(rubiaceae family in hindi) रूबियेसी कुल क्या है रुबियाका पादप के लक्षण गुण नाम उपयोग किसे कहते है ?
रूबियेसी कुल (rubiaceae family) :
वर्गीकृत स्थिति : बेंथम और हुकर के अनुसार –
प्रभाग – एन्जियोस्पर्मी
उपप्रभाग – डाइकोटीलिडनी
वर्ग – गेमोपेटेली
श्रृंखला – इनफेरी
गण – रुबियेसी
रूबियेसी कुल के विशिष्ट लक्षण (salient features of rubiaceae)
- पर्ण सरल सम्मुख क्रासित , अनुपर्णी , अनुपर्ण अंतरवृन्तीय (interpetiolar)
- पुष्पक्रम प्राय: ससीमाक्षी , पुष्प पंचतयी अथवा चतुष्तयी , उपरिजायांगी।
- बाह्यदल 4 अथवा 5 , कभी कभी एक बाह्यदल अत्यधिक विवर्धित।
- दलपुंज 4-5 संयुक्तदली कीपाकार अथवा दीवटरुपी।
- पुंकेसर 5 , दललग्न (epipetalous)
- जायांग द्वि अथवा बहुअंडपी , अंडाशय अधोवर्ती (inferior)।
- फल बेरी अथवा केप्सूल।
प्राप्ति स्थान और वितरण (occurrence and distribution)
इस प्रमुख द्विबीजपत्री कुल में लगभग 500 वंश और 6000 प्रजातियाँ सम्मिलित है जो प्राय: उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पायी जाती है लेकिन इसके कुछ सदस्य विश्व के शीतोष्ण प्रदेशों में भी पाए जाते है। गेलियम की कुछ प्रजातियाँ तो ध्रुवीय प्रदेशो में भी पायी जाती है। रुबिया ठंडे प्रदेशों में पायी जाने वाली प्रजाति है। भारत में इस कुल के 76 पादप वंश और लगभग 274 प्रजातियाँ पायी जाती है जो मुख्यतः उष्णकटिबंधीय और उपोष्ण पूर्वी हिमालय क्षेत्रों में 4000 मीटर की ऊँचाई तक मिलती है।
प्रकृति और आवास (habit and habitat)
स्वभाव की दृष्टि से इस कुल के सदस्य पर्याप्त विविधता प्रदर्शित करते है , अधिकांश पौधे झाड़ियाँ या छोटे वृक्ष होते है। झाड़ी जैसे – इक्सोरा और म्यूसेंडा , वृक्ष जैसे – कदम्ब और हल्दू , आरोही जैसे – ओनो टिस आक्सीफायला , शाक जैसे – बोरेरिया। कुछ सदस्य जैसे – मिरमिकोडिया अधिपादपीय होते है।
कायिक लक्षणों का विस्तार (range of vegetative characters)
मूल : शाखित मूसला जड़।
स्तम्भ : शाकीय या काष्ठीय , उधर्व और शाखित , कभी कभी आरोही। अंकेरिया हुक द्वारा आरोहरण करता है , जबकि मेनेटिया का तना आधार से लिपट जाता है।
पर्ण : प्राय: सम्मुख और क्रासित , कभी कभी चक्रीय जैसे – गोलियम में। अनुपर्णी जो अंतरवृन्तीय प्रकार के होते है लेकिन गेलियम में पर्ण सदृश होते है। गार्डिनिया में अनुपर्ण की आधारीय ग्रंथियों से म्यूसीलेज निकलता है जबकि पेंटास में अनुपर्ण शूक समान संरचनाओं में रूपान्तरित हो जाता है जिनके ऊपरी सिरे पर रेजिन स्त्राव करने वाली ग्रंथि पायी जाती है। पर्ण सरल , शिराविन्यास जालिकावत।
पुष्पीय लक्षणों का विस्तार (range of floral characters)
पुष्पक्रम : एकल solitary जैसे गार्डीनिया में या ससीमाक्षी प्रकार का होता है। प्राय: द्विशाखी ससीमाक्ष जैसे कदम्ब और मुसेन्डा जबकि हल्दू में पुष्प छोटे छोटे ससीमाक्ष गुच्छों अथवा ग्लोबोस हेड में लगे होते है। कोफिया में प्रत्येक पत्ती के कक्ष में 1-3 पुष्प निकलते है।
पुष्प : सहपत्री और सहपत्रिकी पूर्ण , उभयलिंगी प्राय: त्रिज्यासममित लेकिन कभी कभी एकव्यास सममित होते है जैसे कि पोसोक्वेरिया। पंचतयी अथवा चतुष्तयी , उपरिजायांगी , पेगेमिया में पुष्प अधोजायांगी।
बाह्यदल पुंज : बाह्यदल 4 अथवा 5 , पृथक बाह्यदलीय अथवा संयुक्त बाह्यदली , विन्यास कोरस्पर्शी। म्यूसेंडा में एक बाह्यदल बड़ा , पर्ण सदृश रंगीन और आकर्षण होता है।
दलपुंज : दलपत्र 4 अथवा 5 संयुक्त , विन्यास कोरस्पर्शी जैसे म्यूसेंडा में या व्यावर्तित जैसे पेंटास की कुछ प्रजातियों में अथवा कोरछादी। दलपुंज दीवटरूपी , चक्राकार अथवा कीपाकार आकृति का होता है।
पुमंग : पुंकेसर प्राय: 5 अथवा 4 , दललग्न , परागकोष द्विकोष्ठी , आधारलग्न और अंतर्मुखी।
जायांग : सामान्यतया द्विअंडपी लेकिन कभी कभी एक से आठ अंडप उपस्थित , युक्तांडपी। अंडाशय प्राय: अधोवर्तो लेकिन पुगामा में उच्चवर्ती और गार्टनेरा में अधोवर्ती होता है। अंडाशय प्राय: द्वि अथवा बहुकोष्ठीय और बीजांडविन्यास स्तम्भीय होता है।
वर्तिका सरल और वर्तिकाग्र समुंड अथवा द्विपालित होता है।
फल और बीज : प्राय: पटविदारक या कोष्ठविदारक केप्सूल। कोफिया में सरस फल बेरी और गेलियम में भिदुर फल होता है। बीज प्राय: भ्रूणपोषी और सीधे अथवा वक्रित भ्रूणयुक्त होते है।
परागण और प्रकीर्णन : यहाँ प्राय: कीट परागण पाया जाता है , चिपचिपे फलों और चिरलग्न बाह्यदल फलक होने से बीजों का प्रकीर्णन प्राय: पक्षियों और जन्तुओं के द्वारा होता है।
पुष्पसूत्र :
बंधुता और जातिवृतीय सम्बन्ध (affinities and phylogenetic relationship)
रुबियेसी की एडोक्सेसी और केपेरीफोलियेसी कुलों से , अधोवर्ती अंडाशय के कारण समानता है लेकिन इन दोनों कुलों में अनुपर्ण नहीं पाए जाते , जिससे , रुबियेसी को इनसे सरलता से अलग किया जा सकता है। पादप वर्गीकरण विज्ञानियों के अनुसार रूबियेसी की उत्पत्ति एपियेसी (अम्बेलीफेरी) से संभव हो सकती है क्योंकि एपियेसी में भी पुष्प पंचतयी , चतुष्तयी और उपरिजायांगी होते है और अंडाशय के ऊपर मकरंद ग्रंथि होती है और बाह्यदल छोटे होते है। दूसरी तरफ रुबियेसी कुल एस्टेरेसी (कम्पोजिटी) से भी संबद्ध है क्योंकि मुंडक पुष्पक्रम को छत्रक से विकसित हुआ माना जाता है।
आर्थिक महत्व (economic importance)
I. काफी :
1. कोफिया अरेबिका – अरेबियन कॉफ़ी।
2. कोफिया लाइबेरिका – लाइबेरियन कॉफ़ी।
3. कोफिया केनियोफेरा – निम्न कॉफ़ी।
4. कोफिया रोबस्टा – कांगों कॉफ़ी।
II. शोभाकारी पौधे :
1. पेंटास लेंसिओलेटा – क्षुप अथवा झाडी।
2. हेमेलिया पेंटेन्स – स्कारलेट बुश।
3. म्यूसेन्डा फ्रोंडोसा – बेदिना क्षुप।
4. गार्डीनिया जेस्मीनोइडिस – गंधराज।
5. इक्सोरा कोक्सीनिया – इक्सोरा , रुक्मणी।
III. काष्ठ :
1. एन्थोसिफेलस चाइनेन्सिस – कदम्ब , वृक्ष।
2. मिट्रागाइना पारवीफ्लोरा – कलम , वृक्ष।
3. मोरिंडा टोमेन्टोसा – आल , वृक्ष।
4. एडिना कोर्डीफ़ोलिया – हल्दू , वृक्ष।
IV. औषधियाँ :
1. सिन्कोना : की अनेक प्रजातियाँ विशेषकर सिन्कोना ओफिसिनेलिस की छाल से मलेरिया की प्रसिद्ध दवा कुनैन प्राप्त होती है , इसकी छाल में क्विनीन और सिनकोनीडीन नामक औषधिक तत्व वाले दो एल्कलायड पाए जाते है। इसके अतिरिक्त सिन्कोना कैलिसाया , सिन्कोना लेजिरियाना और सिन्कोना कोर्डीफोलिया भी हमारे देश के विभिन्न भागों में उगाई जाती है और इनकी छाल से मलेरिया की प्रभावी औषधि कुनैन प्राप्त होती है।
2. गार्डीनिया रेजीनीफेरा दिकमाली को सुन्दरता के लिए बगीचों में तो लगाया जाता है लेकिन इससे प्राप्त गोंद को उत्तेजक और वातहर और अजीर्ण की प्रभावी औषधि के रूप में प्रयुक्त करते है।
3. म्यूसेन्डा ग्लोब्रेटा : बेदिना बुखार , दमा आदि उपचार हेतु प्रयुक्त।
V. रंजक :
1. रुबिया कोर्डिफोलिया : जड़ों से पीला और नीला रंजक प्राप्त होता है।
2. रूबिया टिक्टोरिया : जड़ों से लाल रंजक प्राप्त होता है।
3. मोरिन्डा टिंक्टोरिया : जड़ों से लाल रंग प्राप्त होता है।
4. ओल्डनलेंडिया ब्रेकियेटा : जड़ों की छाल से लाल रंग प्राप्त होता है।
VI. खाद्य पदार्थ :
1. हेमेलिया पेटेन्स : के फल खाने योग्य होते है।
2. रेन्डिया ड्यूमेंटोरम : मनफल खाने के काम आते है।
3. एंथोसिफेलस चाइनेन्सिस : कदम्ब के फल खाए जाते है।
रुबियेसी कुल के प्रारूपिक पादप का वानस्पतिक वर्णन (botanical description of a typical plant of rubiaceae)
इक्सोरा कोक्सीनिया लिन (ixora coccinea linn) :
स्थानीय नाम – रुक्मणी , रंगन।
स्वभाव – उद्यानों में उगाया जाने वाला क्षुप।
जड़ : शाखित मूसला जड़।
स्तम्भ : उधर्व , शाखित , ठोस बेलनाकार , हरा , शाकीय अथवा आधारीय भाग काष्ठीय।
पर्ण : स्तम्भीय और शाखीय , सम्मुख और क्रासित , अवृंत , अनुपर्णी , अनुपर्ण अंतरवृन्तीय , अंडाकार , अच्छिन्नकोर अरोमिल , निशिताग्र , शिराविन्यास एकशिरीय जालिकावत।
पुष्पक्रम : समशिख ससीमाक्षी।
पुष्प : उभयलिंगी , त्रिज्यासममित , सवृंत , सहपत्री , पूर्ण , सहपत्रिकी , उपरिजायांगी और चतुष्तयी।
बाह्यदल पुंज : बाह्यदल – 4 , संयुक्त बाह्यदली , विन्यास कोरस्पर्शी।
दलपुंज : दल – 4 , संयुक्त दलीय , विन्यास ,
व्यावर्तित : दलपुंज नलिकाकार।
पुमंग : पुंकेसर – 4 , दललग्न , दलपुंज नलिका के मुख में अंत:स्थित , पृथकपुंकेसरी , परागकोष द्विकोष्ठी , पृष्ठलग्न , अंतर्मुखी।
जायांग : द्विअंडपी , संयुक्तांडपी , अंडाशय अधोवर्ती , द्विकोष्ठीय बीजांडविन्यास स्तम्भीय , वर्तिका लम्बी लम्बी और वर्तिकाग्र द्विशाखी।
फल : सरस फल बेरी।
पुष्पसूत्र :
प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1 : रुबियेसी कुल को निम्न में से किस श्रृंखला में रखा गया है –
(अ) हेटरोमेरी
(ब) ग्लूमेसी
(स) इन्फेरी
(द) ग्लूमेसी
उत्तर : (स) इन्फेरी
प्रश्न 2 : एक बाह्य दल विवर्धित होता है –
(अ) रुबिया में
(ब) गेलियम में
(स) कोफिया में
(द) म्यूसेंडा में
उत्तर : (द) म्यूसेंडा में
प्रश्न 3 : अन्तरवृन्तीय अनुपर्ण किस कुल का लक्षण है –
(अ) सोलेनसी
(ब) रुबियेसी
(स) ग्रेमिनी
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर : (ब) रुबियेसी
प्रश्न 4 : रुबियेसी में पुंकेसर होते है –
(अ) एकसंघी
(ब) द्विसंघी
(स) दललग्न
(द) मुक्तकोशी
उत्तर : (स) दललग्न
प्रश्न 5 : कदम्ब किस कुल का पादप है –
(अ) लेग्यूमिनोसी
(ब) एकेन्थेसी
(स) सोलेनेसी
(द) रुबियेसी
उत्तर : (द) रुबियेसी
प्रश्न 6 : निम्न में रंजक का स्रोत है –
(अ) म्यूसेन्डा
(ब) रुबिया
(स) एडीना
(द) रेन्डिया
उत्तर : (ब) रुबिया