सस्य नियंत्रण विधियां | कर्षण पद्धतियाँ फसल आवर्तन (सस्यावर्तन) पट्टीदार कृषि (stripf arming), अंतरफसल पैदावार
plant disease control methods in hindi सस्य नियंत्रण विधियां | कर्षण पद्धतियाँ फसल आवर्तन (सस्यावर्तन) पट्टीदार कृषि (stripf arming), अंतरफसल पैदावार ?
सस्य नियंत्रण विधियां ।
सस्य नियंत्रण प्रमुख नियंत्रण विधियों में से एक है। चूंकि सस्य नियंत्रण में ऐसी कर्षण पद्धतियों का उपयोग किया जाता है जो पारिस्थिति कारकों में बदलाव लाते हैं, जिससे परिवेश नाशक जन्तु प्रजाति की उत्तरजीविता, वर्धन या प्रजनन के लिए अपेक्षाकृत कम अनुकूल बन जाता है, अतरू इसे पारिस्थितिकी नियंत्रण भी कहा जाता है। सस्य नियंत्रण में ऐसे व्यवहार अंतर्ग्रस्त हैं जो परिवेश को पीड़क प्रजनन, प्रकीर्ण (फैलाव) एवं उत्तरजीविता के लिए कम अनुकूल बना देते हैं। सस्य नियंत्रण तरीकों के अभिकल्पन एवं क्रियान्वयन के लिए पीड़कों के जीवन चक्रों में कमजोर सम्पर्कों का पता लगाने पर विशेष ध्यान देते हुए फसल तथा पीड़क, जीव विज्ञान, पारिस्थितिकी विज्ञान एवं ऋतु जैविकी (phenology) का अच्छा ज्ञान होना आवश्यक है। आज पीड़क प्रबंधन के सभी क्षेत्रों में सैंकड़ों सस्य नियंत्रण तकनीकों का प्रयोग किया जा रहा हैय कुछेक सर्वाधिक आम तथा संभाव्य रूप से उपयोगी तकनीकों का वर्णन इस इकाई में किया गया है।
परिशोधन (स्वच्छता)
स्वच्छता में नाशक जन्तुओं के प्रजनन, आश्रय एवं अतिशीत सुरक्षा स्थलों को हटाना या उनका नाश करना अंतर्ग्रस्त है। इस विधि का अनुप्रयोग लगभग प्रत्येक प्रकार के वास एवं अधिकांश पीड़कों जैसे विभिन्न कीटों, पादप रोग जनकों, कृन्तकों (rodents) तथा नेमाटोडों के लिए उपलब्ध है।
उद्यानकृषि एवं वृक्ष फल फराल स्थितियों में यह तकनीक टहनी एवं शाखा पर रहने वाले जन्तुओं को अतिशीत सुरक्षा आश्रय (overwintering sites) उपलब्ध कराने वाली, वृक्ष को नष्ट करने, छंटाई, एवं गिरे हुए फलों को हटाने के माध्यम से उनके विरुद्ध अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुई है। वानिकी में, वृक्ष कटाई की गतिविधि के परिणामस्वरूप गिरी हुई लकड़ियों इत्यादि के निपटान से छाल भंग (bark beetle) आक्रमण कम हो सकता है।
खेत फसल स्थिति में, खेतों से फसल अवशिष्टों को नष्ट करना या उन्हें हटाना पीड़कों के शीताश्रय स्थलों को समाप्त करने तथा आक्रमण के विस्तार को रोकने का एक मूलभूत तरीका है (चित्र 11.1)। ऐसा सीधे जोताई करके, अवशिष्टों को जलाकर या उन्हें इकट्ठा कर तथा जलाने के लिए ढेरों के नीचे दबाकर किया जा सकता है।
भारत में स्वच्छता उपायों ने धान की फसल पर पादप टिड्डों, पत्ती टिड्डों, धान का हिस्पा (Rice hispa) एवं स्टेम बोरर के प्रभाव को कम करने में सहायता की है। धान के ठूटों को हटाना तथा उन्हें नष्ट करना तना बेधक की अनेक प्रजातियों की संख्या को कम करने तथा उनके शीताश्रयों को समाप्त करने में अत्यधिक प्रभावी सिद्ध हुआ है। यह अनुमान लगाया गया है कि एक हेक्टेयर खेत में धान के ढूंठ जिसमें स्टेम बोरर की अपरिपक्व अवस्थाओं की 6.8ः आबादी ही 1,20,000 पतंगों के आर्विभाव का एक संभाव्य स्रोत है। धान के लूंठों को जलाने से अनुवर्ती फसल पर स्टेम बोरर के ग्रसन में 67ः कमी पाई गई है। क्षतिग्रस्त भागों को हटाने तथा विरलन के समय मृत केंद्र (dead hearts) दर्शाने वाली संक्रमित वनस्पति को जड़ से उखाड़ देने की प्रक्रिया मक्का बेधक, शूट फ्लाई, आर्मी कृमियों, पाइरिल्ला, एफिड, कटवार्म एवं दीमक के प्रभाव को कम करने के लिए की गई है।
सोर्घम (Sorghum) में वैकल्पिक परपोषी पौधों को नष्ट करने से शूट फ्लाई, स्टेम बोरर, तथा ईयर हेड बग्स (ear head-bugs) के प्रभाव को कम करने में सहायता मिलती है। इसी प्रकार, कपास के खेतों में तथा उनके आस-पास चित्तीदार सुंडी (spotted bollworm), इत्यादि की वैकल्पिक परपोषी पौधों को हटाने से कपास की फसल पर इन पीड़कों का प्रभाव कम होना पाया गया है।
नजदीकी फसल पर पीड़क के प्रवासन से पूर्व एक विशिष्ट अवधि तक फसल की कटाई के पश्चात् घासफूस को जला देने से पाइरिल्ला, काला मत्कुण (blackbug) तथा शल्क कीटों (scale insect) की बची हुई संख्या कुछ सीमा तक नष्ट हो जाती है।
बेमौसम में अरहर की दाल को न उगाने से अरहर अनुर्वरता मोजेक वाइरस (pigeonpea sterility mosaic virus) के एक महत्वपूर्ण रोगवाहक बरूथी (mite) के संवर्धन को कम करने में सहायता मिलती है। अरहर की चयनित छंटाई पत्ती मोड़क तथा चित्तीदार सूडों के प्रभाव को कम करने में सहायक सिद्ध हो सकती है।
मक्खियों, कॉकरोचों जैसे अनेक शहरी पीड़कों तथा चूहों को नियंत्रित करने का मुख्य उपाय उनके खाद्य स्रोतों को हटाना तथा सामान्यतरू कूड़ेकरकट के निकट उनके प्रजनन स्थलों को समाप्त करना है। मच्छर उन पात्रों में उत्पन्न होते हैं जिनमें पानी एकत्रित हो जाता है। समस्त संभाव्य प्रजनन स्थलों को हटाने से शहरी मच्छर की समस्या काफी कम हो सकती है।
फसल आवर्तन (सस्यावर्तन)
फसल आवर्तन एक प्रस्थापित श्श्परीक्षित एवं सहीश्श् नियंत्रण तकनीक है। यह उन पीड़कों के लिए विशेष रूप से प्रभावी है जिनकी परपोषी सीमा तथा प्रकीर्णन क्षमता संकीर्ण होती है, जो फसल या अनुकूल परपोषी सम्पर्क के बिना दीर्घावधियों (अर्थात् एक या दो मौसम) तक जीवित नहीं रह सकते इनमें सभी पादप रोग जनक, नेमाटोड कीट तथा अनेक अपतृण, (घासपात) शामिल हैं। यह तकनीक मितव्ययी है और अनेक नेमाटोड समस्याओं के नियंत्रण में महत्वपूर्ण है।
उत्तर भारत में धान की फसल की शुरुआत के परिणामस्वरूप धान-गेहूँ आवर्तन की पद्धति शुरू हो गई है। देश के अन्य भागों में 4 मिलियन हेक्टेयर भूमि के अलावा केवल पंजाब और हरियाणा में ही 2.4 मिलियन हेक्टेयर भूमि में इस आवर्तन का अनुसरण किया जाता है। केवल गेंहू की फसल ही सर्दी के महीनों के दौरान तना बेधक, गुलाबी बेधक तथा शूटफ्लाई सहित अनेक पीड़क कीटों की उत्तरजीविता के लिए परपोषी के रूप में कार्य करता है जिसके परिणामस्वरूप दोनों फसलों पर इन पीड़कों के आक्रमणों में वृद्धि हुई है।
तमिलनाडू तथा दक्षिण भारत के अन्य भागों में, कपास पूरे साल में दो-तीन मौसमों में उगाई जाती है जिससे पीड़कों के विकास एवं वृद्धि के लिए भोजन की निरन्तर आपूर्ति होती है। कपास का आवर्तन अवसरीय परपोषकों जैसे रागी, ज्वार, धान, मूंगफली, लोबिया या सोयाबीन के साथ किया जाना चाहिए, ताकि पीड़क कीटों के प्रभाव को कम किया जा सके। इसी प्रकार, गैर-फलीदार फसलों के साथ मूंगफली का आवर्तन लीफ माइनर द्वारा पहुचाए गए नुकसान को कम करने की एक विधि के रूप में प्रचलित किया जा रहा है।
जुताई (भूमि जोतना)
जुताई की किस्म एवं समय मिट्टी के परिवेश पर महत्वपूर्ण रूप से प्रभाव डाल सकता है तथा पीड़क कीटों या उनके प्राकृतिक शत्रुओं की उत्तरजीविता को प्रभावित कर सकता है। जुताई की पद्धतियां यांत्रिक क्षति, भुखमरी, निजेलीकरण एवं अनाश्रयता द्वारा नाशक जन्तुओं को मार सकती है।
ऽ शरत् जुताई (सर्दी आरम्भ होने से एक दम पहले जुताई) कटवार्म की अनेक प्रजातियों की शीताश्रित संख्या के अपचयन में अक्सर सहायक होती है जो शीत के दौरान मृदा में उपरति (कपंचंनेम) में चले जाते हैं।
ऽ अप्रैल-मई में गेहूं की फसल की कटाई के तत्काल पश्चात् गहरी जुताई धान की जड़ों के भंग की आराम कर रही सुंडियों को उनके प्राकृतिक शत्रुओं जैसे पक्षियों एवं सूर्य और हवा की क्रिया के प्रति अनाश्रित करने में सहायक होती है।
ऽ गहरी जुताई अनाज की फसलों में चने की सूंडी (army worm) के पीड़न, मूंगफली तथा मिर्चों पर आक्रमण कर रहे श्वेत भंग, मूंगफली और हरे चने इत्यादि पर आक्रमण करने वाले रोमिल (hairy caterpillar) इल्ली के प्यूपे को कम करने में भी सहायक है। प्राकृतिक शत्रुओं की संरक्षा के लिए जुताई की पद्धतियों का समय निर्धारण सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए।
पादप विविधताध्पाश फसल
पाश फसलें वे फसलें हैं जिन्हें कीटों तथा अन्य जीवधारी रचनाओं को आकृष्ट करने के लिए उगाया जाता है ताकि मुख्य फसल पीड़कों के आक्रमण से बच सके। मुख्य फसल का संरक्षण निम्न प्रकार किया जाता है रू
ऽ पीड़कों को उन तक पहुंचाने से रोक कर, अथवा
ऽ उन्हें खेत के एक निश्चित भाग में संकेन्द्रित कर के, जहां उन्हें सहजता से नष्ट किया जा सकता है।
ऽ किनारों पर या मुख्य फसल के बीच में किसी पैदावार या अन्य पौधों को बोना भी कुछ पीड़क कीट के लिए पाश फसल का कार्य करता है। कीट फेरोमोनों, पादप कैरोमोनों या कीट खाद्य अनुपूरकों (food suppliments) के प्रयोग द्वारा पाश फसलों के आकर्षण को बढ़ाया जा सकता है। आप व्यावहारिक नियंत्रण विधियां शीर्षक वाले अगले भाग में इन संघटकों के बारे में विस्तार से अध्ययन करेंगे। मौसमी चक्र के आधार पर कीटों को कूट में विकसित होने के लिए छोड़ा जा सकता है अथवा पीड़कनाशी से मारा जा सकता है।
ऽ
पाश फसल का मुख्य लाभ यह है कि पीड़कनाशी का मुख्य फसल पर कभी कभार ही प्रयोग करना पड़ता है तथा इससे पीड़क नियंत्रण में बढ़ावा हो जाता है। इसके अतिरिक्त, पाश फसलें प्राकृतिक शत्रुओं को भी आकृष्ट कर प्राकृतिक नियंत्रण को बढ़ाती हैं। पारम्परिक कृषि की तुलना में पीड़कनाशी का समग्र उपयोग स्पष्टतरू कम होता है जिससे यह नीति पर्यावरणीय रूप से आकर्षक बन जाती है। तथापि, इस बात पर जोर दिया जाना आवश्यक है कि पाश फसल लक्षित पीड़क या किसी अन्य पीड़क के लिए एक नाशक जन्तु संवर्धनगृह का कार्य भी करेगी। कुछ अत्यन्त गतिशील प्राकृतिक शत्रु उनके परपोषक या शिकार के रूप में पाश फसल की ओर आकर्षित एवं संचित होंगे। पीड़कनाशी छिड़कावों द्वारा उनके नष्ट होने की संभावना है। अतरू पीड़क क्षति को कम करने के साधन के रूप में पाश फसलों की अनुशंसा करने के लिए कृषि पारिस्थितिक तंत्र का पूर्ण ज्ञान आवश्यक है। कपास जैसिड, अमेरिकन गूलर सूंडी तथा चित्तीदार सुंडी के लिए कपास के आसपास पाश फसल के रूप में ओकरा (भिन्डी) का प्रयोग किया जा सकता है। बोलवार्मों की भारी संख्या से ग्रसित फलों को समयपूर्वक हटाया तथा नष्ट किया जाना चाहिए तथा किसी सर्वांगी पीड़कनाशी का छिड़काव जैसिड को सहज नियंत्रित कर सकता है। पाश फसलों के रूप में उगाए गए गेंदा तथा तम्बाकू हेलियोथिस आर्मीजेरा के लिए परपोषी भी है। पाश के रूप में कैस्टोर (एरंड) उगाने से कपास से स्पोडोप्टेरा लिटुरा अपना मार्ग दूसरे फसलों की ओर मोड़ लेते हैं।
खाद डालना
उर्वरक डालने से अधिक संपोषक पौधा उत्पादित तो होता ही है, इसके साथ ही कीटों को भी इससे लाभ पहुंचता है। ऐफिड़, पत्ती फुदका, बरूथी, कीट तथा पत्ती छेदक सुंडियां — ये सभी पीड़क अच्छे नाइट्रोजन उर्वरकपोषित पौधों पर अधिक तेजी से प्रजनित या विकसित होते पाए गए हैं। इसके विपरीत, ऐसा भी पाया गया है कि पोटेशियम तथा फास्फेट की खाद से कुछ पीड़कों का प्रभाव (विस्तार) कम हो सकता है। अच्छे पोटेशियम उर्वरकीकरण से पत्तों के रस में प्रोटीन को क्षति पहुंचाए बिना, रस में उपलब्ध नाइट्रोजन को कम कर सकता है, जिससे ऐफिड जो रसपोषी है, की संख्या कम हो सकती है।
जल एवं आर्द्रता प्रबंधन
सिंचाई अनेक फसलों में एक प्रचलित पद्धति है तथा हेरफेर द्वारा इसे पीड़क नियंत्रण प्रयोजनों के लिए उपयुक्त बनाया जा सकता है। उपरि सिंचाई (overhead irrigation) द्वारा ऐफिड जैसे छोटे आकार के पीड़क पौधों से सहज ही घुल जाते हैं। संतृप्त मिट्टी में फूले हुए मिट्टी कणों के दबाव से मिट्टी के कीटों को मारा जा सकता है। धान के खेतों में जल स्तर बढ़ाने का प्रयोग आर्मीवार्म स्पोडोप्टेरा के अंडों के श्वासरोधन के लिए किया जाता है।
मृदा में आर्द्रता बनाए रखने की एक अन्य विधि उसे मल्च (पलवार) से ढकना है, जिसमें अक्सर पौधों का मलबा शामिल होता है। मल्च से कीट संख्या प्रभावित होती है तथा इससे मृदा के तापमान तथा पौधों के संवर्धन पर अच्छे प्रभाव पड़ते हैं (चित्र 11.2)। मल्च काफी के पौधे में सामान्यतरू प्रकाश को अवरुद्ध कर देते हैं, मल्च से ढके बागानों की अधिक आर्द्र दशाओं में थ्रिप्स (जीतपचे) की समस्या बहुत कम होती है, मल्च के बिना केवल एक मौसम ही इस कीट को पीड़क की स्थिति में ला सकता है। मल्च के आवरण द्वारा जो नम दशाएं पैदा होती हैं, कीट परजीव्याभ (parsaitoid) के लिए भी वे अनुकूल हो सकती हैं। इस प्रकार काफी में मल्च आवरण एण्टेस्टिया बग के जैव नियंत्रण को बढ़ा देता है।
पट्टीदार कृषि (stripf arming), अंतरफसल पैदावार
(intercropping) तथा बहुफसल पैदावार (multicropping)
गहन कृषि से पूर्व किसानों में भूमि की एक ही इकाई पर अनेक फसलें उगाने की प्रवृत्ति थी (बहुफसल पैदावार)। उष्ण कटिबंधों में देहाती कृषि में बहुफसल पैदावार अभी भी । प्रचलित है। क्षेत्र को विभिन्न फसलों की सापेक्ष रूप से तंग क्यारियों में विभाजित कर दिया जाता है (पट्टीदार कृषि), अथवा लम्बी फसलों के नीचे या उनकी कतारों के बीच छोटी फसलें उगाई जाती हैं (अंतरफसल पैदावार)। अंतरफसल पैदावार में, छोटी फसल भूमि को तेजी से ढक कर अपतण प्रतिस्पर्धा को कम कर देती है तथा भूक्षरण एवं जलहानि को रोकती है। अंतरफसल पैदावार से पीड़क संबंधित समस्याओं में कमी देखी गई है (तालिका 11.1)।
तालिका 11.1रू कृषि पारिस्थितिकी तंत्रों के उदाहरण जहां अंतरफसल पैदावार तथा बहुफसल पैदावार के माध्यम से वर्धित जैव विविधता
ने पीड़क कीटों के प्रकोप को कम किया।
मुख्य फसल अंतरफसल नियंत्रित पीड़क
फली शरत् गेहूं आलू पत्ती फुदक, फली ऐफिड
मक्का फली फाल आर्मीवार्म, पत्ती फुदक
कपास मक्का कपास बोलवोर्म
खरबूजा व तरबूज गेहूं ऐफिड, श्वेतमक्खी
मूंगफली फली ऐफिड
पट्टीदार कृषि तथा अंतरफसल पैदावार, दोनों अक्सर पीड़क आक्रमण को कम कर देते हैं। स्ट्रिप कृषि में, अनुपयुक्त भोजन की अंतःस्थ क्यारियां फसल की एक क्यारी से दूसरी क्यारी में अथवा एक उपयुक्त फसल से किसी भिन्न फसल में पीड़कों के संचरण को रोक देती हैं। उदाहरण के तौर पर गेंहू तथा मक्का का सन्निधान सांझे पीड़कों जैसे चिंच बग तथा ईलवार्मों की समस्या को वास्तव में गहन कर देगा जबकि आलुओं की एक क्यारी बोकर फसलों को अलग कर देने से .अनाजों पर पीड़क क्षति कम हो जाएगी। फिर भी, पट्टीदार खेती अत्यधिक यंत्रीकृत कृषि में अस्वीकार्य है, इसके अतिरिक्त, कुछ पीड़क (उदाहरणार्थ कुछ टिड्डे) फसलों के किनारे अंडे देते हैं तथा एक गंभीर समस्या बन सकते हैं जब ये किनारे फसल का एक बड़ा हिस्सा बन जाते हैं जैसा कि स्ट्रिप कृषि में होता है।
अंतर पैदावार के कीटों पर तीन मुख्य प्रभाव प्रतीत होते हैं जिनके परिणामस्वरूप पीड़कों की संख्या कम हो जाती है रू
क) अंतरपैदावार पीड़क को कम मूल्यवान फसल की ओर अथवा किसी ऐसी फसल की ओर जहां पीड़क की समस्या किसी कारण से कम गंभीर है, आकृष्ट करके पीड़क क्षति को कम कर देती है। इसका एक उदाहरण हैरू मक्का तथा कपास को एक साथ उगाना जिससे दोनों फसलों के पीड़क हीलियोथिस को नियंत्रित किया जा सके।
ख) दो पौधा प्रजातियों के सन्निकट सन्निधान (close juxtaposition) द्वारा कीटों के परपोषी पौधा खोजने का व्यवहार बाधित हो सकता है। अनेक पीड़क जैसे बंदगोभी की श्वेत तितलियां तथा बंदगोभी एफिड फसल की पृष्ठभूमि द्वारा काफी प्रभावित होते है।
ग) अंतरपैदावार से प्राकृतिक शत्रुओं का प्रभाव भी बढ़ जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक अंतरपैदावार पौधा शहद या मधुरस का स्रोत है जो प्राकृतिक शत्रुओं को व्यस्क आहार के लिए आकृष्ट करता है या आश्रय एवं आर्द्र दशाएं प्रदान करने वाली अंतरफसल भूमि में रहने वाले परभक्षियों को संवर्धित करती है।
अंतरारोपण
अंतरारोपण में बहफसल पैदावार के सिद्धांत ही अपनाये जाते हैं सिवाय इसके कि अंतररोपित प्रजाति एक फसल पौधा नहीं होती। फसल के खेत में या उसके आसपास अपतृण अनेक पीड़कों को सहारा (आश्रय) देते हैं जिनमें फसल पौधों पर पीड़क के प्राकृतिक शत्रु शामिल हैं जो पीड़क जनसंख्या पर रोक लगाते हैं।
बुआई तथा कटाई पद्धतियां
बुआई के समय की विभिन्नता पीड़क को नियंत्रित कर सकती है। अधिकांश पीड़क अंडे पैदा करने को टाल कर या पौधों को ऐसी स्थिति तक पहुंचने देकर, जहां वे पीड़क के प्रकट होते तक प्रतिरोधक हो जाते हैं, कुछ मौसमी पूर्वानुमान दशति हैं। फसलों की कटाई के समय में तीन तरीकों से हेरफेर किया जा सकता है रू
ऽ बुआई की तिथि को आगे बढ़ाकर
ऽ फसल की कम अवधि की किस्मों को बोकर
ऽ फसल के परिपक्व होने के पश्चात् उचित समय पर बिना देरी के कटाई करके।
फसल की समय से पहले कटाई करने से पीड़क के उभरने तथा क्षेत्र में उनकी संख्या के बढ़ने से पूर्व खेत से उनको हटाया जा सकता है (विशेषतरू घास फूस तथा अनाजों के पीड़क को)। व्हीट स्टेम सॉफ्लाई (ॅीमंज ेजमउ ेंसिल) द्वारा गेहूं को पहुंचने वाली क्षति को कमजोर पड़ चुके तनों के हवा तथा वर्षा में गिरने से पूर्व शीघ्र कटाई कर के कम किया जा सकता है।
यद्यपि नियंत्रण विधियां पारिस्थितिकी अनुकूल हैं, लेकिन ये पीड़क को पूर्ण रूप से नियंत्रित नहीं करतीं और इनकी अधिक प्रभावात्मकता के लिए इनके लिए दीर्घावधिक आयोजना आवश्यक है। अधिकांश नियंत्रण विधियों को, जहां भी समुचित हो, समाकलित पीड़क प्रबंधन प्रणाली में शामिल किया जाना चाहिए। किन्तु नियंत्रण विधियां लगभग कभी भी प्रबंधन तकनीकों के रूप में अकेली सफल नहीं हो सकतीं। चूंकि वे केवल आंशिक रूप से प्रभावी हैं, क्रियान्वयन की लागत लाभ से अधिक होती है। वे शीघ्र सक्रिय नहीं होतीं। इनकी सफलता के लिए प्रबंधन विशेषज्ञता तथा पीड़क तथा उसके पारिस्थितिकी तंत्र का ज्ञान होना आवश्यक है।
इन सीमाओं के बावजूद, नियंत्रण विधियां पारिस्थितिकी आधारित कृषि प्रणालियों का आधार है।
बोध प्रश्न 1
प) सही शब्दोंध्वाक्यांशों से रिक्त स्थान भरें रू
क) सस्य नियंत्रण तरीकों के अभिकल्पन एवं क्रियान्वयन के लिए पीड़क के जीवन चक्रों में कमजोर कड़ियों का पता लगाने पर
विशेष ध्यान देते हुए……………….तथा पीड़क………………., ,……………….एवं……………….का अच्छा ज्ञान होना आवश्यक है।
ख) स्वच्छता में पीड़क के………………., ……………….एवं……………….स्थलों को हटाना या उनका नाश करना शामिल है।
ग) कपास के खेतों में तथा उनके आसपास………………., ……………….एवं……………….इत्यादि को हटाने से वैकल्पिक परपोषी पौधों को हटाने.से कपास की फसल पर इन पीड़कों का प्रभाव कम होना सूचित किया गया है।
घ) नजदीकी फसल पर पीड़क के प्रवासन से पूर्व एक विशिष्ट अवधि तक फसल की कटाई के पश्चात् घासफूस को जला देने से………………., ……………….तथा……………….की बची हुई संख्या नष्ट हो जाती है।
ड.) मक्खियों, तिलचट्टों तथा चूहों जैसे अनेक शहरी पीड़कों को नियंत्रित करने की कुंजी उनके खाद्य स्रोतों को हटाना तथा उनके……………….को समाप्त करना है।
च) फसल आवर्तन उन पीड़कों के लिए विशेष रूप से प्रभावी है जिनकी……………….तथा……………….संकीर्ण होती है, जो फसल या अनुकूल परपोषी सम्पर्क के बिना……………….तक जीवित नहीं रह सकते।
पप) किन्हीं तीन भारतीय फसल पीड़कों के नाम बताएं जिनका प्रभाव स्वच्छता उपायों के परिणामस्वरूप कम हो गया हो।
पपप) ज्वार के किन्हीं तीन पीड़कों के नाम बताएं जिनका प्रभाव वैकल्पिक परपोषी पौधों का नाश करने के कारण कम हो गया हो।
पअ) चार जुताई की पद्धतियों का उल्लेख करें जिनके द्वारा पीड़क समाप्त हो सकते हैं।
अ) पाश फसल क्या है?
बोध प्रश्न 1. उत्तर
1. प) क) जीव विज्ञान, पारिस्थितिकी, कमजोर कड़ियां
ख) प्रजनन, अतिशीताश्रय
ग) कपास की चित्तीदार सँडी, सफेद मक्खी एवं अमरीकी सैंडी
घ) पाईरिल्ला, काला भुंग
ङ) प्रजनन स्थल
च) परपोशी परिसर-विकीर्ण क्षमता, लम्बी समयावधियां
पप) पौधा फुदक, पत्ती फुदक, पत्ती मोड़क, धान हिस्पा, पिटिका मशकाभ (हंससउपकहम) एवं तना बेधक (कोई तीन)।
पपप) शूट फ्लाई, तना बेधक एवं ईयर हेड बग्स ।
पअ) चोट, भोजन की कमी, निर्जलीकरण, अनावरण।
अ) पाश फसल वह है जो कीटों तथा अन्य जीवों को आकृष्ट करती है ताकि लक्षित फसल पीड़क के आक्रमण से बच सके।
2. प) क) सीमियोरसायन वे रसायन हैं जो कीटों में व्यवहारपरक संदेश देते हैं। ये रसायन अत्यन्त अल्प मात्रा में सक्रिय होते हैं तथा उनका प्रयोग कीटों की जनसंख्या को कम तथा विनियमित करने के लिए उनके व्यवहार को आशोधित करने हेतु किया जाता है।
ख) उत्पाद प्रजाति को लाभ पहुंचाने वाले अंतरा प्रजातीय सीमियोरसायनों को एलोमोन कहा जाता है।
ग) अभिग्राही को अनुकूलन लाभ पहुंचाने वाले अंतराप्रजातीय सीमियोरसायनों को कैरोमोन कहा जाता है।
घ) अंतःविशिष्ट सीमियोरसायनों को फेरोमोन कहा जाता है। फेरोमोन का किसी जीव द्वारा बहिसाव किया जाता है तथा इससे समान प्रजाति की। अभिग्राही जीव रचना के बीच एक विशिष्ट अनुक्रिया होती है अर्थात् कीटों में संकट सूचना, यौनाकर्षण, समुच्चयन या अनुसरण अथवा कार्यिकी विकास में विशिष्ट परिवर्तन, जैसे लिंग निर्धारण अथवा परिपक्वन इत्यादि ।
पप) क) प्रतथ, विशिष्ट, युक्तियुक्त
ख) सूक्ष्मध्लघु
ग) एलोमोन
घ) कैरोमोन
ङ) सेक्स, संकट सूचना, समुच्चयन, अनुसरण चिह्नांकन
पपप) अनेक पौधों या पशु समुदायों में विद्यमान प्राकृतिक रासायनिक पदार्थ (कैरोमोन) जो पीड़क को आहार के लिए उपयुक्त स्थलों
की ओर निदेशित करते हैं।
पअ) व्यस्क मादा द्वारा अंडनिक्षेपण के लिए स्थलों के चयन को नियंत्रित करने वाले प्राकृतिक रासायनिक पदार्थ ।
अ) क) पीड़क संख्या का पता लगाना अथवा मॉनीटरन करना
ख) कीटों को पाश या विषैले प्रलोभकों द्वारा विनाश की ओर संभ्रमित करना
ग) कीटों को संभ्रमित करना तथा सामान्य सहवास, समुच्चयन, पोषण या अंडनिक्षेपण व्यवहार से प्रतिकर्षित करना।
अप) वनस्पति या पशुओं को अनाकर्षक, अस्वादिष्ट या दुर्गन्धकारी बनाकर उन्हें कीट क्षति से बचाने वाले रसायन ।
अपप) अशनरोधी प्रतिकर्षकों की भांति कीटों को दूर नहीं भगाते तथा दूर नहीं रखते।
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