संक्रमण तत्वों की ऑक्सीकरण अवस्था क्या है , oxidation state of transition elements in hindi
oxidation state of transition elements in hindi संक्रमण तत्वों की ऑक्सीकरण अवस्था क्या है ?
यद्यपि संक्रमण तत्वों की ऑक्सीकरण अवस्था में किसी प्रवृत्ति का सामान्यीकरण कठिन है, निम्नलिखित तथ्य, तथापि ध्यान देने योग्य हैं :
- संक्रमण श्रृंखला का प्रथम सदस्य Sc केवल +3 ऑक्सीकरण अवस्था ही प्रदर्शित करता है। यह प्रथम आयनन ऊर्जा के अति निम्न मान एवं द्वितीय तथा तृतीय आयनन ऊर्जा के मानों में अन्तर के कारण है, जिसके फलस्वरूप तीनों इलेक्ट्रॉन परमाणु से एक साथ निकल कर त्रिधनीय आयन बना देते हैं। श्रृंखला में दायीं ओर चलने पर यह अन्तर बढ़ने लगता है जिससे अन्य तत्वों में, यह अन्तर इतना हो जाता है कि सामान्यतः +2 तथा +3 दोनों की ऑक्सीकरण अवस्थायें स्थायी होती है
- श्रृंखला के मध्यवर्ती तत्व बहुत सी ऑक्सीकरण अवस्थाएँ प्रदर्शित करते हैं क्योंकि आवर्त सारणी के मध्य भाग के दो तत्वों में अयुग्मित d इलेक्ट्रॉनों की संख्या सबसे अधिक पाई जाती है। इस प्रकार, प्रथम संक्रमण श्रंखला में मैंगनीज के पश्चात् ऑक्सीकरण अवस्थाओं की संख्या तथा अधिकतम ऑक्सीकरण अवस्था का मान घटने लगता है। ऐसा होने का कारण है अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या में कमी तथा नाभिकीय आवेश का बढ़ना, जिससे d- इलेक्ट्रॉनों का परमाणु के नाभिक से दूर जाना कठिन हो जाता है।
- केवल IB वर्ग के तत्व ही +1 तथा इससे उच्चतर ऑक्सीकरण अवस्थायें दर्शाते हैं। शेष तत्वों में अधिकतम ऑक्सीकरण अवस्था उनकी वर्ग संख्या से कदापि अधिक नहीं होती।
- श्रृंखला के आरम्भिक तत्वों में वर्ग संख्या के समान ऑक्सीकरण अवस्था अधिक स्थाई होती है। लेकिन बाद में निम्नतर अवस्थायें अधिक स्थाई हो जाती है। श्रृंखला के सभी तत्वों के लिए +2 तथा +3 अवस्थायें सामान्य ऑक्सीकरण अवस्थायें मानी जा सकती हैं।
- विभिन्न ऑक्सीकरण अवस्थाओं के स्थायित्व का सम्बन्ध, काफी हद तक खाली (d°), अर्धपूर्ण (d) तथा पूर्ण (dl0) विन्यासों के स्थायित्व से बताया जा सकता है। इस प्रकार Ti(IV) (3d° विन्यास के कारण) Ti(II) से : Mn(II) (3√ विन्यास के कारण) Mn(III) से; Ag(I) (4d10 विन्यास के कारण) Ag (II) से अपेक्षाकृत अधिक स्थायी है। इसी आधार पर IB वर्ग के तत्वों द्वारा दिखाई जाने वाली +1 ऑक्सीकरण अवस्था के अस्तित्व को भी समझाया जा सकता है जो कि प्रथम संक्रमण श्रृंखला के अन्य तत्वों द्वारा नहीं दर्शायी जाती है, इस अवस्था में ये इन तत्वों का पूर्ण विन्यास (d10) होता है।
- उच्चतर ऑक्सीकरण अवस्था से ये तत्व आयनिक यौगिक नहीं बनाते हैं क्योंकि तीन इलेक्ट्रॉन निकल जाने के बाद शेष इलेक्ट्रॉन नाभिक द्वारा इतने अधिक बल से आकर्षित होने लगते हैं कि और अधिक इलेक्ट्रॉनों का निकलना सम्भव नहीं हो पाता । श्रृंखला में Sc(II) के यौगिकों में सर्वाधिक आयनिक गुण पाये जाते हैं। तत्वों के सामान्य अकार्बनिक यौगिकों में भी सहसंयोजक गुणों का पाया जाना संक्रमण धातु आयनों के छोटे आकार के कारण है जिससे धनायन तथा ऋणायनों के मध्य आकर्षण बढ़ जाता है। धातुओं की उच्चतर ऑक्सीकरण अवस्थाओं से बने यौगिकों की व्याख्या (n-1) d, ns तथा np कक्षकों संकरण से बने नये संकरण कक्षकों द्वारा की जा सकती है।
- निम्न ऑक्सीकरण अवस्थाओं में संक्रमण तत्वों के यौगिकों में आयनिक गुण अधिक होते है तथा बन्ध का आयनिक गुण ऑक्सीकरण अवस्था बढ़ने के साथ-साथ घटता है। आयनिक गुण में इस प्रका कमी आने के कारण धातुओं में ऑक्साइडों के बेसिक गुण भी कम होने लगते है। इस प्रकार Mo (जिसमें Mn की ऑक्सीकरण अवस्था +2 है) बेसिक है, MnO2 (जिसमें Mn की ऑक्सीकरण +4 है ) उभयधमी (amphoteric) है, तथा MnO, (जिसमें ऑक्सीकरण अवस्था +6 है) है।
- अनुचुम्बकीय प्रकृति – d कक्षकों में अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होने के कारण संक्रमण तत्व अनुकी (paramagnetic) तत्व है। एक आयन या परमाणु में जितने अधिक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन हॉग उस ही अधिक अनुचुम्बकीय गुण पाये जायेंगे। उदाहरणार्थ Mn2″ आयन का अनुचुम्बकीय आघूर्ण 34 कक्षका में पांच अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति के अनुरूप है।
जिन आयनों में सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित होते हैं उनमें प्रतिचुम्बकत्व (diamagnetism) पाया जाना है। इन आयनों में इलेक्ट्रॉन एक दूसरे का चुम्बकीय प्रभाव नष्ट कर देते हैं, जिससे कुल बुम्बकीय आपूर्ण (moment) शून्य हो जाता है। उदाहरणार्थ Se 3 Ti4“, Cu’ व Zn 2‘ प्रतिचुम्बकीय प्रकृति के हैं।
- रंगीन विलयन – हम जानते हैं कि उत्तम गैस तथा छदम गैस (pseudo noble gas) विन्यास वाले आयनों के विलयन रंगहीन होते हैं जबकि अपूर्ण व कक्षकों वाले आयन साधारणतया रंगीन होत हैं। दूसरे शब्दों में प्रतिचुम्बकीय आयन रंगहीन तथा अनुचुम्बकीय आयरन रंगीन पाये जाते हैं। सार 1.5 में कुछ आयनों के रंग तथा इनमें अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या दी गई है।
हम जानते हैं कि जब इलेक्ट्रॉन एक ऊर्जा स्तर से दृश्य विकिरण (visible radiation) अवशोषित कर किसी दूसरे ऊर्जा स्तर में उत्तेजित हो जाते हैं तो पदार्थ रंगीन दिखाई देते हैं। एक प्रतिचुम्बकीय आयन में सभी कक्षक पूर्ण रूप से भरे हुए होते हैं, तथा खाली कक्षक इन कक्षकों से इतनी अधिक दूरी पर स्थित होते हैं कि भरे कक्षकों से खाली कक्षकों में इलेक्ट्रॉनों का स्थानान्तरण बहुत अधिक ऊर्जा के विकिरणों (दृश्य विकिरणों से भी अधिक ऊर्जा) के अवशोषण से ही सम्भव है। फलतः ऐसे आयन रंगहीन दिखाई देते हैं। यही कारण है कि तथा dl” विन्यास वाले आयन प्रतिचुम्बकीय व रंगहीन होते हैं।
हम जानते हैं कि एक संक्रमण धातु आयन या परमाणु में पांचों d कक्षक समान ऊर्जा के होते हैं। लेकिन जब इनके यौगिक बनते हैं तो ये d-कक्षक अलग-अलग ऊर्जा के समूहों में विभाजित हो जाते है यौगिक की अष्टफलकीय संरचना होने पर धातु के के कक्षक दो समूहों में विभाजित होते हैं। निम्नतर ऊर्जा के समूह में तीन d कक्षक होते हैं क्या इसे द्वारा प्रदर्शित करते हैं जबकि उच्चतर ऊर्जा के समूह में दो -कक्षक होते हैं तथा इसे द्वारा प्रदर्शित करते हैं जैसा कि चित्र 1.3 में दिखाया गया है। इन दो प्रकार के d कक्षकों में ऊर्जा अन्तर । समान्यतया इतना ही होता है कि दृश्य क्षेत्र के विकिरणों के अवशोषण से इलेक्ट्रॉन, निम्न कक्षकों से उच्च कक्षकों में स्थानान्तरित हो जाते हैं। इस प्रकार सक्रमण धातु आयनों का रंगीन दिखाई देना d d स्थानान्तरण के कारण होता है। स्पष्ट है कि किसी आयन में जितने अधिक d d इलेक्ट्रॉनिक स्थानान्तरण होंगे उतना ही गहरा उनके विलयन का रंग होगा। विन्यास वाले आयन, अपेक्षाकृत अधिक स्थाई होने के कारण d-d अवशोषण का विरोध करते हैं। फलतः इस विन्यास वाले आयन, उदाहरणार्थ Mn 2 Fe3 हल्के रंग के होते हैं।
- संकुल यौगिक (Complex compounds ) – संक्रमण धातु आयनों का एक विशिष्ट गुण यह है कि ये बहुत से संकुल पदार्थ बना सकने को सक्षम हैं। कुछ सामान्य संकुल पदार्थ, जैसे K [Fe(CN)g]. K+[Fe(CN)′′]. Na2[Zn(CN)4]. [Ag(NH3)2]CL [Cu(NH3 ) 4]SO4 इत्यादि से हम पहले ही परिचित है। संक्रमण धातु आयनों की बहुत बड़ी संख्या में संकुल पदार्थ बना सकने की क्षमता, मुख्यतः इन कारणों से है : (i) छोटे परमाणु आकार होने के कारण उन पर आवेश घनत्व (charge density) काफी अधिक होता है। (ii) इनके पास खाली (n-1) d, ns व np कक्षक उपलब्ध हैं जो संकरित होकर नये एक से खाली कक्षक बना देते हैं जिनमें बहुत से दाता (donor) अणु (जसे NH3. H2 O. NO. पिरीडीन इत्यादि)। 1. तथा ऋणायन (जैसे F. CI. CN इत्यादि) बंध बनाकर संकुल पदार्थों को जन्म देते हैं। (ii) ये बहुत सी ऑक्सीकरण अवस्थायें दर्शाते हैं और इस प्रकार कई प्रकार के संकुल पदार्थ बना सकते हैं। केन्द्रीय धातु आयन से बंधित दाता अणु या ऋणायन लिगेण्ड कहलाते हैं। एकदतुक (monodentate) लिगेन्डों की वह संख्या जो केन्द्रीय आयन, या परमाणु से बंध बना सकती है, धातु की समन्वय संख्या (coordination number) कहलाती है। किसी संकुल आयन पर आवेश, धातु आयन, तथा लिगण्डों के – आवेश का बीजीय योग (algebraic sum) होता है। इस विषय के बारे में अध्याय 3 में विस्तारपूर्वक बताया गया है।
- उत्प्रेरक सक्रियता (Catalytic activity) : संक्रमण तत्व तथा उनके यौगिक बहुत अच्छे उत्प्रेरक हैं जिनका उपयोग बहुत सी रासायनिक अभिक्रियाओं में उत्प्रेरक के रूप में किया जाता है। उदाहरण के लिए ओलिफीनों के हाइड्रोजेनीकरण के लिए निकल, SO, (संस्पर्श प्रक्रम, (contact process) तथा NH3 (ओस्टबाल्ट प्रक्रम) के ऑक्सीकरण के लिए प्लेटिनम श्रेष्ठ उत्प्रेरक है। संक्रमण धातुओं में अयुग्मित या खाली कक्षकों की उपस्थिति यहां मुख्य भूमिका निभाती है। d कक्षकों के उपयोग से बने मध्यवर्ती संकुल (intermediate complexes) अभिक्रिया के लिए उपयुक्त ऊर्जा का मार्ग उपलब्ध कराते हैं।
- अन्तराकाशी यौगिक (Interstitial compounds) बना सकने की क्षमता – संक्रमण धातुओं में छोटे अधात्विक परमाणुओं (जैसे H, B, C, N) को शोषित कर अन्तराकाशी यौगिक बना सकने की एक अनुपम सामर्थ्य पाई जाती है। धातु परमाणुओं के मध्य स्थान, जिन्हें अन्तराकाश (interstices में अधात्विक परमाणु प्रवेश कर जाते हैं। इन पदार्थों की संरचना धात्विक त्रिज्या व पालिक के अनुपात पर निर्भर करती है।
- नॉन-स्टाइकियोमीट्रिक यौगिक (Nonstoichiometric compounds ) संक्रमण तत्व एम यौगिक बनाते हैं जिनका संघटन (composition) स्थिर अनुपात के नियम (law of definite proport के हिसाब से खरा नहीं उतरता। उदाहरण के लिए, क्यूप्रस सल्फाइड (Cu2 S) में कॉपर सल्फर 2:1 होना चाहिए लेकिन वास्तव में यह 1.7: 1 है। इस प्रकार के यौगिकों को नान-२ यौगिक कहते हैं। स्थिर अनुपात में कमी क्रिस्टल संरचना में अपूर्णता (defects) के कारण हो सकती है।
- आयनों की जल अपघटित होने की प्रवृत्ति- हम जानते हैं कि संक्रमण तत्वों के आयनों धन आवेश पाया जाता है तथा उनके (n-1)d कक्षक आशिक रूप से भरे होते हैं। अतः किसी स तत्व के लवण, उदाहरणार्थ CuSO4 FeCI3 को जब जल में घोला जाता है तो धनायन जल अ इस प्रकार आकर्षित करने लगते हैं कि ऑक्सीजन परमाणुओं के एकल युग्म धनायन की ओर रहे अन्ततः धनायन ऑक्सीजन के एकल युग्म को ग्रहण कर एक बन्ध बना देता है जिसके कारण ऑक्सीजन इलेक्ट्रॉन न्यून (electron deficient) हो जाता है। इलेक्ट्रॉनों की इस प्रकार से आई कमी को ऑक्सीजन किसी एक O : H बन्ध युग्म पर पूर्ण अधिकार करके पूरा करता है।
फलतः संक्रमण तत्वों के हाइड्रॉक्साइडों के अवक्षेप प्राप्त होते हैं।
क्षार धातु तथा क्षारीय मृदा धातु आयनों में उपयुक्त ऊर्जा के खाली कक्षक उपलब्ध न हो सकने के कारण ये जल में घोलने पर जल अपघटित नहीं होते हैं।
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