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प्रकाश संश्लेषण का महत्व बताइए , Significance of photosynthesis in hindi importance

जानेंगे प्रकाश संश्लेषण का महत्व बताइए , Significance of photosynthesis in hindi importance ?

प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis)

परिचय (Introduction)

कोशिकाओं को कार्य करने एवं जनन के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इन सभी कोशिकीय क्रियाओं के लिए ऊर्जा संग्रहित करने वाले अणु एटीपी (ATP) की आवश्यकता होती है। एटीपी, एडिनोसिन ट्राइ फासफेट (adenosine tri phosphate) होता है। पादप जन्तुओं की तरह भोजन ले नहीं सकते परन्तु यह एटीपी (ATP) का निर्माण प्रकाश को ऊर्जा के स्रोत के रूप में प्रयुक्त करके कर सकते हैं। पादप कम समय के लिए शर्करा अणु निर्माण से एवं लम्बे समय के लिए स्टार्च निर्माण से ऊर्जा संग्रहित करते हैं।

पादपों की ऊर्जा संग्रहण क्रिया को प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) कहते हैं। प्रकाश संश्लेषण (फोटोस = प्रकाश, सिन्थेसिस =एक साथ लाना) वह क्रिया है जिसके द्वारा हरित पादप सूर्य के प्रकाश का प्रयोग कर सरल अणुओं, कार्बन डाइ आक्साइड (carbon dioxide) एवं जल से भोजन बनाते हैं।

प्रकाश संश्लेषण को हम वह क्रिया भी कह सकते हैं जिसके द्वारा हरित पादप पर्णहरित (chlorophyll) द्वारा अवशोषित सूर्य के प्रकाश की ऊर्जा का प्रयोग कर CO2 एवं जल से कार्बनिक पदार्थ का निर्माण करते है। सम्पूर्ण क्रिया को निम्नलिखित समीकरण द्वारा बताया जा सकता है-

6CO2 + 12H2O  + प्रकाश ऊर्जा  पर्णहरित/ विकर  C6H12O6 + 6O2  + 6H2O

कार्बन डाइ  जल                                                ग्लूकोज  ऑक्सीजन  जल

ऑक्साइड

उप उत्पाद के रूप में मुक्त ऑक्सीजन वायुमण्डल में मुक्त हो जाती हे। प्रकाश संश्लेषण क्रिया हरित लवक (chloroplast) में सम्पन्न होती है।

प्रकाश संश्लेषण का महत्व (Significance of photosynthesis)

प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से पृथ्वी पर जीवन प्रकाश संश्लेषण क्रिया पर निर्भर करता है। प्रकाश संश्लेषण से लगभग 170 मिलियन टन शुष्क पदार्थ (dry matter) एक वर्ष में प्राप्त होता है, जिसमें से 90% भाग समुद्र में उत्पन्न होता है। इस क्रिया द्वारा ही पादप वातावरण में O2 मुक्त करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। यदि वातावरण में यह CO2 लगातार इकट्ठी होती रहे तो पृथ्वी पर जीवन असंभव हो जाएगा। हरे पादप वातावरण में उपस्थित इस अतिरिक्त CO2 का प्रकाश संश्लेषण में उपयोग करके वातावरण में इसकी मात्रा (0.03% ) को नियंत्रित करते हैं ।

प्रकाश संश्लेषण एवं श्वसन एक दूसरे के प्रति सहायक क्रियाऐं हैं अर्थात् एक की अनुपस्थिति में दूसरी नहीं होगी । श्वसन में उत्पादित CO2 प्रकाश संश्लेषण द्वारा काम में ली जाती है साथ ही इस क्रिया के लिए आवश्यक O2 भी प्रकाश संश्लेषण में उत्पन्न होती है अतः इस प्रकार वायु भी शुद्ध (ऑक्सीजन युक्त) बनी रहती है। प्रकाश संश्लेषण में सौर ऊर्जा रासायनिक ऊर्जा में बदल जाती है जो कि आखिर में जीवों की विभिन्न क्रियाओं में काम आती है। प्रकाश संश्लेषण का निम्न महत्व है

  1. खाद्य प्रदार्थों का उत्पादन (Production of food material)

हरे पादप प्रकाश संश्लेषण द्वारा विभिन्न खाद्य पदार्थों जैसे- कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, इत्यादि का संश्लेषण करते हैं। ये खाद्य पदार्थ पादप के शरीर तथा इसके संगठन बनने में काम आते हैं। इनमें से कुछ खाद्य पदार्थ जन्तुओं के खाद्य के काम आते हैं। इस प्रकार हरे पादप प्रकृति में मुख्य उत्पादक है तथा सभी अन्य जीव भोजन के लिए उन पर आश्रित है।

  1. वातावरणीय नियंत्रण (Atmospheric control)

प्रत्येक जीव कार्बोहाइड्रेट, वसा एवं प्रोटीन के श्वसन में ऑक्सीकरण के कारण CO2 एवं ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। इसके अलावा वातावरण में CO2 कोयले, पेट्रोल एवं डीजल इत्यादि के जलने से भी उत्पन्न होती है।

प्रकाश संश्लेषण का संक्षिप्त इतिहास (Brief history of photosynthesis)

  1. अरस्तू एंव थियोफ्रेस्टस (Aristotle and Theophrastus, 320 B. C ) – इन्होंने बताया कि पादप मृदा से सभी पदार्थों को चाहे कार्बनिक अथवा अकार्बनिक, अवशोषित करते हैं।
  2. वॉन हैलमॉन्ट (Van Helmont, 1648)- इन्होंने 5 पाउण्ड के एक पौधे को तोलकर ओवन में शुष्क की गयी मृदा में लगा दिया। सतत 5 वर्षों तक इस पौधे को वर्षा के जल से सींचते रहें। कुछ समय पश्चात यह पौधा वृक्ष में विकसित हो गया। अब फिर से इसका भार लिया गया। इसका भार 164 पाउण्ड एवं तीन आऊन्स था तथा मृदा का भार सिर्फ 2 आऊन्स कम हुआ था। इससे उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि पादपों का भार जल ग्रहण के कारण बढ़ता है।
  3. जॉन वुडवार्ड (John Woodward, 1699 ) – इनके अनुसार पादपों का वजन जल के अलावा मृदा से भी बढ़ता है। 4. स्टीफेन हेल्स (Stephen Hales, 1727) ने वायु तथा प्रकाश की पादप पोषण में महत्ता को समझाया ।
  4. जोसफ प्रिस्टले (Joseph Priestley, 1722) – इन्होंने बताया कि पादप वायु में O2 मुक्त कर शुद्ध करते हैं। उन्होंने तीन बेलजार लिए। एक से उन्होंने एक पौधे को दूसरे से एक चूहे को तथा तीसरे से एक पौधे एवं चूहे दोनों को ढक दिया। कुछ समय बाद पहले तथा दूसरे बेलजार में पौधे तथा चूहे को उन्होंने मृत पाया परन्तु तीसरे बेलजार में पौधा तथा चूहा दोनों जीवित थे। इससे निष्कर्ष निकाला कि पादप जन्तुओं द्वारा विमुक्त वायु को शुद्ध करते हैं अर्थात जन्तु श्वसन में विमुक्त CO2 पादपों द्वारा अवशोषित कर ली जाती है तथा इसके बदले वे O2 मुक्त करते हैं।
  5. इन्जेन हाउस (Ingen-Housz, 1799 ) – इन्होंने अपनी खोज में बताया कि पादप प्रकाश की उपस्थिति में अशुद्ध वायु शुद्ध करते हैं।
  6. लेवोइजर (Lavoiser, 1783) – लेवोइजर ने पादपों द्वारा मुक्त वायु को पहचान कर उसे O2 (डिफ्लोजिस्टन, dephlogistion) तथा मोमबत्ती के जलने पर मुक्त वायु को CO2 (फ्लोजिस्टन, phlogistion) बताया।
  7. सेनीबीयर (Senebier, 1782) – उन्होंने पाया कि अधिक CO2 की उपलब्धता पर अधिक O2 विमुक्त होती है।
  8. डी सोसर (De Saussure, 1804 ) – इन्होंने प्रकाश संश्लेषण में जल का महत्व बताया।
  9. वान मेयर (Von Mayer, 1845) – ने बताया कि पादप सूर्य की ऊर्जा को कार्बनिक पदार्थों की रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं।

CO2 + H2O   सूर्य का प्रकाश / हरे पादप → कार्बनिक पदार्थ + O2

  1. लीबिग (Liebig, 1845)- ने पाया कि कार्बनिक पदार्थ के निर्माण में CO2 प्रयुक्त होती है तथा जल प्रकाश संश्लेषण प्रयुक्त होता है।
  2. सैक्स (Sachs, 1862)- ने स्टार्च को प्रकाश संश्लेषण का प्रथम उत्पाद बताया ।
  3. एंगलमान (Engelmann, 1888)- इन्होंने प्रकाश संश्लेषण का क्रिया स्पेक्ट्रम (action spectrum) दिया ।
  4. ब्लैकमैन (Blackmann, 1905) – उन्होंने सीमाकारी कारकों का नियम (law of limiting factor) दिया ।
  5. वारबर्ग (Warburg, 1905) ने एक कोशिकीय शैवाल क्लोरेला (Chlorella) को प्रकाश संश्लेषी अध्ययनों के लिए उपर्युक्त पाया।
  6. एमरसन एवं आरनोल्ड (Emerson and Arnold 1832 ) – इन्होंने आंतरायिक (intermittent) प्रकाश प्रयोग द्वारा प्रकाश संश्लेषण में प्रकाशिक (light) एवं अप्रकाशिक (dark) अभिक्रियाओं की उपस्थिति को प्रमाणित किया ।
  7. हिल (Hill, 1937)- हिल ने पृथक किये गये हरित लवकों में जल का प्रकाश अपघटन (photolysis) प्रदर्शित किया। 18. रूबेन एवं कामेन (Ruben and Kamen, 1941) – ने O18 समस्थानिक (isotope) का प्रयोग कर बताया कि प्रकाश संश्लेषण में मुक्त O2 जल द्वारा प्रदान की जाती है।
  8. आरनोन, एलेन एवं वाटल (Arnon, Allen and Whatley, 1954)- इन्होंने पृथक किये हरित लवकों में रेडियो C14 के द्वारा कार्बन का स्थिरीकरण बताया।
  9. केल्विन (Calvin, 1954)- इन्होंने प्रकाश संश्लेषण में कार्बन के पथ का अध्ययन किया एवं ५ चक्र अथवा केल्विन चक्र (C3 or Calvin cycle) दिया। इसके लिए 1960 में उन्हें नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  10. हेच व स्लैक (Hatch and Slack, 1965)- कुछ उष्ण कटिबंधीय घासों में इन्होंने CO2 स्थिरीकरण के लिए C4 चक्र प्रतिपादित किया।
  11. ह्यूबर, माइकल एवं डिसेनहॉफर (Huber, Michel and Dissenhofer, 1985)- उन्होंने रोडोबेक्टर (Rodobacter) जीवाणु के प्रकाश संश्लेषी केन्द्र का क्रिस्टलीकरण कर उसकी संरचना का अध्ययन किया। इसके लिए उन्हें 1988 का नोबल पुरस्कार दिया गया।

वर्णक (Pigments)

हरित लवक में तीन प्रकार के वर्णक होते हैं यथा (1) पर्णहरित, (2) केरोटिनाइड्स एवं ( 3 ) फाइकोबिलिन्स

तालिका – 1. ) तालिका- 1: पादपों के विभिन्न समूहों में प्रकाश संश्लेषी वर्णकों के प्रकार एवं वितरण

प्रकाश संश्लेषी वर्णक

 

रंग

 

वितरण

 

पर्णहरित

 

   
1. क्लोरोफिल a (Chlorophyll a) (C55H72O5N4Mg)

2. क्लोरोफिल b (Chlorophyll b)

(C55H70O6N4Mg)

3. क्लोरोफिल c (Chlorophyll c)

(C35H32O5N4Mg)

4. क्लोरोफिल d (Chlorophyll d)

(C54H70O6N4Mg)

 

5. बेक्टीरियो – क्लोरोफिल्स (Bacterio chlorophylls)

(C55H74O6N4Mg)

 

6. बेक्टीरियोविरिडिन (Bacteriovirdin)

(C55H72O6N4Mg)

पीत – हरा

 

नीला-हरा

 

हरा

 

हरा

 

 

बैंगनी

 

 

 

हरा

 

प्रकाश संश्लेषी जीवाणुओं के अतिरिक्त सभी उच्च पादप

सभी उच्च पादप एवं हरे शैवाल

 

डायटम

भूरे शैवाल (क्रिप्टोफायसी)

लाल शैवाल

(रोडोफायसी)

परपल सल्फर, नॉन परपल सल्फर, हरे सल्फर, जीवाणु जैन्थोफायसी, थायोरोडेसी, एथायोरोडेसी, क्लोरोबेक्टिरिएसी

 

हरे सल्फर जीवाणु (क्लोरो बैक्टिरिएसी)

 

 

केरोटीनाइड्स (Carotenoids)

 

   
1. केरोटीन्स (Carotenes) एवं

2. जेन्थो फिल्स (Xanthophylls) (C40H56O2)

 

नारंगी, पीले

 

प्रकाश संश्लेषी जीवाणु,

शैवाल एवं उच्च पादप

 

फाइको बिलिन्स (Phycoblins)

 

   
1. फाइको इरिथ्रिन (Phyoerythrin )

2. फाइको सायनिन (Phycocyanin)

 

लाल

नीला

 

 

लाल एवं नीले-हरे शैवाल क्रिप्टोफायसी, लाल एवं नीले-हरे शैवाल क्रिप्टोफायसी,