रदरफोर्ड प्रकीर्णन सिद्धांत क्या है , अभिगृहीत , rutherford experiment postulates in hindi
rutherford experiment postulates in hindi रदरफोर्ड प्रकीर्णन सिद्धांत क्या है , अभिगृहीत ?
रदरफोर्ड प्रकीर्णन (Rutherford Scattering)
उपरोक्त अनुच्छेदों के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि केन्द्रीय बलों के आधीन गति करने वाले पिण्ड के मार्ग के अध्ययन द्वारा पिण्ड की स्थितिज ऊर्जा की दूरी पर निर्भरता या बलों का नियम ज्ञात किया जा सकता है। अनुच्छेद (1) के समी. (13) से ऊर्जा के संरक्षरण के नियम से
1/2 m (dr/dt)2 + J2/2mr2 +U = E ……………………..(1)
जिससे U = E – J2 /2mr2 – 1/2 m (dr/dt)2
यहां J = mr2 (dθ/dt) = कण का कोणीय संवेग
U = 1/r रखने पर du/dθ = – 1/r2 dr/dθ = – m/mr2 dr/dt dt/dθ = – m/J (dr/dt)
जिससे dr/dt = – J/m du/dθ
U = E – J2 u2/2m – J2/2m (du/dθ)2
समी. (2) में कक्षीय गति के समीकरण u = u(θ) के ज्ञान से कण की स्थितिज ऊर्जा U की दूरी r पर निर्भरता ज्ञात की जा सकती है परन्तु परमाणविक कणों के लिए, जिनके गति का मार्ग व्यावहारिक रूप से देखा नहीं जा सकता है उनमें उपरोक्त समीकरण द्वारा कण की स्थितिज ऊर्जा या कणों के मध्य अन्योन्य क्रिया का अध्ययन नहीं किया जा सकता है। इस स्थिति में एक अन्य विधि जिसे प्रकीर्णन विधि (scattering method) कहते हैं, का उपयोग किया जाता है। इसमें एक हल्के परमाण्विक कण का किसी स्थिर कण (भारी) से संघात कराया जाता है। जब तक कण स्थिर कण के प्रभाव में नहीं होता है कण एक सरल रेखा के रूप में गति करता है परन्तु जैसे-जैसे कण स्थिर कण के प्रभाव या अन्योन्य क्रिया क्षेत्र में आता है कण विक्षेपित (deflection) होना प्रारम्भ हो जाता है। गतिमान कण स्थिर कण के निकट निकटतम दूरी तक पहुँच कर प्रतिकर्षी केन्द्रीय बल (repulsive central force) लगने के कारण स्थिर कण के प्रभाव क्षेत्र से दूर चाला जाता है। साधारणतः कण के संघात के पश्चात गति की दिशा प्रारम्भिक दिशा से भिन्न होती है। इस स्थिति को कण का प्रकीर्णन (scattering) कहते हैं। इन दोनों दिशाओं का कोणीय अन्तर प्रकीर्णन कोण (angle of scattering) कहलाता है। प्रकीर्णन कोण गतिशील कण की गतिज ऊर्जा तथा स्थिर कण की अन्योन्य क्रिया की प्रकृति पर निर्भर करता है।
सर्वप्रथम इस विधि का उपयोग रदरफोर्ड ने परमाण्विक नाभिक की खोज के लिए किया था। रदरफोर्ड ने यह सिद्ध किया कि a कणों (धनात्मक 2e आवेश वाला कण) का वृहदकोणी पकीन angle scattering) परमाणुओं में स्थित धन आवेशों के कूलामी प्रतिकषी अन्योन्य क्रिया द्वारा धन आवेश लगभग 10-14 मीटर व्यास के नाभिक (nucleus) के रूप में परमाण के होता है और इसके चारों तरफ गतिशील इलेक्ट्रॉन समान रूप से वितरित होते हैं। इनके द्वारा a कणों का प्रकीर्णन नगण्य होता है।
रदरफोर्ड प्रकीर्णन सिद्धान्त निम्नलिखित अभिगृहीतों (postulates) पर आधारित है
(1) परमाणुओं का धन आवेश उनके केन्द्र पर अत्यल्प आयतन में केन्द्रित होता है।जिसे नाभिक कहते है
(2) a कणों के द्रव्यमान की तुलना में प्रकीर्णक नाभिक इतने भारी होते हैं कि a कणों के संघात से नाभिक की स्थिति में काई परिवर्तन नहीं होता है।
(3) प्रकीर्णन केवल a कण तथा निकर्षी कुलॉमी अन्योन्य क्रिया के कारण होता है। परमाणु में उपस्थित इलेक्टॉनों का प्रभाव नगण्य होता है।
(4) नाभिक तथा a कण बिन्दु मात्र होते हैं।
यदि प्रकीर्णक (नाभिक) (scatterer) की परमाणु संख्या Z है तो नाभिक में आवेश (+Ze) होगा तथा कण पर आवेश (+2e) होता है। नाभिक तथा a कण के मध्य कार्यरत कूलॉमी प्रतिकर्षी बल होगा
F = K(Ze)(2e)/r2 i = K/r2 r ……………………….(3)
यहाँ k = 2KZe2 K = 1 (से. ग्रा. से. पद्धति में)
तथा K = (1/4πε) = 9 x 109 (मी. कि. से. पद्धति में), तथा r किसी क्षण दोनों कणों के मध्य दूरी
स्थितिज ऊर्जा U =- ∫ F.dr = k/r
U = ku ………………………..(4)
U = 1/r
जहाँ
माना a कण अनन्त दूरी से नाभिक की ओर PO दिशा में v0 वेग से गति कर रहा है [चित्र (8)] तो कण की प्रारम्भिक कुल ऊर्जा (जब वह नाभिक के प्रभाव में नहीं है अर्थात् स्थितिज ऊर्जा का मान शून्य है) उसकी गतिज ऊर्जा के तुल्य होगी।
E = 1/2 mvo2 …………………. …(5)
यहाँ m = a कण का द्रव्यमान समीकरण (4) से U का मान समीकरण (2) में रखने पर
Ku = E – J2 U2/2m – J2/2m (du/dθ)2
या (du/dθ)2 + u2 = 2m/J2 (E – ku) ……………………….(6)
कण की प्रारम्भिक दिशा PO पर नाभिक N की स्थिति से एक लम्ब NM डाया जाये तो यह लम्ब दूरी b संघात प्राचल (impact parameter) कहलाती है।
N के सापेक्ष a कण का कोणीय संवेग
J = mvob ……………………………(7)
समी. (5) से J = b √2mE
समी (6) में यह मान रखने पर
(du/dθ)2 + u2 = (1/b2 – 2u/p) ……………………….(8)
P = 2Eb2/k
(du/dθ)2 = 1/b2 – 2u/p – u2 = (1/b2 + 1/p2) – (1/p + u)
Du/[1/b2 + 1/p2) – (1/p + u)2]1/2
समाकलन करने पर,
-cos-1 u+1/p (1/b2 + 1/p2)1/2 = θ
U + 1/p = (1/b2 + 1/p2)1/2 cos θ [cos (-θ) = cos θ]
Up + 1 = (p2/b2 + 1)1/2 cos θ …………………………..(9)
ε = (p2/b2 + 1)1/2 p = b √ε2 – 1 ……………………….(10)
up + 1 = ε cos θ
1/u = r = p/(ε cos θ – 1) ……………………………..(11)
उपरोक्त समीकरण अतिपरवलय (hyperbola) को होने के कारण प्रतिकर्षी केन्द्रीय बल के आधीन गतिमान कण का पथ अतिपरवलयिक होता है।
(i) संघात पैरामीटर तथा प्रकीर्णन कोण में सम्बन्ध- यदि समी. (11) में ε cos θ = 1 रख दें तो r हो जाता है। इस त्रिज्य सदिश (radial vector) को अनन्तस्पर्शी (asymptote) कहते हैं। ये त्रिज्य । सदिश a कण की प्रारम्भिक एवं अन्तिम त्रिज्य दिशायें होती हैं।
अतः समी. (11) से प्रदर्शित वक्र से सममित अक्ष NOX के सापेक्ष इन अनन्तस्पर्शियों के कोण होगें:
θ = θ0 = cos-1 (1/ ε )
चूँकि व कण का प्रारम्भिक एव अन्तिम त्रिज्य दिशाओं के मध्य बना कोण प्रकीर्णन कोण कहलाता है इसलिए चित्र (8) से
φ = π – 2θ0
tan φ/2 = tan (π/2 – θ0) = cot θ0
= cos θ0 / √1- cos2 θ0 = 1/ε /√1-1/ ε2
= 1/√ε2 – 1
समी. (10) से ε का मान रखने पर
Tan φ/2 = b/p
और p का मान रखने पर
B = k/2E cot φ/2 = 2Ze2/2E(4 π ε0) cot φ/2
= 2Ze2/4 π ε0 mv02 cot φ/2 ……………………………..(12)
चित्र:- (9) यह समीकरण संघात पैरामीटर तथा प्रकीर्णन कोण के सम्बन्ध को व्यक्त करता है। यदि m, Vo तथा Z नियत हैं तो जैसे-जैसे संघात पैरामीटर b का मान बहुत अधिक मान से शून्य तक कम होता है, प्रकीर्णन कोण φ का मान शून्य से 180° तक परिवर्तित होता है जैसा कि चित्र (9) में दी है। यदि a कण नाभिक से सीधे संघात करता है अर्थात् b= 0 है तो प्रकीर्णन कोण का मान 1800 अर्थात a कण उसी दिशा में लौटेगा जिस दिशा से आकर नाभिक से संघात करता है।
समी. (12) को परोक्ष प्रयोगों द्वारा सत्यापित नहीं किया जा सकता है क्योंकि किसी वंछित प्रकी कोण φ के लिए संघात पैरामीटर b के मापन की कोई प्रायोगिक विधि नहीं है। अतः समी. (12) अपरोक्ष रूप से सत्यापित किया जाता है।
(ii) प्रकीर्णन- माना किसी t मोटाई की धातु की पतली पन्नी (foil) पर a कणों का लम्बवत् संघात करते हैं। पन्नी में प्रति एकांक आयतन में परमाणुओं की संख्या n है। समी. (12) से स्पष्ट है कि संघट्ट की प्रारम्भिक दिशा से φ या φ से अधिक कोण पर प्रकीर्णन धातु की पतली पन्नी द्वारा तभी होता है जब a कण का संघात पैरामीटर 0 तथा b के मध्य हो। किसी विशिष्ट दिशा में प्रकीर्णन के लिए, त्रिज्या b तथा मोटाई t के संघट्ट दिशा को अक्ष मानते हुए खींचे गये बेलन में निहित सभी कणों का संघात पैरामीटर b या b से कम होता है, चित्र (10) अतः a कण की प्रारम्भिक दिशा से नाभिक की लम्बवत् दूरी अर्थात् संघात प्राचल b या b से कम होने के लिए a कण से संघट्ट करने वाले परमाणुओं की संख्या = nπb2t के φ या φ से अधिक कोण से प्रकीर्णित होने वाले a कणों की प्रायिकता (probability) भी यही होती है।
प्रायिकता f = nπb2t
समीकरण (12) से b का मान रखने पर
F = πntk2/4E2 cot2 φ/2
φ तथा (φ + dφ) कोण के मध्य प्रकीर्णित होने वाले व कणों की प्रायिकता
df = πntk2 /4E2 cot φ/2 cosec2 φ/2 d φ
यदि एकांक समय में एकांक क्षेत्रफल पर संघट्ट करने वाले a कणों की संख्या N है तो φ तथा φ + dφ कोण के मध्य प्रकीर्णित होने वाले a कणों की संख्या
dN = Ndf
Dn = πNntk2/4E2 cot φ/2 cosec2 φ/2 dφ
यदि धात की पन्नी के समान्तर एक पदा इस प्रकार रखें कि प्रकीर्णन कोण φ दिशा में पन्नी से पर्दे की दुरी R हो, चित्र (11), तो यह कण पर्दे (2πRsin φ)(Rd φ)क्षेत्रफल पर आपतित होंगे।
अतः पर्दे के एकांक क्षेत्रफल पर आपतित होने वाले a कणों की संख्या
dN = Dn/(2πRsin φ)(Rd φ)
= πNntk2 cot(φ/2) cosec2 (φ/2)d φ/(4E)2 (2Πr2 sin φdφ)
Sin φ = 2 sin (φ2) cos (φ/2)
Dn = Nntk2/16R2E2 cosec4 φ/2 ………………………….(15)
समीकरण (15) रदरफोर्ड का प्रकीर्णन सूत्र कहलाता है। इससे स्पष्ट है कि , φ दिशा में प्रकीर्णित होकर पर्दे के एकांक क्षेत्रफल पर आपतित होने वाले a कणों की संख्या अर्ध-प्रकीर्णन कोण के कोसीकेन्ट के चतुर्थ घात, धातु की पन्नी की मोटाई t, प्रति एकांक आयतन प्रकीर्णक परमाणुओं की संख्या n तथा प्रकीर्णक परमाणुओं के नाभिक के आवेश के वर्ग के अनुक्रमानुपाती (क्योंकि k2 = 4Z2e4/16π2 = ε02)और a कणों की गतिज ऊर्जा के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होती है। गाइगर तथा मार्शडेन ने प्रोयोगिक प्रेक्षणों द्वारा उपरोक्त प्रागुक्तियों की सत्यता को सिद्ध किया।
(iii) प्रकीर्णन-परिक्षेत्र (Scattering cross-section)-किसी निश्चित दिशा में प्रति एकांक घन कोण (solid angle) व एकांक समय में प्रकीर्णित कणों की संख्या तथा आपतित कणों की तीव्रता का अनुपात प्रकीर्णन-परिक्षेत्र कहलाता है। आपतन की दिशा के लम्बवत् एकांक काट-क्षेत्र से एकांक समय में गुजरने वाले कणों की संख्या आपतित कणों की तीव्रता कहलाती है।
प्रकीर्णन-परिक्षेत्र σ (φ,ψ)
प्रति एकांक घन कोण प्रति एकांक समय में प्रकीर्णित कणों की संख्या/ आपतित कणों की तीव्रता
केन्द्रीय बल क्षेत्र में आपतन दिशा के सापेक्ष सममिति होती है अतः φ व (φ + dφ) दिशाओं के मध्य घन कोण
dΩ = 2π sin φdφ
अतः
σdΩ = dΩ घन कोण में प्रति एकांक समय में प्रकीर्णित कणों की संख्या/ आपतित तीव्रता
φ व (φ + dφ) के मध्य प्रकीर्णन कोण के लिए संघट्ट प्राचल b व b – db के मध्य होगा। त्रिज्या b व मोटाई db की वलयिका (annulus) का क्षेत्र प्रकीर्णक नाभिक द्वाराφ व (φ+ dφ) को मध्य प्रकीर्णन के लिये प्रभावी लक्ष्य क्षेत्र (effective target area) के रूप में प्रस्तुत किया जाता है व b – db के मध्य संघट प्राचल वाले आपतित कणों की प्रति एकांक समय संख्या
dN = 2πNbdb
यही संख्या , φ व (φ + dφ) के मध्य dΩ घन कोण में प्रकीर्णित कणों की संख्या होगी। अतः प्रकीर्णन परिक्षेत्र की परिभाषा से
dN = σdΩ (आपतित तीव्रता) = NσdΩ
= 2πNσbdb sin = 2πNσ sin φdφ
σ = b/sin φ (db/dθ)
प्रकीर्णन कोण φ व संघट्ट प्राचल b में सम्बन्ध से
B = k/2E cot φ/2
|db/dφ| = k/2E 1/2 cosec2 φ/2
σ = 1/2 b/sin φ k/2E cosec2 φ/2
= 1/2 (k/2E)2 cot(φ /2)cosec2 (φ/2)/2sin(φ/2)cos(φ/2)
= 1/4 (k/2E)2 cosec4 φ/2
a- कणों के प्रकीर्णन के लिए
k = (2e)(Ze)/4πε0
σ = 1/4 [2Ze2/(4πε0 )2E]2 cosec4 φ/2
= k2Z2e4/(mv20) cosec4 φ/2
σ (φ,ψ) का φ = 0 से π तक व ψ का 0 से 2π तक समाकलन कुल प्रकीर्णन – परिक्षेत्र (total scattering cross – section) σ t कहलाता है
σ t = ∫ ∫ σ (φ,ψ) dΩ
= 2π ∫ σ sin φdφ
σ (φ,ψ) को अवकली प्रकीर्णन परिक्षेत्र (differential scattering cross – section ) भी कहते है |
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