रुम्मिनदेई अभिलेख कहा है , rummindei pillar inscription in hindi where is रुमिन्नदेई
पढ़िए रुम्मिनदेई अभिलेख कहा है , rummindei pillar inscription in hindi where is रुमिन्नदेई ?
लुम्बिनी ग्राम (27.48° उत्तर, 83.27° पूर्व)
लुम्बिनी ग्राम नेपाल की तराई में स्थित उपवन था। बौद्ध गाथाओं के अनुसार, यहीं महारानी महामाया ने गौतम बुद्ध को जन्म दिया था। यहां रुम्मिनदेई स्तंभ की स्थापना के उपरांत इस स्थान को अब ‘रुमिन्नदेई” के नाम से जाना जाता है। अशोक का एक अभिलेख भी यहां से पाया गया है, जिसे ‘रुमिन्नदेई अभिलेख‘ के नाम से जाना जाता है। इस अभिलेख में इस स्थान का नाम ‘लुम्बिनी‘ नाम से उल्लिखित है। अशोक ने अपने अभिषेक के बीसवें वर्ष लुम्बिनी की यात्रा की थी क्योंकि उस समय यह माना जाता था कि यही बुद्ध का जन्म स्थल है, तथा यहां के निवासियों का राजस्व घटाकर आठवां भाग कर दिया गया था। इससे यह साबित होता है कि यह दंतकथा तीसरी शताब्दी ई.पू. ही स्थापित हो चुकी थी। बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए चार तीर्थ यात्राओं में से एक तीर्थयात्रा लुम्बिनी की है।
अश्वघोष ने ‘बुद्धचरित‘ में लुम्बिनी का उल्लेख बुद्ध के जन्म स्थल के रूप में किया है। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी यहां की यात्रा की थी तथा यहां अशोक स्तंभ, साल वृक्ष एवं एक स्तूप के दर्शन किए थे।
लेपाक्षी (13.81° उत्तर, 77.60° पूर्व)
वर्तमान समय पेन्नेरू नदी के तट पर आंध्र प्रदेश में स्थित लेपाक्षी, 16वीं शताब्दी में निर्मित एक मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर में नंदी की एक विशाल मूर्ति है, जो 66 स्तंभों पर खड़ी है। यह मूर्ति भारत में नंदी की विशालतम मूर्ति है। चित्रकला एवं वास्तुकला दोनों ही दृष्टि से इसे आंध्रप्रदेश के बेहतरीन मंदिरों में से एक माना जाता है। यह अपनी प्रस्तर नक्काशी के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां की पहाड़ी में निर्मित छोटा वीरभद्र मंदिर भी वास्तुकला की दृष्टि से एक सुंदर मंदिर है। लेपाक्षी, एक ही पाषाण को तराशकर बनाए गए सप्त-फणी नाग मूर्ति एवं पंचलिंगों के लिए भी प्रसिद्ध है। लेपाक्षी मंदिर में स्थित ये पांच लिंग मंदिर परिसर के सबसे प्रमुख लिंग हैं। इनमें अगस्त्य मुनि का पापनेश्वर लिंग, रामलिंग, नागा लिंग, हनुमान द्वारा प्रस्थापित लिंग, एवं विरूपन्ना द्वारा प्रस्तावित तांडवेश्वर सम्मिलित हैं। यहां का एकाश्म नंदी (बसवन्ना) 4.6 मीटर ऊंचा एवं 8.23 मीटर लंबा है।
लोथल (22°31‘ उत्तर, 72°14‘ पूर्व)
पुरातात्विक महत्व की एक जबरदस्त खोज लोथल, गुजरात में अहमदाबाद से 80 कि.मी. दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। 1955 से 1962 में एस.आर. राव के निर्देशन में पुरातात्विक खोज से यह साबित हो चुका है कि यहां पर अवशेष, दूसरी शताब्दी ई.पू. हड़प्पा सभ्यता काल के संपूर्ण विकसित अधिवास के हैं।
प्रागैतिहासिक काल में, लोथल भारतीय उपमहाद्वीप का एक महत्वपूर्ण बंदरगाह रहा होगा, यह नगर के पूर्व में गोदीबाड़ा (माप 219 x 37 x 4.5 क्यूबिक मीटर) से स्पष्ट होता है, जोकि एक उत्खनन में प्राप्त हुआ था तथा एक भण्डारगृह की उपस्थिति भी इस तथ्य का साक्ष्य है। फारस की खाड़ी की एक सील तथा गुर्दे के आकार की जड़ी हुई हड्डियां भी यही प्रमाणित करते हैं कि लोथल का अन्य सभ्यताओं के साथ भी संबंध था। परंतु हड़प्पा तथा मोहनजो-दाड़ो से भिन्न दोनों ही गढ़ों तथा छोटे नगर का एक दीवार से दुर्गीकरण किया गया है। लोथल में धान की बाली का मिलना एक अन्य विशेष खोज है, जो दर्शाती है कि इस क्षेत्र के लोग चावल का प्रयोग करते थे।
एक ही कब्र में दो लोगों के शव के पाए जाने से यहां युगल शवाधान की रीति की पुष्टि होती है। अग्निवेदियों के मिलने से इतिहासकारों ने यह अनुमान लगाया है कि लोथल के निवासी अग्नि की पूजा करते थे तथा पशु बलि की प्रथा से परिचित थे।
लोथल हड़प्पा सभ्यता के पश्चात् भी विकसित हुआ जिसका साक्ष्य हैं-लाल चमकदार मृदभांड।
लखनऊ (26.8° उत्तर, 80.9° पूर्व)
वर्तमान उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ, गोमती नदी के तट पर स्थित है।
लखनऊ नवाबी सभ्यता एवं संस्कृति वाला शहर है। यहां की विभिन्न इमारतों एवं अन्य वस्तुओं में नवाबी संस्कृति की झलक दिखाई देती है। लखनऊ अपने आतिथ्य-सत्कार, जीवन के विविध रंगों एवं कलात्मक वस्तुओं के प्रमुख केंद्र के रूप में भी जाना जाता है।
‘लखनऊ‘ शब्द की उत्पत्ति को लेकर इतिहासकारों के मध्य मतैक्य का अभाव है। एक विचारधारा के अनुसार लखनऊ का यह नाम भगवान राम के भाई लक्ष्मण के नाम पर पड़ा, जबकि दूसरी विचारधारा के अनुसार इसका यह नाम यहां के प्रमुख सामंत लखूराय के नाम पर पड़ा। यद्यपि लखनऊ शब्द का संदर्भ हमें अकबर के शासनकाल से ही प्राप्त होने लगता है। अकबर ने अपने सम्पूर्ण साम्राज्य को 12 सूबों में विभक्त किया था तथा मुगलों के पतन के समय 1722 ई. में यहां के सूबेदार बुरहानुलमुल्क सआदल अली ने अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी तथा स्वतंत्र शासक की भांति व्यवहार करने लगा। नवाब आसफउद्दौला ने अपनी राजधानी फैजाबाद से लखनऊ स्थानांतरित कर दी। इसी के शासनकाल में लखनऊ कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में दिल्ली से प्रतिस्पर्धा करने लगा। नवाब के शासनकाल में शांति एवं समृद्धि से लखनऊ में सांस्कृतिक पुनर्जागरण हुआ। संगीतकारों एवं नर्तकों को यहां भरपूर प्रश्रय एवं प्रोत्साहन मिला तथा उन्होंने नवाबों के अधीन रहकर संगीत एवं नृत्य की विधाओं को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
इमामबाड़ा, कैसर बाग, बोस्तान-ए-दोस्तान, आधुनिक वानस्पतिक अनुसंधान केंद्र एवं भूल-भुलैया इत्यादि लखनऊ के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।
मदुरई (9.9° उत्तर, 78.1° पूर्व)
मदुरई वैगई नदी के तट पर तमिलनाडु में स्थित है। इस नगर के स्थान पर पहले कदंबों का एक वन था, जिसे ‘कदम्बवन‘ कहा जाता था। पांड्य शासक कुलशेखर ने यहां एक सुंदर मंदिर बनवाया था। ऐसी मान्यता है कि जिस दिन इस शहर का नामकरण किया गया था, उस दिन भगवान शिव यहां अवतरित हुए थे तथा उनके बालों से अमृत की एक बूंद यहां गिर गई थी। इसीलिए इस स्थान का ‘मदुरई‘ (मधुरम-जिसका तमिल में अर्थ है-मीठावन) नाम पड़ा। शीघ्र ही यह पांड्य शासकों की राजधानी बन गया तथा उनके संरक्षण में यहां दो संगम सभाओं (प्रथम एवं तृतीय) का आयोजन किया गया। एक प्रारंभिक तमिल साहित्यिक कृति ‘मदुराईक्कांजी‘ (मरुदन द्वारा लिखित) में मदुरई नगर एवं नेदुनजेलियन नामक शासक के नेतृत्व में यहां की शासन व्यवस्था एवं यहां के लोगों का विस्तृत विवरण प्राप्त होता है। ‘शिल्प्पादिकारम्‘ के अनुसार, एक बार मदुरई, कन्नगी के श्राप के कारण नष्ट-भ्रष्ट हो गया था। कौटिल्य ने मदुरई का उल्लेख सूती वस्त्र के एक प्रसिद्ध केंद्र के रूप में किया है।
मेगास्थनीज ने तृतीय शताब्दी ईसा पूर्व में मदुरई की यात्रा की टॉलेमी थी। इसके बाद यूनान एवं रोम के कई यात्रियों ने मदुरई की यात्रा की तथा पांड्य शासकों के साथ व्यापारिक संबंधों की स्थापना की। मदुरई 10वीं शताब्दी तक फलता-फूलता रहा। इसके उपरांत इस पर पांड्यों के प्रबल प्रतिद्वंद्वी चोलों ने अधिकार कर लिया। चोल मदुरई में 13वीं शताब्दी के प्रारंभ तक शासन करते रहे, किंतु इसके उपरांत मदुरई पर पुनः पांड्यों ने अधिकार कर लिया। 1311 में, अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति मलिक काफूर ने मदुरई पर आक्रमण किया तथा वह भारी मात्रा में धन एवं बहुमूल्य धातुएं लूटकर अपने साथ ले गया। मलिक काफूर के इस आक्रमण से विभिन्न मुस्लिम आक्रांताओं का ध्यान मदुरई की ओर आकर्षित हुआ तथा इसके बाद कई आक्रमण किए गए। 1371 में, मदुरई, विजयनगर साम्राज्य का हिस्सा बन गया। तथा इसके बाद यह नायकों के नियंत्रण में आ गया। तिरुमल नायक (1623-1659) एक प्रसिद्ध नायक था, जिसने मदुरई एवं उसके आसपास कई सुंदर इमारतों का निर्माण करवाया। इन सभी में सबसे प्रसिद्ध 1781 में निर्मित मीनाक्षी मंदिर है। बाद में मदुरई पर अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया तथा उन्होंने यहां एक गवर्नर की नियुक्ति कर दी।
भारत की स्वतंत्रता के उपरांत, मदुरई तमिलनाडु का एक प्रमुख जिला बना। कुछ समय बाद मदुरई जिले को दो भागों-मदुरई एवं डिंडीगुल में विभाजित कर दिया गया।
मदुरई चारों ओर से कई पहाड़ियों से घिरा हुआ है। यह चमेली के फूलों के लिए प्रसिद्ध है। ये फूल यहां से न केवल भारत अपितु विश्व के कई देशों को भी भेजे जाते हैं। मदुरई शहर वस्त्र मिलों एवं भारी इंजीनियरिंग उद्योग के लिए भी प्रसिद्ध है।
मदुरई का 2500 वर्ष पुराना इतिहास है तथा ऐतिहासिक दृष्टि से यह तमिलनाडु का सबसे प्राचीन शहर है।
महाबलिपुरम/मामल्लपुरम
(12°36‘ उत्तर, 80°11‘ पूर्व)
महाबलिपुरम, जिसे मामल्लपुरम के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रसिद्ध तटीय शहर है। यह चेन्नई के दक्षिण में 60 किमी. दूर तमिलनाडु में स्थित है। यह शहर मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। वर्तमान में विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित महाबलिपुरम का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष प्राचीन है। यह एक व्यस्त बंदरगाह था। पेरिप्लस तथा टॉलेमी के समय पर यहां विभिन्न प्रकार के लगभग 40 महत्वपूर्ण स्थापत्य नमूने हैं, जिनमें निम्नतम उभरी हुई नक्काशी के नमूने हैं, जो कि विश्व में सबसे बड़े हैं, इसे श्अर्जुन प्रायश्चितश् के नाम से जाना जाता है। यह वास्तुकला तथा शिल्पकला पल्लव शासकों की रचना है।
महेन्द्रवर्मन प् (600-630) ने दो पहाड़ियों को, जोकि समुद्र से 400 मी. दूर हैं, को काटकर गुफा मंदिर बनवाए। बड़ी पहाड़ी पर दोनों ओर 11 मंदिर बनाए गए जिन्हें ‘मंडपम‘ (स्तंभों वाला गृह) कहा गया। पास ही खड़ी बड़ी चट्टान को काट कर एक मंदिर बनाया गया, जिसे ‘रथ‘ कहा गया। छोटी पहाड़ी पर पांच अन्य ‘रथ‘ बनाए गए तथा नन्दी, सिंह तथा एक हाथी की तीन बड़ी मूर्तियां बनाई गईं। अधिकांश विहारों को बुद्ध विहार की तरह बनाया गया। यह पहले से ही तीर्थस्थान था, जब पल्लव शासक मामल्ल (नरसिंह वर्मन प्प्) ने इसे बंदरगाह बनाया। महाबलीपुरम का संरचनात्मक मंदिर ‘तटीय मंदिर‘ कहलाता है, क्योंकि यह समुद्र तट पर स्थित है तथा ज्वारीय लहरें इसकी मूर्तियों तक आती हैं। यह विष्णु तथा शिव को समर्पित है। नरसिंह वर्मन II ने इसका निर्माण कराया है। तटीय मंदिर, निम्नतम उभरी हुई नक्काशी के नमूने, मूर्तियां तथा मंडपम तथा पांच रथ देखने में बड़े ही मनोहर लगते हैं। वास्तविक पेरूमल मंदिर का विस्तार विजयनगर शासकों के अधीन हुआ।
यूरोप के लोगों ने नगर को ‘सात पैगोड़ा‘ शब्द दिया। कडप्पक्कम के पास (मामल्लपुरम के समीप) अलमपराई दुर्ग (अलमपरा) के अवशेष हैं, जो कि सत्रहवीं शताब्दी में मुगलों के समय निर्मित हुआ। एक समय इस दुर्ग में गोदीबाड़ा था, जोकि समुद्र तक विस्तृत था, जहां से नमक, घी तथा जरी के कपड़े निर्यात किए जाते थे। यह बंदरगाह 1750 में फ्रांसीसियों को दे दिया गया परंतु फ्रांसीसियों की पराजय के बाद, 1760 में इसे अंग्रेजों ने नष्ट कर दिया।
कलपक्कम, महाबलीपुरम के समीप एक आणविक शक्ति संयंत्र है।
हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics