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Plant Breeding : Brief Introduction, Scope and Significance in hindi , पादप प्रजनन : संक्षिप्त परिचय, कार्यक्षेत्र एवं महत्त्व

पादप प्रजनन : संक्षिप्त परिचय, कार्यक्षेत्र एवं महत्त्व (Plant Breeding : Brief Introduction, Scope and Significance)

संक्षिप्त परिचय (Introduction) :

पादप प्रजनन की विधा सम्भवतः वनस्पति शास्त्र की सर्वाधिक प्राचीन शाखाओं में से एक है। मानव सभ्यता के प्रारंभिक चरण से जब से मनुष्य ने अपने उदर पोषण के लिए आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण पौधों की खेती प्रारम्भ की शायद तभी से उसका परिचय पादप प्रजनन (Plant Breeding) से हुआ होगा। प्राचीन काल के कृषक को इस तथ्य की भली-भाँति जानकारी थी कि उत्तम एवं स्वस्थ बीजों की बुवाई से अच्छी फसल होती है ।

एशिया महाद्वीप में पिछले हजारों वर्षों से अनेक उपयोगी पौधों जैसे, गाजर, मटर, टमाटर, गन्ना एवं चुकंदर आदि की खेती की जा रही है। अति प्राचीन काल से अनेक उपयोगी पौधों में उपज का उत्पादन एवं गुणवत्ता को सुधारने के प्रयास किये जाते रहे हैं। शुरू में इस दिशा में केवल चयन अथवा वरण (Selection) की प्रक्रिया को अपना कर फसल – सुधार के प्रयास किये गये परन्तु इस विधि में सफलता की आशंका ने पादप प्रजनकों (Plant breeders) को अन्य सटीक एवं वैकल्पिक विधियों की खोज हेतु बाध्य किया होगा ।

‘पादप प्रजनन (Plant Breeding) ” वनस्पतिशास्त्र की एक व्यवहारिक एवं अपेक्षाकृत अनुप्रयुक्त शाखा (An Applied Branch) है। हमारे दैनिक जीवन में काम आने वाले अनेक पौधे प्राकृतिक एवं कृत्रिम पादप प्रजनन (Natural and artificial plant breeding) की परिणिति (Resultant) कहे जा सकते हैं । उपरोक्त तथ्य से यह स्पष्ट होता है कि पादप-प्रजनन मुख्यतः मानवोपयोगी आर्थिक महत्त्व के पौधों के फसल उत्पादन में वृद्धि तथा उनकी नवीन किस्मों के विकास से सम्बन्धित है। पादप प्रजनन के सुव्यवस्थित एवं क्रमबद्ध अध्ययन का एकमात्र आधार मानवोपयोगी पौधों के उत्पादन में अपेक्षानुसार वृद्धि एवं गुणवत्ता में सुधार लाना है। हालाँकि जब से मनुष्य ने कृषि का कार्य प्रारम्भ किया तब से लेकर आज तक फसल उत्पादक पौधों की संख्या में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई है, परन्तु मानवोपयोगी फसलोत्पादक पौधों की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। कृषि उत्पादन के संदर्भ में एक पादप प्रजनन विज्ञानी (Plant breeder) के समक्ष कुछ उद्देश्य होते हैं । प्रमुख उद्देश्य निम्न प्रकार से हैं :-

(1) अन्नोत्पादक पौधों (Cereals) में दानों की अधिक संख्या प्राप्त करना, चारे के लिए प्रयुक्त फसलों में तृण (Straw) की मात्रा अधिक प्राप्त करना।

(2) आकृति, परिमाण (Size), रंग तथा पकाने (Cooking) में उत्तम गुणवत्ता (Quality) की प्राप्ति ।

(3) पोषण गुणवत्ता (Nutrient value), विशेष रूप से अन्नोत्पादक पौधों (Cereals) में प्रोटीन्स की मात्रा

अधिक प्राप्त करना ।

(4) प्रतिरोधी किस्मों की प्राप्ति अर्थात् ऐसी किस्म विकसित करना जो रोग, कीट, सूखा, बाढ़ तथा मृदा में लवणीयता, अम्लीयता एवं क्षारीयता के लिए प्रतिरोधी (Resistant) हों ।

(5) आवश्यकतानुसार पौधों के पुष्पन के समय में परिवर्तन ।

(6) अन्नोत्पादक पौधों में अत्यधिक तलशाखन (Tillering) ।

(7) बालियों (Spikes) की गुणवत्ता में सुधार ।

पादप प्रजनन के कार्यक्षेत्र को देखते हुए हालाँकि इसकी सटीक एवं उपयुक्त परिभाषा प्रस्तुत करना एक श्रमसाध्य कार्य रहा है परन्तु फिर भी वैज्ञानिकों के द्वारा इस विषय को अनेक प्रकार से परिभाषित करने का प्रयास किया गया है। कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्न प्रकार से हैं :-

“विभिन्न आर्थिक महत्त्व के पौधों के आनुवंशिकीय प्रारूप को उन्नत करने, उनकी गुणवत्ता एवं उत्पादन में सुधार लाने की प्रक्रिया को पादप प्रजनन (Plant breeding) कहते हैं । ”

दूसरे शब्दों में, पादप प्रजनन की विधा कला एवं विज्ञान का एक ऐसा अनूठा संगम है जिसकी आधारभूत इकाई के रूप में पौधों की कोशिकानुवंशिकी एवं विभिन्नताओं (Variations) को निरूपित किया जा सकता है। फ्रेन्केल (Frankel 1969) के अनुसार ” पादप प्रजनन के अन्तर्गत पर्यावरण के भौतिक, जैविक, तकनीकी एवं आर्थिक तथा सामाजिक घटकों (Components) से पौधों के आनुवांशिक समायोजन का अध्ययन किया जाता है ।

उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है कि आधुनिक परिप्रेक्ष्य में पादप प्रजनन एक प्रगतिशील विधा है, एवं वनस्पतिशास्त्र (Plant sciences) विषय की एक उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण शाखा है। इस विधा के अन्तर्गत विभिन्न उपयोगी फसलोत्पादक पौधों (Crop plants) को प्राचीन या पुरानी किस्मों (Old varieties) को आनुवंशिक रूप से उन्नत एवं परिष्कृत करके, इनसे नई, बेहतर, उत्तम गुणवत्ता (Improved quality) एवं उत्पादन (Production) वाली पादप किस्मों का विकास किया जाता है। इस प्रकार प्राप्त नवीन किस्में अपने पूर्वज पौधों से इच्छित या वांछित (Desired) गुणों में बेहतर होती है । अत: यह भी कहा जा सकता है कि पादप प्रजनन विज्ञानियों का मुख्य ध्येय आज अधिकाधिक आर्थिक रूप से उपयोगी गुणों का समावेश कर बेहतर पादप किस्मों के परिवर्द्धन पर केन्द्रित है ।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य (Historical aspect) :

जब से मनुष्य ने पेड़-पौधों का इस्तेमाल अपने उपयोग के लिए प्रारम्भ किया, शायद तभी से ही जाने- अनजाने में उसने पादप प्रजनन की विधा को भी अपनाया होगा। प्राचीन ग्रंथों के अध्ययन से जानकारी मिलती है कि मानव इतिहास के साथ ही पादप प्रजनन के इतिहास का भी समन्वय है । प्रस्तर युग में मनुष्य ने खाद्योपयोगी एवं अन्य पौधों को अपने परिवार के भरणपोषण के लिए उगाया होगा ।

प्रारम्भिक अवस्था में मानव ने अल्पज्ञात जानकारी के आधार पर फसलों एवं अन्य उपयोगी पौधों को विकसित किया, परंतु आगे चलकर जैसे-जैसे उसकी पेड़-पौधों के बारे में जानकारी बढ़ती गई, तो उसके द्वारा प्रयुक्त कृषि के तौर-तरीकों में वैज्ञानिक प्रभाव दिखलाई दिया। अतः यह भी कहा जा सकता है कि पादप- प्रजनन, कृषि विज्ञान की एक अनन्यतम इकाई है, जिसका प्रमुख उद्देश्य मुख्यतः फसलोत्पादक पौधों (Crop plants) की उत्तम गुणवत्ता वाली किस्मों का विकास करना है।

पादप प्रजनन के अध्ययन के प्रारम्भिक चरण में मनुष्य ने अपने आसपास उगने वाले जंगली पेड-पौधों को उनके उपयोगी गुणों को ध्यान में रखते हुए अपने निवास स्थानों के आस-पास उगाना प्रारम्भ किया, अर्थात् इस प्रकार जंगली पौधों को पालतू बनाने या इनके ग्राम्यन (Domestication) की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई।

पादप प्रजनन के अन्तर्गत संकरण (Hybridization) का अनुप्रयोग, ईसा से लगभग 700 वर्ष पूर्व (700 B.C.) के काल में सीरिया एवं बेबिलोनिया के निवासियों द्वारा खजूर (Date palm) के पुष्पों में कृत्रिम परागण करवा कर किया गया था। महान प्रकृति विज्ञानी प्लिनी (Pliny) द्वारा भी इस तथ्य की पुष्टि की गई कि खजूर के मादा पौधे (Female palms) अपने कोमल पत्तियों सहित नर पौधों (Male palms) की ओर झुकते हैं, जैसे कि यह प्रकृति का अभिशाप हो । संकरण का वैज्ञानिक अध्ययन केमेरेरियस (Camerarious 1694) द्वारा लैंगिकता की क्रमिक अवस्था (Degree of Sex) के साथ प्रारम्भ हुआ । नाइट (Knight 1760) एवं कालरियूटर (Kolereuter 1761) ने केमेरेरियस द्वारा प्रस्तुत अवधारणा की पुष्टि की तथा तम्बाकू व अन्य फसलों में कृत्रिम संकरण करवाने का कार्य किया, उनके द्वारा पौधों में परपरागण की क्रिया में कीटों (Insects) की भूमिका का वर्णन भी किया गया।

विल्मोरिन (Vilmorin 1856) ने चुकंदर (Beta vulgaris) की नई किस्मों का विकास किया।

जोहनसन (Johanson, 1905) ने शुद्ध वंशक्रम अवधारणा प्रस्तुत की ।

सन् 1900 में मेंडल के आनुवंशिकता के नियमों के पुनअन्वेषण ने पादप प्रजनन के वैज्ञानिक अध्ययन में एक सुदृढ़ आनुवंशिक आयाम की स्थापना की।

जी.एच.शल (GH.Shull 1904) के द्वारा मक्का (Zea mays) के पौधों में अंत: प्रजनन ( Inbreeding) प्रयोग संपादित किये गये ।

अध्ययन के प्रारम्भिक चरण में पादप प्रजनन की विधा एक कला (Art) थी परन्तु आज यह एक सुपरिभाषित एवं सुव्यवस्थित विज्ञान है, जिसके अध्ययन में वनस्पतिशास्त्र की अन्य शाखाओं जैसे- कोशिकानुवंशिकी (Cytogenetics), पादप रोग विज्ञान (Plant pathology), पादप कार्यिकी (Plant physiology), आकारिकी (Morphology), पादप वर्गिकी (Plant Taxonomy), जैव रसायन (Biochemistry) इत्यादि का समावेश भी किया गया है। इसके अतिरिक्त सांख्यिकी (Statistics) के बारे में पर्याप्त जानकारी होनी भी आवश्यक है। एक जिज्ञासु एवं सुविज्ञ पादप प्रजनन विज्ञानी को उपरोक्त तथ्यों का गहन अध्ययन करना चाहिए। क्योंकि पादप प्रजनन सम्बन्धी प्रयोगों के द्वारा हमारा एक मात्र उद्देश्य उत्तम एवं वांछित गुणवत्ता वाले उपयोगी कृष्य पौधों को प्राप्त करने का है। विभिन्न प्रकार के फसल उत्पादक पौधे (Crop plants), जिनकी गुणवत्ता एवं उत्पादन में सुधार के लिए पादप प्रजनन का अध्ययन आवश्यक है, निम्न प्रकार के हैं-

(A) खाद्योपयोगी फसलें (Edible Crops ) :

  1. अन्नोत्पादक फसलें (Cereal Crops) : जैसे गेहूँ, मक्का, चावल, बाजरा एवं जौ इत्यादि।
  2. दलहनी फसलें (Pulses) : जैसे मूँग, उड़द, चना, मसूर, अरहर व मोठ इत्यादि।

III. सब्जियां (Vegetable Crops) : जैसे मटर, टमाटर, फूलगोभी, कद्दू, आलू, प्याज, मिर्च व भिंडी आदि।

(B) तिलहनी फसलें (Oil Yielding Crops) :

मूँगफली, तिल, अलसी, सरसों, अरंडी व नारियल इत्यादि ।

(C) चारे वाली फसलें (Cattle fodder Crops) :

रिजका, ग्वार, सूड़ तथा विभिन्न घासें आदि।

(D) रेशा उत्पादक फसलें (Fibre Yielding Crops) : कपास, सन, जूट, नारियल, एवं अलसी आदि ।

(E) औषधीय पादप (Medicinal plants):

ब्राह्मी, सफेद मूसली, शतावरी, कालमेघ, असंगध, ईसबगोल एवं सर्पगंधा आदि। (F) शर्करा उत्पादक फसलें (Sugar Yielding Crops) :

गन्ना एवं चुकन्दर आदि ।

विभिन्न फसलोत्पादक पौधों (Crop plants) में पादप प्रजनन के उद्देश्य उनकी उपयोगिता गुणवत्ता, एवं जलवायु के अनुसार अलग-अलग को सकते हैं। फसल उत्पादक पौधों की जिन किस्मों में उत्तम गुणवत्ता एवं अधिक से अधिक वांछित गुण (Desired characters) पाये जाते हैं, उनको हम उन्नत या बेहतर किस्में (super or Improved varieties) कहते हैं।

पादप प्रजनन के क्षेत्र में भारत का योगदान (Contribution of India in the Field of Plant-breeding)

हमारे देश के पादप प्रजनन विज्ञानियों (Plant-breeding Scientists) एवं कृषि शोधविज्ञानियों ने समय- समय पर अपने अनुसंधान एवं शोध के द्वारा नई उपयोगी पादप किस्मों को विकसित कर न केवल देश एवं समाज अपितु सम्पूर्ण मानवता को लाभान्वित किया है। ऐसे ही कुछ वैज्ञानिकों में डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन, डॉ. बी.पी. पाल, कुंडू, अठवाल, वेंकट रमन, रमैया, मेहता, रामधनसिंह, जी.एम.रेड्डी, चोपड़ा एवं पी. के. गुप्ता आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।

सन् 1960 के दशक में हरित क्रान्ति के लिए उत्तरदायी गेहूँ की बौनी किस्मों के विकास में डॉ. नार्मन बोरलाग के साथ डॉ. स्वामीनाथन का भी विशेष योगदान रहा है। इसी प्रकार डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन के मार्गदर्शन में चावल की भी अनेक नई किस्में, जैसे- पद्मा ( Padma ), जया (Jaya) भारत में विकसित की गई हैं; इसी प्रकार गन्ने की उत्तम गुणवत्ता वाली किस्में व मक्का, ज्वार, बाजरा की संकर (Hybrid) तथा संग्रथित (Composite) किस्में तैयार की गई है; परिणामस्वरूप आज हमारा देश खाद्यान्न के मामले में पूर्णतया आत्मनिर्भर है ।

अभ्यास-प्रश्न

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न अथवा रिक्त स्थानों की पूर्ति

(Very short answer questions / Fill in the blanks) :

1.भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान कहाँ स्थित है ?

2.हरित क्रान्ति में किस भारतीय वैज्ञानिक का विशेष योगदान रहा है ?

3.पादप प्रजनन को परिभाषित कीजिये ।

  1. गेहूँ की नवविकसित किस्मों को तैयार करने वाले संस्थान का नाम लिखिये ।

लघूत्तरात्मक प्रश्न ( Short Answer Questions ) :

1.पादप प्रजनन की महत्ता पर प्रकाश डालिये।

2.पादप प्रजनन के क्षेत्र में भारत के योगदान का विवरण दीजिये ।

निबन्धात्मक प्रश्न (Essay type Questions ) :

  1. पादप प्रजनन से क्या तात्पर्य है? इसके महत्त्व एवं विधियों के बारे में विवरण दीजिये ।
  2. पादप प्रजनन के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य एवं विज्ञान की अन्य शाखाओं से इसके संबंध का विस्तृत वर्णन कीजिये ।

उत्तरमाला (Answers)

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न :

  1. नई दिल्ली में
  2. डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन ।