तटरेखा किसे कहते हैं ? समुद्र तट की परिभाषा क्या है ? समुद्र एवं तट रेखा अंतर Shore line and Sea Coast in hindi
Shore line and Sea Coast in hindi तटरेखा किसे कहते हैं ? समुद्र तट की परिभाषा क्या है ? समुद्र एवं तट रेखा अंतर ?
समुद्र एवं तट रेखा
(Coast and Shore Line)
जहाँ समुद्र व स्थल मिलते हैं उस रेखा को तटरेखा (Shore line) कहा जाता है तथा इस रेखा से लगा हुआ संकरा स्थलीय क्षेत्र समुद्र तट (Sea Coast) कहलाता है। तट रेखा व समुद्र तट में अन्तर होता है। तट रेखा वह सीमा है जहाँ धरातल पर स्थल समाप्त होकर जल (समुद्र) की ओर महाद्वीपीय भग्न इस शुरू हो जाता है। इसे किनारा (Shore) भी कहते हैं। तटरेखा का निर्धारण किसी भी समय समुद्र के जल की सीमा द्वारा होता है। टसरे शलों में नारेवा उच्च तथा निम्न ज्वार के मध्य सागराय जल की स्थल की ओर अंतिम सीमा को प्रदशिर्तत करती है।
समुद्र तट तटरेखा से लगा हुआ स्थलीय भाग होता है। इस पर समुद्री जल का प्रसार कभी-कभी असामान्य परिस्थितियों में ही होता है, जैसे तूफान आने पर, सुनामी के प्रकोप से, चक्रवात आने पर आदि। इस पर तट रेखा के निकट क्लिफ, रेत, बालू आदि का प्रसार देखा जाता है व स्थल की तरफ तटीय वनस्पति देखी जा सकती है। अनेक सुन्दर समुद्री तट पर्यटन स्थल बन जाते हैं। जैसे भारत में तट रेखा का जन्म के निमज्जन पर निर्भर करता है। तट रेखा का स्वरूप लहरों, धाराओं, सागरीय, वायु, नदी हिम आदि के निक्षेप आदि अनेक तत्वों से प्रभावित होता है। अमेरिकी भूगोलविद् जानसन के उत्पति के आधार पर तट रेखाओं का वर्गीकरण प्रस्तुत किया है-
(1) उन्मज्जित तट रेखा (Shore lines of Emergence),
(2) जिमज्जत तट रेखा (Shore lines of Submergence),
(3) नकारात्मक तट रेखा (Neutral Shore line),
(4) संश्लिस्ट तट रेखा (Compound Shore line),
(5) भृंश तट रेखा (Fault Shore line),
(1) उन्मज्जित तट रेखा – जिन स्थानों पर भूगर्भिक शक्तियों के हलचल से स्थल का उत्थान हो जाता है, वहाँ तट रेखा सीधी सरल पायी जाती है। इसमें खाड़ियाँ, गुफायें या पुलिन जैसी आकृतियाँ नहीं पायी जातीं। फलतः अच्छे पोताश्रम भी नहीं बनते। भारत का पूर्वी तट इसी प्रकार से बना है।
(2) निमज्जन तट रेखा – जिन स्थानों पर समुद्र तल का निमज्जन होता है, वहाँ तट रेखा कई प्रकार से कटी हुई व अनेक स्वरूप की दिखायी पड़ती है।
(i) फियोर्ड तट रेखा (Fiord Coast) – हिमयुग काल में हिमानी की घाटियाँ शीतल जलवायु के कारण सागर तक फैल गयी थी। हिमयुग में सागर तल भी 70 मीटर नीचे चला गया था। अतः लहरों का कटाव क्षेत्र भी अधिक गहराई तक फैल गया, जिससे तटीय इलाकों में घाटियाँ, खाडियाँ गुफाओं आदि का निर्माण हुआ। हिमयुग की समाप्ति पर सागर जल पुनः ऊपर आ गया व ये घाटियाँ महासागरों में डूब गयी। न् आकार की सागरीय घाटियों को ही फिओर्ड कहा जाता है। इस प्रकार के हिमानी अपरदन से प्रभावित शट स्वीडन, नार्वे, चिली, अलास्का, ग्रीनलैण्ड, कनाडा में देखे जा सकते है। इन तटों पर समुद्र की गहराई अधिक पायी जाती है व उत्तम पोताश्रम बनते है।
(ii) रिया तट (Ria Coast) – निमज्जन से नदियों के मुहाने व निचली घाटी के समुद्र जल में डूब जाने से जो विशेष प्रकार की तट रेखा बनती है, उसे रिया तट कहते हैं। इंग्लैंड व वेल्स के तट इसके उत्तम उदाहरण हैं। उत्तरी अटलांटिक के दोनों ओर के तटों पर रिया तट अधिक पाये जाते हैं।
(iii) डालमाशया तट (Dalmation Coast) – जब तट के निकट पहाड़ी क्षेत्र होता है व पहाड़ियाँ समुद्र में डूबी होती है, तब उनके बीच लम्बी खाड़ियाँ फैली होती हैं। ऐसा माना जाता है कि निमज्जन के कारण ये पहाड़ियों द्वीप जैसी प्रतीत होती हैं. प्राचीन काल में ये ऊँची चोटियाँ थीं । ऐसा तट एड्रियाटिक नगर का पूर्वी तट है।
(iv) हैफ तट (Delta Coast)- यह विशेष प्रकार का तट होता है, जिसमें सैकरी एवं लम्बी बालू की पट्टियाँ पायी जाती है। जगह-जगह लैगून व बालू के टीले मिलते हैं। उत्तरी हालैण्ड इसका अच्छा उदाहरण है। यहाँ मिट्टी का निक्षेप अधिक होता है तथा सागर तल में निमज्जन पाया जाता है।
(3) तटस्थ तट रेखा – कुछ तट रेखायें लम्बे समय से स्थिर होती है। वहाँ नदियों द्वारा डेल्टा या ज्वालामुखी उद्गार से निकले पदार्थ जम जाते हैं। यहाँ समद्र बहत उथला होता है। प्रवाल भित्तियां पायी जाती है। एस तट भारत का उत्तर-पूर्वी तट, आस्ट्रेलिया का पूर्वी तट मिलते हैं। इस डेल्टा तट भी कहते हैं।
(4) संश्लिष्ट तट रेखा – जिन तट रेखाओं पर भूगर्भिक हलचलों का प्रभाव बार-बार पड़ता है जिसस कई बार उत्थान व निमज्जत तट पर होता है। वहाँ की तट रेखा संश्लिष्ट तट रेखा कहलाती है। संयुक्त राज्य में केरोलित-न्यूजर्सी तट में ऐसे प्रभाव देखे जा सकते हैं, जहाँ अनूप, रोधिका व नदमख एस्चुरी एक साथ देखने को मिलते हैं।
(5) भ्रंश तट रेखा – जिन तटीय इलाकों में भूकम्प, ज्वालामुखी व भूगर्भिक हलचलों से भ्रंश पड़ने से तट का निर्माण होता है, उसे भ्रंश तट रेखा कहते हैं। भ्रंश के कारण सागर तली नीचे धंस जाती है। तट सीधी रेखा जैसा होता है तथा तट पर समुद्र की गहराई अचानक बढ़ जाती है। भारत का पश्चिम तट इसी प्रकार का है।
जॉनसन द्वारा किया गया विभाजन यद्यपि सम्पूर्ण नहीं है फिर भी तट रेखाओं की विशेषताओं व निर्माण पर प्रभाव डालता है। शेपर्ड व सुएस ने भी अपने वर्गीकरण प्रस्तुत किये, परन्तु वे भी मान्य नहीं हुए। रिचथोफेन व बुशर ने वर्तमान पृष्ठ प्रदेश की संरचना के आधार पर तटों का वर्गीकरण किया है।
परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण प्रश्न
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. उत्पत्ति के आधार पर तट रेखाओं का वर्णन कीजिये।
2. लहरें सागर तट पर अपने अपरदन से कौन-कौन-सी भू-आकृतियाँ बनाती हैं?
3. लहरों के निक्षेप से बनने वाली भू-आकृतियों का वर्णन की कीजिए।
4. लहरों के अपरदन को कौन से तत्व प्रभावित करते है एवं लहरें किस प्रकार इसे सम्पन्न करती है?
5. सागर तट पर सागरीय लहरों के कार्य से बनने वाले विविध भू-रूपों का वर्णन कीजिए।
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. नदी के कार्य बताइए।
2. नदी के स्थलाकृतियों की जानकारी दीजिए।
3. नदी परिवहन के कार्य बताइए।
4. नदी के निक्षेपण कार्य में प्रकाश डालिए।
5. डेल्टा के प्रकार बताइए।
6. पवन के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए उसके कार्यों को कीजिए।
7. हिम स्थलाकृतियों से आप क्या समझते हो स्पष्ट कीजिए।
8. हिमानी का परिवहन कार्य बताइए।
9. कास्र्ट स्थलाकृति से क्या तात्पर्य है।
10. समुद्र तटीय स्थलाकृति से आप क्या समझते हो?
11. सामुद्रिक परिवहन पर टिप्पणी लिखिए।
12. सामुद्रिक निक्षेप पर टिप्पणी लिखिए।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. नदी का मुख्य कार्यस्थल के जल को-
(अ) सागर तक ले जाना (ब) नदी तक ले जाना
(स) शहरों तक ले लाना (द) इनमें से कोई नहीं
2. जिस निर्वाचित मार्ग पर नदी प्रवाहित होती है उसे-
(अ) मुहाना (ब) नदी घाटी (स) बेसिन (द) कारक
3. नदी अपरदन द्वारा निर्मित स्थलाकृतियाँ
(अ) नदी-घाटी (ब) महाखड्ड (स) जलप्रपात (द) सभी
4. विश्व के कितने भाग में मरुस्थल पाए जाते हैं-
(अ) 1/2 (ब) 1/4 (स) 1/3 (द) 1/5
5. मरूस्थलीय क्षेत्रों में वायु द्वारा उड़ाकर लायी गयी रेत व बालू के निक्षेप से बने टीेले-
(अ) बालुकास्तूप (ब) बेसिन (स) संरचना (द) यारदांग
6. तरंगों के प्रवाह से समुद्र तटों पर निर्मित खड़े किनारों की-
(अ) यारदांग (ब) भृगु (स) तरंग (द) सोपान
उत्तर- 1. (अ), 2. (ब), 3. (द), 4. (स), 5. (अ), 6. (ब)
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