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Ostwald’s Dilution law in hindi ओस्टवाल्ड का तनुता नियम किसे कहते है समीकरण क्या है

ओस्टवाल्ड का तनुता नियम किसे कहते है समीकरण क्या है Ostwald’s Dilution law in hindi ?

प्रबल और दुर्बल विद्युत अपघट्य (Strong and Weak Electrolytes) 

298 K पर विभिन्न तनुताओं पर कुछ विशिष्ट विद्युत अपघट्यों की तुल्यांकी चालकताओं के मान सारणी 5.8 में दिए गए हैं।

जैसा कि उपरोक्त सारणी 5.8 से स्पष्ट होता है कि HCI, KCI, NaCl आदि विद्युत अपघटयों की साधारण सान्द्रता पर भी तुल्यांकी चालकता का मान बहुत उच्च होता है और तनु करने पर इनकी तुल्यांकी चालकता में कोई तीव्र परिवर्तन नहीं होता है  (KCI  N / विलयन की तुल्यांकी चालकता 129.0  तथाN/1000 विलयन की 149.9) इस प्रकार के विद्युत अपघटय् प्रबल विद्युत अपघट्य (strong 1000 Electrolytes) कहलाते हैं जबकि CH3COOH, NH4OH आदि का उच्च सान्द्रता पर तुल्यांकी चालकता का मान कम है तथा तनु करनें पर उनकी तुल्यांकी चालकता में तीव्रता से वृद्धि होती है। (CH3COOH N/ 10 विलयन की तुल्यांकी चालकता 5.2 तथा N /1000 विलयन की 49.2) इस प्रकार के विद्युत अपघट्य दुर्बल विद्युत अपघट्य (weak Electrolytes) कहलाते हैं।

यदि स्थिर ताप पर विद्युत अपघट्यों की तुल्यांकी चालकताओं को सान्द्रता के वर्गमूल (C) के विरूद्ध आलेखित किया जावे ( चित्र 5.6) तो दो बाते स्पष्ट है (i) कम सान्द्रता पर प्रबल विद्युत अपघट्य जैसे KCI, Na2SO4 और CH3COOH के आलेख विशेष रूप से लगभग सीधी रेखाऐं ( almost linear) है जबकि दुर्बल विद्युत अपघट्यों जैसे CH3COOH के लिए ये आलेख एक सीधी रेखा में नहीं होते अर्थात अरेखीय (non linear) होते हैं। अतः वे विद्युत अपघट्य जो रेखीय आलेख देते हैं प्रबल विद्युत अपघट्य कहलाते हैं। जबकि अरेखीय आलेख वाले दुर्बल विद्युत अपघट्य कहलाते हैं।

कोलराऊश ने प्रबल विद्युत अपघट्यों के लिए विभिन्न तनुता पर तुल्यांकी चालकता के लिए एक सूत्र दिया जो निम्न है –

जहाँ b एक स्थिरांक अनन्त तनुता पर तुल्यांकी चालकता तथा सान्द्रता c पर तुल्यांकी चालकता है। कोलराऊश का नियम दुर्बल विद्युत अपघट्य के लिए उपयोगी नहीं है। प्रबल विद्युत अपघटयों की तुल्यांकी चालकता का चरम मान (limiting value) (अनन्त तनुता पर) आलेख को शून् सान्द्रता तक बहिर्वेशन (Extra polation) करके प्राप्त किया जा सकता है। जबकि दुर्बल विद्युत अपघटयों के लिए यह बहिर्वेशन विधि काम में नहीं ली जा सकती, जैसा कि CH3COOH के वक्र से स्पष्ट है क्योंकि शून्य सान्द्रता के समीप यह वक्र लगभग स्पर्श रेखीय (Tangential) है।

तनुता पर तुल्यांकी चालकता में वृद्धि केवल विद्युत अपघट्य के आयनन की मात्रा (Dergee of ionisation) में वृद्धि के कारण होती है। अतः यह बात स्पष्ट है कि तुल्यांकी चालकता का एक निश्चित मान प्राप्त होता है। इस तनुता पर आयनन की मात्रा भी निश्चित होगी। इसलिए किसी तनुता पर यदि तुल्यांकी चालकता का मान A, आयनन की मात्रा और अनन्त तनुता पर तुल्यांकी चालकता हो

तनुता बढ़ाने पर वियोजन की मात्रा बढ़ती है लेकिन यह केवल दुर्बल विद्युत अपघटयों जैसे _CH3COOH, NH 4OH आदि के लिए ठीक है और दुर्बल विद्युत अपघट्यों की आयनन की मात्रा ज्ञात करने के लिए चालकता मापन एक अच्छी विधि है। परन्तु प्रबल विद्युत अपघटयों के लिए सभी सान्द्रताओं पर पूर्ण आयनन होता है अतः सामान्यतः प्रबल विद्युत अपघटयों की तुल्यांकी चालकता में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए अतः प्रबल विद्युत अपघटयों के लिए आयनन की मात्रा का मान न होकर चालकता अनुपात को बताता है ।

ओस्टवाल्ड का तनुता नियम (Ostwald’s Dilution law) आरेनियस द्वारा समझाये गये आयनिक साम्य पर द्रव्य अनुपाती क्रिया नियम का उपयोग करके ओस्टवाल्ड ने एक तनुता नियम प्रतिपादित किया जिसे ओस्टवाल्ड तनुता का नियम कहते हैं। माना कि AB एक सामान्य विद्युत अपघट्य है। AB को जल में घोलने पर इसका वियोजन निम्न प्रकार से होता है

AB ⇒  A+ + B

यदि AB की सान्द्रता मोल प्रति लिटर हो तथा वियोजन की मात्रा हो तो साम्यावस्था पर सान्द्रतायें निम्न प्रकार से दी जा सकती है-

समीकरण (33) ओस्टवाल्ड तनुता सूत्र कहलाता है। K आयनन स्थिरांक अथवा वियोजन स्थिरांक (Ionisation constant or Dissociation constant) कहलाता है। यदि x का मान 1 की तुलना में बहुत कम हो तो (1-a) = 1

समीकरण (35) के अनुसार “एक निश्चित ताप पर विद्युत अपघट्य के वियोजन की मात्रा उसके विलयन की सान्द्रता के वर्गमूल के व्युत्क्रमानुपाती होती है”, अथवा आयतन के वर्गमूल के अनुक्रमानुपाती (समानुपाती) होती है।

एक सामान्य विद्युत अपघट्य Ax By के लिये भी वियोजन स्थिरांक व वियोजन की मात्रा में सम्बन्ध ज्ञात किया जा सकता है। यदि c मोल प्रति लिटर प्रारम्भिक सान्द्रता हो तो, Ax By का वियोजन निम्न प्रकर से व्यक्त किया जा सकता है।

समीकरण (38) ओस्टवाल्ड तनुता नियम का एक व्यापक सूत्र है जिसे प्रत्येक प्रकार के विद्युत अपघट्य जैसे— एक–एक संयोजी (AB), एक द्विसंयोजी (A2B), द्वि-एक संयोजी (AB2) आदि के लिए काम में लाया जाता है।

ओस्टवाल्ड तनुता नियम का प्रायोगिक सत्यापन (Experimental Verification of Ostwald Dulution Law)

• ओस्टवाल्ड नियम के प्रायोगिक सत्यापन के लिये आरेनियस द्वारा वियोजन की मात्रा के लिए दिये गये सूत्र (समीकरण 31 ) का उपयोग करते हैं।

समीकरण (31) से a का मान समीकरण ( 33 ) में रखने पर

किसी विद्युत अपघट्य की विभिन्न सान्द्रताओं (c) पर तुल्यांकी चालकताओं के मान ज्ञात किये जाते हैं। अनन्त तनुता पर तुल्यांकी चालकता (A) का मान कोलराऊश नियम-

द्वारा ज्ञात किया जाता है।  तथा c के मानों को समीकरण (39) में प्रतिस्थापित करके विभिन्न सान्द्रताओं पर K के मान ज्ञात किये जाते हैं। K के ज्ञात मान उचित रूप में स्थिर पाये जाते हैं। K के मानों का स्थिर पाया जाना, औस्टवाल्ड के नियम को सत्यापित करता है। ऐसीटिक अम्ल के वियोजन स्थिरांकों के कुछ मान सारणी 5.9 में दिये गये हैं। जो ओस्टवाल्ड के नियमों का प्रायोगिक सत्यापन है।-

ओस्टवाल्ड के तनुता नियम द्वारा आरेनियस के विद्युत अपघटनी सिद्धान्त को बहुत बल मिला। आरेनियस सिद्धान्त की पुष्टि के लिए और भी कई प्रमाण (evidence) दिये जा सकते हैं, जैसे- प्रबल अम्ल एवं प्रबल क्षार की उदासीनीकरण ऊष्मा का स्थिर होना, विलयन में अभिक्रियाओं का आयनिक होना, तुल्यांकी चालकता का तनुता के साथ बढ़ना आदि। इन प्रमाणों का विस्तृत वर्णन हम पिछली कक्षाओं में पढ़ चुके हैं

 प्रबल विद्युत अपघट्यों के सिद्धान्त (Theory of Strong Electrolytes) ओस्टवाल्ड तनुता का नियम प्रबल विद्युत अपघट्यों के लिए लागू नहीं हो सकता तथा दुर्बल विद्युत अपघट्यों के लिए अधिक सान्द्रता पर यह नियम विचलित होता है। अर्थात् साम्य स्थिरांक का मान स्थिर नहीं आता है। प्रबल विद्युत अपघट्यों के लिए इस असंगत व्यवहार को समझाने के लिए सदरलैण्ड (1906) बेरूम घोष (1918) आदि वैज्ञानिकों ने समय-समय पर आनुमानिक सूत्र सुझायें। आयनीकरण के कुछ आनुमानिक सूत्र निम्नानुसार है-

किन्तु इनमें से किसी भी सूत्र से संतोषजनक परिणाम प्राप्त नहीं हो सके क्योंकि सभी तनुता के एक सीमित परास में ही प्रयुक्त किये जा सकते हैं। ऐसा समझा जाता है कि इन सूत्रों की व्युत्पत्ति में विद्युत अपघट्यों के असंगतम व्यवहार के वास्तविक कारणों को सम्मिलित नहीं किया गया था। 1923 में डेबाई और हुकेल ने प्रबल विद्युत अपघट्यों का एक मार्गदर्शन सिद्धान्त प्रस्तुत किया तथा बाद में आन्सेगर (Onsagers) ने 1926 में इसमें संशोधन किया ।

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