F2 पीढ़ी में फिनोटाइप = गोल ,पीले बीज : गोल,हरे बीज : झुर्रीदार ,पीले बीज : झुर्रीदार ,हरे बीज
वंशागति का नियम
1.एकल संकरण वंशागति का नियम
यह वंशागति का पहला नियम है इस नियम के अनुसार “ आंतरिक कारक जो की जोडियो में उपस्थित होते है किसी भी जीव के लक्षण इसी आंतरिक कारक के दवारा निधारित होते है अत: किसी भी युग्मक में आंतरिक कारक केवल एक जोड़ी के रूप उपस्थित होते है”
आनुवंशिकता कार्य विधि
प्रोटीन संश्लेषण के लिए कोशिका के डी-एन-ए- में एक सूचना स्रोत होता है। प्रोटीन संश्लेषण के लिए जो सूचना होती है वह डी-एन-ए- के एक भाग मे होती है उस भाग को प्रोटीन का जीन कहते है। प्रोटीन जो की विभिन्न लक्षणों की अभिव्यक्ति को नियंत्रित करती है। उदहारण = पौधों की लंबाई
पौधों में कुछ हार्मोन होते हैं जो की इसकी लंबाई का नियंत्रित करते हैं। अतः पौधे की लंबाई पौधे में उपस्थित हार्मोन की मात्रा पर निर्भर करती है। पौधे में हार्मोन की मात्रा उस प्रक्रम की दक्षता पर निर्भर करती है जिसके द्वारा यह उत्पादित होता है। एंजाइम जो की इस प्रक्रम के लिए महत्वपूर्ण होते है। यदि एंजाइम जो की दक्षता से कार्य करता है तो हार्मोन पर्याप्त मात्रा में बनता है तथा पौधा लंबा बनता है। यदि प्रोटीन के जीन में परिवर्तन आते हैं तो इससे बनने वाली प्रोटीन की दक्षता पर भी प्रभाव पड़ता है तथा इसकी दक्षता भी कम हो जाती है अतः बनने वाले हार्मोन की मात्रा भी कम होगी तथा पौधा बौना रहेगा। अतः जीन संतति में लक्षणों को नियंत्रित करता हैं।
दोनों जनक का संतति के डी-एन-ए- में समान रूप से योगदान होता है। दोनों जनक संतति के लक्षण के निर्धारण में सहायता करते हैं। दोनों जनक संतति को एक ही जीन की एक प्रतिकृति प्रदान करते है। अत: प्रत्येक जनन कोशिका में जीन का केवल एक ही सेट होता है। परन्तु सामान्य कायिक कोशिका में जीन के सेट की दो प्रतियाँ होती हैं लेकिन जनन कोशिका में जीन के सेट की केवल एक प्रति होनी चाहियें। मेंडल का प्रयोग असफल होता है जब संतति पौधे को जनक पौधे से संपूर्ण जीनों का एक पूर्ण सेट प्राप्त होता है।
इसका मुख्य कारण यह है कि दो लक्षण R तथा y सेट में एक-दूसरे से जुड़े रहेंगे तथा यह स्वतंत्र रूप में आहरित नहीं हो सकते है। अत: एक जीन सेट केवल एक डी-एन-ए- शृंखला के रूप में न होकर डी-एन-ए- के अलग-अलग स्वतंत्र रूप में भी होते हैं जो की गुण सूत्र कहलाता है। अतः प्रत्येक जनन कोशिका में प्रत्येक गुणसूत्र की दो प्रतिकृतियाँ होती हैं जिनमें से एक नर तथा दूसरी मादा जनक से प्राप्त होती हैं। प्रत्येक जनक कोशिका में उपस्थित गुणसूत्र के प्रत्येक जोड़े का केवल एक गुणसूत्र ही एक जनन कोशिका में जाता है।
जब दो युग्मकों का संलयन होता है तो इससे बने हुए युग्मनज में गुणसूत्र की संख्या पुनः सामान्य हो जाती है तथा संतति में गुणसूत्र की संख्या भी निश्चित बनी रहती है, जो की स्पीशीज के डी-एन-ए- के स्थायित्व को सुनिश्चित करता है। इस प्रकार की क्रियाविधि का उपयोग लैंगिक जनन वाले सभी जीव करते हैं।
लिंग निर्धारण
अलग-अलग स्पीशीज लिंग निर्धारण के लिए अलग-अलग युक्ति अपनाते हैं।
1.कुछ स्पीशीज लिंग निर्धारण के लिए पूर्ण रूप से पर्यावरण पर निर्भर करते हैं।
2.कुछ प्राणियों में लिंग निर्धारण निषेचित अंडे (युग्मक) के ऊष्मायन ताप पर निर्भर करता है तथा यह बताता है की संतति नर होगी या मादा। जैसे की सांप आदि
3.कुछ प्राणी अपना लिंग बदल सकते हैं इससे इस बात का पते चल सकता है की लिंग निर्धारण आनुवंशिक नहीं है। जैसे की घोंघे।
मानव में लिंग निर्धारण (Sex Determination in human in hindi)
आनुवंशिक आधार पर ही मानव में लिंग निर्धारण होता है। जनक जीवों से वंशानुगत जीन ही लिंग का निर्धारण करते हैं अर्थात् संतति लड़का होगा या लड़की।
लिंग गुणसूत्र
वह गुणसूत्र जो की मानव में लिंग का निर्धारण करते है लिंग गुणसूत्र कहलाता है। मानव में लिंग गुणसूत्र की संख्या एक जोड़ी होती है।
मानव के सभी गुणसूत्र पूर्णरूप से युग्म नहीं होते है। मानव में 23 जोड़ी गुणसूत्र होते है। 22 गुणसूत्र माता और पिता के गुणसूत्र के प्रतिरूप होते हैं और एक जोड़ी गुणसूत्र जिसे लिंग सूत्र कहते हैं जो की मानव में लिंग का निर्धारण करते है। लिंग गुणसूत्र पूर्णजोड़े में नहीं होते है।
स्त्री में गुणसूत्र पूर्ण युग्म के रूप में होते है अर्थात एक जैसे जोड़ी के रूप में होते है जो की XX कहलाते हैं। पुरुष (नर) में एक समान जोड़ा नहीं होता है जिसमें एक गुण सूत्र सामान्य आकार का X होता है तथा दूसरा गुणसूत्र छोटा होता है जिसे Y गुणसूत्र कहते हैं। अतः स्त्रियों में XX तथा पुरुष में XY गुणसूत्र होते हैं।
मानव में लिंग निर्धारण प्रक्रिया
मादा जनक में XX तथा पुरुष जनक में XY गुणसूत्र होते हैं। संतति चाहे लड़का हो या लड़की मादा जनक से इसमें X गुणसूत्र आता है। अत: लिंग का निर्धारण करने में माता की कोई भी भूमिका नहीं होती है क्योकि माता से हमेशा सामान गुणसूत्र X प्राप्त होता है। संतति के लिंग का निर्धारण पापा से मिलने वाले गुणसूत्र युगमक पर निर्भर करता है। यदि बच्चे को अपने पिता से X गुणसूत्र मिलता है तो संतति लड़की होगी एवं जिस बच्चे को पिता से Y गुणसूत्र प्राप्त होता है वह लड़का होगा।