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प्रणोदित दोलक की कला क्या है , Phase of Forced oscillator in hindi दोलक का आयाम , तीक्ष्णता , वेग

जानिये प्रणोदित दोलक की कला क्या है , Phase of Forced oscillator in hindi दोलक का आयाम , तीक्ष्णता , वेग ?

प्रणोदित दोलक की कला (Phase of Forced oscillator)

समीकरण (6) से प्रणोदित दोलक के विस्थापन x तथा चालक बल के मध्य कलान्तर φ को निम्न समीकरण से व्यक्त कर सकते हैं

Tan φ = 2rω/( ω02 – ω2) ………………………(9)

उपरोक्त समीकरण द्वारा प्राप्त कलान्तर की तीन विशिष्ट स्थितियों में व्याख्या उपयोगी होती है

(a) जब ω < ω0: न्यून चालित आवृत्ति (Low driving frequency) : इस स्थिति में tan φ = 0 या ¢ = 0 होता है। अर्थात् प्रणोदित दोलक एवं चालक बल दोनों एक ही कला में कम्पन करते हैं।

(b) जब ω = ω0 क्रान्तिक चालित आवृत्ति (Critical driving frequency) : समीकरण (9) में ω = ω0 रखने पर,

Tan φ = या φ = π/2 …………………………(10)

इस स्थिति में प्रणोदित दोलक के विस्थापन की कला चालक बल से π/2 पीछे रहती है।

(c) जब ω >> ω0, अति चालित आवृत्ति (High driving frequency) समीकरण (9) से

tan φ =- 2r/ ω = – 0

φ = π …………………………… …(11)

अतः जब चालक आवृत्ति ω दोलक  की स्वाभाविक आवृत्ति ω0 से बहुत अधिक होती है तो प्रणोदित के विस्थापन की कला चालक बल से π कोण पीछे रहती

तीनों विशिष्ट स्थितियों में कलान्तर φ का चालक बल की आवृत्ति  φ के साथ परिवर्तन को चित्र (1) में दर्शाया गया है।

  • प्रणोदित दोलक का आयाम (Amplitude of forced oscillator)

समीकरण (7) से स्पष्ट है कि प्रणोदित दोलक का आयाम

X0 = f0/[( ω02 – ω2)2 + 4r2 ω2]1/2 ……………………………….(12)

समय पर निर्भर नहीं करता है बल्कि चालक बल की आवृत्ति ω पर निर्भर करता है और इसमें चालक बल अवमन्दन बल के कारण होने वाली ऊर्जा-हानि की पूर्ति करके आयाम को नियत रखता है।

अवमन्दन बल को न्यून (r << ω) मानते हुए प्रणोदित दोलक के आयाम का तीन विशिष्ट अवस्थाओं में अध्ययन करते हैं

(a) न्यून चालित आवृत्ति (Low driving frequency) ω << ω0: इस स्थिति में चालित दोलक का आयाम होगा

X0 = f0/ ω02 = mf0/mω02 = f0/k ………………………….(13)

न्यून चालित आवृत्ति की स्थिति में दोलक का आयाम आरोपित बल के आयाम तथा बल नियतांक पर निर्भर करता है, अवमन्दन बल व दोलक के द्रव्यमान पर नहीं।

(b) क्रान्तिक चालित आवृत्ति (Critical driving frequency): जब आरोपित आवृत्ति ω दोलक की स्वाभाविक आवृत्ति ω0 के बराबर हो अर्थात् ω = ω0, तो समीकरण (12) से

X0 = f0/2rω = mf0/2mrω = f0/ λω0 ……………………………………..(14)

स्पष्टतः स्वाभाविक आवृत्ति से दोलन करने पर दोलक का आयाम अवमन्दन बल पर निर्भर करता है और इसके मान में वद्धि होने पर दोलक का आयाम कम होता है।

उपरोक्त दोनों स्थितियों में दोलक के आयामों का अनुपात होगा

X0(ω = ω0/x0(ω << ω0) = F0/ λω0 .k/F0 = k/ λω0

02/ λω0 = ω0t

x0 (ω = ω0)/x0 (ω << ω0) = Q  ………………………(15)

इस समीकरण से यह ज्ञात होता है कि विशेषता गुणांक Q आयाम को नियन्त्रित करता है।

(c) अति चालित आवत्ति (High driving frequency) (ω >> ω0): समीकरण (12) से अप मन्दन की स्थिति में दोलक का आयाम हो जायेगा

X0 = f0/ ω0 …………………..(16) का बहुत अधिक होती है तो दोलक का

आयाम चालित

अतः जब दोलक की आवृत्ति स्वाभाविक आवृत्ति की अपेक्षा बहुत अधिक होती है तो दोलक का आयाम चालित आवत्ति ω के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होती है । फलतः दोलक में प्रणोदित आवत्ति  ωकी अनुक्रिया (response) घटती है।

(i) अधिकतम आयाम (Maximum amplitude)

समीकरण (12) से अधिकतम आयाम की स्थिति पर [(ω02 – ω2)2 +4r2 ω2] का मान न्यूनतम हो चाहिए अर्थात्

[(ω02 – ω2)2 + 4r2 ω2] = न्यूनतम

ω के सापेक्ष अवकलन करने पर,

2 (ω02 – ω2) (-2 ω) + 8r2 ω = 0

ω = ω02 – 2r2 – = ωR ……………………………..(17)

अतः ω = ωR = ω02 – 2r2 आवृत्ति पर प्रणोदित दोलक का आयाम अधिकतम होता है। इस आवृत्ति को अनुनादी आवृत्ति (resonant frequency) कहते हैं। अवमन्दन बल के मान में वृद्धि होने पर अनुनादी आवृत्ति कम आवृत्ति की ओर विस्थापित होती है जैसा कि चित्र (2) में दर्शाया गया है।

अनुनादी आवृत्ति पर प्रणोदित दोलक का अधिकतम आयाम

(X0)max = f0/( ω02 – ωr2)2 + 4r2 ωr2

= [(ω02 – ω02 + 2r2)2 + 4r202 – 2r2)]1/2

या    (x0)max = f0/2r ω02 – r2

= f0Q/ ω02 (1 – 1/4Q2)-1/2                   [Q = ω0/2r]  ……………………………..(18)

शून्य अवमन्दन की स्थिति में Q का मान अनन्त होता है इसलिए समीकरण (18) से ज्ञात होता है कि दोलक का आयाम अनुनाद की स्थिति पर अनन्त होता है। परन्तु जैसे-जैसे अवमन्दन गुणांक में वृद्धि होती है Q का मान कम होता है और दोलक के अधिकतम आयाम का मान कम होता जाता है।

उपरोक्त सभी परिणामों को देखते हुए प्रणोदित दोलक के आयाम की चालित आवृत्ति पर निर्भरता को चित्र (2) में प्रदर्शित किया गया है।

विभिन्न स्थितियों में प्रणोदित दोलक के कलान्तर तथा आयाम के तुलनात्मक मान को सारणी – 1 में प्रदाशत किया गया है।

सारणी-1.

कम सं. प्रणोदित बल की आवृत्ति ω कलान्तर φ

 

आयाम x0

 

1.

 

2.

 

3.

 

4.

ω << ω0

 

ω << ω0

 

ω << ω0

 

ω << ωr

 

0

 

π/2

 

π

 

φk = tan -1 ω/r

F0/ ω02

 

F0/2r ω0

 

F0/ ω2

 

F0Q/ω02 (1-1/4Q2)-1/2

 

(iv) अनुनाद की तीक्ष्णता (Sharpness of resonance)

अनुनादी आवृत्ति के दोनों तरफ चालक बल की आवृत्ति के साथ आयाम जिस दर से गिरता है। वह अनुनाद की तीक्ष्णता के परिमाण को व्यक्त करता हैं। यदि अनुनादी आवृत्ति के दोनों तरफ चालक की आवृत्ति में न्यून परिवर्तन करने से आयाम पर्याप्त मात्रा में गिरता हैं तो अनुनाद की तीव्रता तीक्ष्ण (sharp) कहलाती है और यदि आयाम में परिवर्तन कम होता है तो अनुनाद सपाट (flat) कहलाता है। चित्र (2) में खींचे गये वक्रों से स्पष्ट है कि न्यून अवमन्दन की स्थिति में वक्र का ढ़ाल अनुनादी आवृत्ति के दोनों तरफ बहुत अधिक है। इसलिए अनुनाद तीक्ष्ण होता है। परन्तु अवमन्दन के अधिक होने पर अनुनाद सपाट हो जाता है क्योंकि वक्र का ढाल कम होता है।

(v) प्रणोदित दोलक का वेग (Velocity of a forced oscillator)

स्थाई अवस्था (steady state) में प्रणोदित दोलक का विस्थापन समीकरण (8) द्वारा प्राप्त होता है। इस सम्बन्ध का उपयोग कर दोलक का किसी समय t पर वेग ।

V = dx/dt = ωx0 cos (ωt – φ)

= ωx0 sin (ωt – φ + π/2)

= ωx0 sin (ωt – δ) ……………………………….(19)

जहाँ x0 तथा φ के मान समीकरण (7) तथा (6) द्वारा निर्धारित हैं। इस प्रकार वेग परिवर्तन का आयाम

V0 = ωx0

Ωf0/[( ω02 – ω2)2 + 4r2 ω2]1/2

F0/m/[( ω02 – ω2/ ω)2 + 4r2 ]1/2 ………………………………………..(20)

तथा वेग की कला विस्थापन की  कला से π/2 अग्रणी है। वेग का आयाम आरोपित बल की आवृत्ति पर निर्भर है अतः इसका मान अधिकतम होने के लिए समीकरण (20) में हर (denominator) होना चाहिए, अर्थात्

[(ω02 – ω2/ ω)2  + 4r2] = न्यूनतम

या d/dω [ (ω02 – ω2/ ω)2 + 4r2 ] = 0

या 2 (ω02 – ω2/ ω2) (-2 ω)/ ω2 – 2 (ω02 – ω2)2/ ω3 = 0

या  2 (ω02 – ω2)/ ω2 [ – 2ω – (ω02 – ω2)/ ω ] = 0

  • 2/ ω302 – ω2) (ω02 + ω2) = 0

जिससे अधिकतम v0 के लिए ω = ω0 इस अवस्था को वेग-अनुनाद की अवस्था कहते है। वेग अनुनाद अवस्था में

V0 = v0max = f0/2r = f0m/m λ

Vomax = Fo

अर्थात् अधिकतम वेग-आयाम अवमन्दन नियतांक के व्युत्क्रमानुपाती होता है।

जब  ω – 0,    v0 – 0

ω = ω0   v0 = F0/λ  अधिकतम

ω → ∞,   v0 – 0

ω >> ω0   तथा अवमन्दन अत्यल्प है तो v0 = Fo / ω = F0/mω

आयाम की आवृत्ति पर निर्भरता चित्र (2.1-3) में प्रदर्शित की गई है। आरोपित बल के सापेक्ष कला कोण δ से पीछे रहता है जहाँ

δ = φ – π/2

जब ω << ω0 हो तो φ = 0 तथा δ = – π/2 होता है। अतः अल्प आवृत्तियों पर वेग प्रणोदित बल के सापेक्ष π/2

कला कोण से आगे रहता है। ω = ω0 पर φ = π/2 तथा δ = 0 अर्थात् वेग अनुनाद की अवस्था में प्रणोदित बल तथा दोलक का वेग समान कला में रहते हैं। जब ω = ω0 φ = π जिससे δ =  π/2 अर्थात् दोलक का वेग चालक बल से π/2  कला कोण पीछे रहता है। वेग तथा चालक बल के मध्य कलान्तर δ का चालक आवृत्ति  ω के साथ निर्भरता चित्र (4) में प्रदर्शित किया गया है।