Otto Schmidt Interstellar Dust Hypothesis in hindi , ओटो श्मिड अन्तर तारकीय धूलि परिकल्पना
ओटो श्मिड अन्तर तारकीय धूलि परिकल्पना क्या है , Otto Schmidt Interstellar Dust Hypothesis in hindi ?
ओटोश्मिड अन्तर तारकीय धूलि परिकल्पना
(OttoSchimidts Inter Stellar Dust Hypothesis)
1943 में प्रसिद्ध रूसी विद्वान ओटोश्मिड ने काण्ट एवं लाप्लास के विचारों के आधार पर एक नवीन परिकल्पना प्रस्तुत की जिसे लेविन ने अपनी पुस्तक ष्ज्ीम व्तपहपद व िजीम म्ंतजी ंदक च्संदमजेष् में प्रस्तुत किया।
संकल्पना- ब्रह्माण्ड में धूल व गैसीय पदार्थ बिखरे हुए देखे जाते हैं। श्मिड का मानना है कि धूल व गैस के इस पुंज में गैस की मात्रा कम व धूलि कणों की मात्रा अधिक थी व व्यवस्थित थी। ब्रह्माण्ड में मेघ के केन्द्र में घूलि कण अधिक थे और धूनीभूत होकर एक विशाल चपटी तश्तरी के रूप में परिवर्तित हो गये। गैसे व धूलि कणों की गति में अन्तर था जिसके कारण गैस के कण प्रत्यास्थ (मसंेजपब) रूप में टकराते हैं व धूलिकण अप्रत्यास्थ (दवद मसंेजपब) रूप से टकराते हैं। गैस कणों की गति मंद नहीं होती, परन्तु धूलि। कणों की गति टकराने से मंद हो जाती है। इसलिये धूलि कण संगठित होने लगते हैं। प्रथम अवस्था में ग्रहों क भ्रूण रूप (मउइतलवे)बने और बाद में परिपक्व होकर क्षद्रग्रहों (ंेजमतवपके) का रूप धारण कर लिया।। ये सभी सूर्य की परिक्रमा करने लगे। क्षद्रग्रहों ने बिखरे हुए पदार्थों को आकषित उनक आकार में वृद्धि होने लगी। इस प्रकार ग्रहों का निर्माण हुआ। यह चार अवस्था
(1) प्रथम अवस्था में धूलिकण परस्पर टकराते हैं तथा उनकी गति मंद हो जाती है तथा संगठित होकर भ्रूण का निर्माण होता है। गैसीय कणों में धनीभवत नहीं होता।
(2) द्वितीय अवस्था में भूण आसपास का बिखरा पदार्थ आत्मसात करता है तथा क्षुद्रग्रह (ंेजमतवपके) का निमार्ण होता है। ये सभी तश्तरी के अन्दर ही घूमते रहते हैं।
(3) तृतीय अवस्था में क्षुद्रग्रहों के निकट के पदार्थों को आकर्षित कर आत्मसात कर लेते है व ग्रहों का निर्माण होता है।
(4) चैथी अवस्था में ग्रहों की रचना के उपरान्त जो पदार्थ अपरिपक्व अवस्था में शेष यह बताता वो ग्रहों की परिक्रमा लगाने लगता है। कालान्तर में इसी प्रकार पदार्थ में संगठित होकर उपग्रह का निमार्ण होता है।
पक्ष में प्रमाणः
(1) इसके अनुसार ग्रहों का निर्माण सूर्य से नहीं हुआ है अतःग्रहों व सूर्य में पाये जाने वाले कोणीय संवेग के अन्तर को समझाया जा सकता है। श्मिड ने स्पष्ट किया कि जिस ग्रह के कक्ष (वतइपज)का अर्द्धव्यास जितना कम होगा उसका कोणीय संवेग भी उतना कम होगा।
(2) विभिन्न ग्रहों के पदार्थों में अन्तर भी इस परिकल्पना द्वारा स्पष्ट हो जाता है। सूर्य के निकट पाये जाने वाले ग्रह भारी पदार्थों से व दूर पाये जाने वाली ग्रह हल्के पदार्थों से बने है। इसे श्मिड ने बताया कि जब पदार्थ तश्तरी के रूप में सूर्य की परिक्रमा कर रहा था उस समय धूलि कण सूर्य के निकट एकत्रित
हो गये थे तथा सूर्य की किरणें इसे भेदकर दूर तक नहीं जा सकती थी। अतःसूर्य के निकटर्ती क्षेत्र में तापक्रम अधिक था अतः तश्तरी के भीतरी भाग की ओर पदार्थ तप्त होकर भारी पदार्थों में परिवर्तित हुए। तश्तरी के बाहरी हिस्से में ताप की कमी के कारण हल्के पदार्थ का निर्माण हुआ, इसीलिये सूर्य के निकट के ग्रह भारी पदार्थों से बने हैं व दूर के ग्रह हल्के पदार्थों से बने हैं।
(3) सूर्य से ग्रहों की दूरी अलग-अलग पायी जाती है। इसका कारणं धूल की तश्तरी में विभिन दूरियों पर क्षुद्रग्रहों का संगठित होना है। उसमें कोई व्यवस्थित क्रम नहीं हो सकता।
(4) सभी ग्रहों के परिक्रमा पथ का गोलाकार होना व एक ही दिशा में घूमना भली प्रकार समझाया जा सकता है। विभिन्न कणों ने टकराकर अपनी गति का औसत परिणाम (ंअमतंहम व िउवजपवद) प्राप्त किया। इससे सभी ग्रह एक ही कक्ष में परिक्रमा लगाने लगे व एक ही दिशा में घूमने लगे। सी (ैमम) महोदय ने ग्रहो के परिक्रमा पथ के वृत्ताकार होने का कारण सूर्य के चारों ओर बची हुई गैस व धूलिकणों का अवरोधी मध्यम (त्मेपेजपदह उमकपनउ) बताया। रोशे की सीमा सिद्धान्त (ज्ीमवतल व ित्वबीमश्े स्पउपज) से भी इसकी पुष्टि होती है।
आपत्तियाँ: यद्यपि यह सिद्धान्त पृथ्वी व सौरमण्डल की उत्पत्ति को भलीभाँति समझाता है, परन्तु कुछ शंकायें इस पर भी उठायी जाती हैं। विक्टर सेफ्रो नोव ने इस सिद्धान्त को अंशतः सत्य कहा है –
(1) ब्रह्माण्ड में धूल व गैस का बादल कैसे और कहाँ से आया स्पष्ट नहीं होता है।
(2) इस धूल व गैस के बादल को सूर्य ने क्यों व कैसे आकर्षित किया?
(3) ग्रहों की संख्या सिर्फ नौ ही क्यों हुई?
उपरोक्त शंकाओं के रहते हुए भी ओटो श्मिड की परिकल्पना वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित है। आधुनिक परिकल्पनाओं में पृथ्वी की उत्पत्ति से जुड़े पक्षों को यह भलीभाँति स्पष्ट करती है। इसी आधार पर 1949 में अमेरिकी विद्वान क्वीपर, 1951 में फैसन कोव, 1956 में एजबर्थ गोल्ड तथा 1974 में ड्रोबी रोवस्क ने अपने सिद्धान्त प्रस्तुत किये।
महत्वपूर्ण प्रश्न
दीर्घउत्तरीय प्रश्न
1. पृथ्वी की आयु संबंधी विवेचना करते हुए उसके आधारों को स्पष्ट कीजिए।
2. पृथ्वी के इतिहास पर प्रकाश डालिए।
3. पृथ्वी उत्पत्ति संबंधी प्रमुख सिद्धान्तों की विस्तृत में जानकारी दीजिए।
4. लाप्लास की निहारिका परिकल्पना को स्पष्ट कीजिए।
5. चेम्बरलिन तथा मौल्टन की ग्रहाणु परिकल्पना को स्पष्ट कीजिए।
लघुउत्तरीय प्रश्न
1. पृथ्वी की आयु संबंधी व्याख्या संक्षेप में कीजिए।
2. अवसादीकरण से
3. पृथ्वी के उत्पत्ती के सिद्धान्त को संक्षेप में बताइए।
4. लाप्लास की निहारिका परिकल्पना से आप क्या समझते हो?
5. चेम्बरलिन तथा मोल्टन की ग्रहाणु परिकल्पना पर टिप्पणी लिखिए।
6. ज्वारीय सिद्धान्त से आप क्या समझते हो?
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. भारतीय धर्मग्रन्थों के अनुसार पृथ्वी की आयु लगभग
(अ) 2 अरब वर्ष (ब) 40,000 वर्ष (स) 12000 वर्ष (द) 1 लाख वर्ष
2. 1959 में किस देश के राकेट ने सौरमण्डल में बहुत-सी समस्याओं को ढूंढ़ निकाला-
(अ) भारत (ब) रूस (स) जापान (द) अमेरिका
3. होम्स के अनुसार भूपटल पर अवसादों की मोटाई-
(अ) 112 किमी. (ब) 140 किमी (स) 170 किमी. (द) 200 किमी
4. हमारी पृथ्वी सौरमण्डल की एक सदस्य है जिसका केन्द्र-
(अ) चन्द्रमा है (ब) पृथ्वी है (स) सूर्य है (द) तारे हैं
5. तारों के विशाल पुंज को-
(अ) आकाशगंगा (ब) ध्वनि यंत्र (स) चंद्रमा (द) ध्रवतारा
6. अमेरिकी वैज्ञानिक चेम्बरलिन तथा मोल्टन ने ग्रहाणु संबंधी परिकल्पना कब प्रस्तुत की-
(अ) 19012 (ब) 1910 (स) 1904 (द) 1920
7. पृथ्वी और सौरमण्डल की उत्पत्ति के संबंध में एक और द्वितारक सिद्धान्त 1919 में किसने प्रस्तुत किया-
(अ) अरजेक (ब) रूसो (स) कीन्स (द) जेम्स जींस
उत्तरः 1. (अ), 2. (ब), 3.(अ), 4.(स), 5. (अ), 6. (स), 7.(द)
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