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यूरेनियम से Np, Pu तथा Am के पृथक्करण की रसायन separation of np pu and am from uranium in hindi

separation of np pu and am from uranium in hindi यूरेनियम से Np, Pu तथा Am के पृथक्करण की रसायन ?

 ऐक्टिनाइडों का रसायन (Chemistry of actinides)

ऐक्टिनाइडों का विस्तृत रसायन मुख्यतः यूरेनियम तथा थोरियम तक ही सीमित है। अन्य तत्वों की रसायन का अध्ययन नहीं किये जा सकने के मुख्य कारण ये हैं कि वे अस्थायी हैं तथा बहुत कम मात्रा में प्राप्त किये जा सकते हैं। किसी समस्थानिक की रेडियो सक्रियता की मात्रा से ही यह निर्धारित होता है कि उसका किस सीमा तक तथा कितनी सुगमता से अध्ययन किया जा सकता है। रेडियोसक्रिय क्षय (radioactive decay) के समय जो अत्यधिक ऊर्जा युक्त कण निकलते हैं उनसे बन्ध टूट जाते हैं, क्रिस्टल संरचना छिन्न-भिन्न हो जाती है तथा प्राप्त ऊर्जा ऊष्मा रूप में प्रगट होती है। उदाहरणार्थ, जल मे क्यूरियम – 242 के लवण के विलयन (सान्द्रता ~ 10-3 M) में जो ऊष्मा निकलती है वह थोडे

समय में विलायक को वाष्पित कर विलयन को सुखाने के लिए पर्याप्त होती है। किसी रेडियोसक्रिय तत्व के नमूने में निष्कर्षित कणों द्वारा बंधों को तोड़ना निरन्तर स्वतः अपचयन (self reduction) क्रिया होने जैसा ही है।

ऐक्टिनाइडों के बहुत से गुण लैन्थनाइडों के कई प्रकार के रासायिनक गुणों की पुनरावृत्ति हैं। गुणों में इस प्रकार की समानता का उपयोग आरम्भ में कृत्रिम ऐक्टिनाइडों के रसायन संबंधी अध्ययन मे काफी उपयोगी रहा क्योंकि इन तत्वों के अस्थाई होने के कारण तत्वों का शीघ्रता से अध्ययन किया जाना आवश्यक होता है जो गुणों के पूर्वानुमान होने से काफी सुविधाजनक रहता है। ऐक्टिनाइडों के जलीय विलयन की रसायन के बारे में सही व उपयोगी जानकारी ट्रेसर तकनीक (tracer technique) अध्ययन से प्राप्त होती है। इनकी रसायन के मुख्य पहलुओं का विवेचन नीचे किया गया है।

(i) क्रियाशीलता (reactivity) – ऐक्टिनाइड धातुएँ विद्युतधनीय तथा क्रियाशील तत्व हैं। वायु से धातु के ऊपर ऑक्साइड सतह के निर्माण के कारण ये धातुएँ तेजी से धुंधली पड़ जाती हैं। ये धातुएँ गर्म करने पर अधिकांश अधातुओं से क्रिया कर लेती हैं लेकिन क्षारों के साथ क्रिया करने की बहुत कम प्रवृत्ति पाई जाती है तथा अम्लों के साथ अपेक्षा से कम क्रियाशील होती हैं। अम्लों में सम्भवतः सान्द्र HCl सबसे अधिक तेजी से क्रिया करता है, जबकि सान्द्र HNO3 द्वारा Th, U तथा Puधातुएँ निष्क्रिय (passive) हो जाती हैं ।

(ii) जल के साथ अभिक्रिया – जल के साथ अभिक्रियाएँ जटिल होती हैं तथा ऑक्सीजन की उपस्थिति से प्रभावित होती हैं। उबलते हुए जल तथा भाप के साथ धातु की सतह पर ऑक्साइड का निर्माण होता है तथा H2 मुक्त होती है।

2An+ 3H2O → ⇒ An2O3 + 3H2

(iii) ऑक्साइड- ऐक्टिनाइडों के ऑक्साइड तापसह्य (refractory) पदार्थ होते हैं। वास्तव में, सभी ऐक्टिनाइड ऑक्साइडों में ThO2 का गलनांक (3390°C) अधिकतम होता है। इन्हें नाभिकीय ईंधन के रूप में काम में लिया जाता है। केवल UO3 ही ज्ञात निर्जलीय ऐक्टिनाइड ऑक्साइड है। Cf तक के सभी ऐक्टिनाइडों के लिए डाइऑक्साइड ज्ञात हैं। Pu से आगे सेस्क्वीऑक्साइड अधिक स्थाई हो जाते हैं। ऐक्टिनाइड ऑक्साइडों के साथ क्षार तथा क्षारीय मृद्रा धातुओं के ऑक्साइड मिश्रित (mixed) ऑक्साइड बनाते हैं :

Li2O + AnO2 400-420°c → Li5AnO3 (An = Np, Pu)

(iv) हेलाइड–ऐक्टिनाइड तत्व AnX6 से AnX2 प्रकार के हेलाइडों का निर्माण करते हैं। इन यौगिकों में तत्वों की वही ऑक्सीकरण अवस्थाएँ होती हैं जिन्हें सारणी 7.2 में प्रदर्शित किया है। इस प्रकार, U, Np, तथा Pu हेक्साफ्लुओराइड बनाते हैं, जबकि केवल यूरेनियम हेक्साक्लोराइड ही ज्ञात है। सभी पदार्थ प्रबल ऑक्सीकारक हैं तथा आर्द्रता (moisture) के प्रति अत्यधिक संवेदी (sensitive) हैं :

AnX6 + 2H20 → AnO2X2 + 4HX

नेप्टूनियम के बाद में आने वाले तत्वों के पेन्टाहेलाइड अज्ञात हैं। Pa चारों हेलाइडों का निर्माण करता है। ज्ञात सभी पेन्टाफ्लुओराइड तथा PaCl5 बहुलकी (polymeric) हैं जो जल के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं।

ऐक्टिनाइड श्रृंखला के बहुत से तत्वों के लिए टेट्राहेलाइड बनाये जा चुके हैं जिनमें से टेट्राफ्लुओराइड तो कैलिफोर्नियम तक के तत्वों के ज्ञात हैं। प्रारम्भिक तत्वों के टेट्राफ्लुओराइड, ThF4 PuF4 तक, H2 की उपस्थिति में उनके डाइऑक्साइड तथा HF को गर्म करके बनाया जा सकता हैं। बाद वाले तत्वों के टेट्राफ्लुओराइड, AmF4 से CIF 4 तक को उनके ट्राइफ्लुओराइडों को साथ गर्म करके बनाया जाता है। टेट्राक्लोराइड (Th से Np तक) बनाने हेतु उनके डाइऑक्साइडों को CCI 4 के साथ गर्म किया जाता है, जबकि टेट्राब्रोमाइड (Th से U तक) तत्वों की सीधी अभिक्रिया से बनाये जाते हैं। टेट्राफ्लुओराइड जल में अविलेय हैं, जबकि सभी अन्य टेट्राहेलाइड आर्द्रताग्राही ( hygroscopic )हैं तथा जल व अन्य ध्रुवीय विलायकों में तेजी से विलेय हो जाते हैं ।

श्रृंखला के सभी तत्वों के ट्राइहेलाइड बनाये जा चुके हैं। बनाने की बहुत सी विधियाँ ज्ञात हैं जो ऐक्टिनाइड तत्व पर निर्भर करती हैं। भारी ऐक्टिनाइडों (Am से Cf तक) के ट्राईहेलाइडों को सेस्क्वीऑक्साइड या डाइऑक्साइड को HX में गर्म करके बनाया जाता है, लेकिन हलके ऐक्टिनाइडों के ट्राईहेलाइडों के निर्माण के लिए अपचायक की उपस्थिति आवश्यक है। इन ऐक्टिनाइडों के आयोडाइडों को धातु व I2 या HI को गर्म करके बनाया जा सकता है। ऐक्टिनाइड ट्राइहेलाइडों तथा लैन्थेनाइड ट्राइहेलाइडों के मध्य काफी समानता पाई जाती है। उच्च गलनांक वाले आयनिक ट्राइफ्लुओराइड जल में अविलेय हैं। अन्य ट्राइहेलाइड आर्द्रताग्राही ठोस हैं जो ज़ल में विलेय हैं।

बहुत कम धातुओं के द्विसंयोजकीय हेलाइड ज्ञात हैं । अमेरिसियम के डाइहेलाइड निम्न प्रकार बनाये जा सकते हैं :

Am + HgX2 400-500°C → AmX2 + Hg (X= Cl, Br. I)

यूरोपियम की भांति, इन डाइहेलाइडों का स्थायित्व संभवतः 5f7 विन्यास के कारण है | Cf Br2 CfI2 भी ज्ञात हैं।

 (v) संकुलन (Complexation) – लैन्थेनाइड परमाणुओं में इलेक्ट्रॉनों को 4f या 5d कक्षकों में निर्धारित’ करने में अनिश्चितता की तुलना में इलेक्ट्रॉनों का ऐक्टिनाइड परमाणुओं के 5fया 6ad कक्षकों में नि रण अधिक अनिश्चित होता है। इसका कारण यह है कि 4f इलेक्ट्रॉनों की अपेक्षा 5f इलेक्ट्रॉनों का बाह्य परिरक्षण तथा इलेक्ट्रॉनों की बन्धन ऊर्जा (binding energy) कम होती है। फलतः ऐक्टिनाइड आयनों में 5f इलेक्ट्रॉन बाह्यतम 6s2 6p6 इलेक्ट्रॉनों से इतने अन्दर नहीं होते जितने लैन्थेनाइड आयनों में 4f इलेक्ट्रॉन 5s2 5p6 इलेक्ट्रॉनों के अन्दर धंसे होते हैं। 5f का संकुचन भी 45 की तुलना में कम होता है। इसलिए लैन्थेनाइडों की तुलना में ऐक्टिनाइड तत्वों में संकुल बनाने की प्रवृति अधिक पायी जाती है। ऐक्टिनाइडों की उपसहसंयोजन रसायन में सर्वाधिक अध्ययन यूरेनियम का जलीय विलयन में किया गया है जहाँ लैन्थेनाइड आयन मुख्यतः + 3 ऑक्सीकरण अवस्था में ही संकुल बनाते हैं। ऐक्टिनाइड श्रृंखला के प्रारम्भिक तत्व + 3 के अतिरिक्त + 4, + 5, तथा + 7 ऑक्सीकरण अवस्थाओं में भी संकुल बनाते हैं। इस कारण इनके संकुल लैन्थेनाइड तत्वों की तुलना में अधिक विविध ता लिए हुए भी होते हैं। इसके अतिरिक्त उच्च ऑक्सीकरण अवस्थाओं में अधिक आवेश घनत्व के कारण इनकी ध्रुवण क्षमता अधिक होती है जिसके कारण भी इनकी संकुल बनाने की प्रवृत्ति अधिक होती है। ऐक्टिनाइडों की विभिन्न ऑक्सीकरण अवस्थाओं में बनने वाले संकुल निम्न प्रकार हैं

(i) +7 ऑक्सीकरण अवस्था : इस ऑक्सीकरण अवस्था में केवल Np तथा Pu ही संकुल हैं। इनके क्षारीय विलयन का वैद्युत ऑक्सीकरण करने पर गहरे हरे रंग के [AnO4(OH)2 3 (An = Np तथा Pu) बनते हैं। मिश्रित ऑक्साइड Li5AnO6 को जल में घोलने पर भी इसी प्रकार प्रबल ऑक्सीकारक विलयन प्राप्त होते हैं ।

(ii) + 6 ऑक्सीकरण अवस्था : UO3 तथा हेलाइडों के अतिरिक्त ऐक्टिनाइड इस ऑक्सीकरण अवस्था में डाइऑक्सी अर्थात् ऐक्टिनाइल (actinyl), AnO2 2+ (An=U, Np, Pu तथा Am) आयन बनाते हैं। ऐक्टिनाइल हेलाइडों, [AnO2X2], में U, Np, Pu तथा Am सभी तत्वों के फ्लुओराइड तो ज्ञात हैं, परन्तु क्लोराइड तथा ब्रोमाइड मात्र यूरेनियम ही बनाता है। यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि U की +6 ऑक्सीकरण अवस्था सर्वाधिक स्थायी अवस्था है। ऐक्टिनाइल नाइट्रेट [AnO2(NO3)2] तथा क्लोरेट [AnO2 (CIO4)2] इस प्रकार के अन्य संकुल हैं। An-O बन्ध सामर्थ्य तथा इनके अपचयन की प्रतिरोध शक्ति U>Np>Pu > Am के क्रम में घटती है। ये ऐक्टिनायल आयन AnO2 2+ इतने अधिक स्थायी होते हैं कि बहुत सी अभिक्रियाओं में ज्यों के त्यों बने रहते हैं। जलीय विलयन में ऐक्टिनायल आयनों का जलअपघटन महत्वपूर्ण होता है तथा इस प्रकार के विलयन निश्चय ही अम्लीय होते हैं। पीले यूरेनिल लवण इस प्रकार के सर्वाधिक सामान्य लवण हैं तथा अधिकांश यूरेनियम यौगिकों के वायु तथा आर्द्रता के सम्पर्क में आने पर अन्तिम उत्पाद के रूप में प्राप्त होते हैं। AnO, 2+ समूह एक रेखीय होता है जिसे [O=An=O]2+ द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है।

(iii) + 5 ऑक्सीकरण अवस्था : इस अवस्था में ऐक्टिनाइडों द्वारा अधिकांश संकुल फ्लुओरीन अथवा ऑक्सीजन यौगिकों के साथ ही बनाये जाते हैं। जलीय विलयन में हलके ऐक्टिनाइडों के लवण प्रबल संकुलकारक अभिकर्मकों की अनुपस्थिति में AnO2 आयन बनाते हैं (An = Pa, U, Np, Pu, Am) | निम्नतर धनीय आवेश के कारण AnO2 आयन AnO2 + की तुलना में कम स्थायी होता है। अतः यह अपघटित होकर AnO2+ बनाता है। जलीय HCIO4 में NpO2 तो स्थाई है, लेकिन UO2, PuO2 तथा AmO2 अस्थाई हैं जो निम्न प्रकार IV तथा VI अवस्थाओं वाले यौगिकों में अपघटित हो जाते हैं :

2UOUIV यौगिक +UO2+2

2PuO2+ → PuV यौगिक + PuO2+2

F-आयन जैसे प्रबल संकुलकर्मक, AnO2 आयन की ऑक्सीजन को विस्थापित कर देते हैं। इस प्रकार AnO2 विलयनों में HF मिलाने से AnF6 (An = Pa, U, Np, Pu), PaF2+ तथा PaF3 +8 बनते हैं । AnO2+2 की भांति AnO2 भी एक रेखीय हैं। U(OR), एल्कॉक्साइड स्थाई हैं तथा गर्म करने पर अपघटित नहीं होते, यद्यपि इनका आसानी से जलअपघटन हो जाता है। ये सामान्यतः द्विलकी होते हैं-

(iv) + 4 ऑक्सीकरण अवस्था : ऐक्टिनाइडों द्वारा सर्वाधिक स्थायी एवं सबसे अधिक संकुल इसी अवस्था में बनते हैं। थोरियम के लिए यह सर्वाधिक स्थाई, U के लिए द्वितीय सर्वाधिक स्थाई तथा Pa व Np के लिए मध्यम श्रेणी की स्थाई अवस्था है। जल में PulV तथा AmIV बहुत सी ऑक्सीकरण अवस्थाओं में अपघटित हो जाते हैं :

PuLv → Pulll + Puv + PuVI

AmIV → AmIII + AmV

बर्केलियम के लिए यह अवस्था संभवतः 57 विन्यास के कारण अपेक्षाकृत अधिक स्थाई है। जलीय विलयनों में 8 तथा 9 समन्वय संख्या वाले संकुल आयन बनते हैं। फ्लुओरीन के साथ ऐक्टिनाइड आयन (An+) विभिन्न प्रकार के संकुल ऋणायन, [AnF5], [AnF6]2, [AnF,], [AnF8]4 तथा [AngF31]7- बनाते हैं। ऐक्टिनाइडों की +4 ऑक्सीकरण अवस्था में संकुल बनाने वाले लिगण्डों में कार्बोनेट [An(CO3)5] 6-, नाइट्रेट An(NO3)4.5H2O तथा [An(NO3)6 ]2, ऑक्सेलट K4[Th(C2O)4].4H2O तथा B- डाइकीटोनेट (An(B-डाइकीटोनेट)4 ] आदि प्रमुख हैं । यहाँ An हलके ऐक्टिनाइडों को प्रदर्शित करता है।

 (v) + 3 ऑक्सीकरण अवस्था : जैसाकि पूर्व में बताया चुका है, ऐमेरिशियम से पूर्व के ऐक्टिनाइडों के लिए + 3 ऑक्सीकरण अवस्था स्थायी नहीं होती है। अतः इनके यौगिकों में +3 से उच्च ऑक्सीकरण अवस्था में ऑक्सीकृत होने की प्रबल प्रवृत्ति पायी जाती है। फलत: इन तत्वों की +3 अवस्था में सकुलों का अध्ययन केवल विलयन में ही संभव है। इनको विलयन से विलग करने के प्रयत्नों में सफलता नहीं मिल पायी है, क्योंकि इनका विघटन हो जाता है।

ऐमेरिशियम एवं इसके बाद के तत्वों में + 3 ऑक्सीकरण अवस्था यद्यपि स्थायी होती है। तथापि इनकी अत्यधिक न्यून मात्रा में उपलब्धता के कारण इनका संकुलन अध्ययन केवल विलायक निष्कर्षण एवं आयन विनिमय जैसी पृथक्करण विधियों के उपयोग तक ही सीमित है ।

(vi) +2 ऑक्सीकरण अवस्था : यद्यपि छः ऐक्टिनाइड तत्व + 2 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करते हैं (सारणी-5.2) तथा No के लिए यह सर्वाधिक स्थायी अवस्था भी होती है, परन्तु तत्वों की न्यून मात्रा में उपलब्धता के कारण इनके संकुलन व्यवहार का अध्ययन नहीं हो पाया है।

 लैन्थेनाइडों एवं ऐक्टिनाइडों की तुलना

लैन्थेनाइडों एवं ऐक्टिनाइडों के अभी तक किये गये अध्ययन से एक बात जो स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आती है वह यह है कि हलके ऐक्टिनाइड तत्वों के गुण लैन्थेनाइडों की अपेक्षा संक्रमण तत्वों से अधिक मिलते हैं तथा भारी तत्वों के गुण लैन्थेनाइडों के समान होते हैं। हलके ऐक्टिनाइडों का, इनके प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने के कारण, विस्तृत अध्ययन किया गया है। अतः इन तत्वों के गुण ऐक्टिनाइड तत्वों के गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनके कारण ऐसा लगता है कि ऐक्टिनाइडों के गुण लैन्थेनाइडों के गुणों से भिन्न होते हैं। परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है, क्योंकि भारी ऐक्टिनाइडों की कम उपलब्धता, अत्यधिक रेडियोसक्रियता एवं अस्थायित्व के कारण जितना भी अल्प अध्ययन किया गया है। उससे संकेत मिलते हैं कि इन तत्वों के गुण लैन्थेनाइडों के समान होते हैं। लैन्थेनाइडों एवं ऐक्टिनाइडों की मुख्य समानताएँ एवं विषमताएँ निम्न प्रकार हैं-

समानताएँ –

(1) लैन्थेनाइड एवं ऐक्टिनाइड श्रृंखलाओं के तत्व काफी सक्रिय धातुएँ हैं। अतः ये प्रकृति में स्वतंत्र रूप से नहीं पाये जाते हैं।

(2) लैन्थेनाइड एवं ऐक्टिनाइड दोनों प्रकार के तत्वों का बाह्यतम सामान्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (n -2)fx ns2 अथवा (n-2)fx-1 (n-1)d1ns2 द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है, जिसके निर्धारण में रिक्त तथा अर्धपूर्ण रूप से भरे हुए कक्षकों के स्थायित्व का योगदान महत्वपूर्ण होता है ।

(3) दोनों श्रृंखलाओं के त्रिधनीय आयनों में (n – 2)f कक्षकों का भरा जाना निरन्तर होता है।

(4) दोनों श्रृंखलाओं के तत्व संकुचन की क्रिया प्रदर्शित करते हैं।

(5) दोनों श्रृंखलाओं के तत्वों की सामान्य ऑक्सीकरण अवस्था +3 होती है। केवल Th तथा Pa ही इसके अपवाद है। दोनों श्रृंखलाओं के तत्व केवल फ्लुओरीन तथा ऑक्सीजन के साथ ही स्थायी यौगिक बनाते हैं, अन्य अधातुओं के यौगिकों का जलअपघटन हो जाता है। (6) संकुल यौगिकों में लैन्थेनाइड एवं ऐक्टिनाइड आयनों की उच्चतम समन्वय संख्या (7, 8, 9, 10, 11, 12) प्राप्त करने की प्रवृति पायी जाती है। छः अथवा इससे कम समन्वय संख्याएँ असामान्य होती हैं।

(7) समान अयुग्मित इलेक्ट्रॉन संख्या वाले लैन्थेनाइड एवं ऐक्टिनाइड आयनों की चुम्बकीय प्रवृत्तियाँ समानान्तर होती हैं ।

(8) लैन्थेनाइडों एवं ऐक्टिनाइडों के उन आयनों के विलयन जिनमें f कक्षकों में अयुग्मित इलेक्ट्रॉन पाये जाते हैं, रंगीन होते हैं तथा दोनों के अवशोषण स्पेक्ट्रा एक जैसे रेखीय स्पेक्ट्रम होते हैं।

भिन्नताएँ –

(1) प्रोमिथियम को छोडकर अन्य कोई भी लैन्थेनाइड तत्व रेडियोधर्मी नही होता जबकि सभी ऐक्टिनाइड तत्व रेडियोधर्मी होते हैं।

(2) प्रोमिथियम के अतिरिक्त सभी लैन्थेनाइड तत्व भूपर्पटी से प्राप्त किये जाते हैं। परन्तु थोरियम तथा यूरेनियम के अतिरिक्त शेष सभी ऐक्टिनाइड संश्लेषित होते हैं।

(3) लैन्थेनाइड तत्वों में कक्षक में पहला इलेक्ट्रॉन श्रृंखला के पहले सदस्य सीरियम में प्रवेश करता है जबकि ऐक्टिनाइडों में पहला इलेक्ट्रॉन श्रृंखला के दूसरे सदस्य प्रोटेक्टेनियम (Pa) में प्रवेश करता है।

(4) लैन्थेनाइड तत्वों की सबसे अधिक स्थायी ऑक्सीकरण अवस्था +3 होती है जबकि ऐक्टिनाइड श्रृंखला के अधिकांश स्थायी तत्वों की यह सर्वाधिक स्थायी ऑक्सीकरण अवस्था नहीं होती है।

(5) ‘लैन्थेनाइड तत्वों की परिवर्ती (variable) ऑक्सीकरण अवस्थाएँ प्रदर्शित करने की प्रवृति नहीं पायी जाती है। परन्तु हलके ऐक्टिनाइड तत्व संक्रमण धतुओं की तरह परिवर्ती ऑक्सीकरण अवस्थाएँ प्रदर्शित करते हैं ।

(6) लैन्थेनाइड तत्वों में अधिकतम ऑक्सीकरण अवस्था +4 होती है जबकि ऐक्टिनाइड तत्वों में Np तथा Pu की अधिकतम ऑक्सीकरण संख्या +7 होती है।

(7) लैन्थेनाइड यौगिकों की प्रकृति मुख्यतः आयनिक होती है जबकि ऐक्टिनाइड तत्वों के यौगिकों कुछ सहसंयोजी लक्षण पाये जाते हैं

(8) ऐक्टिनाइड तत्वों में संकुल बनाने की प्रवृति लैन्थेनाइड तत्वों की तुलना में अधिक होती है।

(9) ऐक्टिनाइड आयनों की चुम्बकीय प्रवृति समान अयुग्मित इलेक्ट्रॉन संख्या वाले लैन्थेनाइड आयनों की तुलना में कम होती है।

 यूरेनियम से Np, Pu तथा Am के पृथक्करण की रसायन

सभी ऐक्टिनाइड तत्वों के समस्थानिक रेडियोधर्मी (radioactive) होते हैं। केवल ऐक्टिनियम, थोरियम, प्रोटैक्टिनियम तथा यूरेनियम ही पृथ्वी पर अयस्कों के रूप में पाए जाते हैं। कुछ लैन्थेनाइड तत्वों की भाँति थोरियम (8ppm*) तथा यूरेनियम (2-3ppm) प्रकृति में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं । थोरियम का मुख्य अयस्क मोनाजाइट है जिसमें लगभग 1-10% तक थोरियम ऑक्साइड पाया जाता है। थोराइट (thorite) तथा थोरियानाइट (thorianite ) इसके अन्य अयस्क हैं। यूरेनियम के अयस्कों में यूरेनियम के साथ-साथ ऐक्टिनियम तथा प्रोटैक्टिनियम भी अल्प मात्रा में पाए जाते हैं। ये तत्व (Ac एवं Pa) यूरेनियम की क्षय श्रृंखला (U-decay series) के सदस्य होते हैं। अतः अयस्कों में उपस्थित यूरेनियम यौगिकों में प्राकृतिक नाभिकीय परिवर्तनों के फलस्वरूप Ac एवं Pa बने रहते हैं। इसी प्रकार Np तथा Pu भी अत्यधिक अल्प मात्रा (traces) में यूरेनियम अयस्कों में पाए जाते हैं।

यद्यपि, ऐक्टिनियम, प्रोटैक्टिनियम, नेप्टूनियम तथा फ्लूटोनियम उपर्युक्त अयस्कों में कम मात्रा में पाये जाते हैं, इनका निष्कर्षण बहुत कठिन तथा महंगा होता है। इन्हें नाभिकीय रिएक्टर के ईंधन पदार्थ से अधिक आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। नाभिकीय रिएक्टरों में यूरेनियम के एकदम बाद आने वाले तत्वों का निर्माण न्यूट्रॉन ग्रहण करने के पश्चात् B-कण के उत्सर्जन से होता है। हम जानते हैं कि किसी नाभिक द्वारा न्यूट्रॉन ग्रहण करने से न्यूट्रॉन : प्रोटॉन अनुपात इतना अधिक हो जाता है कि नाभिक स्थाई नहीं रह पाता है। ऐसी स्थिति में एक न्यूट्रॉन एक B-कण का उत्सर्जन करते हुए एक प्रोटॉन में परिवर्तित हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप नाभिक की परमाणु संख्या में एक की वृद्धि हो जाती है, तथा न्यूट्रॉन अनुपात संयत हो जाता है। उदाहरणार्थ,

इस प्रकार, यूरेनियम का नेप्टूनियम में, नेप्टूनियम का फ्लूटोनियम में तथा प्लूटोनियम का ऐमेरेसियम में परिवर्तन हो जाता है। अतः यूरेनियम ईंधन इन सब तत्वों के समस्थानिकों (isotopes) तथा विखण्डन उत्पादों का एक मिश्रण है। यूरेनियम से Np, Pu तथा Am को पृथक करने के लिए बहुत सी विधियाँ काम में ली जाती हैं जिनमें से अधिकांश रसायनों पर आधारित हैं जिनका वर्णन नीचे किया गया है :

  1. ऑक्सीकरण अवस्थाओं का स्थायित्व – ऐक्टिनाइडों की सर्वोच्च स्थायी अवस्था + 6 है। इस अवस्था में ये तत्व एक–परमाण्वीय आयन की अपेक्षा ऑक्सीआयन MO2+2 के रूप में पाये जाते हैं जिनका स्थायित्व निम्न क्रम में घटता है :

UO2+2, NpO2+2 > PuO2+2 > AmO2+2

त्रिसंयोजकीय आयनों के लिए स्थायित्व विपरीत क्रम में घटता है

Np3+ << Pu3+ < Am3+

स्पष्ट है कि यूरेनियम के लिए +6 तथा ऐमेरेसियम के लिए + 3 ऑक्सीकरण अवस्थाएं सर्वाधिक स्थाई अवस्थाएँ हैं। अतः इन तत्वों के मिश्रण को ऑक्सीकृत करने के पश्चात् Am को U, Np तथा Pu से आसानी से पृथक किया जा सकता है।

  1. कार्बनिक विलायकों से निष्कर्षण-किसी धातु आयन की कार्बनिक या जलीय प्रावस्था (phase) में विलेयता उसकी ऑक्सीकरण अवस्था में परिवर्तन से काफी प्रभावित होती है। उदाहरण के लिए, +6 अवस्था से निर्मित MO2+2 आयनों का जलीय नाइट्रेट विलयन से कार्बनिक विलायकों द्वारा निष्कर्षण किया जा सकता है। M4+ आयनों का 6M नाइट्रिक अम्ल विलयन से निष्कर्षण किरासन (kerosene) में ट्राइब्यूटाइल फास्फेट (TBP) द्वारा आसानी से किया जा सकता है। इसी प्रकार 10 – 16M नाइट्रिक अम्ल विलयन से M 3 + आयन भी निष्कर्षित किये जा सकते हैं ।
  2. अवक्षेपण अभिक्रियाएँ – अम्लीय विलयनों से केवल M 3 + तथा M4+ आयन अविलेय फ्लुओराइड या फॉस्फेट देते हैं, उच्चतर ऑक्सीकरण अवस्था में धातुएँ या तो कोई अवक्षेप नहीं देती हैं या अवक्षेपण को संकुल निर्माण द्वारा रोका जा सकता है।
  3. आयन विनिमय विधियाँ- यद्यपि, आयन विनिमय विधियाँ ऐक्टिनाइड आयनों के पृथक्करण हेतु उपयोग में ली जा सकती हैं, ये अति न्यून मात्रा में उपलब्ध पदार्थो के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होती हैं ।