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स्थितिज ऊर्जा : प्रत्यास्थ ,गुरुत्वाकर्षण (गुरुत्वीय), विद्युत स्थितिज उर्जा (potential energy in hindi)

(potential energy in hindi) स्थितिज ऊर्जा क्या है , परिभाषा , सूत्र , प्रकार , स्थितिज ऊर्जा के उदाहरण : प्रत्येक वस्तु में इसकी स्थिति के कारण एक ऊर्जा निहित रहती है , वस्तु में इसकी स्थिति के कारण निहित इस ऊर्जा को स्थितिज ऊर्जा कहते है। जब कोई वस्तु विराम अवस्था में होती है तो इसमें स्थितिज ऊर्जा विद्यमान रहती है। जैसे किसी झील में भरा हुआ पानी , ड्रम में भरा हुआ तेल , कोयला तथा टेबल पर रखी किताब में स्थितिज ऊर्जा विद्यमान रहती है। जब भी जरुरत पड़ती है इस स्थितिज ऊर्जा का उपयोग किया जा सकता है।
स्थितिज ऊर्जा एक अदिश राशि है अर्थात इस ऊर्जा के लिए केवल परिमाण को दर्शाया जा सकता है लेकिन इसकी दिशा को परिभाषित नही किया जा सकता है।
उदाहरण : किसी पहाड़ी पर रखे पत्थर में इसकी स्थिति के कारण इसमें स्थितिज ऊर्जा निहित रहती है , पत्थर जितनी ऊपर होता है उसमे इस स्थितिज का मान उतना ही होता है , जब एक ही पत्थर को अलग अलग ऊंचाई से किसी चीज पर गिराई जाए या लुढ़काया जाए तो अधिक ऊंचाई वाला पत्थर अधिक घातक होता है क्यूंकि अधिक ऊँचाई पर स्थित पत्थर पर इसकी ऊर्जा अधिक होती है।
जब पत्थर को लुढ़काया जाता है तो पत्थर में निहित स्थितिज ऊर्जा , गतिज ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है अत: किसी पिण्ड की स्थितिज ऊर्जा अधिक होगी तो इसकी गतिज ऊर्जा का मान भी अधिक होगा जब इसको लुढ़काया जाए।

इसी प्रकार तीर को धनुष में इसकी स्थिति के कारण इसमें स्थितिज ऊर्जा निहित रहती है , धनुष को जब छोड़ा जाता है तो इसमें विद्यमान स्थितिज ऊर्जा , गतिज उर्जा में परिवर्तित होने लगती है।
धनुष को जितना अधिक खिंचा जाए इसकी स्थितिज ऊर्जा उतनी ही अधिक होती है और जब छोड़ा जायेगा तो उतनी अधिक मात्रा में गतिज ऊर्जा होगी इसलिए जोर से खिंचकर छोड़ने से तीर अधिक दूर जाकर गिरता है।

स्थितिज ऊर्जा के प्रकार (types of potential energy)

स्थितिज उर्जा को तीन भागों में बांटा गया है –
1. प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा (Elastic Potential Energy)
2. गुरुत्वाकर्षण (गुरुत्वीय) स्थितिज ऊर्जा (Gravitational Potential Energy)
3. विद्युत स्थितिज उर्जा (electrical Potential Energy)

अब हम यहाँ इन तीनो प्रकार की स्थितिज उर्जा को विस्तार से अध्ययन करते है –

1. प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा (Elastic Potential Energy)
कोई भी वस्तु जिसमे प्रत्यास्थ गुण पाया जाता है उसमे इस प्रकार की स्थितिज ऊर्जा पायी जाती है इसका सबसे अच्छा उदाहरण है स्प्रिंग या रबर।
ये सभी वस्तुएँ हुक के नियम का पालन करती है।
जब प्रत्यास्थ वस्तु को खिंचा जाता है या दबाया जाता तो इसमें स्थितिज ऊर्जा के रूप में ऊर्जा संचित हो जाती है। किसी प्रत्यास्थ वस्तु (स्प्रिंग) पर जितना अधिक बल लगाया जाता है उसमे संपीडन उतना ही अधिक उत्पन्न होता है अत: हुक का नियम के अनुसार स्प्रिंग में उत्पन्न संपीडन का मान आरोपित बल के समानुपाती होता है।
हुक के नियम के अनुसार –
F = kx
यहाँ F = आरोपित बल , x = संपीडन या प्रवर्धन , k = समानुपाती नियतांक
जब कोई वस्तु साम्य अवस्था में होती है तो इसमें निहित स्थितिज ऊर्जा का मान शून्य होता है।
जब वस्तु साम्यावस्था में न हो तो वस्तु में संपीडन या प्रवर्धन के कारण निहित स्थितिज ऊर्जा का मान –
W = 1/2 (kx2)

2. गुरुत्वाकर्षण (गुरुत्वीय) स्थितिज ऊर्जा (Gravitational Potential Energy)

ब्रह्माण्ड में स्थित तो पिण्ड आपस एक दुसरे पर आकर्षण का बल लगाते है , इस आकर्षण बल को गुरुत्वाकर्षण बल या गुरुत्वीय बल कहा जाता है।
एक दुसर पर गुरुत्वीय बल लगा रहे दो पिण्डों में इनकी सापेक्ष स्थिति के कारण निकाय में संचित ऊर्जा को गुरुत्वाकर्षण स्थितिज ऊर्जा कहते है। पिण्ड की यह स्थितिज ऊर्जा का मान उनके द्रव्यमान और इनकी ऊंचाई पर निर्भर करता है।
माना दो पिण्ड है जिनका द्रव्यमान m1 और m2 है जो एक दुसरे से r दूरी पर रखे है तो इनमे गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा का मान निम्न होगा –
U = -Gm1m2/r
यहाँ G = सार्वत्रिक गुरुत्वीय नियतांक
किसी वस्तु का द्रव्यमान जितना अधिक होता है उनमे निहित गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा का मान उतना ही अधिक होता है इसी प्रकार जो पिण्ड जितनी ऊंचाई पर होते है उनमे संचित गुरुत्वाकर्षण स्थितिज ऊर्जा उतनी ही अधिक होती है।

3. विद्युत स्थितिज उर्जा (electrical Potential Energy)

हमने स्थिर वैधुतिकी में पढ़ा था की आवेशित कण एक दुसरे को आकर्षित या प्रतिकर्षित करते है।  आवेशों की उनकी स्थिति के कारण उनमे एक ऊर्जा संचित रहती है जिसे आवेशों की स्थितिज ऊर्जा कहते है।
माना दो आवेश q1 और q2 है जो एक दुसरे से r दूरी पर स्थित है तो उनमे संचित स्थितिज ऊर्जा का मान निम्न होगा –