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Physiology of Circulation in hindi , परिसंचरण की कार्यिकी क्या है , रक्त का संगठन (Composition of blood) समझाइये

जानिये Physiology of Circulation in hindi , परिसंचरण की कार्यिकी क्या है , रक्त का संगठन (Composition of blood) समझाइये ?

परिसंचरण की कार्यिकी (Physiology of Circulation)

परिसंचरण तंत्र शरीर का एक आवश्यक एवं अति महत्त्वपूर्ण तंत्र होता है। यह शरीर के विभिन्न ऊत्तकों के मध्य आश्वयक पदार्थों के विनिमय (exchange) का कार्य करता है। इसके अतिरिक्त यह शरीर में उपस्थित अंगों को आवश्यक पदार्थ उपलब्ध कराता है। इसमें एक परिसंचरणीय माध्यम (circulatory fluid) एवं नियमित वाहिनियाँ (vessels) का जाल पाया जाता है। एक कोशिकीय (unicellular) जन्तु जैसे अमीबा ( Amoeba) एवं पेरामीशीय (paramecium) परिसंचरण तंत्र पूर्णतया अनुपस्थित होता हैं क्योंकि इन जन्तुओं में वातावरण एवं शरीर के मध्य पदार्थों का विनिमय सीधे ही सतह के द्वारा हो जाता है । जैसे ऑक्सीजन वातावरण से विसरण ( diffusion) की विधि द्वारा सीधे शरीर में प्रवेश कर जाती है तथा कार्बन डाई ऑक्साइड एवं अमोनिया शरीर से विसरण द्वारा बाहर आ जाती है। हाइड्रा (IHydra) एवं अन्य सीलेन्ट्रेन्ट्स (other coelenterates) तथा चपटे कृमियों (flat worms) में ऑक्सीजन एवं अन्य पदार्थों का कोशिकाओं तथा परिवहन (transportaion) एवं उत्सर्जी पदार्थों (excretory products) का निष्कासन जठर-वाहिनी गृहा (gastro vascular cavity ) द्वारा सम्पन्न होता है। इस कारण इन जन्तुओं में एक पृथक् परिसंचरण तंत्र की आवश्यकता नहीं होती है। उच्च स्तरीय जन्तुओं में शरीर के जटिल संगठन (complex organization) के कारण एक पृथक् परिसंचरण (circulatory ) या संवहन (transport) तंत्र की आवश्यकता होती है जिससे विभिन्न पदार्थ शरीर में एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरित किये जाते हैं । (विलियम हार्वे (William Harvey) ने 1682 में सर्वप्रथम हृदय के कार्य एवं रुधिर कं परिसंचरण की जानकारी दी । सम्पूर्ण परिसंचरण तंत्र भ्रूण के मीजोडर्म (mesoderm) स्तर से बनता है। उच्च कोशिकाओं में रक्त परिसंचरण तंत्र (blood vascular system) एवं लसीका तंत्र (lymphatic system) पाये जाते हैं। रक्त परिसंचरण तंत्र में रुधिर (blood), हृदय (heart) एवं रक्त वाहिनयाँ (blood vessels) तथा लसीका तंत्र में लसीका (lymph), एवं लसीका वाहिनियाँ (lymphatic vessesls) सम्मिलित किये जाते हैं।

रक्त का संगठन (Composition of blood)

ऊतक (Connective रक्त एक परिसंचारी (circulating) तरल ऊतक (liquid tissue) है जो शरीर में मुख्यतया पदार्थों के स्थानान्तरण (transportation) का कार्य करता है। सामान्य वयस्क मनुष्य में लगभग 5.0 लीटर रुधिर पाया जाता है जो शारीरिक भार का लगभग 6 से 7.5 प्रतिशत भी बनता है। कशेरुकियों में सामान्यता रुधिर का रंग लाल ( red coloured ) होता है। एम्फीऑक्सस एवं लेप्टोसिफेलस को छोड़कर अन्य प्राणियों में यह जल से भारी होती है। तथा इसकी विशिष्ट गुरुत्वता (specific gravity) 1.050 से 1.060 होती है। यह जल

 

 

जल से लगभग 5 गुणा अधिक विस्कासी (viscous) होता है । रुधिर क्षारीय (alkaline)  का होता है तथा इसकी pH लगभग 7.4 होती है। यह स्वाद में नमकीन (alkaline) होता है।

रक्त में मुख्य भाग प्लाज्मा के रूप में होता है जो तरल अवस्था (liquid state ) में पाय ‘घटकों हैं यह सम्पूर्ण रक्त का लगभग 55 प्रतिशत भाग बनता है। रक्त में शेष 45 प्रतिशत भाग जाता कणिकाओं (blood corpuscles) के रूप में होता है। रक्त में उपस्थित इन (components) का विस्तार से वर्णन निम्नलिखित हैं।

(I) रक्त कणिकाएँ (Blood corpuscles)

ये सम्पूर्ण रुधिर 45 प्रतिशत भाग बनाती है। प्लाज्मा में तीन प्रकार की रक्त कणिकायें उपस्थित (present) रहती है। यह लाल रुधिर कोशिकायें (red blood corpuscles) या इरिथ्रोसाइट्स (erythrocytes) श्वेत रुधिर कोशिकायें (white blood corpuscles) या ल्यूकोसाइट्स (leucoyctes). एवं प्लेटलेट्स (platelets) या थ्रोम्बोसाइट्स ( thrombocytes) के रूप में होती हैं प्रत्येक प्रकार की कणिकाओं का एक विशिष्ट कार्य (specific function) होता है।

(a) लाल रक्त कणिकाएँ या इरिथ्रोसाइट्स (Red blood corpuscles or Eythrocytes

लाल रक्त कणिकाएँ की सर्वप्रथम ल्यूवेनहॉक (Leeuwenhock) ने 1674 में छोटे गोले कणों के रूप में देखा था। ये कुणिकाएँ लगभग सभी कशेरुकियों (लेप्टोसिफेलस लार्वा एवं कुछ केयनीकटाइडी वंश की मछलियों को छोड़कर) के शरीर में पाई जाती है। कशेरुकियों के अतिरिक्त कुछ अकशेरुकी (invertebrate ) जन्तुओं जैसे ग्लोइसेरा (Glycera). फोरिनिस (Phoronis), आर्क (Arch) एवं थीओन (Thyone) में भी लाल रक्त कणिकाएं उपस्थित (present) रहती है।

(i) आकृति (Shape)— स्तनियों के अतिरिक्त सभी कशेरुकी जन्तुओं में इरिथ्रोसाइट्स अण्डाकार (oval), उभयोत्तल (biconvex) एवं केन्द्रक युक्त (nucleated) होती है। स्तनियों में (ऊंट एवं लामा को छोड़कर) पूर्ण परिक्व इरिथ्रोसाइट्स वृत्ताकार (circular), उभयाक्तल (biconcave) एवं केन्द्रकवहिन (non-uncleated) होती है। स्तनियों में उपस्थित उभयावंतलीय इरिथ्रोसाइट्स होने के कारण इनका आधार (surface area) तल बढ़ जाता है। (केन्द्रक को अनुपस्थिति के कारण इसें अधिक मात्रा में हीमोग्लोबिन (haemoglobin) समा सकता है।

(ii) आकार (Size)— विभिन्न जन्तुओं में लाल रक्त कणिकाओं का परिमाण अलग-अलग होता है। कशेरुकियों में सबसे आकार की इरिथ्रोसाइट्स एम्फीयमा (Amhiuma) में हाती है। इसमें इनका परिमाण लगभग 75 होता है। इसी प्रकार प्रोटीयस ( Proteus) में 58p तथा मेंढक (Frog ) में 22 परिमाण की लाल रक्त कणिकायें होती हैं स्तनधारियों में अपेक्षाकृत कम परिमाण की इरिथ्रोसाइट्स होती है। मनुष्य (Human being) में औसतन 7.5 H, हाथी (Elephant) में (स्तनधारियों में सबसे बड़ी ) खरहा (Rabbit) में 6.9 बिल्ली (Cat) में 6.5. घोड़े (Horse)14, में 4.6 तथा कस्तुरी मृग (Musk deer) में मात्र 2.5 सबसे छोटी ( smallest ) परिमाण की इरिथ्रोसाइट्स पाई जाती है ।

(iii) संख्या, (Number ) — विभिन्न जन्तुओं में इरिथ्रोसाइट्स की संख्या भी भिन्न होती है। वयस्क पुरुष (adult male) में लगभग 50 से 55 लाख रक्त कणिकाएं प्रति घन मि.मी. में पाई जाती है जबकि वयस्क स्त्री में यह संख्या 45 लाख प्रति घन मि.मी होती है। रक्त कणिकाओं की संख्या’को हीमोसाइटोमीटर (ffaemocy tometer) द्वारा मापा जाता है। मनुष्य में जन्म के समय सबसे अधिक संख्या (लगभग 68 लाख / घन मि.मी) में इरिथ्रोसाइट्स पाई जाती है। यह संख्या बच्चों में तेजी से वृद्धि होती है तथा 5 साल की उम्र पर यह संख्या बढ़कर 50 लाख प्रति घन मि.मी अर्थात् सामान्य हो जाती है। तालिका-1 में कुछ विभिन्न वर्गों के जन्तुओं में उपस्थित लाल रक्ताणुओं की संख्या को दर्शाया गया है।

कभी कभी लाल रक्त कणिकाओं की संख्या में कमी या अधिकता भी देखी जाती है। लाल रक्त कणिकाओं की शरीर में कमी को एनीमिया (allaemia) कहते हैं। स्त्रियों में सामान्यता गर्भावस्था (pregnancy) एवं मासिक धर्म (mensturation ) रुधिर कणिकाओं की संख्या सामान्य से अधिक होने वाली दशा की पोलीसाइथेमिया (parkcythemia) कहा जाता है। यह दशा ऊँचाई (high altitude) पर निवास करने वाले व्यक्तियों में देखी जाती है।

(iv) संरचना (Sturcture)— इरिथ्रोसाइट्स से चारों ओर एक पतली एवं लचीली परिधीय झिल्ली उपस्थित रहती है जो लगभग 0.02 मोटाई की होती है। यह झिल्ली लाइपोप्रोटीन (lipoprotin) की बनी होती है। यह एक अर्धपारगम्य (semipermeable ) झिल्ली होती है। लाल रुधिर कणिकाओं में केन्द्रक (nucleus ), अंत: प्रद्रवी जालिका (endoplasmic reticulum), सेन्ट्रीओल्स (centrioles). माइटोकॉण्ड्रिया ( mitochondria ) एवं गॉल्जी उपकरण (Golgi complex) आदि कोशिकाद्रव्यी अंगक अनुपस्थित रहते हैं लाल रुधिर कणिकाओं के कोशिकाओं में श्वसन वर्णक (respiratory pigment)’ रूप में हीमोग्लोबिन (haemoglobin) पाया जाता है।)

हीमोग्लोबिन लाल रुधिर कणिकाओं में उपस्थित एक आवश्यक प्रोटीन होती हैं जो ऑक्सीजन के साथ युग्मत होने की क्षमता रखता है। वयस्क पुरुषों में हीमोग्लोबिन की मात्रा में लगभग 14.0 ग्राम प्रति 100 मि.ली. तथा स्त्रियों में 12.0 प्रति ग्राम 100 मि.ली. होती है। एनीमिया की स्थिति में लाल रुधिर कणिकाओं की शरीर में कमी होने पर हीमोग्लाबिन की मात्रा की कमी हो जाती है। ऐसी दशा में रक्त ऑक्सीजन के पर्याप्त परिमाण से संयोग नहीं कर सकता है तथा यह स्थिति एनोक्सीमिया (aoxemia) कहलाती है।

(v) भौतिक गुण (Physical properties ) — लाल रुधिर कणिकाएं कोमल एवं लचीली होती है। ये रुधिर में एक दूसरों पर सिक्कों में जमाव (pile o coins) की तरह उपस्थिति रहती है।। इस प्रकार इरिथ्रोसाइट्स अनेक स्मम्भों (coumns) के रूप में दिखाई देती है । इरिथ्रोसाइट्स के इस हीमोग्लोबिन निकलकर बाहर आ जाता है। यह क्षति पित्त लवण (bile slts), वसा घोलकों (lipid गुण को रुलेक्स (rouleaux) कहा जाता है। प्लाज्मा झिल्ली के क्षतिग्रस्त होने पर इरिथ्रोसाइट्स की। solvents) एवं सर्प विष (snake venom ) द्वारा उत्पन्न हो सकती है। लाल रुधिर कणिकाओं में विभिन्न पदार्थों के सम्पर्क में आने पर समूहन (agglutination) होने की प्रवृत्ति होती है। यह पदार्थ लवणीय विलयन (slat solution), ग्लूकोज विलयन (glucose solution), एवं एन्टीबॉडी (antibodies) इत्यादि होते हैं।

(vi) इरिथ्रोसाइट्स का निर्माण (Formation of erythrocytes ) — शरीर में इरिथ्रोसाइट्स के निर्माण की प्रक्रिया इरिथ्रोपोइसिस ( erythropoiesis) या हीमोपोइसिस (haemopoiesis) कहा जाता है। भ्रूणावस्था में द्वितीय माह तक इरिथ्रोसाइट्स के निर्माण पीतक थैले (yolk sac ) द्वारा होता है । पीतक थैल इरिथ्रोसाइट्स के निर्माण हेतु प्रथम रचना होती है। द्वितीय से पाँचवें महीने तक यह कार्य यकृत (liver), प्लीहा (spleen) एवं थाइम्स (thymus) ग्रन्थि द्वारा किया जाता हैं वयस्क प्राणी में यह कार्य लाल अस्थि मज्जा (red one marrow) में सम्पन्न होता रहता है। शरीर में मुख्यतया लाल रक्त कणिकाऐं अधिकतर अस्थियों (long bones) जैसे फीमर (femur), कपालीय अस्थियाँ (cranial). केशेरुकों (vertebrae), उरोस्थि (sterum) इत्यादि में बनती है। इरिथ्रोपोसिस की क्रिया लगभग 72 घण्टे मैं सम्पूर्ण होती है।

इरिथ्रोसाइट्स का परिपक्वन (maturation ) चित्र 3.1 के अनुरूप पाँच चरणों में पूर्ण होता है।

(vii) जीवन काल (Life span ) – इरिथ्रोसाइट्स का जीवन काल निश्चित होता है। विभिन्न जन्तुओं में यह समय अलग-अलग होता है। इरिथ्रोसाइट्स का जीव काल मेंढ़क में 100 दिन, मनुष्य में 120 दिन एवं कुत्ते 124 दिन ( सबसे अधिक ) देखा गया है। नृष्ट हुई लाल रुधिर कणिकाएँ परिसंचरण में यकृत (liver) एवं प्लीहा (spleen) द्वारा ग्रहण की जाती है। जो ये अंग लाल रक्त कणिकाओं से निष्कासित लौह (iron) को ग्रहण कर पुन: हीमोग्लोबिन के निर्माण हेतु संग्रहित करते हैं। हरिथ्रोसाइट्स का प्रोटीन भाग एक पदार्थ बिलोवर्डिन (bilverdin) बनाता है, जो अन्त में से बिलीरूबिन (billirubin) में परिवर्तित हो जाता है तथा पित्त वर्णक (bile pigment) के रूप में पित्त रस (bile juice) द्वारा निष्कासित कर दिया जाता है।

अनुमान है कि एक सैकण्ड में लगभग 25 लाख एवं कए दिन में लगभग 5 x 10 लाल रक्त कणिकाएं नष्ट होती है। इसी प्रकार लगभग इतनी ही कोशिकाएं एक दिन में उत्पन्न होती है। जिससे इनकी संख्या शरीर में निश्चित बनी रहती है। ऐसा माना जाता है कि एक लाल रुधिर कणिका अपनी मृत्यु से पूर्व शरीर के लगभग 50,000 चक्कर पूर्ण कर लेती है। इन कणिकाओं के नष्ट होने से एक सामान्य व्यक्त के शरीर में एक दिन में लगभग 250 मि.ग्रा. पित्त लवण बनते हैं

(viii) ऊर्जा की आवश्यकता (Energy requirement ) — परिपक्व इरिथ्रोसाइट्स केन्द्रक, माइटोकॉण्ड्रिया एवं राइबोसोम का अभाव होता है। माइटोकॉण्ड्रिया की अनुपस्थिति के कारण लाल रक्त कणिकाओं में ऑक्सीकारी श्वसन (aerobic respiration) अर्थात् क्रेब चक्र (Kerb’s cycle) नहीं होता है जिससे इन कोशिकाओं को अधिक ऊर्जा नहीं मिल पाती है। परन्तु इन कोशिकाओं को अपनी संरचना को यथावत् बनाये रखने अन्य कार्यों हेतु ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इरिथ्रोसाइट्स में ऊर्जा शर्करा (sugar) के अनॉक्सीकारी श्वसन (anacrobic respiration) द्वारा लेक्टिक अम्ल (lactic acid) में परिवर्तन से प्राप्त होती है।

(ix) लाल रक्त कणिकाओं कार्य (Functions of RBC)

(i) ये ऑक्सीजन (O2) को फेफड़ों (lungs) से विभिन्न ऊत्तकों (tissues) तक

(i) ये कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) के शरीर की कोशिकाओं से फेफड़ों तक पहुँचाती है।

(iii) ये रुधिर की विस्कासिता ( viscocity) को नियमित करती है

(iv) हीमोग्लोबिन एक उभय प्रतिरोधी तंत्र (buffer system) की तरह कार्य करता है जिससे इरिथ्रोसाइट्स् रुधिर के pH को नियमित बनाये रखने के कार्य में मदद करती है। दुमा 100 वे बताता