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relaxin hormone in hindi , रिलैक्सिन हार्मोन स्रावित होता है के कार्य क्या है

रिलैक्सिन हार्मोन स्रावित होता है के कार्य क्या है relaxin hormone in hindi ?

रिलेक्सिन (Relaxin)

यह मान भी कार्पस ल्युटिय द्वारा स्रावित किया जाता है। गर्भावस्था के अन्तिम चरण में स्रावित होने वाला यह हार्मोन पॉलीपेप्टाइड प्रकृति का होता है । अपरा भी इस हार्मोन का स्रवण करती है। रिलेक्सिन का प्रभाव (Effect of relaxin) इस हार्मोन का लक्ष्य अंग गर्भाशय की पेशियाँ तथा श्रोणि मेंखला का प्युबिक सिम्फाइसिस (pubic symplysis) होता है।

(i) गर्भावस्था के समापन पर गर्भाशय की पेशियों को कुंसन से रोकता है।

(ii) श्रोणि मेखला पर उपस्थित प्युबिक सिक्फाइसिस नामक जोड़ को शिथिल कर फैला देता है। गर्भाशय ग्रीवा (cervix) को चौड़ा कर शिशु के जन्म को सुगम बना देता है।

एन्ड्रोजन का नियमन लिंग हारमोन्स या (Regulation of sex hormones or androgens)

हाइपोथैलेमस द्वारा स्रावित FSH-RH-LH-RH एवं – pRH जनन हारमोन मोचक हॉरमोन या

कारकों (releasing hormones or factors) के प्रभाव से पीयूष ग्रन्थि के एडिनोहाइपोफाइसिस भाग से पुटक उद्दीपक हार्मोन FSH न्यूटिनाइजिंग हारमोन LH के एडिनाहाइपोफाइसिस भाग से उद्दीपक हार्मोन FSH, ल्यूटिनाइजिंग हारमोन LH तथा प्रोलेक्टिन का लेक्टोजेनिक हार्मोन LTS स्रावित होते हैं।

चित्र – 8.51 लिंग हार्मोन्स का ऋणात्मक पुनर्भरण तंत्र द्वारा नियमन एवं कार्यो का चित्रण

जंतुओं में FSH के प्रभाव के वृषण में शुक्राणुजनन की क्रिया होती है। LH के प्रभाव से शुक्राण 1. परिपक्व होते हैं एवं अन्तराली कोशिकाएँ ( interstitial cells) या लैंडिंग को कोशिकाएँ उत्तेजित होकर टेस्टोरिस्टरॉन का स्रवण करती है। LTH नर जंतुओं में प्रोस्ट्रट ग्रन्थि के परिवर्तन व क्रियाशीलता को प्रभावित करता है।

 

चित्र 8.52 अण्डाशय के कार्य पर हार्मोन्स का नियंत्रण

मादा जंतुओं में FSH के प्रभाव से पुटकी का परिवर्धन एवं परिपक्वन होता है। पुट अण्डकोशिका एवं एस्ट्रोजन का स्रवण करते हैं। LH के प्रभाव से मादा में FSH का सहयोग कर यह अण्डोत्सर्ग एवं एस्ट्रोजन के उत्पादन को नियंत्रित करता है। LTH के साथ एस्ट्रोजन मिलकर दुग्ध ग्रन्थियों से दुग्ध का स्रवण प्रारम्भ करता है व LH के साथ मिलकर पीत पिण्ड को बनाये रख कर प्रोटेस्ट्रान को स्रवण जारी रखवाता है। अतः गर्भावस्था बनी रहती है।

कुछ वैज्ञानिकों की मान्यता है कि इन्हिबिन (inhibin) नामक प्रोटीन प्रकृति का हार्मोन सर्टोली (sertoli) कोशिकाओं द्वारा स्रावित होता है जो पर्याप्त मात्रा में शुक्राणुजन के होने पर स्रावित होकर AFSH-RH को संदमित कर FSH स्रवण को संदमित करता है अतः शुक्राणु उत्पादन कम हो जाता है। यह हार्मोन रज चर्म के दौरान अण्डाशय से भी स्रावित होता है।

  1. अन्य अन्तःस्रावी क्रियाओं वाले अंग (Other endocrine orgens)
  2. थाइमस (Thymus)

भी तृतीय क्लोम धानि (branchinal pouch) की उपकला से विकसित होती है। विभिन्न जंतुओं सभी कशेरूकी जंतुओं में यह संचनाओं पायी जाती है। पेराथॉराइड ग्रन्थि की भाँति यह ग्रन्थि में इसकी संख्या परिमाण एवं उपस्थिति में भिन्नता पायी जाती है। मछलियों में यह क्लोम धानियों। के पृष्ठतः गाँठ के रूप में पर एक जोड़ी ग्रन्थियों के रूप में उपस्थित होती है। पक्षियों में भी यह पायी जाती है। सभी स्तनियों एक जोड़ी पायी जाती है। उभयचारियों एवं सर्पों में ये जबड़ों के कोण में भी यह पायी जाती है। सभी स्तनियों में भी यह पायी जाती है। मनुष्य में ये स्टर्नम (sternum) | के आगे की ओर एवं पेरीकार्डियम (pericardium) के मध्य पायी जाती है। यह अस्थायी ग्रन्थि होती है। शिशुवस्था से विकास के काल में बढ़कर 14-16 वर्ष की युवावस्था के प्रारम्भिक चरण में यह पूर्ण विकसित हो जाती है। युवावस्था के शेष भाग से वृद्धावस्था तक यह घटती हुई मात्र डोरी के रूप में शेष रह जाती है।

चित्र 8.53 मनुष्य में (A) थाइमस ग्रन्थि (B) अनुप्रस्थ काट

थाइमस ग्रन्थि अपनी विकसित अवस्था में कोमल गुलाबी रंग की द्विपालित रचना होती है। यह दो भागों (i) ब्रह्म वल्कुट (cortex) तथा (ii) आन्तरिक मध्यान्श (medulla) में विभक्त होती है। कॉर्टेक्स भाग लम्बी शाखित कोशिकाओं एवं थाइमोसाइट के समूह द्वारा रचित होता है। मध्यान्स व मैड्यूला भाग में भी थाइमोसॉइट ही पाये जाते हैं किन्तु ये संख्या में अपेक्षाकृत कम व अधिक वितरित अवस्था में रहते है । प्रत्येक पिण्ड पर संयोजी ऊत्तक का आवरण पाया जाता है। प्रत्येक पिण्ड में विभक्त रहता है। वल्कुट भाग एवं मध्यान्श में ये उपस्थित कोशिकाएँ थाइमोसाइट (thymocyte) कहलाती है जो लसिकाणुओं (lymphocytes) की आकृति की होती है। मध्यान्श में थाइमोसाइट कोशिकाएँ कुछ अन्य गोलाकार रचनाओं के साथ केन्द्रीय रूप में व्यस्थित होती है। इन्हें हैसल की कणिकाएँ (Hassal’s corpuscles) या थाइमिक कणिकाएँ (thymic corpuscles) कहते हैं।

थाइमस ग्रन्थि द्वारा स्रावित हारमोन्स थाइमोसिन (thymosin) (I) थाइमेसिन (II) तथा थाइमोसिन (III) कहलाते हैं। यह अम्लीय प्रकार का पेप्टाइड है।

थाइमोसिन का प्रभाव ( Effect of thymosin)

(i) शिशु में जन्म के साथ प्रतिरक्षण तंत्र (immune system) अविकसित तथा क्रियाशील नहीं होता है अतः माता के रक्त एवं दुग्ध के साथ प्राप्त प्रतिरक्षी पदार्थों (antibodies) पर ही निर्भर रहना पड़ता है। थाइमस ग्रन्थि के विकसित होने पर लिम्फोसाइट कोशिकाएँ बनकर प्लीहा (spleen) पेयर के अंग (payer’s patches) लसिका गांठों (lymph nodes) आदि परिधीय सीका तर्कों में जालकर वृद्धि करने लगती है। थाइमस से थाइमोसिन स्रावित होकर इनलिम्फोसाइट्स को जीवाणुओं द्वारा मुक्त किये गये प्रतिजैविकों (antigens) को नष्ट करने हेतु प्रेरित करते हैं। इस प्रकार शीघ्र ही प्रतिरक्षी तंत्र (immunological system) को गठन को जाता है।

(ii) थाइमोसिन जंतु की वृद्धि को तीव्र गति प्रदान करने एवं जननागों के परिपक्वन में सहायक होता है। जनदनाशन (castration) के परिमाणतः थाइमस में होने वाले प्रतिगामी परिवर्तन (retrogressive changes) मन्द हो जाते हैं जबकि जनन क्रिया से ये परिवर्तन तीव्र हो जाते हैं। इस प्रकार के प्रयोगों से यह निष्कर्ष सामने आये हैं कि थाइमस एवं जनन ग्रन्थियों के बीच एक व्युत्क्रम सम्बन्ध (reciprocal relation-ship) पाया जाता है।

(II) पीनियल ग्रन्थि (Pineal gland)

सभी कशेरुकाओं में पीनियल ग्रन्थि या पीनियल काय वृत्त समान या शकुंकार (cone shaped) रचना होती है। मस्तिष्क के पृष्ठत: कॉर्पोरा काड्रिजेमिना (corpora quadrigemina) के अग्रतः स्थित होती है। कुछ सरीसृपों, पक्षियों एवं स्तनियों में एपिफाइसिस (epiphysis) को पीनियल ग्रन्थि का समजात अंग माना जाता है। मनुष्य में यह ग्रन्थि मस्तिष्क के मस्तिष्क गोलार्धो के मध्य तृतीय वेन्ट्रकुल की छत पर आधारीय खोखले वृन्त से संलग्न संरचना के रूप में पायी जाती है। यह श्वेत रोग की चपटी एवं बहुपालित रचना है जो 8-12 मि.मी. लम्बी और 5-8 मि.मी. चौड़ी होती है। यह रचना मृदुतानिका (epiphysis cerebri) के नाम से भी जानी जाती है। इस ग्रन्थि में सम्पुट भाग से विकसित अनेक पट (septa) केंद्रीय भाग की ओर निकले रहते हैं।

चित्र 8.54 : पीनियल ग्रन्थि

पिनियल ग्रन्थि की प्रत्येक पालि में प्रकार की शाखान्वित कोशिकाएँ पायी जाती है- (i) तंत्रिका कोशिकाओं के रूपान्तरण द्वारा निर्मित आकृति की सूक्ष्म प्रवर्ध युक्त पीनियेलोसाइट्स (pinealocytes)।

(ii) पीनियलोसाइस के अवलम्बन हेतु उपस्थित कोशिकाएँ अन्तराली या न्यूरोग्लियल कोशिकाएँ (interstitial or neuroglial cells) ये कोशिकाएँ छोटे एवं गहरे रंग की केन्द्रक युक्त होती हैक्। सम्पुट के कुछ भागों में विभिन्न आकारों के अनेक पुंज ( acervate) भी पाये जाते कुछ निम्न कशेरुकी जन्तुओं उदाहरणस्वरूप स्फीनोडॉन (shpenodon) में दो काय पायी जाती है। इनमें एक पेरापीनियम (parapineal) काय होती है जो करोटि की छत पर खुलती है इसे तृतीय नेत्र (thrid eye) भी कहते हैं तथा दूसरी गहराई में स्थित कार्य एपिफाइसिस (epiphysis) होती है। इन जंतुओं के पेरीपीनियल अंग रेटिना की दृक कोशिकाओं से समानता रखती है। इन जन्तुओं के पेरीपीनियल अंग पक्षियों एवं स्तनियों के पेरापीनियल अंगों से भिन्न होते हैं। यह विश्वास किया जाता है कि इन जन्तुओं का तृतीय नेत्र उन कार्यिकीय क्रियाओं का संचालन करता है तो तापक्रम एवं प्रकाश की अवधि के द्वारा प्रभावित होते हैं।

वैज्ञानिकों ने पाया है कि वातावरण में व्याप्त प्रकाश की मात्रा का जो प्रभाव जनन ग्रन्थियों पर होता है। यह अंग इनकी मध्यस्थता करता है। प्रकश की सूचनाएँ रेटिना द्वारा ग्रहण की जाती है तथा अनुकम्पी तंत्रिकाओं (sympathetic herves) के माध्यम से तंत्रिका आवेग पीनिलयल काय तक भेजे जाते हैं। इन आवेगों के प्रति अनुक्रिया के फलस्वरूप पीनिलय काय मिथेक्सी-इन्डोल का उत्पाद करती है जिससे जनन ग्रन्थियाँ प्रभावित होती है। कुछ प्रमाणों के आधार पर यह माना जाता है कि पीनियल ग्रन्थि एवं जनदों के परिवर्धन के मध्य कोई विशिष्ट सम्बन्ध होता है। पीनियल अर्बुद (tumors) वाले प्राणियों में जनद समय से पूर्व परिपक्व होते हैं जबकि वास्तविक पेरनकाइमायुक्त पीनियल काय में जनद समय से पूर्व परिपक्व होते हैं जबकि वास्तविक पेरनकाइमायुक्त पीनियल काय युक्त प्राणियों में जन दो का विकास क्षीण प्रकार का होता है। जिन जंतुओं में पीनियल ग्रन्थि को नष्ट कद दिया गया था उनमें जनद सामान्य जंतुओं की अपेक्षा अधिक विकसित हो जाते हैं।

जैव रसायनिक परीक्षणों से ज्ञात हुआ हे कि इस ग्रन्थि में हाइड्रोक्सिइन्डोल 0 मिथाइलट्रान्सफरेज (hydroxyindole-o-methyl-transferease) HIOMT एंजाइम अधिक मात्रा में पाया जाता है। चूहों में किये गये परीक्षणों से ज्ञात होता है कि HIOMT की क्रिया से मिलेटोनिन दिन की अपेक्षा रात्रि को अधिक मात्रा से स्रावित होता है। इस कि क्रिया भी एस्ट्रस चक्र हेतु विशिष्ट प्रकार की होने लगती है। वैज्ञानिकों की मान्यता है कि चूहों में यह अंग तंत्रिका अन्तःस्रावी प्रभावकारी (neuroendocrine transductor) अंग के रूप में कार्य करता है । सम्भवतः प्रकाश अवधि की सुचनाएँ दृक अंगों द्वारा पीनियल काय तक जाती है जो कुछ हार्मोनों का स्रावण करती है जिनका प्रभाव जनदों एवं अन्य अन्तःस्रावी ग्रन्थियों अंगों तथा अंग तंत्रों पर भी होता है। उभयचारी जंतुओं में पाया गया है कि मिलेटोनिन का प्रभाव क्रोमेटोफोर तंत्र (chromatophore system) पर होता है। पक्षियों एवं स्तनधारियों के पीनियल काय में अमीनों अम्ल सीरेटोनिन तथा फॉस्फेट समूह की मात्रा अधिक होती है।

हाल में किये गये कुछ प्रयोगों से निष्कर्ष निकाला गया है कि पीनियल काय दो प्रकार के हार्मोनों का स्रवण करती है।

(i) मिलेटोनिन (Melatonin) (ii) सिरेटोनिन (Seratonin)

निम्न कशेरूकीयों में मिलेटोनिन का त्वचा में स्थित मिलेनोफोर कोशिकाओं पर विपरीत प्रभाव होता है तथा त्वचा रंग हल्का हो जाता है। स्तनियों में मिलेटोनिन जननांगों के विकास एवं कार्यशीलता का संदमन (inhibition) करता है।

यह रजीचक्र को धीमा करता है अतः अण्डाशय का आकार घटने लगता है। चहों में इस ग्रन्थि को देने पर इनमें जनद समय से पूर्व विकसित होते हैं तथा आकार में बड़े होते हैं। इन जंतुओं में मैथुनेच्छा तीव्र हो जाती है। सम्भवतः यह ग्रन्थि लैंगिक आचरण को प्रकश काल की विभिन्नता (photo periods) के अनुसार नियंत्रित कर एक जैविक घण्ड़ी (biological clock) के सामन कार्य करती है।

जन्माध शिशुओं में यौवनावस्था शीघ्र आ जाती है क्योंकि प्रकाश प्रेरणाओं के अभाव में मिलेटोनिन की अपेक्षित मात्रा का स्रावण नहीं हो जाता है। मिलेटोनिन का स्राव पीयूष ग्रन्थि द्वारा उत्पन्न MSH के प्रभाव से होता है।