प्रकाशआही वर्णक क्या है , Photoreceptor pigment in hindi , प्रकाशानुवर्तन की क्रिया विधि (Mechanism of phototropism)
जानिये प्रकाशआही वर्णक क्या है , Photoreceptor pigment in hindi , प्रकाशानुवर्तन की क्रिया विधि (Mechanism of phototropism) ?
प्रकाशआही वर्णक (Photoreceptor pigment)
प्रकाशानुवर्तन में कुछ वर्णक प्रकाशग्राही का कार्य करते है तथा प्रकाशनुवर्तक लायक प्रकाश ग्रहण करके उद्दीपन पैदा करते है। करी (curry, 1969) के अनुसार पादपों में एक ही प्रकाशग्राही वर्णक, एक पीला वर्णक (संभवतः केरोटिनाइड) होता है जो कि प्लास्टिड में स्थित होता है। आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार प्रकाशानुवर्तन में B- केरोटिन एवं राइबोफ्लेविन प्रकार के दो पीले वर्णक सम्मिलित होते हैं ।
मुनोज एवं बटलर (1975) के अनुसार जई ( Avena) एवं फाइकोमाइसीज (Phycomyces) के प्रकाशानुवर्तन के लिये सक्रिय स्पेक्ट्रम (action spectrum) समान होता है। इन दोनों में फ्लैवोप्रोटीन प्रकाशानुवर्तन के लिये उत्तरदायी पाया गया है। ब्रेन एवं सहयोगियों (Brain et al. 1977) के अनुसार प्लाज़्मा झिल्ली में, प्रकाश अवशोषण के पश्चात् फ्लैवोप्रोटीन एक b-प्रकार के साइटोक्रोम से ऑक्सिकृत हो जाते है। इस प्रकार कैरोटीन के बजाय, एक फ्लैविन प्रकाशग्राही ( photoreceptor) का कार्य करता है ।
पादपों में शीर्ष (apices) धनात्मक प्रकाशावगमन के क्षेत्र होते हैं। ये क्षेत्र शीर्ष से 1-5 mm नीचे स्थित होता है। लेम एवं लिओपोल्ड (Lam and Leopold, 1966) के अनुसार सूरजमुखी में प्रकाशानुवर्तक वर्णक मूलांकुर (hypocotyl) में स्थित होता है।
प्रकाशानुवर्तन की क्रिया विधि (Mechanism of phototropism)
यह सिद्ध हो चुका है कि प्रकाशानुवर्तन में वृद्धि हार्मोन ऑक्सिन की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। तरूण पादप को एक दिशीय प्रकाश से उद्भासित करने पर प्रकाशानुवर्तन के कारण तने एवं जड़ के शीर्ष की गति से वक्र उत्पन्न होता है। यह शीर्ष के अंधेरे वाले भाग तथा प्रदीप्ति भाग के असमान वृद्धि के कारण ही होता है। तने के शीर्ष में छाया वाले आधे भाग में वृद्धि अधिक होती है जबकि जड़ के शीर्ष में प्रदीप्ति वाले भाग में वृद्धि अधिक होती है। यह असमान वृद्धि, ऑक्सिन के असमान वितरण के कारण होती है। जिसकी मात्रा छाया वाले आधे भाग में हमेशा ही अधिक होती है।
ऑक्सिन एवं प्रकाशानुवर्तन (Auxin and phototropism)
प्रकाशानुवर्तन गति पर प्रकाश एवं ऑक्सिन की पारस्परिक क्रियाओं को समझाने के लिए निम्न सिद्धान्त प्रस्तुत किये गये हैं-
- कोलोनी-वैन्ट सिद्धान्त (Cholodny- Went theory)-
इस सिद्धान्त के अनुसार ऑक्सिन का प्राकुंर चोल में पार्श्व स्थानान्तरण (lateral translocation) होता है जिससे इसकी सांद्रता अप्रकाशित भाग में अधिक हो जाती है। ऑक्सिन की इस अधिक सांद्रता के कारण अप्रकाशित भाग में अधिक वृद्धि होती है जिससे एक धनात्मक वक्रण प्राप्त होता है। वे यह समझा पाये कि आक्सिन का पार्श्व स्थानान्तरण किस प्रकार होता है। ब्रिग्स ‘(Briggs. 1963) एवं पिकार्ड एवं थीमान (Pickard and Thimann. 1964 ) ने प्रयोगों द्वारा इस सिद्धान्त की पुष्टी की।
- ऑक्सिन का प्रकाश-प्रेरित नाशीकरण (Photo-destruction of auxin)
इस वाद के अनुसार प्रांकुर चोल के अप्रकाशित वाले भाग की ओर एक आक्सिन सांद्रता प्रणवता (auxin concentration gradient) उत्पन्न हो जाती है जिससे प्रदीप्तिकाली भाग की ओर ऑक्सिन अणुओं का नाश होता है। इस प्रकार, ऑक्सिनं की असमान सांद्रता के कारण असमान वृद्धि होती है जिससे धनात्मक वक्रण बनता है। पिकार्ड एवं थीमान (Pickard and Thimann, 1964) ने 14C-IAA द्वारा मक्का के प्रांकुर चोल पर ऑक्सिन सांद्रता प्रवणता देखी ।
- भिन्न ऑक्सिन संश्लेषण (Differential auxin synthesis)
यह सिद्धान्त प्रस्तुत किया गया है कि पादप के प्रदीप्तिकाली भांग में अप्रकाशित भाग की बजाय ऑक्सिन कम मांत्रा में उत्पन्न होता है ।
- प्रकाश वृद्धि क्रिया (Light-growth recation)
इस सिद्धान्त के अनुसार यह एक साधारण वृद्धि क्रिया है जिसमें प्रदीप्तिकाली आधे भाग में वृद्धि संदमित हो जाती है। लेकिन्-यह लाल प्रकाश के कारण होता है जो कि प्रकाशानुवर्तन में मुख्य भूमिका नहीं निभाता है। अब ऐसा माना जाता है कि नीले प्रकाश के कारण ऑक्सिन की भिन्न सांद्रता उत्पन्न होती है ।
उपयुक्त सिद्धान्तों में से कोलोनी – वैन्ट सिद्धान्त कई प्रयोगों द्वारा सिद्ध किया गया है । वेन्ट (1926) ने एक प्रयोग में दर्शाया कि प्रांकुर चोल के प्रदीप्तिकाली भाग में केवल 27% ऑक्सिन था जबकि अप्रकाशित भाग में 57% आक्सिन प्राप्त हुआ । इस प्रयोग में कुछ मात्रा के 16% ऑक्सिन का विलोप (loss) हुआ। वैन्ट ने इस 16% मात्रा को महत्त्वपूर्ण माना जबकि अन्य वैज्ञानिकों ने इसे प्रदीप्तिकाली भाग में ऑक्सिन का प्रकाशी-नाशीकरण (Photodestruction) होना माना ।
प्रदीप्तिकाली भाग एवं अप्रकाशित भाग में भिन्न ऑक्सिन बनना पाया गया
गेल्सटन एवं सहयोगियों (Galston et al. 1965) ने पाया कि राइबोफ्लेविन द्वारा नीला प्रकाश अवशोषित किया जाता है तथा यह अवशोषित उर्जा IAA के प्रकाशीय ऑक्सीकरण (Photooxidation) में काम आती है।
(b) गुरूत्वानुवर्तनी गतियाँ (Geotropic movements)
गुरूत्वानुवर्तन (geotropism ) शब्द फ्रैंक (Frank, 1868) द्वारा दिया गया है। गुरूत्वानुवर्तनी गतियाँ गुरूत्वाकर्षण बल के प्रति अनुक्रिया-फलस्वरूप सम्पन्न होती हैं। स्तम्भ ऋणात्मक गुरूत्वानुवर्तन (positive geotropism) दर्शाता है क्योंकि इसकी वृद्धि गुरूत्वाकर्षण बल के विपरीत दिशा में उपर की ओर होती है। मूल में वृद्धि मृदा में गुरूत्वाकर्षण बल की दिशा में होती है इसलिए इसे धनात्मक गुरूत्वानुवर्तनी गति (positive geotropic movement) कहते हैं। यदि किसी पादप अंग की वृद्धि गुरूत्वाकर्षण बल के समकोण दिशा में होती है तब उसे अनुलमवानुवर्तनी गति (diageotropic movements) कहते हैं। उदाहरण- प्रकन्द (rhizome), भूस्तारी (stolon) इत्यादि । पादप अंग की वक्रण गुरूत्वाकर्षणबल से 0 से 90° अथवा 90– 180° कोण बनाते हुए हो तब उसे तिर्यक गुरूत्वानुवर्ती गति (plageotropism) कहते हैं।
गुरुत्वानुवर्तनी उद्दीपन के अवगमन क्षेत्र ( Regions of geotropic perception)
यह उद्दीपन मुख्यतया पादप के वृद्धिकारक क्षेत्रों में होता है जैसे-तने के शीर्ष, मूल शीर्ष । गिब्बन्स एवं विलकिन्स (Gibbuns and Wilkins, 1970) के अनुसार यदि मूल गोप (root cap) को हटा दिया जावे तो यह उद्दीपन कम हो जाता है। इससे सिद्ध होता है कि गुरूत्वानुवर्तनी उद्दीपन मूलगोप द्वारा अवगमित ( perceive) होता है।
गुरुत्वानुवर्तनी की क्रिया विधि (Mechanism of geotropism)
गुरुत्वानुवर्तन उद्दीपन के चार चरण होते हैं-
1.अवगमन (Perception)- गुरूत्वीय उद्दीपन की भौतिक क्रिया ।
- सूचना का रूपान्तरण (Transformation of information)- संवेदनशील क्षेत्र के उपापचयी परिवर्तन का शुरू होना। 3. सूचना का स्थानान्तरण (Transmission of information)- आक्सिन का मूलशीर्ष से अन्य क्षेत्रों की ओर स्थानान्तरण।
- अनुक्रिया (Reaction ) – अंग के दोनो सतहों पर भिन्न वृद्धि का होना।
गुरूत्वानुवर्तन को समझाने के लिए निम्न सिद्धान्त प्रस्तुत किये गये हैं-
मण्ड-संतुलनाश्म सिद्धान्त (Starch- Statolith theory)
हेबरलैंट एवं नेमेक (Haberlandt and Nemaek, 1900) के अनुसार गुरूत्वानुभूति स्टार्च संतुलनाश्म या एमाइलो प्लास्ट (स्टार्चकण) की उपस्थिति के कारण होती है। बार्थोल्ड (Barthold, 1986) ने पहले संतुलनाश्मों का अस्तित्व सुझाया। ये पादपों के सुग्राही क्षेत्रों’ में पायी जाती है जैसे कि मूल गोप (rootcap), प्रांकुरचोल का शीर्ष, मूल अंतश्त्वचा (endodermis), बीजपत्राधार (hypocotyls) के संवहन पूलों के आच्छद (sheath), बीजपत्रोरिक (epicotyls) और तरूण पर्णसमूह (young foliage) इत्यादि। इन कोशिकाओं को संतुलन पुटी (statocysts) अथवा संतुलनाणु (statocytes) भी कहते है। पादप अंग के स्थान में परिवर्तन के साथ स्टैटोलिथ कोशिकाओं में सर्वाधिक निचली स्थिति पर गिर जाते है, जो उन्हें प्रोटोप्लाज्मा या प्लाज्मा झिल्ली के सम्पर्क में ला देते है। इस स्थान परिवर्तन से उपापचयिक परिवर्तनों में उद्दीपन आता है, जिसके फलस्वरूप एक ओर के बजाय दूसरी ओर बढ़ी हुई वृद्धि (वक्रण) उत्पन्न हो जाती है।
सीवर्स (Sievers. 1967) के अनुसार कारा फोइटिडा (Chara foetids ) के मूलामास ( rhizoids) में से स्टार्च कण निचली सतह पर गॉल्गी गुलिकाओं ( golgi vesicles) को अवरूद्ध कर देते हैं तथा निचली सतह पर अधिक ऑक्सिन के जमा होने को बढ़ावा देते हैं जिसके परिणाम स्वरूप निचली सतह की ओर वृद्धि संदमित हो जाती है परंतु ऊपरी सतह पर वृद्धि अि क होती है जिससे वक्र उत्पन्न हो जाता है। इस सिद्धान्त के पक्ष में अनेक प्रमाण है। उदाहरण के लिये स्टार्च स्टैटोलिथ ऐसे पादपों में भी देखे गये है जिनमें ये साधारणतया नहीं पाये जाते हैं। एवं (ii) पादप के उन परिपक्व अंगो जिनमें स्टार्च स्टैटोलिथ विलिन हो जाते है उनमें गुरूत्वानुवर्तन नहीं पाया जाता है।
यह सिद्धान्त कुछ कारणों को समझाने में असफल है जैसे- (i) कुछ पादप (जैसे – कवक) जो कि गुरूत्वानुवर्तन दशार्ते है उनमें स्टार्च स्टैटोलिथ नहीं पाया जाता है, (ii) तने, मूल एवं उनकी शाखाओं की गुरूत्वानुवर्तन के सापेक्ष व्यवहार नहीं समझाया जा सकता है। एवं (iii) इसमें उद्दीपन के स्थानान्तरण की क्रिया विधि अज्ञात है।
- कोलोनी-पैंट सिद्धान्त (Cholodny – Went theory)
जैसा कि पहले प्रकाशानुवर्तन में समझाया गया है। पादप के अंगो के पार्श्वों में आक्सिन का असमान वितरण होता है। कोलोड्नी एवं वैंट ने प्रस्ताव रखा कि क्षैतिज रखे गये तने या मूल द्वारा असमान वृद्धि निम्न पार्श्व (lower side) पर ऑक्सिन के संचयन के कारण होती है। क्षैतिजरूप से रखे गये तने के निम्न पार्श्व पर ऑक्सिन के इस संचयन के कारण उस पार्श्व पर अधिक वृद्धि होती है जिसके परिणामस्वरूप वे वक्र होकर ऊपर उठ जाते है अतः ऋणात्मक गुरूत्वानुवर्तन दशार्ते है। इसके विपरीत, क्षैतिजरूप से रखी गयी मूल के निम्न पार्श्व पर जब आक्सिन सांद्रित होते हैं तो मूल धन गुरुत्वानुवर्तन दशार्ती है।
प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध हुआ है कि मूल IAA के प्रति अधिक संवेदी होती है। IAA की अधिक सांद्रता जहाँ तने में वृद्धि को उद्दीपन करती है वहीं यह मूल में वृद्धि को संदमित करती है। अतः क्षैतिजरूप से रखी गयी मूल के निचले पार्श्व पर ऑक्सिन का संचयन उस पार्श्व पर वृद्धि को संदमित कर देता है ।
- माइक्रोसोम सिद्धान्त (Microsome theory)
यह सिद्धान्त कोलोड्नी (Cholodny, 1922) ने प्रतिपादित किया। इसके अनुसार, माइक्रोसोम्स विद्युत आवेशयुक्त होते हैं जो कि सक्रिय आयनो जैसे – K + एवं Ca 2 + का स्थानांतरण करते हैं जिससे कोशिका की दोनों सतहों की कोशिका झिल्ली (plasma membrane) में भिन्न पारगम्यता उत्पन्न हो जाती है। परीणामस्वरूप दोनों पार्श्वो में असमान वृद्धि होती है।
- जिब्रोलिन सिद्धान्त (Gibberallin theory) फिलिप (Philip, 1972) ने बताया कि तने में गुरूत्वानुवर्तन जिब्रेलिन के कारण होता है। अन्य वैज्ञानिकों के अनुसार ABA (abssicic acid) हार्मोन को मुख्य कारण माना है जो कि मूलशीर्ष में पाया जाता है। इसकी मात्रा जब मूल के निचले पार्श्व में बढ़ जाती है तो शीर्ष वक्र हो जाता है ।
क्लाइनोस्टेट (Clinostat) – यह गुरूत्वाकर्षण के प्रभाव को उदासीन करने वाला उपकरण है। इसमें एक घड़ी (clock) होती है जिसका मुख्य अक्ष एक (rod) से जुड़ा होता है। छड़ के उपर पादप युक्त गमला रखा जाता है अब इस उपकरण को क्षैतिज स्थिति में रख दिया जाता है। घूर्णन अक्ष के साथ गमले में भी घूर्णन होता है। जिससे गुरूत्वाकर्षण का प्रभाव उदासीन हो जाता है। परन्तु घड़ी को रोकने पर पादप भी रूक जाता है जिससे पादप प्ररोह ऊपर एवं पादप मूल नीचे वृद्धि करने लग जाती है।
(c) जलानुवर्तन गतियाँ (Hydrotropic movements)
वे गतियाँ जो जल उद्दीपन के कारण होती हैं जलानुवर्तन गतियाँ (hydrotropic movements) कहलाती हैं। इस प्रकार की गतियों का सर्वप्रथम प्रदर्शन जोहन्सन (Johnson, 1829) ने किया उदाहरण- मूल जल की ओर गति करती है। इसलिए यह धनात्मक जलानुवर्तनी (positively hydrotropic ) होती है।
(d) स्पर्शानुवर्तन गतियाँ (Thigmotropic / haptotropic movement)
स्पर्श अथवा घर्षण के उद्दीपन से पादपों में होने वाली गति को स्पर्शानुवर्तन गतियाँ (thimotropic / haptotropic movements) कहते हैं। उदाहरण- कुकरबिटेसी कुल के पादप किसी ठोस आधार पर प्रतानों द्वारा लिपट कर आरोहण करते हैं। पादप का वह भाग जो आधार के सम्पर्क में नहीं होता उसकी वद्धि तीव्र तथा आधार के सम्पर्क वाले भाग में धीमी वृद्धि होती है। यही कारण है कि प्रतान आधार के चारों ओर कुण्डलित हो जाता है। ड्रोसेरा (Drosera) के स्पर्शक का मुड़ना तथा डायोनिआ (Dionia) की पर्ण स्पर्शानुवर्तन के कारण बन्द हो जाती है।
(e) रसायानानुवर्तन गतियाँ (Chemotropic movements)
किसी रसायन के उद्दीपन के कारण होने वाली गति को रसायनानुवर्तन गति ( chemotropic movement) कहते हैं। उदाहरण-परागनली की वर्तिकाग्र से वर्तिका में वृद्धि ।
(f) तापानुवर्तन गतियाँ (Thermotropic movements)
तापानुवर्तन गति (thermotropic movement) पादप अंग के एक तरफ ताप परिवर्तन से गति को कहते हैं। दिन के समय एनीमोन स्टीलेटा (Anemone stellata), टयूलिप सिल्वेस्ट्रिस (Tulip sylvestris) में पुष्पक्रम वृन्त सूर्य की तरफ मुड़ा रहता है। यह एक विशेष प्रकार का प्रकाशानुवर्तन है जिसमें अवरक्त विकिरणों के प्रति अनुक्रिया होती है
(ii) अनुकुंचन गतियाँ (अदिशीय गतियाँ)
(Nastic movements (non-directive movements)] इस प्रकार की गतियाँ विसरित उद्दीपन के कारण उत्पन्न होती है। इन गतियों में अनुक्रिया का उद्दीपन की दिशा से कोई सम्बन्ध नहीं होता। (प्रकाश, तापमान, स्पर्श, जल इत्यादि) । यह निम्न प्रकार की होती हैं
(a) कंपानुकुंचनी गतियाँ (Seismonastic movements)
छुईमुई (Mimosa pudica) की पत्तियों को छूने अथवा फूंक मारने, विद्युतकीय तथा रासायनिक उद्दीपन देने पर यह बन्द हो जाती हैं। उद्दीपन से पर्णवृन्त तल्पों की ऊपरी सतह की कोशिकाओं का स्फीत दाब कम हो जाता है। जिससे पिच्छिकाऐं (pinnules) जुड़ जाती हैं। तथा आधारी भाग की निचली कोशिकाओं में स्फीत दाब कम होने से पर्णक झुक जाते हैं। उद्दीपन तीव्र होने की दशा में बहुत से पर्ण झुक जाते हैं। यह उद्दीपन 1.3-20cm/sec की दर से प्रसारित (flow) होता है तथा अनुक्रिया में सिर्फ 0.1 sec लगता है।
छुईमुई के पर्णवृनत के आधार पर एक फूली हुई संरचना जो कि मृदूतकी कोशिकाओं (parenchymatous cells) से बनी होती है पायी जाती है इसे पर्णवृंततल्प (Pulvinus) कहते हैं। इसमें से होकर जल का आदान-प्रदान पर्णवृन्त एवं पिच्छिकाओं में होता है। पिच्छिकाओं को छूने पर पिच्छिकाओं एवं जल के स्फीत दाब में परिवर्तन होता है। पिच्छिकाओं में ऊपरी सतह तथा पर्णवृन्त में निचली सतह में सिकुड़न होती है जिससे पूर्ण पत्ती में कुंचन हो जाता है । इस प्रक्रिया में ATP के रूप में ऊर्जा का प्रयोग होता हैं जल के पुनः पिच्छिकाओं एवं पर्णवृन्त में गमन से वे वापस अपनी मूल अवस्था में आ जाते हैं ।
(b) निशानुकुंचन (स्वप्न ) गतियाँ (Nyctinastic sleeping movements)
कुछ पादपों में पुष्प एवं पत्तियों की स्थिति रात्रि एवं दिन के समय बदलती रहती है। इस प्रकार की गति को निशानुकुंचन गति कहते हैं। यह निम्न प्रकार की होती है (b.a) प्रकाशानुकुंचनी गतियाँ ( Photonastic movements) यह गति प्रकाश उद्दीपन से उत्पन्न होती है । उदाहरण के लिए दिन के समय पत्तियों तथा पुष्पों का खुलना तथा
रात्रि में बन्द होना। उदाहरण-आक्जेलिस (Oxalis) की पत्तियों में इस प्रकार की गति पायी जाती है। इन्हें स्वप्न गतियाँ (sleeping movements) भी कहते हैं ।
(b.b) तापानुकुंचनी गतियाँ (Thermonastic movements)
ट्यूलिप (tulip) एवं क्रोकस (Crocus) के पुष्प उच्च ताप पर खुलते हैं तथा निम्न पर बन्द हो जाते हैं।
(b.c) हैप्टोनास्टिक गतियाँ (Haptonastic movements)
ड्रोसेरा (Drosera) के सीमांत (marginal) ग्रन्थिल रोम किसी बाह्य वस्तु अथवा कीट के सम्पर्क में आने से अन्दर की ओर मुड़ जाते है। इस प्रकार की गति को हैप्टोनास्टिक गति (haptonastic movement) कहते हैं ।
महत्त्वपूर्ण प्रश्न (Important Questions)
रिक्त स्थान भरो / सत्य या असत्य लिखो / एक शब्द दें (Fill in the Blanks / Write True or False / Give One Word)
1………….. ने संतुलनाश्यों का अस्तित्व सुझाया।
………………proposed the presence of statoliths.
2……………….. ने गुरूत्वानुवर्तन में आक्सिन की भूमिका सिद्ध की ।
……………. proved the role of auxin in geotropism.
3………………..IAA के प्रति अधिक संवेदनशील हैं।
……………is more sensitice to the IAA.
4……………. में तापानुवर्तन गति पायी जाती है।
Thermotropic movement is found in………..
5……………में स्पर्शानुवर्तन गति पायी जाती है।
Thigmotropic movement is found in
- किस अंग में 1AA की अधिक सांद्रता वृद्धि संदमित करती है ।
In which plant organ the more concentration of IAA inhibits the growth?
- किसने गुरूत्वानुवर्तन का कारण जिब्रेलिन को माना ।
Who accepted the gibberllin as the cause of geotropism?
- मूल पानी के प्रति किस प्रकार की गति प्रदर्शित करती है ?
Which type of movement is shown by root, towards water?
- छुई मुई ( माइमोसा पूडिका) में कौनसी गति पायी जाती है?
Which type of movement is found in Touch me not’ (Mimosa pudica ) plant ?
- ऑक्जेलिस की पत्तियाँ स्वप्न गति दर्शाती है। (सत्य / असत्य)
Leaves of Oxalis shows sleeping movement (True/False)
- ट्यूलिप में तापानुकुंचनी गति पायी जाती है । (सत्य / असत्य)
Thermonastic movement is found in tulip. (True/False)
- पादपों में स्वतः परिवर्तनी गति नहीं पायी जाती है । (सत्य / असत्य)
Automatic movements are not found in plants. (True/False)
- ड्रोसेरा के रोम में……… .. प्रकार की गति होती है।
Movement in hairs of Drosera is…………..type-
- क्लाइनोस्टैट किस के अध्ययन में प्रयुक्त होता है?
Clinostat is employed in the study of-
- उद्दीपन के कारण उत्पन्न अभिक्रिया को क्या कहते हैं?
What is the reaction occurring due to stimulus called?
- अवपंक कवकों में किस प्रकार की गति पायी जाती है?
Which type of movements are found in slime moulds?
- ऑसिलेटोरिया में किस कारण गति सम्पन्न होती है?
Due to which reason movement occurs in Oscillatoria?
- गुरूत्वनुवर्तन शब्द किसने दिया?
Who coined the term geotropism?
उत्तर (Answers)
- बार्थोल्ड (1886) Barthold (1886) 2. कोलोनी एवं वैन्ट (Cholodny and Went) 3. मूल (root) 4. ट्यूलिप (tulip) 5. ड्रोसेरा (Drosera) 6. मूल (root) 7. पिलिपन ने ( Philip) 8. धनात्मक जलानुवर्तनी (Positively hydrotropic) 9. कंपानुकुंचनी (Seismonastic movements) 10. सत्य (True ) 11. सत्य (True ) 12. असत्य (False )’ 13. स्पर्शनुकुंचनी (Thigmonastic) 14. वृद्धि गतियाँ (growth movements) 15. अनुक्रिया ( response) 16. अमीबीय (Amoeboid) गतियाँ 17. उत्सर्जन (excretion) के कारण 18. फ्रैंक (Frank, 1868)।
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)
- निम्न में गतियों के प्रकार बताइये –
Name the type of movement in the following –
(i) इक्वीसीटम में इलेटर्स की गति । (Movement of elators in Equisetum)
(ii) ऑसिलेटरिया में पेन्डुलम गति । ( Pendulum movement in Oscillatoria)
- ब्रायोफाइटस/टेरिडोफाइटस में नर युग्मकों के स्त्रीधानी की ग्रीवा तक गति ।
Movement of male gametes to archegonial neck in Bryophytes/Pteriodophytes.
(iv) इण्डियन टेलेग्राफिक प्लान्ट में गति ।
Movement in Indian telegraphic plant.
(v) कुकरबिटा में प्रतानों का कुण्डलन ।
Coiling of tendril in Cucurbita.
(vi) फर्न की पत्तियों में कुण्डलित किसलय – विन्यास |
Circinate vernation in leaf of fern.
(vii) ‘टच मी नाट प्लान्ट’ को स्पर्श करने पर उसकी पत्तियों का झुक जाना ।
Drooping of leaflets in ‘Touch me not plant’ on touch.
(viii) ऑक्जेलिस की पर्ण में गति । (Movements in leaves of Oxalis)
- उद्दीपन किसे कहते हैं?
What is stimulus ?
- प्रतिक्रिया काल क्या होता है?
What is reaction time?
- पादपों में ‘टिटनेस’ क्या होता है?
What is ‘tetanus’ in plants ?
- जैविक गतियाँ किन्हें कहते हैं?
What are vital movements?
- आन्तरिक उद्दीपनों से उत्पन्न गति को क्या कहते हैं?
Name the locomotion movements caused by internal stimuli.
- जल तरंगों के प्रति अनुक्रिया से उत्पन्न गति को क्या कहते हैं?
Name the type of movement taking placing response to water current.
- विद्युत तरंगों के उद्दीपन के फलस्वरूप सम्पन्न गति को क्या कहते हैं?
Name the type of movement take place due to stimulus of electric current.
- पादप गति में गुरूत्वाकर्षण के प्रभाव को दर्शाने के लिए कौनसा उपकरण प्रयुक्त किया जाता है?
Which apparatus is used to demonstrate the effect of gravity on plant movement ?
- सायकस की कोरलॉइड मूल में किस प्रकार की गति होती है ?
Which type of movement is shown by coralloid roots of Cycas?
- आर्द्रताग्राही गतियाँ किसके द्वारा प्रेरित होती है?
Hygroscopic movements are induced by.
- रसायनानुचालित गति का उदाहरण दीजिये ।
Give example of chemotactic movements.
उत्तर (Answers)
- (i) आर्द्रताग्राही गतियाँ (Hygroscopic movement) (ii) उत्सर्जी गति (Excretory movement)
(iii) रसायनानुवर्तनी गतियाँ (Chemotactic movement)
(iv) स्वतः परिवर्तनी गति (Automatic movement of variation)
(v) शिखा चक्रण (Nutation) (vi) अधोवृद्धि (Hyponasty)
(vii) कम्पानुकुंचनी गति (Seismonastic) (viii) स्वप्न गतियाँ (Sleeping movement)
2–4. अध्याय देखें। (See text )
- जीवद्रव्य के उत्तेजन से सजीव कोशिकाओं / अंग/ पादपों में गति को जैविक गतियाँ कहते हैं।
The movements by the living cells/organs/plants due to irritability of protoplasm.
6.स्वप्रेरित चलन गतियाँ (Automatic movement of locomotion)
- रीओटैक्टिक (Rhe tactic) 8. गैल्वेनोमैट्रिक (Galvanotactic)
- क्लाइनोस्टैट (Clinostat) 10. ऋणगुरूत्वानुवर्ती (Negative geotropism) 11. शुष्कता एवं नमी द्वारा (By moisture dryness) 12. ब्रायोफायटा एवं टेरिडोफायटा में नरयुग्मकों की स्त्रीधानी ग्रन्थि की ओर गति (Movement of male gametes toward archegonial neck in Bryophytes and pteridophytes)
निबन्धात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)
1.उच्च तथा निम्न पादपों में पायी जाने वाली गतियों के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए ।
Describe various types of movements shown by higher and lower plants.
2.अनुवर्तनी गति (tropic movement) से आप क्या समझते हैं? अनुवर्तनी गति के प्रकारों का वर्णन कीजिए ।
What do you understand by tropic movements? Describe the types of tropic movements.
- पादप गति किसे कहते हैं? यह पादपों में किस प्रकार होती है ?
What are plant movements? Explain how they take place in plants.
4.विभिन्न प्रकार की जैविक गतियों का वर्णन कीजिये ।
Describe in brief the various vital movements in plants.
- पादपों में विभिन्न वक्रण गतियों का वर्णन कीजिए ।
Describe various movements of curvature in plants.
- निम्न में अन्तर बताइये टिप्पणी लिखिए:
Differentiate between the following write short notes:
(i) स्व प्रेरित एवं अनुप्रेरित गतियाँ (Autonomic and paratonic movements)
(ii) अधोकुंचन एवं अधोवृद्धिवर्तन (Epinasty and hyponasty)
(iii) स्वतः प्रेरित एवं अनुप्रेरित गतियाँ (Spontaneous and induced movements)
(iv) अनुवर्तनी गतियाँ एवं अनुकुंचन गतियाँ (Tropic movement and nastic movements)
(v) घूर्णन एवं परिसंचरण गतियाँ (Rotation and cirulation movements)
(vi) प्रकाशानुवर्तन एवं गुरूत्वानुवर्तन (Phototropism and Geotropism)
- निम्न पर टिप्पणी लिखिए:-
Write short notes on the following:
(i) कंपानुकुंचन (Seismonastic movement)
(ii) शिखाचक्रण (Nutation)
(iii) क्लाइनोस्टेट (Clinostat) (iv) गुरूत्वानुवर्तन (Geotropism)
(v) स्वप्न गतियाँ (Sleeping movement)
(vi) पादपों में उद्दीपन (Stimulus in plants )
(vii) पादपों में चलन गतियाँ ( Movement of locomotion in plants) (viii) अदिशि गतियाँ (Non-directive movements)
(ix) हैप्टोनास्टिक गतियाँ (Haptonastic movements
(x) अनुवर्तनी गतियाँ (Tropic movements)
(xi) प्रकाशानुवर्तन (Phototropism)
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