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retroviral vector method for transgenic animals in hindi , रेट्रोवायरल वाहक विधि , ट्रान्सजेनिक गायें (Transgenic cows)

पढो retroviral vector method for transgenic animals in hindi , रेट्रोवायरल वाहक विधि , ट्रान्सजेनिक गायें (Transgenic cows) ?

रेट्रोवायरल वाहक विधि (Retroviral vector method) : ट्रान्सजेनेसिस की सबसे उपयुक्त विधि है किन्तु इस तकनीक से अति सूक्ष्म जीन खण्डों का ही स्थानान्तरण सम्भव है। युग्मनज (zygote) को विदलन के समय 8 कोशीय अवस्था ( 8 cell stage) में ट्रान्सजीन युक्त रेट्रोवायरस द्वारा संक्रमित किया जाता है। इस संक्रमित युग्मनज को फोस्टर माता (foster mother) में प्रतिरोपित कर दिया जाता है। इस प्रकार उत्पन्न होने वाली संतति ट्रान्सजेनिक प्रकृति की होती है। रेट्रोवायरल वाहक वैसे अपनी प्रतिलिपि बनाने में सक्षम नहीं होते फिर भी खतरे की सम्भावना रहती है। इस विधि से निर्मित ट्रान्सजेनिक प्राणियों का उपयोग व्यापारिक उत्पादों की प्राप्ति हेतु किया जाता है।

  1. भ्रूणीय स्टेम कोशिका अभियान्त्रिकी विधि (Engineered embryonic stem cell method) : इस विधि में पुनर्योगंज डी.एन.ए. का निवेशन सम्पूर्ण भ्रूण में न करा कर कुछ चयनित कोशिकाओं में ही कराया जाता है। इस प्रकार मिश्रित जीनोम वाले प्राणी उत्पन्न होते हैं इन्हे काइमेरा (chimera) कहते हैं। उदाहरणतः मूसे के परिवर्तनशील भ्रूण में ब्लास्टोसिस्ट (blastocyst) अवस्था की कोशिकाओं को संवर्धन माध्यम में संवर्धन कराया जाता है। ये अन्य प्रकार की कोशिकाओं में निवेशित होने की क्षमता रखती है अर्थात् पूर्णशक्त (totipotent) प्रकार की होती है। अतः किसी एक संवर्धनशील कोशिका में ट्रान्सजीन प्रविष्ट करा कर इसका चयन कर लिया जाता है एवं ट्रान्सजेनिक प्राणी के निर्माण हेतु इस कोशिका को उपयोग में लाया जाता है। यह ट्रान्सजीन युक्त कोशिका ब्लास्टोसिस्ट में रोपित करने के उपरानत इस ब्लास्टोसिस्ट को मादा के गर्भाशय में रोपित कर दिया जाता है इससे उत्पन्न संतति ट्रान्सजेनिक प्रकार की होती है।

 (i) ट्रान्सजेनिक गायें (Transgenic cows) : दुग्ध देने वाली प्राणी के दुग्ध में वसा व प्रोटीन प्रमुख घटक होते हैं। उच्च प्रोटीन युक्त दुग्ध देने हेतु गायों को ट्रान्सजेनिक विधि से प्राप्त किया गया है इसके लिये निम्नलिखित पदों में क्रिया कराई जाती है-

  1. बूचड़खानों में काटी जाने वाली गायों में अण्ड कोशिकाएं प्राप्त की जाती हैं।
  2. पात्रे (in vitro) अण्ड कोशिकाओं (oocytes) का परिपक्वन कराया जाता है।
  3. इन अपड कोशिकाओं का निषेचन भी पात्रे (in vitro) ही कराया जाता है। 4. निषेचित अण्डों का अपकेन्द्रण कर पीतक एक ओर तथा नर केन्द्रक अलग व स्पष्ट दिखाई देने लगते हैं।
  4. नर केन्द्रकों में डी.एन.ए. का माइक्रोइन्जेक्शन दे दिया जाता है। नर व मादा केन्द्रकों का संलयन हो जाने के उपरान्त भ्रूण का परिवर्द्धन भी पात्रे ही कराया जाता है।
  5. परिवर्द्धित भ्रूण को फॉस्टर माता में रोपित कर दिया जाता है।
  6. संतति में ट्रान्सजीन की उपस्थिति की जाँच स्क्रीनिंग द्वारा करते रहते हैं।
  7. इस विधि से डेयरी हेतु अधिक दूध देने वाली गायों का उत्पादन किया जाता है। इस दूध से बना पनीर भी उत्तम प्रकृति का होता है क्योंकि इनके दूध में केसीन प्रोटीन की मात्रा प्रति लीटर कई गुना अधिक होती है।

(ii) ट्रान्सजेनिक बकरी व भेड़ (Transgenic goat and sheep) : चूहे के दुग्ध में प्लाज्मिनोजन साक्रियक (plasminogen activator ) (t-PA) पाया गया। इसके किण्वक रक्त में उपस्थित थक्के को घोलने में सक्षम होते हैं। जॉन मेक फेरसन एन्जाइम कम्पनी ने के. एल्बर्ट व साथियों (E. Elbert and colleagues) के साथ ट्रान्सजेनिक बकरी प्राप्त करने में सफलता की। इन्होंने बकरी के केसिन प्रोमोटर जीन (casein promotor gene) को t-PA से जोड़ कर बकरी में प्रवेशित करा दिया एवं ट्रान्सजेनिक बकरी प्राप्त की है। औषधीय महत्त्व के प्रोटीन प्राप्त करने हेतु बॉयर कम्पनी ने एल्फ-1 एन्टीट्रिप्सीन प्राप्त करने हेतु ट्रान्सजेनिक भेड़ प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की है। ट्रान्सजेनिक भेड़ों को प्राप्त कर अधिक मात्रा में ऊन प्राप्त की जाती है। प्राणियों से अधिक दुग्ध, माँस, मूत्र, रक्त या पशुधन प्राप्त करने हेतु ट्रान्सजेनिक प्राणि प्राप्त किये जाते हैं।

(iii) ट्रान्सजेनिक सुअर (Transgenic pigs) : सुअर में गाय में पाये जाने वाला वृद्धि हार्मोन (growth hormone) का जीन प्रवेशित कराने पर एक प्रयोग में विपरीत प्रभाव देखने को मिले।

(iv) ट्रान्सजेनिक मछलियाँ (Transgenic Fishes ) : कामराज विश्वविद्यालय के टी. जे. पाण्डियन एवं इनके साथियों (T.J. Pandian and colleagues) ने माइक्रोइन्जेक्श तकनीक द्वारा गाय या मनुष्य के वृद्धि हार्मोन का जीन मछलियों में प्रवेशित कराकर ट्रान्सजेनिक मछलियाँ प्राप्त की हैं। मछलियाँ एक बार में अनेक अण्डे देती हैं, अण्डों में जीन में परिवर्तन आसानी से कराये जा सकते हैं। अतः ट्रान्सजेनिक मछलियाँ उन लागों के भोजन में पोषक तत्वों के साथ वृद्धि हार्मोन भी उपलब्ध करा सकती है, जिनमें इसकी कमी होती है।

(v) ट्रान्सजनिक पक्षी (Transgenic Birds) : ट्रान्सजेनिक पक्षी विशेषत: मुर्गीयाँ प्राप्त करने की दिशा में भी शोध कार्य किये गये हैं। इनमें ब्लास्टोडर्म अवस्था में ट्रान्सजेनेसिस सम्भव है। इसके लिये ब्लास्टोडर्म कोशिकाओं को ब्लास्टुला से पृथक कर लिया जाता है। इन कोशिकाओं में ट्रान्सजीन माइक्रोइंजेक्शन द्वारा प्रविष्ट करा दिया जाता है। ट्रांसफेक्टेड (transfected) कोशिका को भ्रूण की अधोजननिक गुहा (sub germinal cavity) में प्रविष्ट करा देते हैं। इस प्रकार मुर्गी की कुछ संततियों में ट्रान्सजीन पाया जाता है। इनमें प्रजनन करा कर ट्रान्सजेनिक लाइन का निर्माण कर लिया जाता है। इस प्रकार उच्च पोषक तत्वों वाले एवं अधिक प्रोटीन युक्त अण्डे या औषधीय महत्व प्रोटीन युक्त अण्डे प्राप्त किये जा सकते हैं।