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घोंघा का जनन तंत्र क्या है , पाइला के जनन तन्त्र का वर्णन कीजिये Reproductive System of pila in hindi

Reproductive System of pila in hindi घोंघा का जनन तंत्र क्या है , पाइला के जनन तन्त्र का वर्णन कीजिये ?

जनन तंत्र (Reproductive System)

पाइला एकलिंगी प्राणी होता है। इसमें नर व मादा अलग-अलग होते हैं। नर व मादा में लैंगिक विभेदन पाया जाता है। ये विभेदन निम्न लक्षणों द्वारा प्रदर्शित होते हैं- (i) नर पाइला का कवच (shell) मादा पाइला की अपेक्षा छोटा होता है। (ii) नर के मैथुन अंग अत्यधिक विकसित होते हैं जबकि मादा में ये अवशेषी अंग के रूप में पाये जाते हैं।

नर जनन तंत्र (Male reproductive system)

पाइला का नर जनन तंत्र निम्नलिखित अंगों से मिलकर बना होता है- (i) वृषण (Testes) (ii) शुक्राणु वाहिका या वासा इफरेन्शिया (Vasa efferentia) (iii) शुक्र वाहिनी या वास डेफरेन्स (Vas deferens) (iv) शुक्राशय (Seminal vesicle) (v) अधिक्लोम ग्रंथि एवं शिश्न (Hypobrnachial gland and penis)

(i) वृषण (Testes) : पाइला में केवल एक वृषण पाया जाता है। यह कवच के पहले 2 या 3 चक्करों के ऊपरी भाग में स्थित होता है । वृषण लगभग त्रिभुजाकार चपटी प्लेटनुमा हल्के क्रीम रंग का होता है। यह पाचक ग्रन्थि के नजदीकी सम्पर्क में होता है तथा पाचक ग्रन्थि के ऊपरी भाग से जुड़ा रहता है। इसके अलावा यह पाचक ग्रन्थि के भीतरी किनारे से भी जुड़ा रहता है। यह एक पतले झिल्लीनुमा त्वचीय आवरण द्वारा ढका रहता है, जो वृषण को कवच से अलग करता है।

वृषण भीतर से जनन उपकला द्वारा आस्तरित होता है तथा शुक्राणुजनन की क्रिया द्वारा शुक्राणुओं का निर्माण करता है। पाइला की विशेषता यह है कि इसमें दो प्रकार के शुक्राणुओं का निर्माण होता है (i) युपाईरीन (Eupyrene) (ii) ऑलिगो पाइरीन (Oligopyrene)।

युपाईरीन शुक्राणु पतले धागे समान, लगभग 25 u लम्बे तथा 1.2u चौड़े होते हैं। इनके अन्तिम भाग केवल एक पूँछ पायी जाती है। केवल यही शुक्राणु निषेचन की क्षमता रखते हैं।

ऑलिगोपाईरीन शुक्राणु बड़े तर्कुरूपी होते हैं। ये लगभग 32.5u लम्बे तथा 3u चौड़े होते हैं।

इनके सिरे में वक्रित केन्द्रक तथा पूंछ में 4 या 5 पक्ष्माभ पाये जाते हैं। इनका कार्य भी अज्ञात है. परन्तु ये निषेचन नहीं कर सकते हैं।

(ii) शुक्राणु वाहिका या वासा इफरेन्शिया (Vasa efferentia)

वृषण के विभिन्न भागों से अनेक महीन वाहिकाएँ निकलती हैं जो वृषण से परिपक्व शुक्राणुओं को लाती है, इन्हें वासा इफरेन्शिया या शुक्राणु वाहिकाएँ कहते हैं । अन्त में ये सभी वाहिनियाँ संयुक्त होकर शुक्र वाहिनी या वास डेफरेन्स का निर्माण करती है।

(iii) शुक्र वाहिनी या वास डेफरेन्स (Vas deferens)

यह वृषण के पश्च सिरे से निकलती हैं तथा दो स्पष्ट भागों में विभेदित रहती है, (a) प्रारम्भिक या निकटस्थ भाग (proximal part) (b) दूरस्थ या अन्तस्थ भाग (distal part) प्रारम्भिक या निकटस्थ भाग पतला, संकीर्ण व नलिकाकार होता है। इसकी भित्ति पतली होती है। यह वृषण के पश्च भाग से निकल कर पाचक ग्रन्थि के साथ-साथ पश्च वृक्क कक्ष ( posterior renal chamber) तक आगे बढ़ती है फिर यह बांयी तफ घूम कर हृदयावरण में पहुँच जाती है। यहाँ से यह शुक्राशय के अधर तल जाकर पर खुल जाती है।

दूरस्थ या अन्तस्थ भाग मोटा व ग्रन्थिल होता है। इसकी भित्ति मोटी व ग्रंथिल होती है। यह भाग मलाशय के बांयी तरफ से आगे बढ़कर नर जनन छिद्र द्वारा जननिक पेपिला पर खुल जाता है।

(iv) शुक्राशय (Seminal Vesicle)

एक फली हुई वक्रित संरचना होती है। यह फ्लास्क के आकार का होता है। यह दोनों वृक्क के जोड़ के नीचे हृदयावरण के दाहिनी तरफ स्थित रहता है। शक्राशय दूरस्थ सिरे पर बन्द या इसका नजदीकी सिरा शुक्रवाहिका के ग्रंथिल भाग में खलता है। इसमें शुक्राणु एकत्र किये जाते हैं।

(v).शिशन  एवं अधोः क्लोम ग्रथि (Penis and hypobranchial gland) पाइला में गुदाद्वार के बांयी तरफ लम्बा, दृढ़ कठोर, कुछ वक्रित कशाभिक संरचना पायी जाती है जिसे शिश्न कहते हैं। इसका आधार भाग चौड़ा तथा स्वतंत्र सिरा शुण्डाकार होता है। इसकी सम्पूर्ण नाबाई में अधरतल पर एक खाँच (groove) पायी जाती है। सामान्यत: यह 1.5 से.मी. लम्बा होता परन्त मैथुन के समय यह 4 से.मी. तक लम्बा हो जाता है।

शिश्न एक पीले रंग की मोटी ग्रन्थिल संरचना से ढका रहता है। इसे शिश्न आवरण (penis sheath) कहते हैं। यह शिश्न आवरण प्रावार के सीमान्त की भीतरी सतह से विकसित होता है। इसका दाहिना सिरा प्रावार से चिपका रहता है तथा यह बांयी तरफ से स्वतंत्र होता है। बांयी तरफ वाला भाग गोल होकर शिश्न आवरण का निर्माण करता है।

शिश्न आवरण के आधार पर एक अण्डाकार ग्रंथिल संरचना पायी जाती है जिसे अधो:क्लोम ग्रन्थि कहते हैं। चित्र 20 : पाइला का शिश्न एवं यह फूली हुई होती है। इस ग्रन्थि का निर्माण लम्बी स्तम्भकार कोशिकाएँ करती हैं। जिनके केन्द्रक आधार में पाये जाते हैं। इस ग्रन्थि में काई वाहिनी नहीं पायी जाती है अतः इसका स्राव सीधे सतह से ही निकलता है।

मादा जनन तंत्र (Female reproductive system)

पाइला का मादा जनन तंत्र निम्नलिखित अंगों से मिल कर बना होता है

(i) अण्डाशय (Ovary) (ii) अण्डवाहिनी (Oviduct) (iii) शुक्रग्राहक (Recepticula seminis) (iv) गर्भाशय (Uterus) (v) योनि (Vagina) (vi) अधोः क्लोम ग्रन्थि (Hypobranchial gland) एवं (vii) मैथुन उपकरण (Copulatory aparatus)।

(i) अण्डाशय (Ovary)

मादा में अण्डाशय, नर के वृषण की तरह ही खोल के दूसरे व तीसरे चक्कर तक पाया जाता है। यह वृषण की अपेक्षा कम शाखान्वित होता है तथा पाचन ग्रन्थि के भीतर धंसा रहता है। अण्डाशय भी लगभग तिकोना होता है। इसकी शाखाएँ, एसिनी (acini) कहलाती है तथा फ्लास्क के आकार का होती है। ये एसिनी जनन उपकला द्वारा आस्तरित होती है तथा इनमें अण्डजनन की क्रिया द्वारा अण्डाणुओं का निर्माण होताहै। ये एसिनी सम्मिलित रूप से अण्डवाहिनी में खुलती हैं। अण्डाशय हल्क नारंगी रंग का होता है परन्तु जनन काल में इसका रंग गहरा हो जाता है।

(ii) अण्डवाहिनी (Oviduct)

अण्डाशय के मध्य भाग से एक संकीर्ण पारदर्शी वाहिका निकलती है, जिसमें अण्डार एसिनी खुलती हैं, इसे अण्डवाहिनी कहते हैं। यह पाचन ग्रन्थि के साथ-साथ त्वचा के नीचे बढकर वृक्कांग के निकट पहुँच कर नीचे की तरफ मुड़ जाती है। तत्पश्चात् यह शुक्रग्राहक में जाती है।

(iii) शुक्रग्राहक (Recepticula seminis)

यह सेम के बीज के आकार के समान संरचना होती है। यह अण्डवाहिनी एवं गर्भाशय के यो स्थल पर पाया जाता है। यह पश्च वृक्क कक्ष (posterior renal chamber) में बन्द रहता है। मै क्रिया के समय नर से प्राप्त शुक्राणुओं का इसमें संचय किया जाता है।

(iv) गर्भाशय (Uterus)

यह एक नाशपाती के आकार की पीले रंग की थैलेनुमा संरचना होती है। यह आंत्र के नीचे तथा वृक्क कोष्ठों के दाहिनी तरफ स्थित होता है। इसका आधारी भाग चौड़ा व गोलाकार होता है तथा इसका दूरस्थ किनारा पतला नलिकाकार होता है। इसके आधारी भाग में शुक्रग्राहक खुलता है तथा दूरस्थ किनारा योनि में सतत रहता है। (v) योनि (Vagina)

गर्भाशय का दूरस्थ किनारा योनि में सतत रहता है। योनि एक संकरी नलिकाकार संरचना होता है। यह सफेद या क्रीम रंग की होती है। यह त्वचा के नीचे होती हुई क्लोम गुहा में प्रवेश कर जाता है। वहाँ से मलाशय के बांयी तरफ होती हुई एक संकरे दरारनुमा मादा जनन छिद्र द्वारा बाहर खुला जाती है। यह छिद्र एक छोटी पेपिला पर स्थित होता है।

  • अधो: क्लोम ग्रन्थि (Hypobranchial gland)

मादा में यह ग्रन्थि बहुत कम विकसित होती है।

(vii) मैथुन उपकरण (Copulatory apparatus)

मादा पाइला में नर पाइला के समान मैथुन उपकरण तो पाया जाता है परन्तु मादा में यह अल्प विकसित होता है। इसमें एक अवशेषी शिश्न पाया जाता है जो शिश्न आवरण में बन्द न रहकर प्रावार की ग्रन्थिल वलन के नीचे स्थित रहता है। शिश्न एक पतली कशाभी संरचना होती है जिसकी भीतरी सहत पर अल्प विकसित खांच पायी जाती है। यह केवल 6mm लम्बा होता है ।

मैथुन एवं निषेचन (Copulation and fertilization)

पाइला में मैथुन क्रिया ग्रीष्म ऋतु के बाद वर्षा काल में होती है। यह क्रिया जल में या स्थल पर (नम मिट्टी पर ) हो सकती है। इस क्रिया में नर व मादा पाइला इस तरह पास-पास आते हैं कि दोनों की दाहिनी नूकल पालियाँ आमने-सामने आ जाती हैं। नर का शिश्न लम्बा होकर मादा की योनि में प्रवेश कर जाता है तथा वहाँ शुक्राणुओं को छोड़ देता है। यहाँ से ये शुक्राणु मादा के शुक्रग्राहक में जाकर संचित हो जाते हैं। इस क्रिया में लगभग तीन घण्टे का समय लगता है।

मैथुन क्रिया के लगभग एक या दो दिन बाद अण्ड निक्षेपण होता है। पाइला में निषेचन आन्तरिक होता है तथा अण्डे गर्भाशय में निषेचित होते हैं। निषेचित अण्डे 200 से 800 के समूह में नम मिट्टी में बनी गुहिका में रख दिये जाते हैं। फिर इनके ऊपर पाद की सहायता से एक गुम्बद बना दिया जाता है।

नर या मादा पाइला अण्डों को कोई पैतृक सुरक्षा प्रदान नहीं करते हैं बल्कि इन्हें यों ही विकसित होने के लिए छोड़ देते हैं। इनमें परिवर्धन शुरू हो जाता है तथा अण्डे में से एक नन्हा घोंघा स्फोटन द्वारा बाहर निकल आता है । पाइला में कोई लारवा अवस्था नहीं पायी जाती है। कुछ अन्य मॉलस्का के गेस्ट्रोपोडा वर्ग के सदस्यों में ट्रोकोफोर एवं वेलिजर लारवा पाये जाते हैं ।