तत्वो का आवर्त वर्गीकरण , धातु , अधातु , डॉबेराइनर के त्रिक , न्यूलैंड्स का अष्टक सिद्धांत ,periodic classification of elements
बारे में पढेंगे
भी जानते है की तत्व एक ही प्रकार के परमाणुओं से बने होते हैं अब तक हमे 118 तत्वों
की जानकारी थी जिनके गुणधर्म अलग अलग होते है जैसे जैसे इन तत्वों की खोज होती गयी उनको व्यवस्थित करना
बड़ा ही कठिन होने लगा। तब वैज्ञानिको ने इन तत्वों के गुणधर्मों के बारे में अधिक से अधिक जानकारी एकत्र करने लगे
और उन्होंने इन गुणधर्मों में एक ऐसा प्रतिरूप ढूँढ़ना आरंभ किया जिसके आधार पर इतने सारे
तत्वों का आसानी से अध्ययन किया जा सके
किया गया और जैसे जैसे इन तत्वो के गुणधर्मो के बारे में पता चलता गया वैसे वैसे
इनको वर्गीकृत करने की कोशिश की गयी
को वर्गीकृत करने से पहले हम धातु एवं अधातु के कुछ गुणधर्म के बारे में पढेंगे |
धातु =
धात्विक चमक = धातु में एक विशेष प्रकार की चमक होती है, जिसे धात्विक चमक कहते हैं। धातुओं के इसी विशेष गुण
के कारण Gold, silver, आदि
धातुओं का उपयोग जेवर बनाने में होता है।
बिजली तथा उष्मा का सुचालक
सुचालक होते हैं। अल्मुनियम तथा कॉपर का उपयोग बिजली के तार बनाने में होता है
क्योकि धातु बिजली के सुचालक होते है और धातु उष्मा के सुचालक होने के कारण अल्मुनियम, ताँबे आदि का उपयोग खाना पकाने के बर्तन बनाने में होता है
इसके अलावा धातुओं में कठोरता, लचीलापन, अनुनादी जैसे
कई प्रकार के गुण होते है
अधातु =
चमक = अधातु में
चमक नहीं होती है परंतु हीरा (अधातु ), जो कि कार्बन का एक अपररूप है, काफी चमकीला होता है। ग्रेफाइट (अधातु) भी कार्बन
का एक अपररूप है, परंतु इसकी सतह चमकदार होती है।
बिजली तथा उष्मा का कुचालक =अधातु
बिजली तथा उष्मा का कुचालक होते है। परंतु ग्रेफाइट, जो कि
कार्बन का एक अपररूप है, बिजली का सुचालक होता है।
इसके अलावा अधातु में कम लचीलापन, कम कठोरता, कम द्रवणांक तथा गलणांक होता है।
डॉबेराइनर के त्रिक
सन् 1817 में डॉबेराइनर नाम के वैज्ञानिक ने
तत्वों को समूहों में व्यवस्थित करने का प्रयास किया जिनके गुणधर्म समान होते है।
उन्होंने कुछ ऐसे समुह बनाए जिसमे हर एक समुह में तीन तीन तत्व थे जिन तत्वो के गुण सामान थे इन समूह को उन्होंने त्रिक कहा।
डॉबेराइनर के अनुसार उन्होने
त्रिक के तीनो तत्वों को उनके परमाणु द्रव्यमान के बढते हुए क्रम में रखने पर बीच वाले तत्व का परमाणु
द्रव्यमान, अन्य
दो तत्वों के परमाणु द्रव्यमान का लगभग औसत होता है।
उदाहरण के लिए, लीथियम , सोडियम एवं पोटैशियम का त्रिक जिनके परमाणु द्रव्यमान 6.9, 23, 39 हैं।
लीथियम एवं पोटैशियम के परमाणु द्रव्यमानों का औसत 23 के बराबर होगा जो की सोडियम के
परमाणु द्रव्यमान के बराबर है।
डॉबेराइनर की तत्वों को वर्गीकृत करने की यह पद्धति सफल नहीं रही
क्योकि वह उस समय तक के तत्वों में केवल तीन ही त्रिक का पता लगा पाए थे।
डॉबेराइनर ने ही प्लैटिनियम को उत्त्पेरक के रूप में पहचाना और
तत्वों की आवर्त सारणी का विकास हुआ।
न्यूलैंड्स का अष्टक सिद्धांत
डॉबेराइनर के प्रयासों को देखकर दूसरे रसायनज्ञों ने तत्वों के गुणधर्मों को उनके परमाणु द्रव्यमान
के साथ संबंध करने की
कोशिश की सन् 1866
में वैज्ञानिक जॉन न्यूलैंड्स ने ज्ञात तत्वों को परमाणु द्रव्यमान के बढते हुए
क्रम में व्यवस्थित किया। सबसे कम परमाणु द्रव्यमान
वाले तत्व हाइड्रोजन को उन्होंने सबसे पहले स्थान पर रखा और 56वें तत्व थोरियम पर इसे समाप्त किया।
उन्होंने ने पाया की प्रत्येक आठवें तत्व का गुणधर्म पहले
वाले तत्व के गुणधर्म के बराबर होते है
उन्होंने इसे अष्टक का सिद्धांत कहा क्योकि उन्होंने इसकी तुलना संगीत के अष्टक से की और इसे ‘न्यूलैंड्स
का अष्टक सिद्धांत’ के नाम से जाना जाता है। न्यूलैंड्स के अष्टक में लीथियम एवं
सोडियम के गुणधर्म समान थे। सोडियम, लीथियम के बाद का आठवाँ तत्व है। इसी तरह बेरिलियम एवं
मैग्नीशियम के गुणधर्मो में भी अधिक समानता होती है।
यह सिद्धांत केवल कैल्सियम तक ही लागू होता था क्योंकि
कैल्सियम के बाद प्रत्येक आठवें तत्व का गुणधर्म पहले तत्व के सामान नहीं था
न्यूलैंड् के अनुसार प्रकृति में केवल 56 तत्व हैं तथा भविष्य में कोई अन्य तत्व नहीं मिलेगा।
लेकिन, बाद
में कई नए तत्व पाए गए जिनके गुणधर्म, अष्टक सिद्धांत से मेल नहीं खाते थे।
अपनी आर्वत सारणी में
इन नए तत्वों को डालने के लिए न्यूलैंड्स ने दो तत्वों को एक
साथ रख दिया जिनके गुणधर्म सामान होते है और कुछ असमान तत्वों
को एक अलग स्थान में रख दिया
कोबाल्ट तथा निकैल को एक साथ रखा गया तथा इन्हें एक साथ उसी
स्तंभ में रखा गया है जिसमें फ्रलुओरीन,
क्लोरीन एवं ब्रोमीन हैं इनके गुणधर्म उन दोनों तत्वों से
भिन्न है न्यूलैंड्स का अष्टक सिद्धांत
केवल उन तत्वों के लिए ही ठीक से लागू हो पाया जिनके परमाणु दव्यमान कम होते है नोबेल
गैसों की खोज के बाद अष्टक का सिद्धांत गलत हो गया।
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