गणराज्य किसे कहते हैं | गणराज्य की परिभाषा क्या होती है अर्थ का मुखिया कौन है republic in hindi
republic in hindi गणराज्य किसे कहते हैं | गणराज्य की परिभाषा क्या होती है अर्थ का मुखिया कौन है ?
परिभाषा : जिस देश में राजा शासन नही होता है और देश के सभी मामलें देश के माने जाते है न की किसी राजा विशेष के | अर्थात देश में राजाओं का शासन नही होता है , देश के लोगों का सार्वजनिक शासन माना जाता है उसे गणराज्य कहते है |
गणराज्य : ऐसा राज्य जिसमें सर्वोच्च सत्ता मताधिकार से संपन्न नागरिक समुदाय में निहित हो और उसका व्यवहार नागरिकों द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से चुने गए प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता होय ऐसा राज्य जिसका प्रमुख प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित हो।
साराश
गणराज्यवाद उस सीमा तक एक शासन का सिद्धान्त है जहाँ तक यह एक प्रातिनिधिक, उत्तरदायी और संवेदनशील शासन की स्थापना का प्रयास करता है। वहाँ तक यह स्वतंत्रता का एक सिद्धान्त है जहाँ तक यह जनता के अधिकारों व स्वाधीनताओं का प्रावधान करता और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करता है। वहाँ तक यह नागरिकता का सिद्धान्त है जहाँ तक यह एक विशेष प्रकार की नागरिकता के लिए कार्यरत है जो सक्रिय सार्वजनिक जीवन से तथा राष्ट्र के लिए सब कुछ बलिदान करने के लिए तैयार रहने की देशभक्तिपूर्ण भावना से जुड़ी होती है। संक्षेप में, गणराज्यवादी एक ओर सार्वजनिक और लोकप्रिय शासन पर तथा दूसरी ओर प्रशासन चलाने के लिए सुस्थापित नियमों पर जोर देते हैं। यह एक लोकतांत्रिक शासन से आगे भी बहुत कुछ है क्योंकि यह बहुमत नहीं, नियमों के आधार पर काम करता है। इस तरह यह ऐसे बहुमत का शासन है जिसकी शक्तियाँ सीमाबद्ध होती हैं और जो शक्तियों का व्यवहार भी सीमाओं के अंदर करता है।
गणराज्यवाद
इकाई की रूपरेखा
उद्देश्य
प्रस्तावना
गणराज्यवाद राजतंत्र के विपरीतार्थी के रूप में
राजतंत्र एक शासन प्रणाली के रूप में
निरपेक्ष राजतंत्र की बुराइयाँ
राजतंत्र से गणराज्यवाद तक
गणराज्यवाद एक शासन प्रणाली के रूप में
गणराज्यवाद का अर्थ
गणराज्यवादी शासन प्रणाली : इसकी विशेषताएँ
लोकतंत्र और गणराज्यवाद की तुलना
गणराज्यवाद की शक्तियाँ और कमजोरियाँ
गणराज्यवाद के गुण
गणराज्यवाद की कमजोरियाँ
गणराज्यवादी प्रवृत्तियाँ
सारांश
शब्दावली
कुछ उपयोगी पुस्तकें
बोध प्रश्नों के उत्तर
उद्देश्य
इस इकाई का उद्देश्य एक शासन प्रणाली के रूप में गणराज्यवाद की धारणा की व्याख्या करना, उसकी प्रमुख विशेषताएँ बताना, उसमें और राजतंत्र में अंतर करना तथा लोक-शासन पर आधारित सरकार के सिद्धान्त और जनता के अकारय अधिकारों पर आधारित स्वतंत्रता के सिद्धान्त, दोनों से उसका संबंध स्थापित करना है।
इस इकाई का अध्ययन करने के पश्चात, आपः
ऽ गणराज्यवादी शासन के अर्थ को स्पष्ट कर सकेंगे,
ऽ मनमाने शासन पर आधारित राजतांत्रिक, निरंकुश और तानाशाह व्यवस्थाओं से उसका अंतर स्पष्ट कर सकेंगे,
ऽ लोकतांत्रिक और लोक-शासन की प्रणाली से उसका संबंध स्पष्ट कर सकेंगेय और
ऽ उदारवादी राजनीतिक सिद्धान्त के ढाँचे में उसकी शक्तियों और कमजोरियों का आकलन कर सकेंगे।
प्रस्तावना
सरकार प्रशासन सुनिश्चित करती है और प्रशासन का अर्थ बाह्य जीवन के सुव्यवस्थित सामाजिक संबंधों की स्थापना है। सरकारों का रूप चाहे जो हो, वे अपनी जनता को एक सुव्यवस्थित शासन प्रदान करती हैं। यह बात राजतंत्र के बारे में उतनी ही सच है जितनी लोकतंत्र के बारे में। यहाँ तक कि तानाशाह सरकारें भी अपनी जनता को शांति, व्यवस्था और प्रशासन प्रदान करने के दावे करती हैं। सरकार के अनेक रूपों में अंतर करने वाली चीज वह प्रशासन नहीं है जो वे अपनी जनता को प्रदान करती हैं। यह काम तो हर तरह की सरकार करती है। उनमें अंतर इस बात को लेकर होता है कि उनका गठन किस प्रकार होता है, अपनी जिन आंतरिक ढाँचागत संस्थाओं के माध्यम से वे काम करती हैं उनमें उनका संबंध किस तरह का है, उनसे किस प्रकार के उद्देश्यों की पूर्ति की आशा की जाती है, आदि।
राजनीतिक विचारकों व विद्धानें ने समय-समय पर सरकारों के वर्गीकरण के प्रयास किए हैं। अरस्तु के बाद शासन के अनेक वर्गीकरण सामने आए हैं। इन श्रेणियों और वर्गों का चलते-चलते हवाला देना कुछ गलत नहीं होगाः राजतंत्र, कुलीनतंत्र, राज्य-व्यवस्थाः राजंतत्र या निरंकुशताय कुलीनतंत्र या अल्पतंत्रय राज्य-व्यवस्था या लोकतंत्रय राजतांत्रिक (निरपेक्ष व संविधानिक, दोनों) और गणराज्यय धर्म-निरपेक्ष और धर्म-आधारितय लोकतांत्रिक और तानाशाहय संसदीय, राष्ट्रपतीय या दोनों का संयोगय एकात्मक, संघीय और महासंघीयय उदार, उदास्-लोकतांत्रिक और समाजवादी – मार्क्सवादी। सरकार का हर रूप यह स्पष्ट करता है कि वह अपनी जनता पर किस प्रकार शासन करती है।
इन शासन प्रणालियों में से एक गणराज्यवाद है जो लोक-शासन, बहुमतवाद, जनता की संप्रभुता, अकारय अधिकारों, सीमित शासन और संविधानवाद के सिद्धान्तों पर आधारित होता है। उद्गम की दृष्टि से यह राजतंत्र का विपरीतार्थी दिखाई देता है पर यह उससे बढ़कर भी कुछ है। आधुनिक अर्थों में गणराज्यवाद एक तरफ शासन का एक सिद्धान्त है तो दूसरी तरफ जनता की स्वतंत्रताओं का भी एक सिद्धान्त है। इसमें एक लोकतांत्रिक प्रणाली की भावना निहित है जो लोकशाही और वैयक्तिक स्वतंत्रता का समन्वय है। संक्षेप में यह ऐसी प्रणाली है जिसे सही तौर पर अनेकों उदार राजनीतिक रूपों से जोड़ा जा सकता है। इनमें अन्य के अलावा संसदीय शासन, राष्ट्रपतीय प्रणाली, मूलगामी लोकतंत्र और सीमित शासन शामिल हैं। संवेदनशीलता और जवाबदेही इसके बुनियादी मानक हैं।
लोकतांत्रिक मूल्यों संबंधी विश्वास और सरोकार गणराज्यवाद की शक्तियाँ हैं। दूसरी ओर उसकी कमजोरी उसकी अस्पष्टता है उसमें शासन के अनेकों रूप शामिल हैं जो प्रायः एक दूसरे के विरोधी होते हैं।
ऊपर दी गई संक्षिप्त रूपरेखा से आप पर यह बात स्पष्ट हो जाएगी कि गणराज्यवाद शासन के हर उस रूप से जुड़ी लोकतांत्रिक संवृत्ति (फेनामिजन) है जो एक लोकतांत्रिक प्रणाली अपनाने का दावा करता है। जिन लोगों पर ऐसी सरकार का नियंत्रण लागू होता है उनके प्रति जवाबदेह और संवेदनशील होना इसका सार तत्व है। इसका महत्व स्वशासन की प्रणाली, बुद्धि पर आधारित शासन, बहुमत के सिद्धान्त और एक प्रभुतासंपन्न शासक जैसा व्यवहर करने का जनता के अधिकार में निहित है। आगे बढ़ने पर हमें इस बारे में कुछ और पढ़ेंगे।
गणराज्यवाद राजतंत्र के विपरीतार्थी के रूप में
गणराज्यवाद के विचार को राजतांत्रिक व्यवस्थाओं के विरोध से उत्पन्न दिखाया जा सकता है। ऐतिहासिक अर्थ में राजतंत्र का अर्थ मात्र एक वंशगत शासन नहीं है जिसमें राजकुमार या राजकुमारी को अपने शासक पिता या माता से राज्य उत्तराधिकार में मिलता है। यह परम शक्तियों से संपन्न एक व्यक्ति का शासन होता है जिस पर कोई और अंकुश या नियंत्रण नहीं होता। गणराज्यवाद का उदय निरपेक्ष राजतांत्रिक प्रणालियों के विरोध में नहीं, उनके विपरीतार्थी के रूप में ही सही, हुआ और इसमें जनता को निश्चित नियमों पर आधारित शासन प्रदान करने का वचन दिया गया। एक व्यक्ति के शासन रूपी राजतंत्र के विपरीत गणराज्यवाद कानून का शासन सुनिश्चित करता है। राजतंत्र निरंकुशता को बल पहुँचाता है, गणराज्यवाद संविधानिकता को।
राजतंत्र एक शासन प्रणाली के रूप में
राजतंत्र दुनिया की सबसे पुरानी राजनीतिक संस्था है। यह शासन का वह रूप है जिसमें सर्वोच्च सत्ता वास्तव में या कहने के लिए राजा के हाथों में होती है। श्जब राजा की सत्ता कानूनों से बंधी नहीं होती तो यह निरपेक्ष या निरंकुश राजतंत्र होता है और जब उसकी सत्ता इस प्रकार कानूनों से बंधी होती है तो यह संविधानिक राजतंत्र होता है। ऐतिहासिक रूप से राजतंत्र का अर्थ किसी राजा या रानी का निरपेक्ष शासन है। गणराज्यवाद का उदय निरंकुश राजतंत्र की प्रतिक्रिया था हालांकि संविधानिक राजतंत्र का विचार रूप में न सही, सारतत्व में गणराज्यवादी सरकार के विचार से मेल खाता है।
राजतंत्र शासन का वह रूप है जिसमें एक पुश्तैनी शासक का राज्य होता है और वह शासन का निरपेक्ष शासक होता है। राजतंत्र की खास विशेषता यह है कि यह खानदानी होता हैः एक ही राजवंश अनेकों पीढ़ियों तक शासन करता रहता है। राजा जब तक मारा या सत्ताच्युत नहीं किया जाता, तब तक शासन करता रहता है। वह परम शक्तियों का उपयोग करता है। कोई उसकी सत्ता को चुनौती नहीं दे सकता, उसे जवाबदेह नहीं ठहरा सकता। इस तरह राजतंत्र का विचार निरपेक्ष शासन का विचार है। इसमें राजा की शक्तियाँ ईश्वार-प्रदत्त मानी जाती हैं और उसे केवल ईश्वर के आगे जवाबदेह कहा जाता है। राजा के दैवी अधिकारों का सिद्धान्त निरंकुश शासक के राज्य के रूप में राजतंत्र के विचार को स्पष्ट रूप से व्यक्त करता है।
राजतंत्र में प्रशासन राजा के हाथों में होता है जो प्रायः खानदानी होता है। इसका आधार यह सिद्धान्त है कि प्रशासन एक विशेष वंश का विशेषाधिकार है और केवल राजा ही जानता है कि उसकी प्रजा के हित में सबसे अच्छी बात क्या है। राजा को कानून बनाने की शक्तियाँ इसीलिए प्राप्त होती हैं। प्रायः उसका कहा हुआ ही कानून होता है, वहीं उन्हें लागू करता है और केवल वहीं अपने बनाए कानूनों का हनन करने वालों के लिए दंड का निश्चय करता है।
राजतंत्र की खास विशेषता राजा की शक्तियाँ हैं। ये प्रायः निरपेक्ष होती हैं और जनता से व्युत्पन्न नहीं होतीं। इसलिए वह जो कुछ करता है उसके लिए जनता के आगे जवाबदेह नहीं होता। राजतंत्र में राजा और प्रजा का संबंध शासक और शासित का, प्रभुत्वशाली राजा और मूक-बधिर प्रजा का संबंध होता है। राजतंत्र में जहाँ निरपेक्षवाद प्रशासन की प्रमुख विशेषता होता है, जनता को अधिकार प्राप्त नहीं होते, उसके सिर्फ कर्तव्य होते हैं। जनता की स्थिति नागरिकों की नहीं, प्रजा की होती है।
राजतंत्र का अर्थ राजा की निरपेक्ष और सर्वस्ववादी शक्तियाँ हैं। ये इस अर्थ में निरपेक्ष होती हैं कि इनकी कोई सीमा नहीं होती और इस अर्थ में सर्वस्ववादी होती हैं कि राजा जैसा भी चाहे, कानून जारी कर सकता है। इस तरह राजतंत्र सर्वाधिकारवाद और निरपेक्षवाद का दूसरा नाम है जिसमें जनता सिर्फ साधन होती है, उसका अपना कोई उद्देश्य नहीं होता।
निरपेक्ष राजतंत्र की बुराइयाँ
राजतंत्र की निरपेक्ष प्रकृति अनेक प्रकार से बदनाम है। यह पूरी तरह अतीत की वस्तु है। कोई इसकी पैरवी नहीं करता, न इसकी प्रशंसा करता है। उसके दुर्गुण उसके गुणों पर हावी हैं। चरित्र से पुश्तैनी होने के नाते राजतंत्र बेतुकी चीज होता है। आनुवांशिकता का सिद्धान्त यह सुनिश्चित नहीं करता कि राजा अच्छा ही होगा। इतिहास में ऐसे अनेकों राजा गुजरे हैं जो मनमाने और क्रूर थे। बुद्धि और सुचरित्र एक से दूसरी पीढ़ी को चलते जाएँगे, यह विश्वास ही हास्यास्पद है। टामस पेन ने एक बार बहुत सही कहा थाः ‘एक पुश्तैनी गवर्नर वैसा ही बकवास है जैसे एक पुश्तैनी लेखक।
राजतंत्र में शासक की निरपेक्षता एक बड़ी बुराई होती है। जो व्यक्ति किसी के आगे जवाबदेह न हो उसके लिए शक्तियों के व्यवहार में निरंकुश होना स्वाभाविक है। सत्ता ऐसे व्यक्ति को भ्रष्ट करती है और असीम सत्ता असीम भ्रष्ट करती है। निरपेक्ष शासन से आगे क्रूर शासन ही आता है। निरपेक्ष राजतंत्र एक भेदभाव की व्यवस्था में फलता-फूलता है जिसमें महत्व केवल जी-हजूरी का होता है।
सर्वाधिकारवाद और निरपेक्षता में चोली-दामन का साथ होता है। निरपेक्ष प्रणाली सर्वाधिकारवादी और सर्वाधिकार प्रणाली निरपेक्ष होती है। राजतंत्र निरपेक्ष व सर्वाधिकारवादी, दोनों होता है। राजा के पास असीम शक्तियाँ ही नहीं होती बल्कि ऐसी सत्ता भी होती है जो केवल असीम ही नहीं, संपूर्ण भी होती है। प्रजा पर राजा का पूरा-पूरा अधिकार होता हैय इसका आदेश उन सभी क्षेत्रों पर चलता है जहाँ उसका शासन होता है।
निरपेक्ष राजतंत्र अलोकतांत्रिक होता है। वास्तव में यह बुनियादी तौर पर एक अलोकतांत्रिक धारणा है। राजा न जनता द्वारा निर्वाचित होता है, न उसके आगे जवाबदेह होता है। इतिहास गवाह है कि राजा निरंकुश ढंग से अपना राज्य चलाता है और उसे व्यापक शक्तियाँ प्राप्त होती हैं – लोगों की जिंदगी और मृत्यु पर भी। एक राजा का विचार लोकतंत्र के विचार का सीधे-सीधे विरोधी होता है। राजा न तो संवेदनशीलता की बात जानता है न जवाबदेही की। यह गैर-जिम्मेदाराना, फासीवादी कार्यनीतियों वाला एक सर्वाधिकारवादी शासन होता है।
हालांकि अब निरपेक्ष राजतंत्र का विचार प्रचलित नहीं है पर निरपेक्ष राजतंत्र की भर्त्सना की जाती रही है और बहुत बुरी तरह की जाती रही है। उसके आनुवांशिकता के सिद्धानत की निंदा की गई है और उसके निरंकुश शासन को कोसा गया है। राजतंत्र को केवल प्रभाव-संपन्न और शक्तियों से वंचित प्रणाली के रूप में प्रस्तुत करने के सभी प्रयासों को, जो आधुनिक काल में दिए जाते रहे हैं, कुछ खास समर्थन नहीं मिला है। राजतंत्र को एक अ-आधुनिक बल्कि मध्यकालीन विचार माना जाता है।
राजतंत्र से गणराज्यवाद तक
पश्चिमी समाजों में राजतंत्र से गणराज्यवाद में संक्रमण एक जैसा और हमेशा सुचारू नहीं रहा। ग्रेट ब्रिटेन में अंग्रेजों ने स्वयं को गणराज्यवादी घोषित किए बिना मैग्ना कार्टा (1215), अधिकारों की याचिका (1628) और अधिकार विधेयक (1689) के जरिये तथा हाउस ऑफ कॉमंस का लोकतंत्रीकरण करके, स्थानीय स्वशासन संबंधी कानून आदि बनाकर राजा की निरंकुश शक्तियों में कटौती की और लोकतांत्रिक बन बैठे। ब्रिटेन कई सदियों के एक लंबे काल में गणराज्यवादी बने बिना एक लोकतंत्र के रूप में उभरा। दूसरी ओर फ्रांस में गणराज्य में संक्रमण 1789 की क्रांति के द्वारा, राजतंत्र की संस्था का उन्मूलन करके हुआ। दूसरे यूरोपीय देशों, उदाहरण के लिए जर्मनी ओर इटली (1840) में, गणराज्य में संक्रमण तीव्र और बढ़ते राष्ट्रवाद का परिणाम था जबकि रूस में प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) और समाजवादी क्रांति (1917) जैसी घटनाओं ने राजतंत्र का उन्मूलन किया।
राजतंत्र से गणराज्य में वास्तविक संक्रमण से बहुत पहले ही राजनीतिक विश्लेषक गणराज्य के ध्येय की पैरवी करने लगे थे। प्राचीन रोमन गणराज्य के प्रति अपने प्रशंसा-भाव के कारण मैकियावेली (1469-1527) ने एक प्रकार के गणराज्य को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया। उनका तर्क था कि गणराज्य पैट्रीशियनों और जनता के बीच तनावों को दूर करने का सबसे अच्छा रास्ता था और स्वशासन से युक्त स्वाधीनता केवल एक गणराज्यवादी शासन में संभव है। मोंतेस्क्यू (1689-1755) ने राजतंत्र की निंदा की कि यह निरंकुश शासन स्थापित करता है तथा जनता को उनके अधिकारों व स्वाधीनतों से वंचित करता है। उन्होंने एक प्रकार कीसंसदीय व उदार सरकार की जमानत के तौर पर शक्तियों के अलगाव का तर्क दिया। जन्म से ब्रिटिश क्रांतिकारी टामस पेन (1737-1809) ने केवल जमकर राजतंत्र का विरोध ही नहीं किया बल्कि जोश के साथ गणराज्य के ध्येय का समर्थन भी किया। उनका उद्देश्य जनता की संप्रभुता के साथ वैयक्तिक अधिकारों के विचार का समन्वय करना थाद्य संविधानिक गणराज्यवाद के प्रतिपादक जेम्स मेडिसन (17511836) ने एक सीमित प्रकार के शासन की जमानत के रूप में राजनीतिक स्वाधीनता की पैरवी की। उन्होंने ‘शक्ति से शक्ति पर अंकुश‘ की बात सोची और इसलिए संविधानिक सरकार के किसी भी रूप में संघवाद, दो-सदनी व्यवस्था और शक्तियों के अलगाव के सिद्धान्तों को अपनाए जाने का समर्थन किया।
बोध प्रश्न 1
नोटः क) अपने उत्तरों के लिए नीचे दिए गए स्थान का प्रयोग कीजिए।
ख) इस इकाई के अंत में दिए गए उत्तरों से अपने उत्तर मिलाइए।
1) राजतंत्र की परिभाषा और इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (उत्तर दस पंक्तियों तक सीमित रखें।)
2) राजतांत्रिक शासन प्रणाली क्या है? इसकी बुराइयाँ बताइए। (उत्तर दस पंक्तियों तक सीमित रखें)
3) पश्चिम में राजतंत्र से गणराज्य में संक्रमण की संक्षिप्त रूपरेखा दीजिए। (उत्तर दस पंक्तियों तक सीमित रखें।)
गणराज्यवाद एक शासन प्रणाली के रूप में
ऐतिहासिक दृष्टि से गणराज्यवाद का जन्म निरंकुश व निरपेक्ष राजतंत्र की प्रतिक्रिया के स्वरूप हआ। पर गणराज्यवाद की परिभाषा राजतंत्र के विपरीतार्थी के रूप में करना उसके अर्थ को बहुत सीमित करना है। गणराज्य वह शासन प्रणाली हैं जिसमें राज्य का एक निर्वाचित प्रमुख होता है और साथ में ऐसी सरकार होती है जो जनता की इच्छा व संप्रभुता को व्यक्त करे। स्वतंत्रता के एक सिद्धान्त के रूप में यह व्यक्तियों के अधिकारों, उनकी स्वाधीनताओं, कानून के शासन, मुक्त प्रेस और निष्पक्ष व मुक्त शिक्षा प्रणाली को सुनिश्चित करता है। उस सीमा तक गणराज्यवाद लोकतंत्र का एक और नाम है पर केवल उसके एक रूप के तौर पर।
हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics