WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

पादप परिवर्धन , परिवर्धन को प्रभावित करने वाले कारक , क्या है , दीप्तिकालिता , बसंतीकरण

(plant development in hindi) पादप परिवर्धन

परिवर्धन (development) :  बीजा अंकुरण से जरावस्था के मध्य होने वाले परिवर्तन सामूहिक रूप से परिवर्धन कहलाता है | एक पादप कोशिका के विकासात्मक प्रक्रम का अनुक्रम पौधे पर्यावरण के प्रभाव के कारण जीवन के विभिन्न चरणों में चित्र आरेख के अनुसार भिन्न पथो का अनुसरण करते है , ताकि विभिन्न तरह की संरचनाओ का गठन कर सके | पौधों की इस घटना को सुघट्यता (प्लास्टीसिटी) कहते है |

उदाहरण – कपास , धनिया आदि पादपों में पत्तियों का आकार किशोरावस्था व परिपक्व अवस्था में भिन्न भिन्न होता है अर्थात प्रवस्था के अनुसार संरचना बदल जाती है | विषमपर्णता सुघट्यता का उत्तम उदाहरण है |

परिवर्धन को प्रभावित करने वाले कारक

पौधों में परिवर्धन आन्तरिक व बाह्य कारको से नियंत्रित होता है |

आन्तरिक कारक जैसे आनुवांशिकता , कोशिकीय कारक , पादप वृद्धि नियामक रसायन आदि परिवर्धन को प्रभावित करते है |

बाह्य कारक जैसे प्रकाश , ताप , जल , ऑक्सीजन , पोषक तत्वों की उपलब्धता आदि पौधों के परिवर्धन को प्रभावित करते है |

पादप वृद्धि नियामक : पादप वृद्धि नियामक विविध रासायनिक संगठनो वाले साधारण व लघु अणु होते है |

जैसे – 1. इन्डोल समिक्षण : इंडोल -3 एसिटिक अम्ल (IAA)

  1. एडिनिन व्युत्पन्न : फरफ्यूराइल एमिनो काइटिन , केरॉटिनॉइड
  2. वसा अम्लों के व्युत्पन्न – एसिटिक एसिड (ABA)
  3. टर्पिन : जिवबेरेलिक एसिड (GA)
  4. गैसीय – एनिलिन (C2H4)

पादप वृद्धि नियामक को पादप हार्मोन भी कहते है , इनको पौधे में क्रियाशीलता के आधार पर दो समूहों में बाँटा जा सकता है |

  1. पादप वृद्धि हार्मोन : ऐसे पादप वृद्धि नियामक जो पादप वृद्धि को बढ़ावा देते है जैसे : कोशिका विभाजन , कोशिका प्रसार , प्रतिमान संरचना , पुष्पन , फलीकरण , बीज निर्माण आदि को प्रेरित करते है | उदाहरण – ऑक्सिन , जिवबेरेलिस , साइटोकाइनिन आदि |
  2. पादप वृद्धि निरोधक हार्मोन : ऐसे पादप हार्मोन जो पादप वृद्धि को अवरुद्ध करते है जैसे – पत्तियों का पीला होना , पुष्पों व फलो का झड़ना , कोशिका विभाजन मंद होना आदि क्रियाओं को प्रेरित करते है | उदाहरण – एसिसिक अम्ल आदि |

पादप वृद्धि नियामकों का कार्यिकीय शरीर क्रियात्मक प्रभाव

  1. ऑक्सिन (auxins) : ऑक्सिन शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के auxins से हुई है जिसका अर्थ है – to grow | इन्हें सबसे पहले मानव मूत्र से प्रथक किया गया था | इन्डोल एसिटिक अम्ल व इसके समान गुण वाले सभी प्राकृतिक व कृत्रिम संश्लेषित पदार्थ ऑक्सिन कहलाते है |

ऑक्सिन के कार्यिकीय प्रभाव

  • शीर्षस्थ प्रभावित : शीर्षस्थ कलिका की उपस्थिति में पाशर्व कलिकाओं की वृद्धि रुक जाती है , इसे शीर्षस्थ प्रभावित कहते है | ऑक्सिन हार्मोन शीर्षस्थ प्रभावित प्रदर्शित करता है |
  • खरपतवार का उन्मूलन : 2,4 D (2,4 dichlaro phenory acetic acid) : नाम ऑक्सिन का उपयोग खरपतवार को नष्ट करने में किया जाता है |
  • कटे तनों पर जड़ विभेदन : अनेक पौधों जैसे – गुलाब में कलम लगाकर नया पौधा तैयार किया जाता है , यदि इन्डोल ब्युटाइरिक अम्ल (IBA) में कटे तने को डुबोकर भूमि में लगाया जाये तो जड़ विभेदन शीघ्रता से होता है |
  • अनिषेक फलन को बढ़ावा : अनेक पादपों में ऑक्सिन हार्मोन अनिषेक फलन को बढ़ावा देता है जैसे – टमाटर , संतरा , निम्बू , केला आदि |
  • ऑक्सिन फसलों के गिरने का निरोध करता है |
  • अपरिपक्व फलो को झड़ने से रोकता है |
  • ऑक्सिन पर्वो को लघुकरण करता है |
  • यह उत्तक संवर्धन में सहायक होता है |
  1. जिवबेरेलिंस (gibberellins) : याबुता तथा हायाशी ने इसे कवको से प्राप्त कर इसे जिवबेरेलींन नाम दिया | विभिन्न कवकों एवं उच्च पादपों में अब तक सौ से अधिक प्रकार के जिवबेरेलिन प्राप्त किये जा चुके | इनको GA1 , GA2 , GA3 ………….. GA100 नामों से जाना जाता है |

कार्यिकीय प्रभाव

  • यह पर्व दीर्घन में सहायक है |
  • बिजान्कुरण में सहायक है |
  • प्रसुप्ति भंग कर बीजों को सक्रीय करता है |
  • यह पुष्पन को प्रेरित करता है |
  • अनिषेक फलन में ऑक्सिन से अधिक कारगर है |
  1. साइटोकाइनिंस : लिथम व मिलर में इस हार्मोन को मक्का से विमुक्त कर जिएटिन नाम रखा , बाद में लिथम में इसका नाम साइटोकाइनिन रखा |

कार्यिकीय प्रभाव :

  • यह कोशिका विभाजन को प्रेरित करता है |
  • यह कोशिकाओं के दीर्घन को प्रेरित करता है |
  • यह कोशिका विभेदन में सहायक है |
  • यह शीर्षस्थ प्रभावित को कम करने में सहायक है |
  • साइटोकाइनिन जीर्णता को स्थिगित करने में सक्षम है |
  1. एथीलिन (ethylene) : एथीलिन (इथाइलिन) एक प्राकृतिक गैसीय हार्मोन है | पौधों के लगभग सभी भागों में एथीलिन निर्मित होता है |

कार्यिकीय प्रभाव

  • वृद्धि पर प्रभाव : यह लम्बाई में वृद्धि को रोककर मोटाई में वृद्धि करता है |
  • पुष्पन पर प्रभाव : आम , अनानास आदि में पुष्पन को प्रेरित करता है परन्तु अधिकांश पादपों में पुष्पन को संदमित करता है |
  • लिंग परिवर्तन प्रभाव : यह मादा पुष्पों की संख्या में वृद्धि करता है , जबकि नर पुष्पों में कमी करता है |
  • विलगन : यह जरावस्था , पत्तियों , फलो व पुष्पों के विलगन को तीव्र करता है |
  • यह फलो को पकाने में सहायक है |
  1. एसिटिक अम्ल (abscisic acid) : यह एक पादप वृद्धि निरोधक हार्मोन होता है |

कार्यिकी प्रभाव

  • यह पत्तियों के विलगन को बढ़ावा देता है |
  • यह कलियों व बीजों की प्रसुता को बनाए रखता है |
  • यह अनेक पादपों में जीर्णता को प्रेरित करता है |
  • कोशिका विभाजन एवं कोशिका परिवर्धन को अवरुद्ध करता है |
  • यह रंध्रो को बंद करने में प्रभावी होता है |

दीप्तिकालिता (photoperiodism)

पुष्पन पर दीप्तकालिता के प्रभाव का अध्ययन सर्वप्रथम दो अमेरिकी वैज्ञानिक गार्नर व एलार्ड ने 1920 में किया | उनके अनुसार पुष्पन को प्रभावित करने वाला क्रांतिक कारक प्रकाश काल की अवधि है |

दिन की वह लम्बाई जो पौधों में पुष्पन के लिए अनुकूल हो तथा दिन की आपेक्षिक लम्बाई अथवा आपेक्षिक दीप्तिकाल के प्रति पौधे की अनुक्रिया को दीप्तिकालिता कहते है |

अथवा : प्रकाश तथा अंधकार की अवधियों के अंतरालो के प्रति पौधों की अनुक्रिया को दीप्तिकालिता कहते है |

दीप्तिकालिता अनुक्रिया के आधार पर पौधे तीन प्रकार के होते है |

  1. अल्प दीप्तिकाली पादप / लघु दिवस पादप (short days plant – SDP) : ऐसे पौधे जो निश्चित क्रान्तिक दीप्तिकाल से कम अवधि में प्रकाश उपलब्ध होने पर पुष्पन करते है | लघु दिवस पादप कहलाते है | उदाहरण – डहेलिया आदि |
  2. दीर्घ दीप्तिकाली पादप / दीर्घ दिवस पादप (long days plant – LDP) : ऐसे पादप जिनमें पुष्पन के लिए क्रांतिक दीप्तिकाल से दीर्घ अवधि का दीप्तिकाल आवश्यक हो , दीर्घ दिवस पादप कहलाते है | उदाहरण – पालक , मूली , चुकंदर आदि |
  3. दिवस उदासीन पादप : वे पौधे जो लगभग सभी संभव दीप्तिकालो में पुष्पीकरण कर सकते है , दिवस उदासीन पादप कहलाते है | उदाहरण – टमाटर , ककड़ी व अन्य कुकर बिटेसी कुल के पादप |

बसंतीकरण (vernalization)

कुछ पौधों में पुष्पन गुणात्मक व मात्रात्मक तौर पर कम तापक्रम में अनावृत होने पर निर्भर करता है | इस विशेषता को ही बसंतीकरण कहते है |

अथवा : द्रुतशीतन उपचार द्वारा पुष्पन की योग्यता के उपार्जन को वसंतीकरण कहते है | यदि पानी सोखे हुए बीजों या नावोद्भिद को निम्न ताप पर उपचारित किया जाता है टो इसके प्रभाव से उनकी वृद्धि त्वरित / तेज हो जाती है तथा उनमें पुष्पन भी जल्दी होता है | वसंतीकरण का अध्ययन गेहूँ , चावल व कपास में किया गया है |