पादप ऊतक संवर्धन क्या है , Technique of Plant tissue culture in hindi पादप ऊतक संवर्धन तकनीक
पादप ऊतक संवर्धन तकनीक के उपयोग किसे कहते है पादप ऊतक संवर्धन क्या है , Technique of Plant tissue culture in hindi ?
पादप ऊतक संवर्धन तकनीक (Technique of Plant tissue culture)
पादप के विभिन्न अंगों का जब प्रयोगशाला में पोष पदार्थ पर संवर्धन किया जाता है तब सबसे बला उद्देश्य होता है संवर्धन को सूक्ष्मजीवों से मुक्त रखना। अगर संवर्धन भली भांति वृद्धि कर रहा हो तो दूसरा उद्देश्य उसमें अपनी आवश्यकता अनुरूप परिवर्धन करना होता है। संवर्धन करने के लिए निम्न की आवश्यकता होती है-
1. प्रयोगशाला में पात्रों को धोने का स्थान ।
1. पोष पदार्थ बनाने उसे निर्जमिकृत करने तथा भण्डारित करने का स्थान।
2. कर्तोतकों को निर्जमिकृत स्थल पर एक पात्र से दूसरे पात्र में स्थानान्तरित करने का स्थान जैसे लैमिनर वायु प्रवाह केबीनेट युक्त स्थल
3. संवर्धन कक्ष।
1. पात्र धोने का स्थान रू यह स्थल बड़ा होना चाहिए जिसमें काँच के व अन्य पात्रों को धोने व रखने का समुचित स्थान हो । आसवन उपकरण व आसुत जल भी इस स्थल पर उपलब्ध होने चाहिए। काँच के पात्रों को शीघ्र व भलीभांति सुखाने हेतु अवन की व्यवस्था भी होनी चाहिए। काँच के पात्र तापरोधी बोरोसिलिकेट या पाइरेक्स से निर्मित होने चाहिए। पात्रों को रात भर डिटर्जेन्ट में भिगोकर रखते हैं फिर ब्रश की सहायता से नल के पानी से एक बार साफ कर लेते हैं उसके उपरान्त आसुत जल से भी धो लेते हैं। इन्हें अवन में पर सुखा कर अल्मारी में रख लेते हैं। कई बार पात्र अगर अधिक खराब हो जाये तब उन्हें तनु अम्ल से धोकर साफ कर लेना चाहिए।
2. पोष पदार्थ बनाने का कक्ष रू पोष पदार्थ तैयार करने के कक्ष (16 ग 12 फीट) में अल्मारी, कांच के पात्र, रेफ्रीजरेटर, ऑटोक्लेव, तुला, pH मीटर, आसतु जल तैयार हेतु आसवन उपकरण, आसुत जल भण्डारण हेतु पात्र, चुम्बकीय विडोलक (stirrer) आदि होने आवश्यक हैं।
3. स्थानान्तरण कक्ष रू यह कक्ष (8 ग 12 फीट) कर्तोतकों के स्थानान्तरण के लिए होता है। इसकी छत पर पराबैंगनी ट्यूबलाइट लगी होती है व आमने सामने की दीवार पर उच्च दक्षता वाले वायु फिल्टर लगाये जाते हैं। वर्तमान में आधुनिक उपकरणों की सुलभता से कर्तोतकों के लिए लैमीनर वायु प्रवाह युक्त कैबीनेट बहुत उपयुक्त माना जाता है जिसे इस कक्ष में रखा जाता है। कर्तोतकों को निर्जमित नियंत्रित वातावरण में आसानी से एक पात्र से दूसरे पात्र में स्थानान्तरित किया जा सकता है। लैमीनर फ्लो की मेज पर कार्य करने हेतु निर्जमित फ्लास्क, चिमटी, कैंची, चाकू आदि रखे होते हैं। लैमीनर फ्लो की कार्यक्षमता बनाये रखने के लिए इसका नियमित उचित रख रखाव आवश्यक है।
4. संवर्धन कक्ष रू जब कर्तोतक को निर्जमित वातावरण में संवर्धन माध्यम पर रख दिया जाता है उसके बाद इसकी समुचित वृद्धि के लिए इसे पूर्ण नियंत्रित ताप, नमी, प्रकाश की अवधि तथा उचित वायुप्रवाह युक्त वातावरण की आवश्यकता होती है। आजकल एक कक्ष (18 x 12 फीट) में उपरोक्त कारकों को नियंत्रित करने हेतु विभिन्न उपकरण इस्तेमाल किये जाते हैं। संवर्धन कक्ष में प्रकाश (1000-2500) लक्स युक्त रैक, निलम्बन हलित्र (shaker), त्रिविमदर्शी, सूक्ष्मदर्शी, ताप नियंत्रण हेतु 25़़़20°C एयर कंडीशनर व हीटर तथा अलमारियां आदि होनी चाहिए।
पादप संवर्धन में प्रयुक्त उपकरण (Tools used in in Plant Culture)
1. ऑटोक्लेव (Autoclave)
2. लैमीनर वायु प्रवाह (Laminarair flow)
3. अपकेन्द्रण यंत्र (Centrifuge)
4. वर्णमिती (Colorimetry)
5. थर्मामीटर (Thermometer)
1. ऑटोक्लेव (Autoclave)
निर्जीकरण हेत यह उपकरण बहत उपयोगी माना जाता है। यह सूक्ष्मजीव युक्त ठास पास माध्यमों के लिए उपयुक्त होता है। यह उन सभी वस्तुओं एवं पदार्थों के लिए होता है जिन पर अधिक तांप का असर नहीं होता। यह प्लास्टिक पाउडर, तैल आदि के लिए अनुपयुक्त होता है।
ऑटोक्लेव स्टील अथवा कॉपर का बेलनाकार, दोहरी भित्ति युक्त होता है जिसका एक हिस्सा ढक्कन के रूप में खुलता है तथा जिसे खोलकर जिन पदार्थों को ऑटोक्लेव करना होता है उन्हें अंदर रख देते हैं। ऑटोक्लेव के ढक्कन (lid) के ऊपर प्रेशर गॉज (प्रेशर मापन हेतु) व स्टीम कॉक (निर्वात वाल्व-exhaust valve) ऑटोक्लेव चेम्बर में निर्वात उत्पन्न करने के लिए पाया जाता है। ऑटोक्लेव में एक सेफ्टी वाल्व तथा एक नियंत्रण (control) पुर्जा होता है जिसके समायोजन (adjustment) से इस उपकरण के अंदर ताप तथा प्रेशर को नियंत्रित किया जाता है।
पोष पदार्थों से युक्त कल्चर मीडिया को अथवा खाली पात्रों को ऑटोक्लेव में 121°C तथा 15 Ps-i (Pound per square inch ) 1-06 kg/cm2) पर 15 मिनट (20-50 मिलीलीटर पोष पदार्थ) से 40 मिनट (2 लीटर पोष पदार्थ) तक रख सकते हैं ताकि जो भी ऑटोक्लेव के अंदर पात्र या कल्चर मीडिया से हैं पूर्ण रूप से निर्मित हो सके यह प्रक्रिया ऑटोक्लेविंग कहलाती है।
ऑटोक्लेव की अनुपस्थिति में कल्चर मीडिया अथवा पात्रों को प्रेशर कुकर में भी निर्जर्मित कि जा सकता है। ऑटोक्लेव के इस्तेमाल के दौरान निम्न सावधानियों को ध्यान में रखना चाहिए।
1. जिन भी पात्रों को ऑटोक्लेव में रखा जाता है वह भी भली भांति प्लग (plugged) होने चाहिए। यह प्लग बटर पेपर
अथवा एल्यूमिनियम फॉइल से ढके होने चाहिए ताकि गीले ना हों।
2. ऑटाक्लेव को इस्तेमाल करने से पूर्व इसमें जल की मात्रा देख लेनी चाहिए तथा पात्रों को अंतर रखने के पश्चात्
ढक्कन अच्छी तरह बंद कर देना चाहिए।
3. स्टीम निकलने वाले हिस्से को पहले खुला रखते हैं ताकि अंदर की पूरी हवा बाहर प्रवाहित की जाये उसके बाद जब
निर्वात हो जाता है तब वह बंद कर देते हैं।
4. प्रेशर तथा ताप को अंदर रखे पात्रों के अनुरूप उचित रूप से नियंत्रित किया जाना चाहिए।
5. निर्धारित समय के पश्चात स्विच बंद कर देते हैं तथा ऑटोक्लेव के ठंडा होने की प्रतीक्षा करते हैं एवं ठंडा होने के बाद ही दाब शून्य होने पर ऑटोक्लेव को खोलते हैं।
2. लैमीनर वायु प्रवाह (Laminar air flow)
यह 8ग112 फीट का कक्ष होता है जिसमें कत्तोत्तकों (explants) को निर्जीकृत स्थितियों में पोष माध्यमों (culture media) पर स्थानान्तरित करवाया जाता है। इस क्रिया को सम्पन्न करने हेतु इस कक्ष में एक बेंच उपस्थित होती है जिस पर कत्तोत्तकों स्थानान्तरण करने के काम आने वाली सभी सामग्री यथा चाकू, ब्लेड, रोगाणुनाशक पदार्थ, चिमटी, फिल्टर पेपर, कैंची, बुन्सनबर्नर, फ्लास्क, पिपेट आदि उपस्थित रहते हैं। लैमिनर फ्लो में न्ट प्रकाश के स्त्रोत के रूप में पाया जाता है जिससे निर्जर्मित (sterile) पदार्थ के संक्रमण (infection) के अवसर कम हो जाते हैं। लैमिनर फ्लो दो प्रकार के होते हैं- क्षैतिज (horçontal) तथा ऊर्ध्वाधर (verticle) लैमिनर फ्लो हुड में सामान्यतः 108 किमी. प्रति घंटे की रफ्तार से निर्मित हवा का प्रवाह रहता है अतः कैबिनेट में निर्जर्मित स्थिति बनी रहती है। यह हवा पहले एक पूर्व फिल्टर से गुजरती है जिससे इसमें पाये जाने वाले सभी बड़े कण छन (filter) जाते हैं उसके पश्चात् यह HEPA (High efficiency Particulate Air = उच्च दक्षता वायु कण) फिल्टर (Fibre glass filter) से गुजरती है जिससे वायु में उपस्थित 0.3u से बड़े कण फिल्टर हो जाते हैं।
लैमिनर फ्लो से काम करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक है।
1. लैमिनर कक्ष में प्रवेश करते समय जूते, चप्पल कक्ष के बाहर ही उतार देने चाहिए।
2. कार्य आरम्भ करने से पूर्व हाथ, लैमिनर फ्लो की बैंच तथा सभी काम में आने वाली सामग्री को 70% अल्कोहॉल से पौंछ लेना चाहिए।
3. कार्य आरम्भ करने से 30 मिनट पहले आकर UV प्रकाश खोल देना चाहिए।
4. कार्य आरम्भ करने से पूर्व हवा के प्रवाह को इस प्रकार रखना चाहिए कि संदषित हवा बाहर निकल जाये तथा संक्रमण की कोई आंशका नहीं रहे।
5. पदार्थों के स्थानान्तरण करते समय प्लेटिंग, स्ट्रीकिंग, निवेशन (inoculation) आदि सभी कार्य बुन्सन बर्नर के नजदीक ही करने चाहिए।
6. अगर बेन्च पर कुछ बिखर जाता है तो उसे रोगाणनाशक से पौंछ देना चाहिए।
3. अपकेन्द्रण यंत्र (Centrifuge)
सेन्ट्रीफ्यूज एक धातु का बना उपकरण होता है जिसमें एक स्टेंड होता है। ऊपर का हिस्सा चैड़ा होता है जिसमें धातु के कप, टेस्ट ट्यूब रखने के लिए स्थान बने होते हैं। इसके आधार पर मोटर होती है जिसके द्वारा यह तेजी से घूम सकता है तथा इस घूर्णन गति से टेस्ट ट्यूब में रखे हुए पदार्थ या कण अलग हो जाते हैं। सेन्ट्रीफ्यूज सामान्यतः तीन प्रकार का होता है।
(प) कम गति सेन्ट्रीफ्यूज-गति सीमा = 500 rpm
(पप) उच्च गति सेन्ट्रीफ्यूज–गति सीमा = 20,000 rpm
(पपप) अल्ट्रा सेन्ट्रीफ्यूज-गति सीमा = 60,000 rpm
यह एक ऐसा उपकरण होता है जो बहुत उच्च गति पर घूम कर कणों अथवा पदार्थों को अपकेन्द्री बल (centrifugal force) के द्वारा उनके सघनता व द्रव्यमान बंल (density mass) के आधार पर अब कर देता है।
अपकेन्द्री बल को परिक्रमणध्मिनट (revolution per minute = rpm)अथवा कोणिक गति (angular speed) में ज्ञात किया जाता है।
अपकेन्द्री बल = कोणिक वेग ग त्रिज्या
(Centrifugal force) = (angular velocity) x (radius)
कोणिक वेग, घूर्णन (rotation) प्रति मिनट द्वारा दर्शाया जाता है।
कोणिक वेग = 2 l x rpm/60 त्रिज्या ध्सेकेन्ड
अपकेन्द्री बल सामान्यतः आपेक्षिक या सापेक्ष अपकेन्द्री क्षेत्र (Relative centrifugal field) (RFC) ‘g’ इकाई में दर्शाया जाता है।
सावधानियाँ- ध्यान रखना चाहिए कि सेन्ट्रीफ्यूज में पदार्थ रखने से पूर्व कप में उसकी मात्रा उचित हो।
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