(refining or purification of metals in hindi) शोधन या परिष्करण : आपने अक्सर सुना होगा कि 24 कैरेट सोना सबसे अधिक शुद्ध होता है या दूकान पर लिखा होता है कि यहाँ 24 कैरेट गोल्ड मिलता है , इसका मतलब यह है कि यह सोना सबसे अधिक शुद्ध मात्रा में है।
लेकिन जब किसी सोने को खनिज आदि से प्राप्त करते है तो यह इस रूप में नही होता है जब कोई भी धातु खनन आदि से प्राप्त की जाती है तो यह शुद्ध अवस्था में नहीं पायी जाती है , खनन के समय प्राप्त धातु में कुछ न कुछ अशुद्धियाँ अवश्य रहती है।
जब खनन से अयस्को को प्राप्त किया जाता है तो इन अयस्को या
निष्कर्षण करने से हमें धातु प्राप्त होती है लेकिन धातु निष्कर्षण के बाद भी प्राप्त धातु पूर्ण रूप से शुद्ध नहीं होता है , निष्कर्षण के बाद प्राप्त धातुओं को अपरिष्कृत या कच्ची धातु कहते है।
इस अपरिष्कृत या कच्ची धातु से शुद्ध धातु प्राप्त करने के लिए जो प्रक्रिया काम में ली जाती है उसे शोधन या परिष्करण कहते है।
धातुओं को परिष्कृत करने के लिए विभिन्न विधियाँ काम में ली जाती है , यह धातु और अशुद्धियों के प्रकार पर निर्भर करता है कि कौनसी जगह किस विधि को काम में लिया जायेगा।
“शोधन या परिष्करण धातुकर्म की अंतिम प्रक्रिया जिसके बाद प्राप्त धातु पूर्ण रूप से शुद्ध अवस्था में होती है “
शोधन या परिष्करण प्रक्रिया के बाद प्राप्त धातु में अशुद्धियाँ नहीं होती है , इस प्रक्रिया में धातु का रासायनिक संघटन परिवर्तित नहीं होता है।
शोधन या परिष्करण की मुख्य विधियाँ निम्न है –
आसवन (Distillation)
कुछ धातुएं ऐसी होती है जिनका क्वथनांक बहुत कम होता है जैसे जिंक , मर्करी आदि , जब ऐसी धातुओं को उच्च ताप पर गर्म करने से ये धातु तेजी वाष्पित होने लगती है और अपने पीछे अशुद्धियों को छोड़ जाती है।
इन धातुओं को गलनांक बिंदु से भी अधिक ताप पर गर्म किया जाता है और वाष्पित धातु को पुन: संग्राहक में प्राप्त कर उसे ठंडा करके इक्कठा कर लिया जाता है , संग्राहक में प्राप्त धातु अब शुद्ध अवस्था में है , इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को आसवन कहते है। यहाँ ध्यान दे धातु के साथ मिली अशुद्धियाँ अवाष्पशील है इसलिए वे उच्च
ताप पर भी वाष्पित नहीं हो पायी जबकि धातु वाष्पित हो गयी।
द्रव गलन परिष्करण (liquation)
यह विधि भी उन धातुओं के लिए ही काम में ली जाती है जिनका
क्वथनांक कम होता है , इस विधि में एक ढलान वाले चूल्हे पर अशुद्ध धातु को रखा जाता है और उसे उच्च ताप दिया जाता है , चूँकि धातु का क्वथनांक कम है इसलिए ताप मिलने से धातु बहने लगती है और निचे लगे पात्र में गिरने लगती है लेकिन अशुद्धियाँ बह नही पाती है और पीछे रह जाती है इस प्रकार पात्र में प्राप्त धातु शुद्ध रूप में होती है।
विद्युत अपघटनी शोधन (Electrolytic Refining)
शोधन की यह विधि सबसे अधिक काम में आने वाली प्रकिया है क्यूंकि यह अधिकतर धातुओं के शोधन के लिए उपयोगी है या इस शोधन विधि का उपयोग कर अधिकतर धातुओं का शोधन किया जाता है।
इस प्रक्रिया में हम धातु तथा अशुद्धियों की विद्युत रसायन गुणों में अंतर को काम में लेते है।
इस प्रक्रिया में अशुद्ध धातु को एनोड बनाते है और शुद्ध धातु की पट्टी को कैथोड बनाते है।
अब इन दोनों इलेक्ट्रोड को उचित विद्युत अपघटनी पात्र में रख देते है , इस विद्युत अपघटनी पात्र उसी धातु का लवण घुला हुआ रखते है , इसके बाद हम इस पात्र में
विद्युत धारा प्रवाहित करते है।
इससे एनोड से शुद्ध धातु
विलयन में घुलने लगती है और यह शुद्ध धातु कैथोड पर प्राप्त कर ली जाती है तथा अशुद्धियाँ या तो घुल जाती है और पैंदे पर इक्कठी हो जाती है या एनोड सिरे पर नीचे की तरफ इकट्ठी हो जाती है।
उदाहरण : कॉपर धातु का शोधन इस विधि द्वारा किया जाता है इसके लिए इसे कॉपर सल्फेट का विद्युत अपघट्य काम में लिया जाता है जिसमें अशुद्धियाँ जैसे लोहा , जिंक आदि घुल जाती है।
मण्डल परिष्करण (Zone refining)
मंडल परिष्करण भी धातुओं के शुद्धिकरण के लिए एक विशेष तरीका है , इस विधि या प्रक्रिया की आविष्कार “विलियम Pfann” ने किया था।
यह विधि इस सिद्धांत पर आधारित होता है कि अशुद्धियो की विलेयता धातु की
ठोस अवस्था की अपेक्षा गलित अवस्था में अधिक होती है।
इस प्रक्रिया में एक अशुद्ध धातु की छड लेते है और इस छड को एक कैंटेनर में रख देते है और इसमें अक्रिय गैस भर देते है।
इसमें एक वृत्ताकार गतिशील तापक लगा रहता है , तापक जैसे ही आगे की और बढ़ता है , गलित से शुद्ध धातु क्रिस्टलित हो जाती है और अशुद्धियाँ संलग्न गलित मण्डल में चली जाती है।
इस प्रक्रिया को बार बार दोहराया जाता है तथा तापक या हीटर को एक निश्चित दिशा में बार बार चलाया जाता है जिससे अशुद्धियाँ छड के एक किनारे पर एकत्रित हो जाती है और दूसरी तरफ शुद्ध धातु एकत्रित हो जाती है , अब अशुद्धियों वाले सिरे को काटकर लग कर लिया जाता है जिससे अब छड शुद्ध धातु की बनी हुई प्राप्त होती है , इस विधि द्वारा जर्मेनियम , सिलिकन आदि अर्धचालको को शुद्ध अवस्था में प्राप्त किया जाता है।
वर्ण लेखिकी विधि (Chromatographic Method)
यह विधि इस सिद्धांत पर आधारित होती है कि अधिशोषक पर मिश्रण के अलग अलग घटकों का अधिशोषण अलग अलग होता है।
पहले अशुद्ध मिश्रण को किसी द्रव या गैसीय माध्यम में रखा जाता है और फिर इसमें से एक अधिशोषक को गुजारा जाता है।
इनकी
अधिशोषण के क्षमता के अनुसार अधिशोषक पर अलग अलग स्तरों पर घटक अधिशोषित हो जाते है इसके बाद अधिशोषित घटकों को उपयुक्त विलायक द्वारा निक्षालित कर लिया जाता है।