वैज्ञानिक विधि किसे कहते हैं ? वैज्ञानिक विधि के चरण बताइए क्या है ? scientific method in hindi
scientific method in hindi meaning steps definition वैज्ञानिक विधि किसे कहते हैं ? वैज्ञानिक विधि के चरण बताइए क्या है ?
वैज्ञानिक विधि को परिभाषित कीजिये व समझाइये। इसमें कौन से पद होते हैं ? उपयुक्त उदाहरण देकर समझाइये।
Define and explain scientific method.k~ What are the steps involved in it ?k~ Explain it by taking suitable examples.
उत्तर- वैज्ञानिक विधि क्या है ? प्रकृति की कार्यशैली को समझना ही विज्ञान का उद्देश्य है। विज्ञान कोई अनेकों वैज्ञानिकों द्वारा खोजे गए कारणों का संग्रह मात्र नहीं है। वैज्ञानिक खोज की नई प्रणाली केवल प्रेक्षित बातों पर निर्भर है जिसमें धारणाओं की पुष्टि प्रेषित तथ्यों से होती है और उनकी मान्यता इस पुष्टि पर ही निर्भर है। खोज की इस विधि को वैज्ञानिक विधि या वैज्ञानिक अनुसंधान विधि कहते हैं ।
वैज्ञानिक विधि की परिभाषा निम्न प्रकार से दी जा सकती है-
विज्ञान का अध्ययन करने में जिस विधि को वैज्ञानिक अपनाता है, उसे वैज्ञानिक विधि कहते हैं।
The method or the procedure which the student use in the pursuit of science may be termed as scientific method.
वैज्ञानिक विज्ञान का अध्ययन करने के लिए जिस क्रियाविधि को अपनाते हैं उसे वैज्ञानिक विधि कहते हैं।
Any method of solving a problem scientifically following some logical steps may be called as scientific method-
वैज्ञानिक विधि के पद (Steps In Scientific Method) – गुडवार और स्केट्स ने अपनी पुस्तक मैथॉडालॉजी ऑफ एजुकेशनल रिसर्च में वैज्ञानिक विधि के तीन प्रमुख चरण बताए गये हैं 7
1. निरीक्षण करना
2. लक्षित बातों में निहित सामान्यताओं को अर्थात् एक जैसी बातों को पहचानना तथा उनके सैद्धान्तिक तत्व समझना
3. अनुमान एवं प्रेक्षण के द्वारा इन सिद्धान्तों की पुष्टि करना अनुसंधानकर्ता के मार्गदर्शन हेतु इन्हीं तीन चरणों को विस्तृत करके सात चरणों में बांटा गया है-
1. समस्या का अनुभव करना तथा अनुसंधान के लिए समस्या की बारीकी से व्याख्या करना। सारण-चम्बक की आकर्षक शक्ति हर एक स्थान पर एक-सी नहीं होती (समस्या) (समस्या की व्याख्या) क्या दूरी बढ़ने पर वह घट जाती है ? कितनी दरी पर कितनी कम होती है ?
-क्या आकर्षक शक्ति एवं दूरी में किसी प्रकार का आनुपातिक सम्बन्ध है ?
2. अनुसंधान के लिए ली गई समस्याओं के क्षेत्र से मिलते जुलते अन्य अनुसंधानों का अध्ययन करना-इस अध्ययन से सम्बन्धित हल के अनुमान में सहायता मिल सकती है तथा पुष्टि के लिए किस प्रकार के प्रयोग की सृष्टि करनी चाहिए, किन खतरों से बचना चाहिए आदि जैसे सुझाव मिल सकते हैं।
3. अधिकतम सम्भावना वाले हल को जाँच के लिए चुनना। इस सम्भव हल की परिकल्पना से उससे सम्बन्धित आंकड़ों को चुनने में सहायता मिलती है।
4. परिकल्पना के सूझने पर उसकी विस्तृत व्याख्या करना उपलब्ध आंकड़ों द्वारा उस परिकल्पना की पुष्टि होती है या नहीं और क्या वह तर्कसंगत है, क्या वह प्रेक्षित प्रमाणों द्वारा जांची जा सकती है ? आदि प्रश्नों के आधार पर उनका विस्तृत अध्ययन किया जा सकता है।
5. आंकड़े एकत्रित करना-आंकड़े विस्तृत अनुभव क्षेत्र से लिए जा सकते हैं।
इसके लिए निम्न विधियों का उपयोग किया जा सकता है-
1. अन्य स्थानों पर उपलब्ध दत्त सामग्री की जांच
2. नए प्रयोगों की रचना
3. अधिक सूक्ष्म एवं परिशुद्ध उपकरणों द्वारा पुरानी माप की पुनः परीक्षा
6. उपयुक्त सांख्यिकी सूत्रों द्वारा विश्लेषक के लिए नए आंकड़ों को वर्गीकृत एवं सारणीबद्ध करना।
7. सोपानों से प्राप्त सारांश की, परिकल्पना के सन्दर्भ में व्याख्या करना और देखना कि परिकल्पित हल जांच में ठीक उतरा या नहीं। यदि हल ठीक रहा तो उसे नियम के रूप में मान्यता देना।
जॉन डीवी के अनुसार वैज्ञानिक विधि के मुख्य चरण निम्न हैं-
1. समस्या का चुनाव करना (Selection of problem)
2. तथ्यों का संग्रह व वर्गीकरण (Collecting datas and analysis)
3. परिकल्पना का निर्माण (Formulation of hypothesis)
4. प्रयोगों द्वारा परिकल्पना की जांच करना (Testing the hypothes, experiments)
5. निष्कर्ष निकालना या सिद्धान्त का प्रतिपादन करना (äawing conclusion or making principles)
सुविधा की दृष्टि से वैज्ञानिक विधि को निम्न सात भागों में बाँट सकते हैं-
1. समस्याओं का अनभव (Awareness of the Problem) – समस्या अभाव की वह स्थिति होती है जो अपना हल मांगती है। यह स्थिति व्यक्ति-व्यक्ति में भिन्न होती है क्योंकि इसका हल प्रत्येक व्यक्ति की अपनी क्षमताओं पर निर्भर करता है । सामान्यतः समस्या का अनुभव या तो व्यक्ति को आत्म अनुभव (Self Experience) या दूसरों के अनुभव (Experience of others) अथवा पूर्व अध्ययनों (Past Studies) के फलस्वरूप होता है। इस प्रकार समस्या अनुभव ऐसी स्थिति होती है जिसमें मस्तिष्क एक तनाव की स्थिति में आ जाता है। यह तनाव किसी आयाम के फलस्वरूप होता है। सुखवाद (Hedonism) के सिद्धान्त के अनुसार क्योंकि यह स्थिति दुःखपूर्ण स्थिति होती है इस कारण व्यक्ति इस स्थिति से निकलने के लिए क्रियाशील होता है।
समस्या की स्थिति उत्पन्न होने का दूसरा महत्वपूर्ण कारण किसी अपूर्ण इच्छा का होना भी है। प्रत्येक इच्छा के अन्दर शक्ति निहित होती है जिसके फलस्वरूप व्यक्ति उस क्रिया को करने को बाधित होता है जिस से कार्य-कारण सम्बन्धों के आधार पर इच्छापूर्ति हो सके।
2. समस्या का परिभाषीकरण (Defining the Problem) – समस्या की प्रकृति कैसी है ? उसका स्वरूप कैसा है ? यदि यह स्पष्ट नहीं है तो उसके हल खोजने का प्रयास एक अन्धी खोज के समान ही होगा। इसमें समय व शक्ति दोनों के दुरुपयोग की सम्भावना है एवं अपेक्षित परिणाम प्राप्त हो ही जायेगा, यह भी निश्चित नहीं है। ऐसी स्थिति से बचने. के लिये यह आवश्यक है कि समस्या को स्पष्ट रूप से परिभाषित कर लिया जाये। अस्पष्ट समस्या का निश्चित हल स्पष्ट रूप से खोजना सम्भव नहीं है।
विज्ञान से सम्बन्धित किसी भी समस्या को तीन रूपों में परिभाषित किया जा सकता है, “समस्या क्या है ?, “समस्या क्यों है ?”, “समस्या कैसे है ?” क्या प्रकार के प्रश्न विज्ञान के भविष्यदर्शी (Predictive) पक्ष से सम्बन्धित हैं ? क्यों प्रकार के प्रश्न विज्ञान के व्याख्यात्मक (म्गचसंपदंजवतल) पक्ष से सम्बन्धित हैं तथा कैसे प्रकार के प्रश्न विज्ञान के आविष्कारक (Inventive) पक्ष से सम्बन्धित होते हैं। समस्या के प्रारूप को स्पष्ट करने के पश्चात उसके क्षेत्र के छात्रों की योग्यता एवं उस समस्या के हल हेतु प्रस्तावित समय के अनुसार उसे सीमित (Delimit) कर लेना चाहिये । इससे कार्य के अध्ययन की गहनता में वृद्धि हो सकती है और असफलता से उत्पन्न भग्नाशा (Frustration) से बचा जा सकता है।
3. उपकल्पनाओं का निर्माण (Formulation of Hypothesis) – उपकल्पना कर भी समस्या का सम्भावित हल होती है। यह समस्या समाधान हेतु दिशा प्रदान करता है इसके निर्माण के फलस्वरूप छात्रों को कार्य करने में इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता है। वैज्ञानिक विधि की सफलता उप कल्पना के सही या गलत होने पर निर्भर नहीं करती है। किसी भी समस्या की अनेक उपकल्पनायें हो सकती हैं। वास्तव में उपकल्पनाओं का निर्माण त की कार्य-कारण सम्बन्ध स्थापित कर सकने की क्षमता पर निर्भर करता है।
4. सचनाओं का एकत्रीकरण (Collection of Data) – सम्बन्धित समस्या से सन्धित सचनाओं का एकत्रीकरण इस पद के अन्तर्गत आता है। एक अनभिज्ञ व्यक्ति तो बिना किसी पूर्व सूचना के कार्य आरम्भ कर देता है किन्तु वैज्ञानिक प्रकृति का व्यक्ति पहले यह जानने का प्रयत्न करता है कि सम्बन्धित समस्या का हल कहीं पहले तो नहीं खोज लिया गया है। वस्तुतः यह पद मानव की सांस्कृतिक विरासत (Cultural Heritage) से सम्बन्धित होता है। समस्या के विभिन्न पहलुओं एवं उपलब्ध सामग्री की उपादेयता का विश्लेषण इस स्तर पर किया जाता है।
विज्ञान के छात्र इन सूचनाओं का संकलन सभी साधनों से कर सकते हैं, जैसे पुस्तकालय, निरीक्षण एवं यंत्रों के प्रयोग के द्वारा । सूचनाओं के संकलन के समय छात्र को पूर्णतरू पक्षपात रहित रहना चाहिए।
5. सबसे अधिक सम्भावित उपकल्पना का चयन एवं मूल्यांकन (Selecting and testing of most likely Hypothesis) – उपकल्पनायें अनेक हो सकती हैं एवं सब पर एक साथ कार्य करना भी सम्भव नहीं हो सकता है। इस कारण उनमें से सबसे सम्भावित उपकल्पना का चयन करना आवश्यक हो जाता है। यदि उस पर कार्य करके समस्या समाधान हो जाता है तो ठीक है अन्यथा सम्भावना की दृष्टि से ही अगली उप कल्पना का चयन किया जाता है । यह प्रक्रिया तब तक दोहराते रहते हैं जब तक वांछित परिणाम न निकल आये।
6. उपकल्पनाओं का मूल्यांकन एवं निष्कर्षों का निर्माण (Evaluating Hypothesis and drawing conclusions) – उपकल्पनाओं का मूल्यांकन करने के लिये तीन कसौटियों का प्रयोग किया जा सकता है। प्रथम के अनुसार यह देखा जाना चाहिये कि इस उप कल्पना पर आधारित हल से समस्या का पूर्ण समाधान हो जाता है अथवा नहीं, दूसरी कसौटी के अनुसार यह देखना चाहिये कि हल अन्य तथ्यों एवं सिद्धान्तों के अनुरूप है अथवा नहीं एवं तीसरे के अनुसार किसी भी अन्य ऐसी स्थिति की खोज जानबूझकर करना है जो कि निष्कर्षों के विरोध में हो। इस प्रकार के प्रयास से छात्रों में तार्किक चिन्तन का विकास होता है।
निष्कर्ष निकालने का अन्तिम पद है, प्रस्तुत उपकल्पना को अस्वीकार करना, स्वीकार करना अथवा संशोधन करना तथा उससे निष्कर्ष निकालना। पूर्व अनुभवों के अनुसार किये गये निरीक्षण तथा प्रयोग यदि उपकल्पना को प्रमाणित कर दें तो उसे स्वीकार कर लेना चाहिये, नहीं तो अस्वीकार कर देना चाहिये। यदि वह उपकल्पना न तो पूर्ण रूप से प्रमाणित हो और न ही अप्रमाणित. वरन प्रयोगों से कुछ विशेष परिणाम देखने को मिलें तो उनके आधार पर उसमें संशोधन करना चाहिये।
7. प्रयोग (Application) – निष्कर्षों के आधार पर सामान्यीकरण (Generalisations) विकसित किया जाता हैं। यह सामान्यीकरण ही भविष्य में समान मारास्थात में उन निष्कर्षों द्वारा अर्जित ज्ञान के प्रयोग का आधार बनते हैं।
इन सामान्यीकरणों का प्रयोग दैनिक जीवन की समस्याओं के हल हेतु किया जाना चाहिए। इसके लिए आगमन एवं निगमन (Inductive and deductive) दोनों विधियों का प्रयोग किया जा सकता है। इस प्रकार वैज्ञानिक विधि में प्रशिक्षण अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह वास्तविक रूप में “करके सीखना” है।
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