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उत्क्रमणीय अभिक्रिया , अनुत्क्रमणीय अभिक्रिया , रासायनिक साम्य , समांगी अभिक्रियाएँ , सक्रीय द्रव्यमान

(reversible reaction in hindi) उत्क्रमणीय अभिक्रिया : वे अभिक्रियाएँ जो दोनों दिशाओ में चलती है अर्थात जिनमें क्रियाकारक क्रिया करके क्रियाफल बना लेते है तथा क्रियाफल पुन: क्रिया करके क्रियाकारक बना लेते है , उन्हें उत्क्रमणीय अभिक्रियाएँ कहते है।

इन अभिक्रियाओं को दोमुहि तीर से व्यक्त करते है , ऊपर का तीर अग्र अभिक्रिया को तथा नीचे का तीर पश्च या प्रतीप अभिक्रिया को व्यक्त करता है।
उदाहरण :
A + B ⇌ C + D
N2+ 3H2 ⇌ 2NH3
अनुत्क्रमणीय अभिक्रिया : वे अभिक्रियाएँ जो केवल एक ही दिशा में चलती है अर्थात जिनमे क्रियाकारक क्रिया करके क्रियाफल तो बना लेते है लेकिन क्रियाफल पुनः क्रिया करके क्रियाकारक नहीं बनाते है , उन्हें अनुत्क्रमणीय अभिक्रिया कहते है।
उदाहरण :
A + B → C + D
2KClO3→ 2KCl + 3O2
रासायनिक साम्य : उत्क्रमणीय अभिक्रियाओं की वह अवस्था जिनमें अग्र व प्रतीप अभिक्रियाओं का वेग समान हो जाता है उसे रासायनिक साम्य कहते है।
साम्य अवस्था पर जितने समय में क्रियाकारक क्रिया करके क्रियाफल बनाते है उतने ही समय में क्रियाफल पुनः क्रिया करके क्रियाकारक बना लेते है।

रासायनिक साम्य के लक्षण

  • साम्यावस्था पर दोनों अभिक्रियाओं (अग्र व पश्च) का वेग समान हो जाता है।
  • साम्यावस्था में दोनों अभिक्रियाएँ पूर्ण रूप से होती है।
  • ताप , दाब , सांद्रता में परिवर्तन करने से साम्यावस्था को प्रभावित किया जा सकता है।
  • उत्प्रेरक साम्य अवस्था को प्रभावित नही करते है बल्कि साम्य अवस्था को शीघ्र स्थापित कर देते है।
  • साम्य अवस्था पर पदार्थो के रंग , घनत्व , सांद्रता आदि स्थिर होते है।
समांगी अभिक्रियाएँ : वेे अभिक्रियाएँ जिनमें क्रियाकारक व क्रियाफल एक ही अवस्था में पाए जाते है उन्हें समांगी अभिक्रियायें कहते है।
उदाहरण : N2 + 3H2 ⇌ 2NH3
अभिक्रिया वेग : इकाई समय में क्रियाकारक व क्रियाफलों की सांद्रता में होने वाले परिवर्तन को अभिक्रिया वेग कहते है।
अभिक्रिया वेग = क्रियाकारक/क्रियाफलों की सांद्रता में परिवर्तन/परिवर्तन में लगा समय
समय के साथ साथ क्रियाकारको की सांद्रता कम होती जाती है जिससे अभिक्रिया का वेग भी कम होता जाता है तथा समय के साथ साथ क्रियाफल की सांद्रता में वृद्धि होती है जिससे अभिक्रिया का वेग भी बढ़ता जाता है।
अभिक्रिया का वेग क्रियाकारको की सान्द्रता के समानुपाती होता है अत: समय के साथ अभिक्रिया का वेग कम होता जाता है।
अभिक्रिया का वेग कभी भी शून्य नहीं होता है।
अभिक्रिया वेग की इकाई मोल x लीटर-1 x सेकंड-1 होती है।
सक्रीय द्रव्यमान : इकाई आयतन उपस्थित पदार्थ के ग्राम मोल की संख्या को active mass (सक्रीय द्रव्यमान) कहते है।
सक्रीय द्रव्यमान = पदार्थ के ग्राम मोल/आयतन (लीटर में)
ग्राम मोल = पदार्थ का ग्राम में भार/अणुभार
सक्रीय द्रव्यमान = पदार्थ का ग्राम /(अणुभार x आयतन)
सक्रीय द्रव्यमान को बड़े कोष्ठक [] से व्यक्त करते है तथा इसकी मोल x लीटर-1 होती है।
द्रव्य अनुपाती क्रिया का नियम (law of mass active) : यह नियम गुलबर्ग तथा बागे ने प्रतिपादित किया। 
इस नियम के अनुसार निश्चित ताप पर किसी समांगी अभिक्रिया का वेग क्रियाकारी पदार्थो के सक्रीय द्रव्यमान के गुणनफल के समानुपाती होता है। 
माना एक उत्क्रमणीय अभिक्रिया निम्न है –

A + B ⇌ C + D

माना A , B , C व D के सक्रीय द्रव्यमान [A] , [B] , [C] , [D] है।
अग्र अभिक्रिया का वेग ∝ [A] [B]

V1  = K1[A].[B]
यहाँ K1 = अग्र अभिक्रिया का वेग नियतांक
इसी प्रकार
प्रतीप या पश्च अभिक्रिया का वेग [C][D]
V2 = K2[C][D]
यहाँ K2 = प्रतीप या पश्च अभिक्रिया का वेगनियतांक
साम्य अवस्था पर
V1 = V2
K1[A].[B] = K2[C][D]
K1/K2= [C][D]/[A].[B]
Kc = [C][D]/ [A].[B]
यहाँ Kc = साम्य अवस्था स्थिरांक सांद्रता के रूप में
माना A , B , C व D के आंशिक दाब क्रमशः PA , PB, PC , PD है तो
Kp = PC . PD/ PA . PB
यहाँ Kp = साम्य अवस्था स्थिरांक दाब के रूप में 
नोट 1 : ठोसो का सक्रीय द्रव्यमान (सांद्रता) इकाई होता है। 
नोट 2 : शुद्ध पदार्थ तथा शुद्ध द्रव पदार्थ का सक्रीय द्रव्यमान (सांद्रता) इकाई होता है।