लोक संबंध किसे कहते हैं ? Public Relations in hindi definition in ethics लोक संबंध और नीतिशास्त्र
लोक संबंध और नीतिशास्त्र लोक संबंध किसे कहते हैं ? Public Relations in hindi definition in ethics ?
लोक संबंध (Public Relations)
संगठन चाहे निजी हो या सरकारी, इनके व्यवस्थित संचालन में लोक संबंधों की भूमिका अहम होती जा रही है। ये न सिर्फ संगठन के निर्णयों को प्रभावित कर रहे हैं बल्कि जनमत पर भी इनका
असर होता दिख रहा है। वर्तमान में लोक संबंध से जुड़े कार्य किसी भी संस्था या संगठन के लिए अपरिहार्य माने जाने लगे हैं। इसकी बढ़ती हुई महत्ता के कारणों को निम्नलिखित रूप में रेखांकित किया जा सकता हैः
ऽ लोक संबंधों के लिए किये गए पहल के द्वारा सूचना की स्वतंत्रता तथा अभिव्यक्ति के अधिकार को स्वीकृति व पहचान मिलती है।
ऽ दूरसंचार तथा यातायात के क्षेत्र में हुई प्रगति से भी लोक संबंधों को प्रोत्साहन मिल रहा है।
ऽ वर्तमान में वैश्वीकरण के बढ़ते प्रभाव एवं पारंपरिक रूप से बंद समाजों में आए खुलेपन से भी लोक संबंधों को समर्थन मिलने लगा है।
ऽ स्वयं सरकार भी सत्ता में बने रहने के अलावा विकासात्मक कार्यों के लिए भी लोक संबंधों की दिशा में पहल कर रही है।
ऽ वर्तमान में व्यावसायिक गतिविधियों के बढ़ने, नये-नये उपक्रमों के खुलने, इनके बीच व्यावसायिक गठजोड़ के बनने तथा दूसरे देशों एवं दूसरी संस्कृतियों तक बिजनेस-व्यापार के संचालन में भी लोक संबंधी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है।
लोक संबंध और नीतिशास्त्र (लोक संबंधों में नैतिकता)
किसी भी संस्था या संगठन द्वारा लोक संबंधों के लिए की जाने वाली पहल एक लम्बी कार्य योजना है। इसके अन्तर्गत इस बात का प्रयास किया जाता है कि लोग संस्था/संगठन से जुड़े विचारों एवं मनोवृतियों को स्वेच्छा से अपनाएं ताकि आम जनता एवं संगठन के बीच पारस्परिक समझ व संबंध कायम हो। यह तभी संभव है जब लोक संबंधों के लिए तैयार की गई नीतियां कुछ नैतिक मानकों पर आधारित हो तथा इसके लिए इस्तेमाल किए जाने वाले स्त्रोत व साधन वैध हों। लोक संबंधों का महत्तम लक्ष्य चाहे कितना भी वैध हो परंतु इसके साधन के रूप में छल, बल या झूठ-फरेब को किसी भी स्थिति में वैध नहीं ठहराया जा सकता।
हालांकि, क्या नैतिक है और क्या अनैतिक यह तय करना एक दुष्कर कार्य है परंतु सहज शब्दों में कहा जाए तो अपने विवेक तथा अंतः अनुभूति के आधार पर सही और गलत विकल्पों का चुनाव ही नैतिक और अनैतिक के फर्क को स्पष्ट कर देता है। कुछ भी ऐसा जो वैध और उचित न हो, व्यक्ति के मन में असंतोष पैदा करता है और वह अपराध बोध से ग्रस्त हो जाता है। झूठ और फरेब के आधार पर संबंधों को कभी भी मजबूत नहीं बनाया जा सकता। आम जनता को कम आँकना और उन्हें बेवकूफ समझना किसी भी स्थिति में उचित नहीं। अब्राहम लिंकन के शब्दों में, ‘‘कुछ लोगों को हमेशा बेवकूफ बनाया जा सकता है, सभी लोगों को थोड़े समय के लिए बेवकूफ बनाया जा सकता है लेकिन सभी लोगों को हमेशा बेवकूफ बनाना संभव नहीं।‘‘ कई ऐसे कार्य हैं जिन्हें लोक संबंध के संदर्भ में अनैतिक अर्थात् नैतिक मानकों के खिलाफ माना जाता है, जैसे महत्वपूर्ण सूचनाओं को छिपाना या फिर लोगों को गुमराह करना। ऐसे ही कुछ अन्य अनैतिक कार्य व्यवहार इस प्रकार हैं-
ऽ संस्था/संगठन से जुड़े नकारात्मक सूचनाओं को प्रेक्षित न करना।
ऽ तथ्यों को तोड़मरोड़ कर पेश करना।
ऽ किसी मुद्दे के लिए संघर्ष करने के बजाए उसे स्थगित करने का निश्चय कर अपना ही कोई हित साधना।
ऽ वे वादे करना जिन्हें पूरा नहीं किया जा सकता।
ऽ सम्पादकों पर गलत तरीके से दबाव बनाकर उनसे ऐसी सूचनाएं छपवाना जो प्रचार का माध्यम बने।
आजकल लोगों में शिक्षा का प्रसार बड़ी तेजी से हो रहा है। जनता अपने अधिकारों के प्रति सजग हो गई है। ऐसे में लोक संबंध से जुड़े अधिकारियों के समक्ष नयी चुनौतियाँ आ रही हैं क्योंकि अब उन्हें व्यापार संबंधों, उपभोक्ता संरक्षण समूहों तथा पर्यावरण संरक्षण से जुड़े कार्यकर्ताओं से भी निपटना पड़ सकता है। अतः लोक संबंध अधिकारियों के लिए अब यह आवश्यक हो गया है कि वे अपने आचरण को नियमित करें, नैतिकता के मानदंडों की अनदेखी न करें तथा लोगों को साथ बातचीत के दौरान कानूनी पेचीदगियों को भी ध्यान रखें।
लोक संबंधों में नैतिक मूल्य
लोक सेवा में नैतिक मूल्यों व नीतियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। परन्तु इन नैतिक मूल्यों व मानकों को स्पष्ट रूप से रेखांकित करना एक कठिन कार्य है जबकि यह सच है कि ये ही वस्तुतः लोक सेवा की प्रकृति को परिभाषित करते हैं साथ ही उसे एक मजबूत आधार भी प्रदान करते है। दरअसल आचरण के ये मानक जनता एवं लोक सेवक दोनों ही के लिए अपरिहार्य हैं और उनके कार्य-व्यवहार के लिए एक ढांचा प्रस्तुत करते हैं जिसके दायरे में ही लोक सेवा व लोक संबंधों का स्वस्थ संचालन संभव है। खासकर लोक सेवकों के लिए इन नैतिक मूल्यों व नियमों की महत्ता इस बात में भी है कि इनके प्रति सम्मानजनक दृष्टिकोण अपनाने के कारण ही वे जनता को कुशल व प्रभावी सेवा प्रदान कर पाते है।
इन नैतिक सिद्धान्तों को एक उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है जिसे नोलान कमिटी (ग्रेट ब्रिटेन) द्वारा प्रस्तुत किया गया था। यह सिद्धान्त इस प्रकार हैंः
निःस्वार्थता: लोक सेवा से जुड़े अधिकारियों को अपने सारे निर्णय सिर्फ लोकहित में ही लेना चाहिए। लोक सेवक होने के नाते उन्हें ऐसा कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए जिससे स्वयं उन्हें या फिर उनके परिवार व मित्रों को वित्तीय लाभ या अन्य फायदा पहुंचे।
सत्यनिष्ठा: लोक सेवा से जुड़े अधिकारियों को आम जनता या बाह्य संगठनों से किसी प्रकार का वित्तीय लाभ या अन्य फायदे स्वीकार नहीं करना चाहिए। इससे उनके कर्त्तव्य निष्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। दूसरे शब्दों में, उनकी निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है।
वस्तुनिष्ठता: लोक सेवा से जुड़े अधिकारियों को अपने कार्य व्यापार में, जैसे लोगों से मिलने-जुलने, ठेका आवंटन अथवा लाभ और पुरस्कार की घोषणा आदि में योग्यता के आधार पर ही चुनाव करना चाहिए।
जवाबदेयता: लोक सेवा से जुड़े अधिकारीगण अपने निर्णयों एवं कार्यवाहियों के लिए जनता के प्रति जवाबदेय होते हैं। अतः इनके कार्यों की समीक्षा किए जाने की स्थिति में उन्हें अनिवार्य रूप से आज्ञाकारी और विनम्र बने रहना चाहिए।
खुलापनः लोक सेवकों को अपने कार्यों एवं निर्णयों में यथासंभव पारदर्शिता बरतनी चाहिए। अपने निर्णयों के लिए उन्हें ठोस युक्ति व कारण बताना चाहिए तथा सूचना की गोपनीयता तब तक बरतनी चाहिए जब तक कि व्यापक जनहित में इसका खुलासा अनिवार्य न हो।
ईमानदारीः लोक सेवकों का यह कर्तव्य है कि वे लोक सेवा से जुड़े किसी निजी हित का स्पष्टीकरण करें तथा निजी हित और लोकहित के बीच संघर्ष की स्थिति हर संभव ऐसा प्रयास करे कि लोकहित को ही प्रमुखता मिले।
नेतृत्वः लाक सेवकों को अपने नेतृत्व की क्षमता व अन्य उदाहरणों के माध्यम से नैतिक मूल्यों का समर्थन व प्रसार करना चाहिए।
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