीकी पर ध्यान देने एवं अपनी कुशल सेवाओं के वर्ग का अधिक से अधिक लाभ उठाने और विदेशों में पूँजी निवेश करने की योजनाएं सक्रिय हैं।
बोध प्रश्न 3
टिप्पणी: क) अपना उत्तर देने के लिये नीचे दिये हुए स्थान का उपयोग कीजिये।
ख) इस इकाई के अन्त में दिये गये उत्तरों के साथ अपने उत्तरों का मिलान कीजिये।
1) सिंगापुर के संविधान की मुख्य विशेषताएं क्या हैं?
2) संक्षिप्त में सिंगापुर की आर्थिक नीति का विश्लेषण कीजिये।
सुरक्षा एवं विदेश नीतियां
सिंगापुर में स्वतंत्रता के पूर्व एवं तुरन्त बाद जो उपद्रवी घटनाएं घटित होती रही थीं उनको ध्यान में रखना आवश्यक है, जैसे कि जातीय झगड़े एवं साम्यवादियों द्वारा किया गया विद्रोह। इसलिये सिंगापुर की प्रतिरक्षा एवं सुरक्षा की नीतियों का विकास मूल रूप से इन आशंकाओं का मुकाबला करने एवं देश की स्वाधीनता की रक्षा करने की दृष्टि से किया गया है। जातीय सामंजस्य का सही तालमेल बैठाने के लिये सेना में अनिवार्य भर्ती के कदम को प्रभावशाली माना जाता है। देश की संपन्नता के साथ-साथ प्रति रक्षा का विकास करने पर और अधिक बल दिया गया। सिंगापुर की प्रतिरक्षा पर प्रति वर्ष करीब 2 अरब अमरीकी डालर खर्च किये जाते हैं एवं यहां के सैनिक दलों के पास सबसे आधुनिक सैनिक उपकरण उपलब्ध है। प्रारंभ में सिंगापुर की विदेश नीति क्षेत्रीयता पर आधारित थी एवं ‘‘आसियान’’ ए.एस.ई.ए.एन. के माध्यम से पड़ोसियों के साथ निकटतम सम्बन्ध स्थापित किये गये थे। हालांकि सिंगापुर को पड़ोसी देशों से किसी भी प्रत्यक्ष रूप से खतरे की आशंका नहीं है परन्तु वह इस मामले में कोई मौका नहीं देना चाहता। मुस्लिम प्रधान मलेशिया के मध्य में सिंगापुर की स्थिति इसराइल के समान है। असलियत में इसकी नीतियों को भी इसराइल की नीतियों के आधार पर निर्मित किया गया है।
पीपुल्स एक्शन पार्टी एवं साम्यवादी प्रभाव का विलोपन
स्वतंत्रता के तुरंत बाद सिंगापुर में जो गड़बड़ियां हुई थी उसके फलस्वरूप वहां के सबसे प्रमुख दल (पी.ए.पी.) के नेताओं ने साम्यवादी प्रभाव को समाप्त करने का निर्णय किया। आर्थिक व्यवस्था में सुधार लाने के लिये सिंगापुर ने सबसे अच्छे विकल्प को अपनाया यानि स्वतंत्र व्यवसाय की आर्थिक नीति और इस नीति को सफल बनाने के लिये यहां की विदेश। नीति को भी उसके अनुकूल बनाया गया था। इसलिये इसने पश्चिमी देशों के साथ गंठबंधन करने का निर्णय किया। साम्यवाद का विरोध करके एवं अमरीका समर्थक बन कर सिंगापुर ने यह सुनिश्चित कर लिया था कि उसकी सुरक्षा को किसी प्रकार का खतरा नहीं रहा। दूसरा लाभ यह था कि यह ए.एस.ई.ए.एन. (आसियान) की गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेने में सक्षम हो सका। तीसरे, इसको (अमेरिका) जैसे शक्तिशाली देश से सक्रिय विदेशी सहयोग प्राप्त हो सका जिससे कि किसी भी प्रकार के क्षेत्रीय खतरों की सम्भावनाएं कम हो गईं। अंततः यह अपनी विदेश नीति को अपनी आर्थिक हितों के अनुकूल बनाने में सफल हो सका। इसका सबसे अच्छा दृष्टांत सिंगापुर एवं वियतनाम के हाल में बने अच्छे सम्बन्ध हैं जो अब तक परस्पर विरोधी थे।
बोध प्रश्न 4
टिप्पणी: क) अपने उत्तर के लिये नीचे दिये गये स्थान का प्रयोग कीजिए।
ख) इस इकाई के अन्त में दिये गये उत्तरों के साथ अपने उत्तरों का मिलान कीजिये।
1) सिंगापुर की सुरक्षा सम्बन्धी चिन्ताओं का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
2) सिंगापुर की विदेश नीति के प्रमुख पहलू क्या हैं?
सारांश
निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि मूल रूप से सिंगापुर को ब्रिटिशों ने अपनी साम्राज्यवादी व्यावसायिक गतिविधियों को सक्रिय बनाने के लिए सृजित किया था। परन्त अपनी सामरिक रूप की स्थिति के कारण धीरे-धीरे सिंगापुर सम्पूर्ण दक्षिण-पूर्व एशिया का एक प्रमुख बन्दरगाह बन गया। दूसरे विश्व युद्ध के काल में सिंगापुर पर जापान के अधिकार के पश्चात ब्रिटिशों ने मलेशिया का गठन करने हेतु सिंगापुर का मलाया के साथ विलयन कर दिया था परन्तु मलाया में जातीय समस्याएं होने के कारण सन् 1965 में सिंगापुर मलेशिया से अलग हो गया एवं एक स्वतंत्र गणराज्य बन गया। तब से सिंगापुर के नेता गण समय-समय पर उपयुक्त कदम उठाते रहे हैं। सिंगापुर को आर्थिक संपन्नता प्राप्त करने के लिये कुछ राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ी है। हालांकि यहां पर समयांतर से चुनाव करवाये जाते हैं एवं लोकतांत्रिकता के कुछ नियमों का पालन भी किया जाता है परन्तु यहां का शासकीय दल (पी.ए.पी.) राजनीतिक विरोधियों को बहुत कम सह पाता है। विरोध का मुकाबला बहुत सख्ती से किया जाता है एवं विरोधियों को सामना करने के लिये आन्तरिक सुरक्षा के डरावने कानूनों का उपयोग किया जाता है। पी.ए.पी. के अलावा किसी अन्य दल के चने जाने के खिलाफ जनता को बार-बार उसके दुष्परिणामों की चेतावनी दी जाती है। आर्थिक रूप से सम्पन्नता प्राप्त कर लेने के पश्चात् सिंगापुर वासियों में कुछ बेचैनी का आभास होने लगा है क्योंकि वे महसूस करते हैं कि राजनीतिक रूप से वे सिर्फ एक झलक बन कर रह गये हैं। पी.ए.पी. के निर्विरोध अधिकारों पर रोक लगाने की घोषित इच्छा के कारण विरोधी दल धीरे-धीरे अधिक मतों को अपनी तरफ आकर्षित करते जा रहे हैं। फिर भी यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि निकट भविष्य में पी.ए.पी. को सत्ता से हटाया जा सकेगा।
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापारिक पर्यावरण में होने वाले परिवर्तनों के अनुकूल नीतियों को अपना कर आर्थिक रूप से सिंगापुर ने अपनी स्थिति एक गतिशील नये औद्योगिक देश के रूप में कर ली है। इसकी दूरदृष्टि एवं इसके विशाल मुद्रा भण्डार इसकी सबसे बड़ी सम्पत्ति हैं, जिनका उपयोग, जैसा कि साबित हो चुका है, यह बहुत बुद्धिमानी से कर सकने में सक्षम है।
कुछ उपयोगी पुस्तकें
डी.जी.ई. हौल दक्षिण पूर्व एशियाका इतिहास (लन्दन: मेर्कामलियन 1981)
जार्ज काहिन (एड) दक्षिण पूर्व एशिया में सरकार एवं राजनीति (न्यूयार्क: कौर्नेल यूनीवर्सिटी प्रैस, 1968)
सिंगापुर 1990 (सिंगापुर: सूचना मंत्रालय, 1989: दक्षिण-पूर्व एशिया के सार्वजनिक मामले (वार्षिक पुस्तक) (सिंगापुर: दक्षिण पूर्व एशिया के अध्ययनों का संस्थान), सिंगापुर पर दिये गये परिच्छेद का प्रवलोकन कीजिये।
जे.आनाह ऐट आल: (ऐडस), सिंगापुर की सरकार एवं राजनीति सिंगापुर, आक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी प्रेस, 1989.
आर.एस. मिलने एवं डाइने के मौजी सिंगापुर: ली कुऑ.वी. की वसीयत संपदा बोल्डन कोलो, 1990.
टामस.जे. बलोस सिंगापुर, इन जोयल क्रीजर, एड, विश्व की राजनीति का आक्सफोर्ड साथी, न्यूयार्क, आक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी प्रेस, 1993.
जे. डैनिस डर्बीशायर एवं जान डेस्बीशायर: विश्व की चेम्बर्स राजनीतिक प्रणालियां, नई दिल्ली, एलाइड पब्लिशर्स 1990.
हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics