मात्रात्मक परिवर्तन की परिभाषा क्या है | गुणात्मक परिवर्तन किसे कहते है Quantitative change in hindi
Quantitative change in hindi qualitative change in sociology मात्रात्मक परिवर्तन की परिभाषा क्या है | गुणात्मक परिवर्तन किसे कहते है ?
मात्रात्मक से गुणात्मक परिवर्तनों में परिवर्तन का नियम
प्रकृति में प्रत्येक वस्तु निरंतर गति और परिवर्तन की स्थिति में है। किसी भी नियत समय पर कुछ वस्तुएं अस्तित्व में आ रही हैं, कुछ वस्तुएं विकसित हो रही हैं तथा कुछ वस्तुएं क्षरित हो रही हैं अथवा उनका अस्तित्व समाप्त हो रहा है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि प्रत्येक वस्तु निरंतर परिवर्तनशील है। जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि मार्क्स की मान्यता थी कि यथार्थ का नियम परिवर्तन का नियम है। अब परिवर्तन की प्रकृति के बारे में प्रश्न उठता है कि यह परिवर्तन किस प्रकार का परिवर्तन है ? प्रस्तुत नियम इस विशिष्ट समस्या का समाधान करता है। इस नियम के अनुसार, परिवर्तन की प्रक्रिया सरल अथवा क्रमिक नहीं होती, अपितु यह अनेक मात्रात्मक परिवर्तनों का परिणाम होती है, जो कि अंततरू परिपक्व दशाओं की उपलब्धि होने पर किसी भी निश्चित समय पर अमूर्त गुणात्मक परिवर्तनों से गुजरती है। घटनाओं की पुनरावृत्ति कभी नहीं होती। यह परिवर्तन सदैव निम्न से उच्चतर की ओर, सरल से जटिल की ओर, तथा यथार्थ के समांग (homogenous) स्तर से विषमांग (heterogenous) स्तरों की ओर होता है।
आइए, अब हम मात्रात्मक और गुणात्मक परिवर्तनों को विस्तार से समझें। किसी भी नई अवस्था के प्रादुर्भाव या जन्म तथा किसी भी प्राचीन अथवा पुरानी अवस्था की समाप्ति या विलुप्ति को तार्किक एवं दार्शनिक रूप से गुणात्मक परिवर्तन कहा जा सकता है। जबकि अन्य सभी परिवतेन जिनमें किसी भी वस्तु के विभिन्न अंग अथवा पक्ष पुनर्व्यवस्थित हो जाते हैं, बढ़ जाते हैं, अथवा घट जाते हैं, परंतु उस वस्तु की मूल पहचान नहीं बदलती, तो उस स्थिति को मात्रात्मक परिवर्तन कहा जा सकता है। इसको और अधिक सरल रूप से समझने के लिये, यह कहा जा सकता है कि गुणात्मक परिवर्तनों के दो स्वरूप होते हैंः (प) कोई वस्तु जिसका अस्तित्व नहीं था, लेकिन अब वह अस्तित्व में आ गई है, तथा (पप) कोई वस्तु जो पहले अस्तित्व में थी, लेकिन अब उसका अस्तित्व समाप्त हो गया। दूसरी ओर मात्रात्मक परिवर्तन असीमित रूप से व्यापक होते हैं। उदाहरणार्थ छोटा-बड़ा, कम-अधिक, कभी-कभी, तेज-धीमा, गर्म-ठण्डा, भारी-हल्का, बेहतर-घटिया, समृद्ध-निर्धन, आदि । वस्तुतः प्रकृति की प्रत्येक वस्तु में मात्रात्मक परिवर्तन निरंतर घटित होते रहते हैं और प्रत्येक प्रक्रिया की प्रकृति द्वारा निर्धारित सीमा तक पहुंच जाते हैं तो इनमें अपरिहार्य महापरिवर्तन होते हैं। जब निरंतर परिवर्तन एक विशिष्ट सीमा तक पहुंच जाता है, जिसके परे और अधिक मात्रात्मक परिवर्तन संभव नहीं है। परिपक्वता की स्थिति को दर्शनशास्त्र में मापात्मकता (उमंेनतम) की सीमा कहते हैं। यह महापरिवर्तन गुणात्मक परिवर्तन है। इसका एक ठोस उदाहरण दिया जा सकता है, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये एक शताब्दी से अधिक समय तक चलता रहा तथा इसमें निरंतर मात्रात्मक परिवर्तन आते रहे और जब वह अपनी सीमा पर पहुंच गया तो 15 अगस्त, 1947 की मध्य रात्रि को महापरिवर्तन घटित हुआ और भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया। उपनिवेशवाद से मुक्ति गुणात्मक परिवर्तन था। इसी प्रकार व्यक्ति में आयु बढ़ने की प्रक्रिया एक क्षण के लिये भी नहीं रुकती। व्यक्ति प्रति क्षण उम्र में बढ़ते रहते हैं। अर्थात् लोग निरंतर मात्रात्मक परिवर्तनों से गुजरते रहते हैं और जब वे प्रकृति द्वारा निर्धारित सीमा पर पहुंच जाते हैं तो उनमें गुणात्मक परिवर्तन आता है, अर्थात् मृत्यु हो जाती है। इसी उदाहरण को किसी शिशु के जन्म पर भी लागू किया जा सकता है। गर्भधारण के दिन से ही पूरे गर्भकाल में गर्भस्थ शिशु में मात्रात्मक परिवर्तन होते रहते हैं, परन्तु गुणात्मक परिवर्तन उसी क्षण होता है, जब शिशु का इस विश्व में आगमन होता है, अर्थात् उसका जन्म होता है। अतः यहाँ पर मात्रात्मक परिवर्तनों से गुणात्मक परिवर्तनों में परिवर्तन के नियम अथवा गुणात्मक परिवर्तनों से मात्रात्मक परिवर्तनों के नियम अथवा इस स्तर का अर्थ परिपक्वता अथवा मापात्मकता (उमंेनतम) की स्थिति प्राप्त करने तक निरंतर मात्रात्मक परिवर्तन से है, जिनके कारण यकायक गुणात्मक परिवर्तन होते हैं. जो कि आगे होने वाले निरंतर मात्रात्मक परिवर्तनों को निर्धारित करते हैं। आइए, अब हम देखें कि मार्क्स ने मानव इतिहास में सामाजिक परिवर्तन को समझने के लिए वाद-संवाद प्रक्रियापरक भौतिकवाद के नियमों का प्रयोग कैसे किया। लेकिन पहले बोध प्रश्न 1 को जरूर पूरा कर लें ताकि अभी तक इस इकाई में पढ़ी पाठ्य सामग्री को दुहराया जा सके।
बोध प्रश्न 1
प) वाद-संवाद प्रक्रियापरक भौतिकवाद के नियमों के नाम लिखिये।
पप) दो पंक्तियों में मात्रात्मक परिवर्तन की परिभाषा दीजिये।
पप) गुणात्मक परिवर्तन को तीन पंक्तियों में परिभाषित कीजिये।
बोध प्रश्न 1 उत्तर
प) मात्रात्मक से गुणात्मक परिवर्तनों में परिवर्तन का नियम, निषेध का निषेध नियम, विपरीत की एकता व संघर्ष का नियम।
पप) किसी भी वस्तु में ऐसा लघु अथवा वृहत् परिवर्तन जिसमें कि वस्तु की पहचान परिवर्तित नहीं होती।
पपप) नये का प्रादुर्भाव या प्राचीन की विलुप्ति गुणात्मक परिवर्तन है।
शब्दावली
वाद-सवांद प्रक्रिया दो परस्पर विरोधी शक्तियों अथवा प्रवृत्तियों के बीच संघर्ष ।
वाद-संवाद प्रक्रियापरक यह वह मार्क्सवादी सिद्धांत है जो प्रत्येक वस्तु की व्याख्या
भौतिकवाद परिवर्तन के संदर्भ में करता है। यह परिवर्तन पदार्थ में अंतर्निहित परस्पर विरोधी शक्तियों के निरंतर विरोधाभास के कारण होता है।
निषेध एक नई अवस्था, जो कि गुणात्मक परिवर्तन का परिणाम होती है तथा प्राचीन को प्रतिस्थापित करने के लिये एक प्रगतिशील परिवर्तन है।
निषेध का निषेध जब कोई वस्तु किसी प्राचीन व्यवस्था के निषेध के फलस्वरूप अस्तित्व में आती है तथा दुबारा इस वस्तु का निषेध गुणात्मक परिवर्तन के माध्यम से हो जाता है।
गुणात्मक परिवर्तन नये का प्रादुर्भाव या प्राचीन की विलुप्ति गुणात्मक परिवर्तन है।
मात्रात्मक परिवर्तन किसी भी वस्तु में ऐसा छोटा अथवा बड़ा परिवर्तन जिसमें कि वस्तु की पहचान परिवर्तित नहीं होती।
कुछ उपयोगी पुस्तकें
मार्क्स, कार्ल एण्ड एंजल्स, एफ., 1975. कलैक्टेड वर्क्स (वाल्यूम 6). मास्को प्रोग्रेस पब्लिशर्स लंदन
सांस्कृत्यायन, राहुल, 1954. कार्लमार्क्स. किताब महलः इलाहाबाद
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